ऋषि कपूर : मासूमियत से बूचड़खाने तक / जयप्रकाश चौकसे

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ऋषि कपूर : मासूमियत से बूचड़खाने तक

प्रकाशन तिथि : 14 सितम्बर 2012


आज दिल्ली में एक संस्था ने ऋषि कपूर का सम्मान और उनकी कुछ फिल्मों का पुनरावलोकन समारोह आयोजित किया है। इस तरह के पुनरावलोकन के लिए कलाकार की प्रतिनिधि फिल्में मिलना कठिन हो जाता है, क्योंकि जिनके पास वितरण अधिकार हैं, वे बहुत अधिक धन मांगते हैं। जिस कलाकार की फिल्मों से पैसा कमाया, उसी के सम्मान समारोह में सहयोग नहीं करते। बहरहाल, पुनरावलोकन में 'मेरा नाम जोकर' का शुरुआती हिस्सा रखने पर ऋषि कपूर के ४२ वर्ष के सफर का प्रारंभ देखने से लेकर उनके 'अग्निपथ' में खलनायक के रूप में काम करने तक को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता था। इस बात का भी शिद्दत से अहसास होता कि मासूमियत का युग हम कितना पीछे छोड़कर आज कसाई-युग में आ गए हैं और सांस्कृतिक मूल्यों के मामले में हम बूचडख़ाने में सांस ले रहे हैं। पठान ऋषि कपूर शाकाहारी नहीं हैं, परंतु कीमा कूटते हम उन्हें 'अग्निपथ' में देख सकते हैं।

आज के दौर में फिल्मकारों का सोच कुछ ऐसा हो गया है कि हबीब फैजल की 'दो दुनी चार' में ऋषि कपूर की गणित के शिक्षक की छवि को कोई दोहराना नहीं चाहता, परंतु 'कसाई' के साथ बार-बार फिल्म बनाना चाहते हैं। आजकल वह गुडग़ांव में आदित्य चोपड़ा की 'औरंगजेब' की शूटिंग कर रहे हैं और फिल्म में अपनी क्रूरता के कारण लोग उन्हें औरंगजेब के नाम से पुकारते हैं।

गौरतलब है कि औरंगजेब हिंदुस्तान के मुगल कालखंड में ऐसा बादशाह हुआ है, जिसके बारे में उलटबासियां ही सुनाई जाती हैं। यहां तक कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में वह नायक की तरह प्रस्तुत किया गया है और हिंदुस्तान में अकबर नायक और औरंगजेब खलनायक की तरह पढ़ाया जाता है। दरअसल इतिहास की लोकप्रिय कथाओं में अफसाने ज्यादा हैं और हकीकत कम। औरंगजेब ने अपने चार भाइयों का कत्ल किया और पिता को कैद किया। चार भाइयों को निर्ममता से मारने वाले ने पिता को नहीं मारा और उसे कैद करके कारागार में नहीं, वरन एक महल में रखा। अपने रॉयल कैदी से उसने पूछा भी कि वह बतौर कैदी किस तरह वक्त गुजारना पसंद करेंगे, तो शाहजहां ने कहा कि वह बच्चों को पढ़ाना पसंद करेंगे। तब औरंगजेब ने कहा कि आपके मन से बादशाहत नहीं गई, गोयाकि शिक्षक भी शहंशाह ही होता है। औरंगजेब को समझना कठिन है। उसने अपने पिता को १६५८ में कैद किया और १६६६ में उनका इंतकाल होने पर उनके जनाजे को बाकायदा बादशाह की गरिमा से ले जाया गया। औरंगजेब के विद्रोह का आधार व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा तो था ही, परंतु उसे शाहजहां का ताजमहल पर इतना धन खर्च करना पसंद नहीं था और ताजमहल के निर्माण वर्षों में मुल्क में छाई रुमानी हवा उसे सख्त नापसंद थी, गोयाकि वह रोमांटिस्ट नहीं वरन क्लासिस्ट मिजाज का था। संभवत: उसकी शख्सियत शाहजहां के कार्यों के खिलाफ सख्त प्रतिक्रियाओं से बनी थी। वह जिरहबख्तर उतार भी देता तो उसे महसूस होता, मानो पहना है और शाहजहां खून से सनी तलवार हाथ में लिए हुए भी संगीत का आनंद उठा लेता था। दारा शिकोह जैसे संस्कृत सीखने वाले को हाथी से कुचलवा देने वाले औरंगजेब ने गुजरात के उस साहूकार को धन वापस दिया, जिससे दारा ने औरंगजेब के खिलाफ लडऩे के लिए पैसा उधार लिया था।

बहरहाल, आदित्य चोपड़ा की गुडग़ांव में शूट होने वाली आधुनिक फिल्म का इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है। वह तो आज के विचित्र विकास के तहत नए उभरते शहरों में पनपते अपराध की कथा है। वह कौन-सी आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां हैं, जिनके कारण समानांतर सरकारें बनती हैं। इस फिल्म में अर्जुन कपूर की दोहरी भूमिकाएं हैं और कॅरिअर की दूसरी ही फिल्म में यह एक चुनौती हो सकती है। ऋषि कपूर ने अपने लंबे कॅरिअर के दौरान सबसे अधिक एकल नायक सफल फिल्में की हैं और सर्वाधिक नई नायिकाओं के साथ काम किया है। यह अफसोस की बात है कि न फिल्म उद्योग ने उनके योगदान को यथेष्ट सराहा व पुरस्कृत किया है और न ही सरकार ने उन्हें सम्मान से नवाजा है, जबकि उनके वर्षों बाद आने वाले कमतर अभिनेताओं को पुरस्कृत किया गया है। दरअसल ऋषि कपूर अपने लिए किसी प्रचार तंत्र का इस्तेमाल नहीं करते।

आज उनके पुत्र रणबीर अभिनय क्षेत्र में कीर्तिमान रच रहे हैं। कपूर परिवार में दूसर बार पिता-पुत्र की विलक्षण जोड़ी सामने आई है। याद कीजिए 'आवारा' में पृथ्वीराज और राज कपूर को। सबसे सुखद बात यह है कि इस परिवार में कोई भी पुत्र पिता की कार्बन कॉपी नहीं है। सभी की शैलियां मौलिक रही हैं, यहां तक कि रणबीर चैपलिनस्क 'बर्फी' में भी राज कपूर की प्रतिछाया नहीं है।