एकता कपूर अमेरिकी विश्वविद्यालय में / जयप्रकाश चौकसे

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एकता कपूर अमेरिकी विश्वविद्यालय में
प्रकाशन तिथि : 10 मई 2013


सीरियल संसार की महारानी एकता कपूर मई माह में अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में व्यवसाय प्रबंधन का एक कोर्स कर रही हैं। यह कोर्स उन लोगों के लिए है जो अपनी स्वयं की कंपनी के प्रमुख प्रबंधक है। इसका एक विषय तेजी से बदलता अर्थशास्त्र है। इस दौर में अर्थशास्त्र राजनीति पर हावी है और दुनिया के अनेक प्रमुख नेता किसी न किसी बड़ी कंपनी के हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक फैसले ले रहे हैं। बाजार संसदों को संचालित कर रहा है। अनेक दशकों से नेता-उद्योगपति गठबंधन इस आपसी समझदारी पर काम कर रहा है कि उद्योगपति नेता को चुनाव जीतने के लिए पैसा और साधन उपलब्ध कराता है और नेता सत्ता प्राप्त करके उद्योगपति को धन कमाने के लाइसेंस दिलाता है।

इस घिनौने गठबंधन के बीच की कड़ी में दलाल और आला अफसर सक्रिय रहते हैं। राजकपूर की राम तेरी गंगा मैली की कथा का आधार यही गठबंधन था। वह महज प्रेम कथा नहीं थी वरन सत्ता और धन के गठबंधन से सांस्कृतिक मूल्यों के पतन की कथा थी और उसी दौर में जेपी दत्ता की बंटवारा में आजादी के पहले एक पात्र दलाल से कहता है कि अंग्रेजों और सामंतवाद के दौरे के खत्म होने पर दलालों का काम भी खत्म हो जाएगा। दलाल कहता है कि दलाली किसी दौर में खत्म नहीं हुई और न होगी। स्वतंत्र भारत तो दलाली का स्वर्ण काल सिद्ध हुआ। बहरहाल, आज से दो दशक पूर्व एकता कपूर ने अपने बंगले के गैरेज में छोटा सा दफ्तर बनाया और उनकी पूंजी पिता द्वारा दिए गए मात्र दो लाख रुपए थी। बड़ी जद्दोजहद के बाद उन्हें 'हम पांच' नामक सीरियल मिला जिसके निर्देशक थे कपिल कपूर जो चरित्र अभिनेता कमल कपूर के पुत्र थे। धीरे-धीरे मेहनत करके एकता कपूर ने सीरियल संसार में सास-बहू कहानियों की भरमार कर दी। अति नाटकीयता, लिजलिजी भावनाएं, कुरीतियों का प्रचार करते हुए पारिवारिकता के तथाकथित गरिमा गान से उनसे ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की। उदारवाद के कारण उभरते नौकरी पेशा मध्यम वर्ग के थके मांदे पुरुष, मोबाइल के हंटर से दिनभर मालिकों द्वारा प्रताडि़त घर लौटते थे। जहां उनकी ऊबी हुई पत्नियां उनींदी आंखों से सेवा टहल करतीं और फिर दोनों अपनी थकान और ऊब को ओढ़कर काल्पनिक सीरियल संसार में खो जाते थे। नींद आने के पहले उनींदे दर्शकों ने एकता कपूर को सोप सीरियल संसार की महारानी बना दिया। जब कमसिन उम्र में अपने माता-पिता की लाड़ली एकता ने चॉकलेट खाना छोड़कर काम की धुन में अथक परिश्रम करके ऐसा बड़ा व्यवसाय खड़ा किया जिसकी कल्पना उसके पिता सितारे जितेंद्र ने भी कभी नहीं की थी, तब एकता ने कहीं से व्यवसाय प्रबंधन नहीं सीखा था। एक उद्योग खड़ा करने की योगयता उसके पास कहां से आई। पिता फैक्टरी में बने मोतियों के सेल्समैन थे और सितारा बन गए परन्तु कभी श्रेष्ठ अभिनेता नहीं रहे। वे जमीनी व्यावहारिक आदमी थे जो अपनी कमियों को बखूबी जानते थे। उन्होंने अभिनय से कमाया बहुत सा धन असफल फिल्मों के निर्माण में लगाया। एकता की मां एअर होस्टेस थीं। जमीनी पिता और आसमान में विचरण करने वाली माता की बेटी एकता कपूर ने जीवन की पाठशाला में पढ़ा था।

भारत के किसी भी औद्योगिक घराने के पुरोधा ने कहीं व्यवसाय प्रबंधन नहीं पढ़ा था। उनकी युवा पीढिय़ों ने जरूर पढ़ा है। बिड़ला, टाटा , सिंघानिया, अंबानी के बचपन की पी हुई घुट्टी में ही यह विशेष ज्ञान रहा है। इंदिरा गांधी ने जिस दौर में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। काला धन उस दौर में समानांतर अर्थ व्यवस्था संचालित करता था उस कालखंड में विज्ञान और कला संकाय से अधिक छात्र कॉमर्स फैकल्टी में आने लगे। यह व्यवसाय प्रबंधन की अलसभोर थी। आज किताबों की सारी दुकानों में पचास प्रतिशत जगह पर व्यवसाय प्रबंधन की किताबें बेची जा रही हैं। शेष जगह में बच्चों की किताबें हैं और धर्म की मनमानी व्याख्या करने वाली किताबें है। एक उपेक्षित कौम में साहित्य की किताबें बिसूरती रहती हैं। यह भी सच है कि सांस्कृतिक शून्य के लिए केवल वाणिज्य व व्यवसाय प्रबंधन उत्तरदायी नहीं है। उपभोगवाद और भौतिकवाद नामक इस कालखंड में गढ़े मिथ ने यह कर दिखाया है।

बहरहाल, यह दौर विशेषज्ञों का है। कान, नाक और गले का डॉक्टर उदर का इलाज नहीं करता। आगे यह भी संभव है कि नाक के दो विशेषज्ञ होंगे। होम्योपैथी में तो पूछते हैं कि किस छिद्र से अधिक सांस लेते हो। बांये से या दाये की अधिक सक्रियता का संबंध दिल की धड़कन और रक्त संचार से है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी निरंतर अज्ञान के अंधकार को दूर कर रहे हैं और मुनाफे से केंद्रित विचार वाली शक्तिशाली मल्टीनेशनल उस प्रकाश को अपने शोषण का हथियार बना रही है। बहरहाल एकता कपूर अमेरिका में वाणिज्य प्रबंधन का कोर्स क रही हैं। क्या वे पहले से अधिक सक्षम एवं निर्मम मालकिन बनेंगी। कार्य कुशलता के साथ मानवीय करुणा किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं होती। यह संभव है कि अर्जित धन को किसी नए व्यवसाय में लगाना अधिक मुनाफा दे सकता है, यह एकता सीख कर आए । उसे इसका पूरा ज्ञान है कि सीरियल के पात्र को कितने लिटर आंसू बहाना है। यह ज्ञान वह अपने शिक्षकों को भी दे सकती हैं। बहरहाल, यह प्रशंसनीय है कि शिखर पर बैठा व्यक्ति ज्ञान अर्जन की भावना रखता है। अमेरिका के शिक्षण परिसर में उन्मुक्त वातावरण होता है और यह भी संभव है कि अब तक कुंवारी एकता को वहां प्यार हो जाये। 'मकतबे इश्क का ढंग निराला देखा जिसको सबक याद हुआ, उसे छुट्टी न मिली '।