ऋचा / भाग-2 / पुष्पा सक्सेना

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कॅालेज जाने के पहले ऋचा अखबार के कार्यालय पहॅंची थी। सम्पादक की टेबिल पर अखबार में छपी खबर पटक, उत्तेजित ऋचा ने सवाल किया -

"इस अन्याय का क्या मतलब है? घटना की पूरी खोजबीन करके रिपोर्ट मैंने तैयार की, पर नाम सीतेश का है ? रिपोर्ट भी पूरी नहीं छापी गई, क्योंए सर ?"

"देखो ऋचा, सच यह है, लड़कियों के साथ हुए हादसे की रिपोर्टिग अगर कोई लड़की करती है तो कभी-कभी लोगों को उसपर कम विश्वास होता है।"

"आपका कहने का क्या मतलब है, सर?"

"ठीक कह रहा हूँ, लोग सोचते हैं, एक लड़की की दूसरी लड़की के साथ हमदर्दी होना वाजिब है। हो सकता है, घटना बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है। सीतेश का तुम्हारे साथ नाम देने से घटना की विश्वसनीयता बढ़ी है।"

"मैं यह बात नहीं मानती। विश्वसनीयता अखबार की होती है। कामिनी से सच निकलवाने में मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ी थी, आप नहीं जानते।"

"मैं तुम्हारे काम की कद्र करता हूँ। मुझे विश्वास है, तुम एक अच्छी पत्रकार बनोगी। वैसे कामिनी के केस की सच्चाई क्या है, ऋचा?"

"सर, कामिनी को नौकरी मजबूरी में करनी पड़ रही है। अपनी विधवा माँ और दो छोटी बहिनों का वही सहारा है। उसकी इसी मजबूरी का फायदा कम्पनी के चीफ़ नागेश्वर राय उठाते रहे। बहाने बनाकर देर रात तक रोकना, रोज की बात थी।"

"देखो ऋचा, लड़कियाँ अगर काम पर बाहर निकलती हैं तो काम की वजह से देर हो ही सकती है। एक ओर वे समान अधिकारों की बात करती हैं और दूसरी ओर लड़की होने का फ़ायदा उठाना चाहती हैं।"

"आप गलत समझ रहे हैं, सर। बात सिर्फ देर तक रूकने की नहीं है। अगर आपने मेरी रिपोर्ट पढ़ी है तो जान गए होंगे, पार्टी अरेंज कराने के बहाने नागेश्वर राय कामिनी को होटल ले गए और वहाँ उसे कोल्ड डिंªक में नशा मिलाकर दिया गया ...........।"

"यह सच नहीं है, नागेश्वर राय ने बताया है। कामिनी अपनी मजबूरियों के बहाने उनसे रूपए एंेठती रही है। उस रात भी वह खुद अपनी मर्जी से उनके साथ गई थी।"

"ओह! तोे आपको नागेश्वर राय की सच्चाई में यकीन है? क्या इसीलिए कामिनी की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर उन्होंने उसका शील-हरण किया?" मन का सारा आक्रोश ऋचा के स्वर में उभर आया।

"देखो ऋचा, नागेश्वर राय शहर के सम्मानित व्यक्ति हैं। बेसहारा लड़कियों, अनाथ बच्चों के लिए वह एक मसीहा हैं। उनपर छींटें उड़ना ठीक नहीं। फिर भी तुम्हें उत्साहित करने के लिए खबर छापने की इजाजत दे दी थी।"

"थैंक्स, पर मैं इस घटना की जानकारी पुलिस में दूँगी।"

"कोई फ़ायदा नहीं। क्या कामिनी का तुरन्त मेडिकल चेक-अप किया गया था? पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गई थी?"

"नहीं, क्योंकि कामिनी बेहद डर गई थी। उसके घरवालों को बदनामी का डर था।"

"फिर इस घटना को भूल जाओ। कोर्ट में मेडिकल रिपोर्ट चाहिए। पुलिस में एफ.आई.आर. दर्ज न कराना, तुम्हारे केस को कमजोर कर देगा। मैं अनुभवी इन्सान हूँ। कामिनी के साथ सहानुभूति है, पर इस केस में कोई दम नहीं है, ऋचा।"

सम्पादक जी ने अपनी बात खत्म कर, कागजों में सिर झुका लिया। क्षुब्ध ऋचा बाहर चली आई। सम्पादक की बातों में कुछ सच्चाई तो जरूर है। कोर्ट में उसने देखा है, मेडिकल रिपोर्ट की सच्चाई भी साक्ष्यों के अभाव में झुठला दी जाती है। कुछेक बार तो लड़की पर चरित्रहीनता का इल्ज़ाम तक लगया गया है। लड़की का बयान कोई अर्थ नहीं रखता। ज़रूरत होती है किसी चश्मदीद गवाह की, जिसने पूरा रस लेकर, बलात्कार की घटना को शुरू से आखिर तक देखा हो।

बेमन से ऋचा कॅालेज पहुँची। क्लास के लेक्चर पर ध्यान देना कठिन लग रहा था। पत्रकारिता के कोर्स का यह अन्तिम वर्ष है। परीक्षा के लिए एक महीना ही बचा है, उसे जी-तोड़ मेहनत करनी होगी।

क्लास से बाहर आते ही विशाल को इन्तजार में खड़े पाया। ऋचा को देखते ही विशाल के चेहरे पर मुस्कान आ गई-

"हेलो, ऋचा। कल का उधार उतारेंगी?"

"उधार, कौन-सा उधार?"

"वाह! पत्रकार अपना वादा इतनी जल्दी भूल जाते है।? अजी मोहतरमा, एक कम काॅफी मुझपर उधार है। सिर पर उधार हो तो भला नींद आ सकती है! इस बोझ को जल्दी-से-जल्दी उतारना चाहता हूँ। चलें?"

"आज मूड नहीं है..............।"

"कॅाफ़ी आपका मूड बदल देगी, यह मेरा वादा है।"

मजबूरन ऋचा को विशाल के साथ जाना पड़ा था। वैसे भी घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी। स्मिता आज कॅालेज नहीं आई थी। उसका भी हाल पता करना होगा। नीरज और स्मिता के साथ ऋचा को अच्छा लगता है। नीरज एम.काॅम. फाइनल परीक्षा के साथ बैंक-परीक्षा की तैयारी में जुटा है। आज अगर वे दोनों साथ होते तो ऋचा उनके साथ कामिनी की बात करके मन हल्का कर लेती।

कॅाफ़ी-हाउस में उस वक्त भीड़ थी। एक कोने की मेज खाली देख, विशाल ऋचा के साथ उसी ओर बढ़ गया।

"देख रहा हूँू, लोग यहाँ पढ़ने नहीं, कॅाफ़ी पीने आते हैं।" विशाल ने चारों ओर नजर घुमाई थी।

"आप भी उन लोगों में से एक हैं न?"

"जी नहीं, बन्दा क्लासेज ख़त्म करके आया है। वैसे भी नेक्स्ट वीक से प्रिपरेशन लीव शुरू हो रही है। आपकी क्लासेज भी तो खत्म हो रही होंगी?"

"हाँ, शायद एक वीक और आना होगा।"

"उसके बाद हम कैसे मिलेंगे?"

"क्यों, हमारे मिलने की अब और कौन-सी वजह होगी? आज तो हम आपका उधार उतारने आए है।"

"दिल की चाहत भी कोई चीज होती है, ऋचा। मेरा जी चाहता है, हम रोज मिलते रहें।"

"अपने दिल को काबू में रखिए, जनाब। दिल की हर बात मानना ठीक नहीं होता।"

"एक बात बताइए, आज आपके चेहरे पर कुछ नाराज़गी क्यों है?"

"छोड़िए, वह मेरा पर्सनल मामला है, अब आप कॅाफ़ी मॅंगा रहे हैं या यूंॅ ही बैठे बातंे करते रहेंगे?"

"साॅरी, आपका मूड देखकर लगता है, आपको कोल्ड कॅाफ़ी देनी चाहिए। क्यों ठीक कहा न? कोल्ड कॅाफ़ी ही आपका पारा नीचे ला पाएगी।" विशाल ने हॅंसते हुए वेटर को दो कोल्ड कॅाफ़ी लाने का आॅर्डर दे दिया।

कोल्ड कॅाफ़ी का सिप लेते हुए विशाल ने ऋचा से फिर उसकी नाराज़गी की वजह जाननी चाही थी। अनजाने ही कामिनी की घटना सुनाकर, रिपोर्टिग में फेर-बदल की बात भी ऋचा सुना गई। पूरी बात सुनकर विशाल गम्भीर हो गया। शान्त रहकर उसने ऋचा को समझाना चाहा -

"पत्रकार को सफलता आसानी से नहीं मिलती। कई बार तो उसकी जान पर भी आ पड़ती है। ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ, बड़ी घटनाओं का सावधानी से मुकाबला करने की समझ देती हैं। ऐसी बातों से निराश न होकर, आगे के लिए तैयार रहना चाहिए, ऋचा।"

विशाल की बातों ने ऋचा को राहत-सी दी। ठीक कहता है विशाल। कामिनी के केस मे जो कमियाँ रह गई, अगली बार वैसी ग़लतियाँ नहीं होनी चाहिए।

"थैंक्स! अापकी बातें याद रहेंगी।"

"मेरी बातें नहीं, मुझे याद रखिएगा, यही इल्तिज़ा है।" विशाल परिहास पर उतर आया।

"बातें ही इन्सान को उसका व्यक्तित्व देती है।, विशाल जी।" ऋचा भी हॅंस रही थी।

"देखिए मैं वकील हूँ, आपको कुछ देर पहले जो राय दी, उसकी फ़ीस तो देनी होगी?"

"वाह! हमने कौन-सी राय माँगी थी? आप तो बड़े अच्छे वकील बनेंगे। बताइए, क्या फ़ीस चाहिए?"

"कल शाम कम्पनी गार्डेन में मिलते हैं। ठीक पाॅच बजे आपका इन्तजार करूँगा। कहिए, मामूली फ़ीस है न मेरी?"

"चलिए, मंजूर है, बशर्ते क्वालिटी की आइसक्रीम आप खिलाएँगे।" ऋचा की आवाज में शोखी उभर आई।

घर वापस लौटती ऋचा का मन हल्का हो आया। सुबह का आक्रोश और क्षोभ मिट चुका था। कामिनी के बाॅस से वह जरूर बात करेगी। उन्हें यॅंू ही नहीं छोड़ेगी। वह कामिनी से क्षमा माँगेंगे। उसकी दूसरे विभाग में नियुक्ति करें, तभी उन्हें छोड़ा जा सकता है। इस काम में वह विशाल और रोहित की मदद लेगी। कॅालेज के यूनियन का तेज-तर्रार प्रेसीडेंट रोहित अन्याय के विरूद्ध लड़ने के लिए मशहूर है। धनी बाप का इकलौता बेटा रोहित शहर में एक बड़ा-सा घर लेकर रहता है। ऋचा भी रोहित को मानती है। कुछ केसेज में रोहित ने ऋचा की मदद की है। दोनों में अच्छी मित्रता है, पर रोहित ने कॅालेज की लड़कियों के साथ अपनी दोस्ती का कभी फ़ायदा नहीं उठाया। ऋ़चा को रोहित की सहायता का पूरा विश्वास रहता है।

दरवाजा खोलते आकाश ने खबर दी, नीरज और स्मिता बड़ी देर से ऋचा का इन्तजार कर रहे हैं। दोनों परेशान दिख रहे हैं, उसपर माँ उनसे ऋचा दीदी की शिकायतें करके, उन्हें और परेशान कर रही हैं।

"अरे स्मिता-नीरज, मैं तो तुम्हें कॅालेज में ढॅूँढ़ रही थी। तुम दोनों आज कॅालेज क्यों नहीं आए?"

"कुछ ज़रूरी काम था। ऋचा, हमें तुझसे कुछ खास बातें करनी हैं।" बात खत्म करती स्मिता ने पास बैठी ऋचा की माँ पर दृष्टि डाली थी।

"माँ, इनके लिए कुछ चाय-नाश्ता आकाश के हाथ भिजवा सकोगी?" ऋचा की बात पर मॅंुह-ही-मुँह में कुछ बुदबुदाती माँ चली गई।

"अब बता, क्या बात है, स्मिता? कोई ख़ास बात है, क्या?"

"हाँ, ऋचा, पर यहाँ सारी बात बता पाना मुश्किल है।" स्मिता ने बुझे स्वर में कहा।

"कुछ अता-पता तो बता। नीरज, आप ही बताइए, क्या बात है?"

"स्मिता के लिए अमेरिका से रिश्ता आया है। इसके घरवालों ने 'हाँ' कर दी है। अगले हफ्ते ही प्रशान्त और स्मिता की शादी होना तय हुआ है। समझ में नहीं आता कि क्या करें?"

"तेरी मर्जी पूछी गई थी, स्मिता?"

"लड़कियांे की मर्जी कितने घरों में पूछी जाती है, ऋचा। मम्मी-पापा की निगाह में अमेरिका में नौकरी करने वाले लड़के से अच्छा वर मिलना कठिन है।"

"भले ही वहाँ उसने किसी अमेरिकन लड़की से शादी कर रखी हो। तेरे मम्मी-पापा प्रशान्त को कितना जानते हैं, स्मिता?" ऋचा के स्वर में आक्रोश था।

"शायद बिल्कुल नहीं, अखबार में शादी के लिए एडवर्टाइज किया था। पापा ने फोन पर बात की और आज सवेरे वह घर आकर 'हाँ' कर गया।"

"वाह! यह तो परी-लोक वाली कहानी हो गई। सपनों का राजकुमार हवाई जहाज में बैठकर आया। हमारी शहजादी स्मिता को देखा और जेट-स्पीड में शादी की तैयारी कर डाली।" ऋचा हॅंस पड़ी।

"देख ऋचा, यह वक्त मजाक करने का नहीं है। हमारी जान पर आ गई है और तुझे कहानियाँ सूझ रही है?" स्मिता रोने-रोने को हो आई।

"नीरज, आपका क्या कहना है?" ऋचा अब गम्भीर थी।

"मेरी स्थिति तो आपसे छिपी नहीं है। अभी मेरी नौकरी नहीं है। बाबूजी पर बोझ हूँ। नौकरी के लिए कम-से-कम पाँच-सात महीने तो इन्तजार करना ही होगा। मेरा भविष्य अनिश्चित है......।"

"यानी आप मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। क्या स्मिता से आपका प्यार बस यहीं तक था?"

"नहीं, ऋचा। मैं स्मिता को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ, पर आज की स्थिति में मैं उसे सपोर्ट कैसे करूँगा? आप तो जानती हैं, स्मिता के घर किसी चीज की कमी नही है। वह हमारे घर के अभावों को कैसे झेल सकेगी?"

"मैं तुम्हारे साथ किसी भी स्थिति में खुश रहूँगी, नीरज। तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकती।" स्मिता ने रूमाल से आँसू पोंछ डाले।

"नीरज, आपका क्या सोचना है?" ऋचा की सवालिया दृष्टि नीरज पर गड़ गई।

"सच तो यही है कि मैं भी स्मिता को बेहद प्यार करता हूंॅ। प्यार में धोखे का सवाल नहीं उठता। ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई स्मिता को जान लेनी चाहिए। मेरे साथ उसे काँटों की सेज पर सोना होगा, ऋचा।"

"मैं तैयार हूँ, नीरज के साथ मुझे काँटों की चुभन भी महसूस नहीं होगी। नीरज के सिवा मैं और किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती।" स्मिता ने आँसू रोकने चाहे थे।

"तूने अपनी मम्मी से नीरज के बारे में बात नहीं की, स्मिता?"

"बात की थी, ऋचा, पर पूरी बात सुनने के पहले ही वह गुस्से से काँपने लगीं। उनका वश चले तो वह नीरज को ही नहीं, उसके परिवार वालों को भी जेल में सड़ने को डलवा दें। हाँ, ऋचा, उन्होंने यही धमकी दी है कि अगर मैं नीरज से शादी की बात करूँगी तो वह नीरज का भविष्य ख़त्म करा, उसे दर-दर का भिखारी बना देंगी।"

"तेरे पापा का क्या रूख होगा, स्मिता?"

"पापा तो शायद मेरा खून करके अपने को भी गोली मारकर खत्म कर लेंगे। वे लोग बेेहद क्लास-कांशस हैं, ऋचा।"

"इस हालत में तो बस एक ही तरीका है।"

कौन-सा तरीका, ऋचा?

"तुम दोनों फ़ौरन शादी कर लो।"

"क्या ......आ ...........?" स्मिता चैंक गई।

"तुम दोनों बालिग हो। जिन्दगी के फ़ैसले लेने का तुम्हें पूरा हक है।"

"यह तो मैंने भी सोचा था, पर शादी के बाद मैं स्मिता की ज़रूरतें कैसे पूरी करूँगा। स्मिता मेरी ज़िम्मेवारी है, इसका भार बाबूजी पर कैसे डालूँ, ऋचा?"

"इस मामले में हमें रोहित की मदद लेनी होगी। याद है, पिछले साल रोहित ने नेहा और राहुल की शादी कितनी विषम परिस्थितयों में कराई थी। हमें रोहित से मिलना होगा।"

"तो देर क्यों, हम अभी रोहित के घर चलते हैं, ऋचा। पता नहीं, कल घर से बाहर आ सकॅंू या नहीं। माँ का पहरा तोड़ना आसान नहीं होगा।"

"वाह! इसका मतलब आज भी पहरा तोड़कर हमारी अनारकली अपने सलीम से मिलने आई है। चलो, हम अभी रोहित के पास चलते हैं।" इस वक्त भी ऋचा परिहास करने से नही चूकी।

ऋचा के फिर बाहर जाने की बात पर माँ का पारा चढ़ना स्वाभाविक ही था। लड़की का पाँव घर में टिकता ही नहीं। आने की देर नहीं, फिर जाने को तैयार बैठी है। लड़कियों के भला ये लच्छन ठीक हैं? न जाने क्या खुसुर-पुसुर चल रही है! जने क्या करने पर तुली है!

माँ की नाराज़गी की परवाह न कर, ऋचा, स्मिता और नीरज के साथ बाहर निकल गई। आॅटो से तीनों रोहित के घर पहंॅुचे। रास्ते में ऋचा मनाती रही, रोहित घर में ही मिल जाए। अकेलापन काटने के लिए अक्सर रोहित यार-दोस्तों के साथ महफ़िल जमाता है। फक्कड़ स्वभाव का रोहित, सबको प्रिय था। काॅल-बेल पर रोहित को दरवाज़ा खोलता देख, ऋचा ने चैन की साँस ली -

"थैंक्स गाॅड, रोहित, तुम घर पर हो।"

"क्यों मेरा रेपुटेशन बिगाड़ रही हो? वैसे इस वक्त आने की वजह? ज़रूर सीरियस मामला है। ये तुम्हारे अन्दर का पत्रकार भविष्य में तुम्हारे पति का जानी दुश्मन जरूर बन जाएगा। अभी से वाॅर्न कर रहा हूँ।" रोहित हॅंस रहा था।

"थैंक्स फाॅर दि वार्निग। क्या हम अन्दर आ सकते हैं या दरवाजे पर ही खडे़ रहना होगा?" ऋचा मुस्करा रही थी।

"ओह! अायम साॅरी। आओ।"

सबके बैठ जाने पर ऋचा ने संक्षेप में स्मिता और नीरज की समस्या बता दी। इसके पहले भी कई मामलों में ऋचा ने रोहित की मदद ली थी। दोनों के बीच बहुत अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी। कुछ देर सोचने के बाद चुटकी बजाते रोहित के चेहरे पर खुशी आ गई।

"लो, तुम्हारी समस्या का समाधान अभी किए देता हूँ। मेरे एक दोस्त को अकाउंट्स रखने के लिए एक ईमानदार आदमी की तलाश है। वैसे नीरज की क्वालीफ़िकेशन के लिए यह काम छोटा है, पर इस वक्त नीरज को पैर जमाने के लिए एक सहारा हो जाएगा। शाम को दो-तीन घण्टे मेरे दोस्त का अकाउंट देख लेगा। वह अच्छी तनख्वाह दे सकता है।"

"मैं तैयार हूँ। इस मदद के लिए आभारी हूँ।" नीरज का चेहरा चमक उठा

"चलो, एक मुख्य समस्या का हल तो मिल गया, पर रहने की जगह की समस्या तो हल नहीं होगी, रोहित?"

"यह सच है, हमारा घर बहुत छोटा है और इन परिस्थितियों में शादी करने के बाद क्या होगा, कह नहीं सकता।" नीरज सोच में पड़ गया।