एक खोजी पत्रकार का हल्का–फुल्का स्टिंग / सुशील यादव

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वो पत्रकार थे। बड़ी मुश्किल से उन्हें हमारे मोहल्ले में किराए का मकान मिल पाया था, वो भी तब जब उन्होंने कहा था कि छः –सात महीनों में उनका खुद का मकान बन जाएगा। मुझसे पुराना परिचय होने के नाते वो अक्सर मेरे पास चाय-नाश्ते के लिए आ धमकते।

मै झेलने की तर्ज में बस एक श्रोता से ज्यादा की हैसियत नही रखता था।

बात, दुनिया –भर की होती, मगर सार उनके मकान बनाने पर आकर ख़त्म होती, मसलन आज मुनिस्पल -आफिस में नक्शा के नाम पर चिकचिक हो गई। पास नहीं कर रहे थे। २० परसेंट जमीन छोड़ने की कह रहे थे। मालूम आज जमीन का रेट क्या है?

क्यों छोड़े कोई अपनी खरीदी जमीन ?

मैंने कहा शोर्ट में बताओ, नक्शा पास हुआ या नहीं ?

उसने कहा, होता कैसे नहीं? ऊपर वाले को पकड़ा|ऊपर वाले को पकड़ो, सब ठीक हो जाता है। मेरा तो यही फार्मूला है।

मै उस पत्रकार को बस इसी फार्मूले के नाम पर झेल जाता हूँ|करेंट में क्या फार्मूला किसा जगह कैसा चल रहा है, इसकी ताजा खबर घर में बैठे ही मिल जाती है।

वो सप्ताह बाद भिन्नाये हुए आये। क्या समझ रखा है, इन हरामखोर ठेकेदारों ने, स्सालो ने ठेके के नाम पर पूरी जमीन को खोखला करने की ठान लिए हैं।

मैंने सोचा कोई टी-व्ही खबर को वो री-टेलीकास्ट करने वाला है, मैंने कहा ऐसी कोई खबर तो नजर नहीं आई।

वो बोले सुशील भाई, आप रहते कहाँ हैं ?ये जो शिवनाथ नदी के आस –पास का इलाका है न, पूरा का पूरा मुरुम-रेती, भाई लोग बिना रायल्टी के निकाल लिए हैं। आप-अपने कंप्यूटर-इन्टरनेट की दुनिया से बाहर निकल कर भी देखो? क्या-क्या अंधेर हो रहा है ?मुझे मेरी नाकामी गिना गया। मुझे महसूस हुआ, शायद, पत्रकार महोदय के मकान की नीव-भराई का काम शुरू हो गया है।

मैंने श्रीमती को चाय लाने को कहकर पूछा, क्या पिट-फीलिंग, लेबलिग़ चालु हो गया। उसने कहा, हाँ, इसी सिलसिले में आर्डर देने गया था। रेट अनाप –शनाप बोले, तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने भी पुरे दिन की तहकीकात कर पता लगा लिया कि आखिर मायनिग वाले सो कहाँ रहे हैं ?

मैंने मजाक के लहजे में पूछा, पता चला उनके सोने-जागने की जगह ? उसने कहा, पता क्यों नहीं चलेगा भला ?

ठेकेदार और मायानिग वालो की मिली –भगत रहती है। हर ट्रक के पीछे रकम बंधी रहती है। अछा लूट रहे हैं।

अब देखो मै, खुद मोबाईल में शूट करके, इनकी करतूत सामने लाता हूँ।

मुझे पत्रकार की औकात –हैसियत का पता था।

अपने काम के होने तक का जोश मारेगा फिर टांय-टांय फिस्स|

दो तीन दिन बाद मिले, तो मैंने पूछा , क्या हुआ, माइनिग का। उसने कहा, फ्री में दस-बीस ट्रक ड़ाल गए स्साले। मैंने सोचा, स्टिंग की नौबत, जिसकी संभावना कम ही थी, नहीं आई।

उनके मकान की सिलसिलेवार प्रगति होते रही और मुझे लगातार जानकारी मुहय्या होते रही।

कभी सीमेंट के व्यापारी तो, कभी दरवाजा-खिड़की के लिए, वन विभाग वाले उनका शिकार या निशाना बनते रहे।

कभी एंगल –सरिया वालो को इनकम-टैक्स, एक्साइज का वो रौब दिखाते। नमूना-बतौर, एक-आध, दो इंची कालम का लेख, अपने लोकल अखबार में छाप कर, उन तक ले जाते। उस लेख की एक भी प्रति न बिकती न वो खुद बेचने में यकीन रखते।

इधर आर टी आई ने उनका काम बहुत आसान कर दिया था। जहाँ मुश्किल पेश आती वो इसे फिट कर देते, काम निकल जाता।

लोकल ब्रेकिंग-न्यूज की वो जबरदस्त जानकारी रखते थे। मुझे इस कारण भी उसमे तनिक दिलचस्पी हो जाती, वरना मै भी बहुत सम्हाल के, डर के रहता, क्या पता कब मुश्किल पैदा हो जाए ?

उनके मकान की तैयारी के चलते इन दिनों वो एक तरफा न्यूज ही दे पा रहे थे, मोहल्ले –पडौस की दिलचस्प खबरे नदारद सी थी।

एक दिन वो छोटा सा निमंत्रण-पत्र लिए आए, मकान के उदघाटन-गृह-प्रवेश का बुलावा था। मैंने कहा, आखिर बन गया आपका मकान।

वो एक लम्बी सांस लेकर बोले, हाँ, सुशील भाई, आइएगा जरूर।

मैंने पता नहीं क्यों अंदरूनी राहत महसूस किया, मुझे लगा चलो, बहुत से खाने –पीने वाले लोग, स्टिंग आपरेशन की भेट चढ़ने से बच गए। कई विभाग आर.टी आई के अनाप-शनाप सवाल जवाब में घिरते –घिरते रह गए।

गृह –प्रवेश में उनके घर को देख मुझे लगा, वाकई कम खर्चे में, भव्य मकान बनते मैंने कम ही देखा है।