एक खूबसूरत दिन / पद्मा राय

Gadya Kosh से
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बच्चों के लिये हर दिन शुक्रवार का होना चाहिए।इस दिन का इंतजार वे बडी बेसब्री से करतें हैं। आज वही दिन एक बार फिर हाजिर है।।मजें हैं सब बच्चों के। लंच के पहले सिर्फ आधा घंटा पढना और फिर दूसरी ऐक्टिविटीस।पूरा दिन मस्ती। उसके बाद दो दिनों की छुट्टी भी।

पढाई का पीरियड समाप्त हो चुका है और अब सब उत्सुक हैं यह जानने के लिये कि ऐक्टिविटीस के दौरान आज क्या होने वाला है? एक नयी वालण्टियर हैं ,जॉली दीदी, वे अभी तक नहीं आयीं। वह दीदी अच्छी हैं। फ्राइडे के दिन जॉली दीदी यहां जरूर आतीं हैं और अपने साथ ढेरों चीजें अपने थैले में साथ भी लातीं हैं। वह थैला कोई मामूली थैले जैसा आम थैला नहीं बल्कि जादुई लगता है।

“जॉली दीदी आ गयीं।” करण फुसफुसाया। जॉली को दरवाजे से अंदर आते हुए देखकर बच्चों की उत्सुकता बढने लगी।

“देखो शिलादित्य उनके हाथ के थैला आज कितना भरा हुआ लग रहा है न।”प्रीती ने आंख मटका कर कहा।

“सचमुच प्रीती।” शिलादित्य प्रीती से सहमत दिखा।

उनकी तैयारी आधी अधूरी कभी नहीं होती। पूरी तैयारी के साथ ठीक दस बजे यहां बच्चों के बीच उन्हें पहुंचना ही होता है। उनको देखकर बच्चों ने कोरस में कहा-

“गुड मानिंग जॉली दीदी।”

“गुड मार्निंग बच्चों।” अपने हाथ का सामान उन्होंने कोने मे रखे मेज पर रखा और पंखे के नीचे खडी हो गयीं।

“बाहर गर्मी अभी भी है।” कहते हुये जॉली रूमाल से अपना पसीना पोंछने लगी।

“अभी कुछ दिनों और ऐसे ही रहेगी।” अंजना ने प्रेयर के समय इस्तेमाल होने वाली कैण्डल को आलमारी में रखते हुए कहा।

“दीदी अपने थैले में क्या लाईं होंगी?” सलोनी थैले की तरफ देखते हुए मुझसे पूछ रही थी।

“तुम लोग कुछ देर शांति बनाये रखो ,अभी पता चल जायेगा।” मैं कुछ नहीं जानती थी उस थैले के बारे मे , फिर और उसे क्या बताती?

सांस रोक कर सब इंतजार कर रहें हैं,उनकी पिटारी अब खुलने ही वाली है। उन्होंने अपने थैले में से तमाम चीजों को बाहर निकालना शुरू कर दिया है। कछुए,कुत्ते,तितलियां और आइसक्रीम , एक-एक करके जॉली दीदी उस जादुई थैले मे से निकालती जा रहीं हैं और उन्हें मेज पर रखतीं जा रहीं हैं।उनमें से किसी के भी आकार प्रकार का अभी ठीक तरह से अंदाजा नहीं लग पा रहा है। दरअसल इनमें प्राण प्रतिष्ठा होनी अभी बाकी है।जादुई थैला जरूर है जॉली दीदी के पास लेकिन जादुई छडी उनके पास नहीं है।दरअसल असली जादूगर तो ये बच्चें हैं और जादू की छडी तथा जादुई अन्दाज दोनो इन्हीं के पास है। प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम अभी बाकी है ,जब वह हो जायेगा तब सब के सब जी उठेंगे।

थैले मे से बाहर निकले -रंग बिरंगे कागजों के टुकडे ,स्क़ेचपेनस ,फेविकोल और कैंची। यही वे सब चींजें हैं जिनके सौजन्य से सारे चेहरे आकार ले पायेंगे। दीदी ने ये सभी सामान बडी वाली मेज पर निकाल कर रख दिया और अब उसके पास खडी होकर मुस्करा रहीं हैं। इधर सबको जल्दी मची है। एक बार दीदी सामान बांट दें तब ही तो काम शुरू हो पायेगा। दीदी मदद करने के लिए तैयार हैं तो बच्चे भी कम उत्साहित नहीं हैं।राहुल,करण,सलोनी,प्रीती और शिलादित्य ,सब एक दूसरे से अच्छा बनायेंगे। वे इस बात को सच भी मानतें हैं क्योंकि दीदी ने भी अभी अभी यही कहा है। और जब दीदी ने कहा है तब झूठ थोडे ही कहा होगा। दीदी लोग भी कभी झूठ कहतीं हैं?

दो घंटे की कडी मेहनत के बाद सफलता आखिर मिल ही गयी। अब ये बात और है कि इतने कठिन अभियान के दौरान पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया।अंजना दीदी भी वहीं हैं ,उन्होंने कमरे में चारों तरफ बिखरे हुए कागज के टुकडों को देखा तो कहा - “ तुम लोगों ने चीजें तो बहुत अच्छी बनायीं हैं लेकिन इस चक्कर में यह कमरा गंदा हो गया। कोई बात नहीं , मैं कमरा ठीक कर देतीं हूं।”अंजना दीदी कमरे की सफाई में लग गयीं।

नयी चीज सीखने के धुन में हम सबका इस तरफ ध्यान ही नहीं था। अंजना दीदी की बात सुनने के बाद उन्हें बडा अजीब लग रहा है और शर्मिंदा भी हो रहें है , लेकिन अब कर भी क्या सकतें हैं? आगे जब कभी इस तरह का काम करेंगे तब पहले से ध्यान रखेंगे। उस समय कागज के बेकार टुकडों को संभालकर मेज पर रखेंगे और उन्हें फर्श पर बिखरने नहीं देंगे। उन्होंने आज सोचा भी नहीं था कि कमरा इतना गंदा हो जायेगा।उस समय काम में इतना मगन थे कि पूरा कमरा कागज के टुकडों से भर गया और उन्हें पता भी नहीं चला।

कुल पांच कछुए, पांच कुत्ते,पांच तितलियां और पांच ही आइसक्रीम बनकर तैयार हुये। कछुए ,कछुए की चाल से चलते हुए इधर उधर खरगोश की तलाश कर रहें हैं। आज अगर वो मिल जाते तब एक बार फिर उन्हें हार का मजा चखाने का मौका था।।लेकिन अफसोस ,खरगोश दूर-दूर तक कहीं दिखायी नहीं दे रहें हैं। तितलियां उडने के लिए तैयार हैं और अपने रंग बिरंगे पंखों को हवा में फडफ़डा रहीं हैं , अब उडीं क़ि तब। आइसक्रीम देखकर तो सबके मुंह में पानी आ रहा है। उस वैनीला आइसक्रीम से जरा भी कम स्वाद नहीं होगी जो कल करण ने खिलायी थी। लेकिन कुत्ते मुस्तैद हैं। उन्हें बहुत बडी ज़िम्मेदारी सुपुर्द की गयी है।

आइसक्रीम की रखवाली उन्हंा ही करनी है। वे पांचों भूंक रहैं हैं ,भूऽऽभूऽऽ भू ऽऽभूऽऽऽ। इस बात के बारे कोई नहीं जानता था ,अभी अभी प्रीती ने अंजना को बताया है -

“दीदी ,देखिये मेरा कुत्ता भूंक रहा है , भूऽऽभूऽऽ भू ऽऽभूऽऽऽ।”

उसके कुत्ते के भूंकने की आवाज सुनकर सबके कुत्ते भूंकने लगें है।

कुल पन्द्रह जानवर और पांच आइसक्रीम। सबको संभालकर रखना है। बहुत सोच विचार कर उन्हें सुरक्षित रखने का एक नायाब तरीका खोज निकाला गया। एक डोरी कमरे में बांध दी जायेगी और उन सबको उसपर लटका दिया जायेगा। उस स्थिति में वे सबका मनोरंजन भी करते रहेंगे और सुरक्षित भी रहेंगे। आइडिया मजेदार है ,सबको भा गया।किसी ने खिलाफत नहीं की। खिडक़ी के ठीक ऊपर पेलमेट पर बन्दनवार बनकर सबके सब लटक गये।

अपने अपने बनाये चीजों को देखने और दिखाने मे सब मस्त हैं। जैसा दीदी ने कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ है।मजेदार बात है न। सबने, सबसे अच्छा बनाया है।सारे जानवर भी खुश हैं। वे सब हवा में लहरा-लहरा कर नाचते गाते हुए अपनी खुशी का इजहार कर रहें हैं।

पढाई के नाम पर आज कुछ खास नहीं हुआ। इसलिए करण दुविधा में है।दीदी ने दुविधा में डाल दिया है।अभी अंग्रेजी या हिन्दी अक्षरों की पहचान उसे नहीं है परन्तु बहुत सारी तस्वीरों को वह पहचानता है। घर में ममा इनके यही नाम उसे बतातीं हैं तब वह क्यों नहीं बता सकता। आज सुबह उसने तस्वीरों को देखकर दीदी के पूछे प्रश्नो का जवाब देना आरम्भ किया। आप भी सुनिये और बताना न भूलियेगा कि करण का प्रयास कैसा रहा।

दीदी ने पूछा-

“ए फॉर?”

“सेब।”

“बी फॉर?”

“केला।” उस समय करण का कॉनफिडेन्स देखने लायक था।

वहां मौजूद सभी को मुस्कराता देख कर वह और उत्साहित हुआ और फिर उसके पास इतना धैर्य भी नहीं रहा कि वह दीदी के प्रश्न पूछने तक इंतजार कर सके।करण धडल्ले से बताता जा रहा है -

“ए फॉर सेब।”

“ए फॉर तीर।”

“ ए फॉर हवाई जहाज।”

“बी फॉर केला।”

“बी फॉर मक्खी।”

“बी फॉर बल्ला।”

“सी फॉर बिल्ली।”

“सी फॉर गाय।”

“डी फॉर कुत्ता।”

“ डी फॉर गुडिया।”

सारी की सारी क्लास हंस रही है। अभी अभी अस्तित्व में आये सारे जानवर भी हँसने लगें हैं। करण का अचानक ध्यान गया। और वह चुप हो गया। कहीं कुछ गलत हो गया क्या? लेकिन उसने तो सब सही सही बताया है। खिसियाना सा मुंह बनाकर सोचता रहा कि आखिर सब लोग हंस क्यों रहें हैं। दरअसल उसकी किताब में अंग्रेजी के अक्षरों के सामने जिन वस्तुओं के चित्र बने हुये थे उनका यही नाम उसे मालूम है। करण के बाद सलोनी की बारी है। उसने बताया -

“ए फॉर ऐप्पल।”

“ए फॉर एरो।”

“ ए फॉर एरोप्लेन।”

“बी फॉर बनाना।”

“बी फॉर बी।”

“बी फॉर बैट।”

“सी फॉर कैट।”

“सी फॉर कॉऊ।”

“डी फॉर डॉग।”

“ डी फॉर डॉल।”

सलोनी बिना अटके बोलती जा रही है। पूरी क्लास खामोश होकर सुन रही है। करण मुंह बाये सुन रहा है। उसने ध्यान से देखा ,सलोनी जब पढ रही थी उस समय न तो कोई मुस्कराया और न ही कोई हंसा।लेकिन उसकी मम्मी ने तो इन चित्रों के नाम कुछ और ही बताये थे और सलोनी तो कुछ दूसरी तरह से बता रही है। तब क्या उसकी मम्मी ने इसे गलत सिखाया था? उसने सोचा ,ऐसा कैसे हो सकता है? ऐक्टिविटीज के दौरान भी, वह काम कुछ और कर रहा था लेकिन उसका दिमाग इसी बात में भिडा हुआ था।

साढे बारह बजने वालें हैं। लंच टाईम।पृथ्वी पानी का जग और साबुन लेकर हाजिर। उसके साथ वीरव्रती दीदी भी हैं। सबके हाथ आज बहुत गंदे हो गयें हैं। फेविकॉल हाथों में कई बार लगा और सूख कर चिपक गया है। साबुन से रगड क़र उन्हें खूब अच्छी तरह से साफ करना होगा तभी अंजना दीदी खाना खाने देंगी।सबसे पहले राहुल का हाथ धुला और अंत में बारी आयी प्रीती की। शिलादित्य बार-बार अपने बैग की तरफ देखता है और खुश हो जाता है। स्कूल बैग के साथ-साथ वह एक और बैग अपने साथ लेकर आया है।उसी बैग में कुछ तो ऐसा है जिसके बारे में सोचकर ही वह इतना प्रसन्न दिखायी दे रहा है।पहले अमन धीरे-धीरे हंस रहा था उसकी आवाज किसी को डिस्टर्ब नहीं कर रही थी। किन्तु जब से हाथ धुलवाने के लिए पृथ्वी भइया और वीरव्रती दीदी आयीं हैं , अमन अपना पेट पकड-पकड क़र हंस रहा है।वैसे तो शिलादित्य को देखकर उसे हमेशा ही हंसी आती है। परन्तु आज शायद बात कुछ और है।एक बार फिर खिलखिलाकर हंसा अमन।अंजना दीदी ने आंख दिखाकर उसे शान्त रहने के लिए कहा। पर अमन का मूड इस समय उनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं।

धुल पुछ कर सबके हाथ साफ सुथरे हो गये। अपने छोटे-छोटे गुलाबी रंगत वाले दोनो हाथों को सामने लाकर अंजना को दिखाते हुये सलोनी ने पूछा-

“दीदी देखिये ,मेरे हाथ साफ हो गये हैं न?”

“हां भाई ,ये तो बहुत साफ हो गयें हैं।” मेरे कहने पर शरमा कर उसने अपना सर नीचे झुका लिया।

खाना मिलने में अभी देर है।उसके पहले एक निहायत जरूरी काम होगा। तैयारी जोर शोर से चल रही है।वीरव्रती दीदी एक मेज दूसरे कमरे मे से उठा कर ले आयीं और उसे शिलादित्य के सामने रख दिया। आज शिलादित्य का दिन है। उसका जन्मदिन जो है।अंजना ने उसके बैग मे से कुछ टोपियां निकालीं और उन्हें सभी बच्चों के सिर पर पहना दिया। टोपी पहन कर मजा आ गया सबको। वे एक दूसरे की तरफ देख-देख कर आनन्दित हो रहें हैं। उसके बाद दीदी ने बैग मे से एक केक निकालकर उसके सामने रखी मेज पर रख दिया। केक पर लिखा है 'हैप्पी बर्थ डे टू शिलादित्य'। पांच छोटी-छोटी मोमबत्तियां केक के ऊपर सजाकर अंजना दीदी ने उन्हें जला दिया है।

“तो शिलादित्य आज पांच वर्ष का हो जायेगा।” मैंने कहा।

अंजना ने सिर हिलाकर हां कहा।

केक देखते ही बच्चे जल्दी से जल्दी केक कटने का इतजार करने लगे। अमन कई बार थूक घोंट चुका।इस समय उसने हंसना बंद कर दिया है और मुंह खोले एकटक केक पर अपनी नजरें गडाये बैठा है। केक देखते ही वहां उपस्थित सारे बच्चे ,जल्दी से जल्दी केक के कटने का इतजार करने लगे। प्रीती से रहा नहीं गया , बोली -

“मेरा भी हैप्पी बर्थ डे था उस दिन।”किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

मोमबत्तियां जल रहीं हैं और जब तक शिलादित्य उन्हें फूंक मारकर बुझाता नहीं तब तक- हैप्पीबर्थ डे टू यू शिलादित्य- नहीं गाया जा सकता और जब तक यह सब नहीं होगा तब तक केक किसी को नहीं मिलेगा।अमित भी आकर खडी हो गयी है ,उसके हाथों में फाइलें हैं।उसकी व्यस्तता भी ज्यादा है ,इसलिए सबसे बाद में पहुंच पायी है।शिलादित्य को जलती हुयी मोमाबत्तियां फूंक मारकर बुझानी है। अमित दी ने उसे बताया-

“शिलादित्य पहले मुंह बंद करके थूक घोंट लो फिर अपना मुंह फुलाओ और तब 'फू' करो ऐसे फूऽऽऽऽऽऽऽऽ।” अपने होंठों को गोल करके अमित ने शिलादित्य के सामने फूंक मारी। उसके बाल फर फर उडने लगे। करण को बहुत मजा आया।

सलोनी ने सोचा - दीदी ने उसके मुंह पर फूंक क्यों नहीं मारी थी उस दिन- जब उसका हैप्पी बर्थ डे था।

शिलादित्य सब सुन रहा था।उसकी गर्दन दायीं तरफ झुकी , कंधे तक पहुंच गयी और सिर दांयें कंधे के ऊपर करीब-करीब टिक गया। तब शिलादित्य ने अपनी आंखें अमित दी की तरफ घुमाकर हूंकारी भरी-

“हूं।” उसने भरोसा दिलवाया ,अमित ने जैसा कहा है वैसा ही करेगा।

“पांच-पांच मोमबत्तियां एक साथ शिलादित्य बुझा पायेगा अंजना दी?”

जॉली दीदी ने अभी पूछा ही था कि अंजना बोल पडी -

“कर लेगा ,आप लोग देखिये तो सही।”

सांस रोके सब चुपचाप शिलादित्य के फूंकने का इंतजार कर रहें हैं।अंजना जाकर उसके पीछे खडी हो गयी है।शिलादित्य ने पीछे मुडक़र उन्हें देखा।अंजना दीदी के आदेश का इंतजार है उसे। अंजना ने कह दिया-

“मोमबत्तियां बुझाओ शिलादित्य।”

“अऽऽफूऽऽऽऽ,अऽऽफूऽऽऽ।”

यह कैसे हो गया? पांचों मोमबत्तियां एक साथ बुझ गयीं।

“अंजना।” अमित ने कहा और हंसने लगी।

“क्या हुआ?”अनजान बनने की कोशिश करती हुयी अंजना दी बोलीं। शिलादित्य भौंचक्का बैठा रहा कुछ पल। सिर्फ एक फूंक में पांचों मोमबत्तियां कैसे बुझ गयीं? पहले तो उसे एक मोमबत्ती बुझाने के लिए कितनी बार कोशिश करनी पडती थी तब भी कभी बुझती थी तो कभी नहीं। अंजना की तरफ देखकर उसने अपनी शिकायत दर्ज करायी। दीदी ने समझ कर अपने दोनो कान पकडे और कहा -

“सॉरी ,शिलादित्य। मैंने तो थोडी सी तुम्हारी मदद कर दी थी इसीलिए सब एक बार में बुझ गयीं।”

शिलादित्य की भृकुटी तन गयी। उसे अच्छा नहीं लगा। पहले अमित फिर अंजना की तरफ देखा उसने और बिना कुछ कहे अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।

सभी मोमाबत्तियां बुझ चुकीं हैं और उनकी लौ अब धुयें में परिवर्तित होकर आपस में गड्ड मड्ड हो गयीं हैं।बच्चे,बडे सब ताली बजा रहें हैं। गाने की आवाज आने लगी है -

“हैप्पी बर्थ डे टू यू ऽऽऽ।हैप्पी बर्थ डे टू यू ऽऽऽ। हैप्पी बर्थ डे टू यू ऽऽऽ। हैप्पी बर्थ डे टू यू ऽऽऽडियर शिलादित्य। हैप्पी बर्थ डे टू यू ऽऽऽ।

सभी के निगाहों का केन्द्र बिन्दु बना हुआ बर्थ डे ब्वॉय- शिलादित्य, गाने में अपना नाम सुनते ही मुस्कुराने लगा। अभी कुछ देर पहले अंजना दीदी के मोमबत्ती बुझाने से हुयी नाराजगी की जगह उसके अपने बर्थ डे सेलिब्रेशन का आनन्द उसके चेहरे पर साफ झलक रहा है।यह गीत उसी के लिए गाया जा रहा है। कितन मजे की बात है। अंजना दीदी ने उसके हाथ को पकडक़र केक कटवाया। सबसे पहले शिलादित्य को उन्होने केक खिलाया। उसे केक बिल्कुल अच्छा नहीं लगता लेकिन आज बिना कुछ कहे उसने केक का पूरा टुकडा खा लिया।जॉली दीदी और मैंने मिलकर बाकी सबको केक खिलाने का काम संभाल लिया।कमरे की दीवारों को छलांगता फलांगता बर्थ डे गीत दूसरे कमरों मे भी पहुंच गया है। शीतल ने सुना और रंजना ने भी ,औरों ने भी सुना होगा। जो सुन रहा है वही भागा चला आ रहा है और बधाई देने वालों में शामिल होता जा रहा है। कोई हाथ मिलाकर तो कोई गाल थपथपाकर तो किसी ने सिर्फ बोल कर उसे उसके जन्म दिन की बधाई दी है। आने वालों को अंजना केक भी दे रहीं हैं। केक जिसने भी खाया उसने तारीफ की-शिलादित्य की ममा ने केक बहुत स्वादिष्ट बनाया है- अमित तो अब तक दो बार मांग कर खा चुकी और अभी शायद एक-दो बार और खायेंगी।क्योंकि अभी अभी उन्हें कहते हुये सुना गया है कि उनका मन अभी केक खाने से नहीं भरा ,उन्हें और लालच लग रही है।अमित की बातों को सुनकर शिलादित्य को बडा मजा आ रहा है। अमन की तरह उसका मुंह भी आधा खुल गया है।

शिलादित्य को केक कभी भी अच्छा नहीं लगा। चाहे किसी ने उसे कितने ही जतन से क्यों न बनाया हो। पहली बार अंजना दीदी ने उसे केक खिलाया तब तो उसने कुछ भी नहीं कहा और चुपचाप खा लिया।लेकिन उसके बाद फिर से जॉली दीदी ने केक उसकी प्लेट में रख दिया था। वह वैसे ही पडा है।उसके जन्म दिन को मनाने के लिये कितने सारे लोगों ने वहां इक्कट्ठे होकर उसे विश किया, प्यार किया और अब स्वाद ले लेकर केक खा रहें हैं , देखकर उसको बहुत मजा आ रहा है। उसके जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह सब हो रहा है, देखकर शिलादित्य बहुत खुश है और अभिभूत भी। एक निहायत जरूरी बात उसके दिमाग में अभी अभी आयी है तुरंत अगर उसने दीदी को नहीं बता दिया तब हो सकता है कि कुछ देर बाद उसका सिरा भी न मिले।अभी यह बात उसके दिमाग में आयी ही थी कि अंजना दीदी ने उसकी तरफ देखा।शिलादित्य सोचने लगा कि दीदी को कैसे उसके मन की बात पता चल जाती है? एकदम ममा की तरह। अंजना ने सोचा ,शायद शिलादित्य को टॉयलेट जाना हो।उन्होंने पूछा - “क्या है शिलादित्य?”

“दीदी।”अंजना ठीक से नहीं सुन पायीं इसलिए उसके एकदम नजदीक आकर पूरे विश्वास के साथ कहा -

“टॉयलेट जाना है न? अभी ले चलतीं हूं।”

“ऊं ऽऽहूं ऽऽऽ।”कई बार अपना सिर दांयें से बांयें और फिर बांयें से दांये हिलाया शिलादित्य ने।

“फिर ,”

“दीदी,दीदी आप ऽ न ऽऽ आप मेरी डायरी में लिख दीजिये मेरी ममा को कि वे रोज रोज न, केक भेज दिया करें।” बडी मुश्किल से उसकी बात पूरी हुयी। उसे चैन मिला। चेहरा चमकदार हो गया। आंखें चमकने लगीं। होंठ कान तक फैल गये। उजले उजले दांतों को सबने देख लिया और अंजना दीदी ने उसकी पूरी बात ध्यान से सुन ली। लेकिन उसी चक्कर में दूसरों ने भी उसकी बात सुन ली। शिलादित्य को लगा ,कुछ गलत हो गया और शरमाने लगा। उसकी हालत देखकर पहले अमित दी हंसी फिर अंजना दीदी। फिर तो शीतल दी,रंजना दी ,जॉली दी सब के सब हंसने लगे। पृथ्वी और वीरव्रती दी भी हंसने लगे। उन सबको हंसते हुये देखकर राहुल ,प्रीती और सलोनी भी हंसने लगें हैं। अमन तो हंसता ही रहता है। बन्दनवार बनकर लटके -कछुए, तितलियां,कुत्ते और और यहां तक कि आइसक्रीम भी खिलखिलाकर हंस रहें हैं। उनके हंसने से बंदनवार जोर जोर से हिल रहा है। अब सबको हंसते देखकर सारी शरम भूल भाल कर शिलादित्य भी हंस रहा है। खिडक़ी से बाहर दांत निकाले सूरज भी सबके साथ इस अनोखे कार्यक्रम में शामिल हो गया है।