एक ताज और / प्रमोद यादव

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न मालुम जिंदगी के हर मोड पर मेरे साथ ऐसा क्यों होता है कि सुख और दुःख..खुशी और गम दोनों एक साथ ही मेरे पहलु में आते हैं. विवशता यह कि न मैं खुलकर रो पाता हूँ..न चाहकर हँस पाता हूँ. सुख-दुःख की मिलीजुली अनुभूतियों से न जाने मन कैसे विचित्र सा हो जाता है.

आज रमी को उसके घरवाले लिवा ले गए. रमी...मेरी दुल्हन...तीन दिन पहले ही तो मेरी-उसकी शादी हुयी है. इस शादी में न ही मेरी रजा थी और ना ही कोई इनकार. अगर इस शादी से इनकार न कर पाने का कोई कारण था...तो वह थी मेरी बूढी माँ. जिसे झुकी कमर से घर के काम-काज करते देख दिल पसीज जाता था. इसके अलावा एक ठोस, महत्वपूर्ण और मूल कारण जो था- वह थी-निकी...उसकी वादाखिलाफी,उसकी बेकार की दी गयी ढेरों तसल्लियाँ.

“निकी”... एक नाम..जिसके साथ मैंने कभी जीने-मरने की कसमें खाई थी. लेकिन अजीब त्रासदी कि न उसके संग मैं कभी जी सका ..और न मर सका. बड़ी खूबसूरत, मासूम, सीधी-सादी, पाक और उदार ह्रदय की लड़की थी-निकी. दस साल पहले उससे परिचय हुआ था.यह सिलसिला उसकी शादी तक चला. इस बीच चार साल में उसे अच्छी तरह देखा..परखा..जाना..और महसूस किया कि ‘आदर्श लड़की’ की परिभाषा शायद निकी ही है.

सभी स्थितियां अनुकूल होते हुए भी मैं निकी से शादी न कर सका. जात-पांत के बंधन तो मैं तोड़ भी देता पर अपनी मुफलिसी को नजरअंदाज करना..मेरे लिए मुमकिन न था. निकी एक अमीर घराने से थी.फिर भी मुझसे शादी का हौसला रखती,.मुझे विश्वास था मेरी मुफलिसी से वह निर्वाह कर लेगी लेकिन न मालुम क्यों मुझे यह गवारा नहीं था. निकी रोती रही..बिलखती रही..और मैं दूर होता गया..दूर...बहुत दूर.....अंततः वह बुरी तरह टूट गयी...निराशाओं से घिर गयी. एक दिन बोली- ‘ठीक है अज्जू...दिल टूटने की आवाज सुनने से शायद तुम घबरा रहे हो...लेकिन मत घबराओ..क्या मेरा दिल सिर्फ मेरा ही है ? तुम्हारा कुछ भी नहीं ? तुम्हे.. तुमसे ज्यादा मैं जानती हूँ..इतने सारे दर्द ..उस पर मेरे प्यार का बोझ...मेरी यादें लिए तुम क्या ख़ाक जियोगे अज्जू ? फिर भी तुम चाहते हो कि मेरी शादी किसी और से हो जाए...तो तुम्हारी मर्जी..लेकिन क्या तब तक साथ नहीं दोगे ? ‘

और तब मैंने उसकी शादी तक उसे साथ देने का वादा बड़े ही बेमन से किया..एक भयावह सन्नाटा छोड़ निकी चली गयी. यादों को मैं कुचलता रहा..और यादें शिद्दत के साथ सिर उठाती रही. फिर धीरे-धीरे एक सामान्य जिंदगी जीने लगा..छह साल कैसे बीते, पता न चला. इस बीच न कभी निकी मिली न ही उसकी कोई खबर...बस इतनी जानकारी मिली कि उसके दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं.

फिर अचानक बरसों बाद आगरे के ताजमहल में निकी से भेंट हुई.वह अनोखी रात मैं कभी भूल नहीं सकता....

....शरद पूर्णिमा की रात थी...आगरा ट्रांसफर हुए सात ही महीने हुए थे..ताजमहल की भव्यता देखने उस रात मैं भी गया था. प्रवेश-द्वार पर भीड़ जमा देख उत्सुकतावश मैं भीड़ में घुसा तो देखा- कोई आदमी बेहोश सा पड़ा था...बनारसी साडी में लिपटी एक संभ्रांत महिला उस पर झुकी उसे होश में लाने की कोशिश कर रही थी.करीब ही दो छोटे-छोटे बच्चे भीड़ से आतंकित सहमें खड़े थे. ज्योंही उस महिला ने भीड़ की ओर मुखातिब हो किसी डाक्टर के विषय में पूछते मदद मांगी...मैं स्तब्ध रह गया..आँखों को विश्वास नहीं हुआ..मुंह से निकल ही गया- ‘ निकी...तुम...’ वह भी जोरों से चौंकी- ‘ अज्जू....तुम..’

यह समझते देर न लगी कि बेहोश व्यक्ति उसका ‘हसबेंड’ इन्दर ही होगा.

‘ दो कदम दूर ही एक डाक्टर है..मैं अभी लेकर आया..’ इतना कह मैं भीड़ चीरकर बाहर निकल आया. डाक्टर लेकर लौटा तो तीन-चार मिनटों में ही वह होश में आ गया. कार चलाने की स्थिति में वह था नहीं अतः मैं ही ड्राइव करते उन्हें होटल ले गया जहाँ वे ठहरे थे. उसके सामान्य होते ही, निकी की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए मैंने ही अपना परिचय दिया- ‘अजय कहते हैं मुझे...पिछले सात महीनों से यहाँ नौकरी पर हूँ..मैं भी उसी शहर से हूँ जहाँ से आपकी ‘वाइफ’ है..निकी मेरी छोटी बहन की सहेली थी ..प्रायः मेरे घर इनका आना-जाना होता था..इसलिए परिचित था...लेकिन शादी के बाद कभी घर नहीं आई थी....आज अचानक यहाँ देखा तो....’

मेरे सीधे-सपाट परिचय से वह संतुष्ट हुआ और इस आकस्मिक सहयोग के लिए आभार माना. बहुत ही जल्द इन्दर घुल-मिल गया. इस छोटी सी मुलाक़ात में लगा कि वह अच्छे व्यक्तित्व का मालिक है. दोनों बच्चे भी जल्द ही हिल गए.इस बीच निकी अपने आपको व्यस्त रखने की असफल कोशिश करती रही. चाहकर भी वह मुझसे बोल नहीं पाई.बातों ही बातों में मालुम हुआ कि दूसरे दिन ही उनका दिल्ली जाने का कार्यक्रम है तो मैंने औपचारिकता जताते एक दिन और रुकने का आग्रह किया और अपने क्वार्टर में चलने का अनुरोध किया . पहले तो इन्दर इनकार करता रहा फिर एकाएक कुछ सोच कर बोला- ‘ ठीक है अजय...कल दोपहर यहाँ के एक फर्म ने पेमेंट का वादा किया है..कल आपके यहाँ का प्रोग्राम फिक्स ...’

दूसरे दिन मालूम हुआ कि इन्दर एक आकर्षक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक सफल ‘बिजनेसमैन’ भी है. सुबह-सुबह ही निकी व बच्चों के साथ पहुँच गया और एक कप चाय पी अपने काम के सिलसिले में जो निकला तो कई घंटों बाद लौटा. उन घंटों में निकी के साथ उस दिन जो बातें हुयी,वह आज भी मुझे अक्षरशः याद है. उस दिन निकी मुझे समझाती रही- ‘ अज्जू...तुम्हे शादी के लिए कहूँगी तो तुम कहोगे ...सभी लडकियां अपनी शादी के बाद लड़कों से यही कहती है..पर ऐसी बात नहीं है..और ना ही मेरी इस जिद्द से तुम यह समझना कि शादी कोई मजे की चीज होती है...और इसका तात्पर्य यह भी मत लेना कि मैं अपने वैवाहिक जीवन से दुखी हूँ..विवाह तो एक सामाजिकता है अज्जू...कब तक इससे दूर भागोगे ?.. तुमने कभी मेरी कोई बात नहीं मानी..मेरी हर इच्छा,हर सपने को तुमने रौंदा..मेरे बनाये हर ताजमहल से मुझे निराशा ही मिली..आज मैं अंतिम बार एक ताज और गढना चाहती हूँ...अपने लिए नहीं..केवल तुम्हारे लिए..हाँ अज्जू.. तुम्हारा यह दृढ निश्चय कि आजीवन अविवाहित रहोगे, ठीक नहीं है तुम्हारी हर पसंद और नापसंद से जितना मैं वाकिफ हूँ शायद तुम खुद उतना नहीं..मेरे ससुराल नागपूर के मकान के बगल ही तुम्हारे बिरादरी की एक सुन्दर,सुशील लड़की रहती है जो हर दृष्टिकोण से तुम्हारे काबिल है.तुम्हारे बारे में वह सब कुछ जानती है..चूँकि तुमसे मुलाक़ात की कभी कोई सम्भावना न थी इसलिए उसे कभी कहा नहीं.अब जाकर कहूँगी..आज ही उसे खत लिखती हूँ..डर है कि उसके बाबूजी कहीं जल्दबाजी न कर दे..क्योंकि पिछले साल से उसकी शादी की बात चल रही है..’

एक सांस में वह इतना कुछ कह गयी..उसकी आँखों में आंसू भर आये थे.मैंने वादा किया तो खुशी से वह पागल हो गयी, बोली- ‘ अज्जू..मेरा चुनाव तुम्हे जरुर पसंद आएगा..हमने कभी तुम्हारा बुरा नहीं चाहा...और मरते दम भी हम ‘ जनाब ‘ का भला ही चाहेंगे..’

‘ जनाब ‘ शब्द सुन मैं चौंक गया..निकी की ओर देखा ..वह भी एकदम चुप्पी साध गयी..उसकी आँखों में भी अतीत झिलमिला गया था.. ‘ जनाब ‘ निकी का तकियाकलाम हुआ करता था..मैं अक्सर उसे ‘ जनाब ‘ कहने से मना करता और हर बार वह कहती- ‘ ठीक है..अब से नहीं कहूँगी..अब तो जनाब खुश ना ? ‘ और हम दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते. सच पूछो तो उसका ‘ जनाब ‘ कहना मुझे अच्छा ही लगता था.

‘ माफ करना अज्जू..आज सात-आठ साल बाद न जाने कैसे यह लफ्ज एकाएक होठों पर आ गया..ईश्वर गवाह है..इस लंबे अरसे में कभी यह लफ्ज होठों पर नहीं आया..खुदा करे..दुबारा यह लफ्ज इन होठों पर फिर कभी न आये...’

दिल्ली के लिए निकलते वक्त बार-बार वह ताकीद करती रही कि इसी सीजन में शादी करनी है..नागपूर पहुँचते ही बात कर सूचित करेगी..और स्वयं भी शादी में आएगी..मेरा पता ले वह चली गयी.

महीनों मैं निकी के खत का इन्तजार करता रहा पर कोई खत नहीं मिला. फिर दो महीने बीते..तीन महीने बीते..उसका कोई भी पत्र नहीं आया.इस बीच अचानक माँ की तबियत बिगड़ी तो महीने भर की छुट्टी ले घर पहुंचा.वहाँ एकाएक शादी की बात चली तो फिर निकी का ख्याल आया.उसके प्रति मन एक अजीब ही आक्रोश से भर गया.इधर माँ की कमजोरी मेरे दिलो-दिमाग को परेशान करती थी. हश्र यह हुआ कि मैंने अपनी शादी कि स्वीकृति दे दी. बार-बार माँ कहती रही कि गोंदिया जाकर एक बार लड़की को देख आ..पर मैंने इनकार कर दिया.अंततः गोंदिया में रमी के साथ मेरी शादी पक्की हुई और आनन्-फानन में शादी भी हो गयी.

तीन दिन पहले ही सुहागरात थी.मैंने एक नजर उसे देखा भी नहीं. कह दिया - ‘ मेरी तबियत कुछ अच्छी नहीं..अगर तन्हाई दे सको तो आभारी रहूँगा..’ और सोफे पर सो गया. मैंने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि मेरी इस बेरुखी से उस मासूम और निर्दोष पर क्या प्रतिक्रिया हुई होगी .यह क्रम कल तक चलता रहा. आज उसके भाई लोग रस्म के मुताबिक आठ-दस दिनों के लिए रमी को लिवा ले गए.

अभी-अभी पलग के सिरहाने पर उसका एक खत मिला है जिसे पढके न मैं मुस्कुरा पा रहा हूँ न ही रो पा रहा हूँ..समझ नहीं आता..मेरे साथ कैसा कुछ घटित हो रहा है..उसने लिखा है-

‘ मेरे सुहाग,...चरण स्पर्श...लड़कियां शादी या सुहागरात के जो सपने संजोकर ससुराल जाती हैं,उसके विषय में जिक्र नहीं करुँगी..सिर्फ इतना कहूँगी... सरसरी तौर पर ही सही, मेरा यह खत तुम पढ़ लो..’तुम’ की धृष्टता के लिए क्षमा चाहती हूँ..तुम्हारी बेरुखी का मुझे कोई गिला नहीं..लेकिन इतनी भी क्या बेरुखी कि ‘जनाब’ ने अपनी दुल्हन की सूरत तक न देखी..सोची थी,.शायद मुझे देख तुम पहचान जाओगे..लेकिन तुमने तो देखना भी गवारा नहीं किया..तुम्हे शायद मालूम न हो..तुमसे मेरी शादी कितनी कठिनाई से हुई है..एक इंजीनियर के साथ मेरी सगाई होने ही वाली थी कि एकाएक निकी जीजी का खत मिला जिसे उन्होंने दिल्ली से ड्राप किया था.....मालूम हुआ कि उसने तुम्हे शादी के लिए राजी कर लिया है... मैंने लड़की होकर भी घरवालों के सामने यह बोलने की बेशर्मी की कि मुझे तुमसे प्यार है..अन्यथा यह सगाई नहीं टलती..और जानते हो अज्जू..ऐसा मैंने क्यों किया ? क्योंकि यह मेरी निकी जीजी ...मेरी अभिन्न सहेली निकी की अंतिम ख्वाहिश थी..वह चाहती थी कि मेरी शादी तुमसे हो...तीन-चार महीने पूर्व जब तुमसे मिलकर लौट रही थी तो रास्ते में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई...और इन्दर व निकी जीजी घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिए...दोनों बच्चों को खरोंच तक नहीं आई... उसकी मौत से जिन सदमों से मैं गुजरी हूँ..भगवान न करे..तुम गुजरो...मैंने चाहा कि तुम्हें सूचित करूँ लेकिन आगरे का पता नहीं मिला...जीजी की मौत से मैं पागल हो गयी थी...उसके सिवा मेरा अपना और कोई न था..उसने तुम्हारे बारे में सब कुछ बताया था...यहाँ तक कि तुम्हारी-उसकी मुहब्बत की पूरी दास्तान भी..मैं तुम्हारे बारे में सुन-सुनकर ही तुमसे प्रभावित हो गयी थी ..मैं अक्सर उसे कहती- ‘ जीजी ..अब तो हम तुम्हारे ‘ जनाब ‘ से ही ब्याह रचाएंगे..’

और आज देखो...सचमुच तुमसे रचा ही लिया..यह निकी की प्रबल इच्छा का ही परिणाम है अज्जू कि हम तुम अचानक मिल सके...तुमसे ब्याह की बातों को मैं सपना मानने लग गई थी..मेरी शादी नागपूर से होती तो शायद तुम पहचान लेते पर शादी मामा के घर गोंदिया से हुई इसलिए तुमने भी ध्यान नहीं दिया..अज्जू...निकी तो अब नहीं रही..कोशिश करुँगी कि उसके सपनों को साकार कर सकूँ..निकी के घर मेरा रोज का आना-जाना है..दोनों बच्चों को अब तक मैं ही सम्हालती रही हूँ..सोचती हूँ..इस बार अपने दोनों बेटों को लेकर आऊ..क्या ख्याल है ‘ जनाब ‘ का ..?

ऐ अज्जू..उदास मत होना भई...हम अभी बहुत दूर हैं तुमसे...तुम्हारे आंसू तक नहीं पोंछ पायेंगे..तो जल्द से जल्द मुझे लेने आ रहे हो ना...?

‘ जनाब ‘ के इन्तजार में- ‘ जनाब ‘ की – रमी. ‘

बार-बार पढ़ने पर भी दिल नहीं भर रहा है..बिलकुल निकी जैसी साफ-साफ़ बातें...वही ‘जनाब’ वाला तकियाकलाम...वही प्यारी-प्यारी बातें..निकी के प्रति जो गुस्सा और आक्रोश उपजा था,उसे याद कर खुद से नफरत हो रही है..रमी की स्पष्टवादिता और निकी की अंतिम इच्छा की पूर्ति से जहां संतुष्ट हूँ,वहीँ उसकी कमी से बार-बार मेरे अंदर कुछ बिलख सा रहा है..महीनों पहले की उसकी एक-एक बात आज याद आ रही है- ‘ हमने कभी तुम्हारा बुरा नहीं चाहा अज्जू..मरते दम तक हम जनाब का भला ही चाहेंगे...अंतिम बार मैं एक ताज और गढना चाहती हूँ..बस..एक ताज और..’