एक थी तरु / भाग 24 / प्रतिभा सक्सेना

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कभी -कभी जाने क्या होता है, खास तौर से जब ट्रेन में अकेला होता है, अतीत के पृष्ठ एक-एक कर खुलने लगते हैं। तरल के साथ और भी, उसे लगता है वह उसे समझ रही है, उसका दुख अपने मन में अनुभव कर रही है। कोई तो है जो हिस्सा बँटा रहा है उन अनुभवों में और असित सुनाये जाता है विगत की कथा। अपने भीतर से निकाल कर सब-कुछ व्यक्त कर देना चाहता है।

उसने कहा था, ’माँ जब दूसरी होती है तरल जी, तब बाप और तीसरा हो जाता है।

और भी कि जब पिता का विवाह हुआ वह नादान था।

बुआ बताती हैं कि इन माँ के ग्रह कुछ ऐसे थे कि कहीं शादी नहीं होती थी, इनके पैर पट हैं न!’

'पट क्या?’ तरु ने पूछा था, ’ मतलब -तलवा बिलकुल सपाट। भीगा पैर ज़मीन पर पड़े तो पूरा का पूरा छप जाए। हम लोगों के एड़ी-पंजे के बीच जगह रहती है न।

बुआ कहती थीं ऐसा पाँव पटरा बैठा देता है।’

'आप मानते हैं यह सब?’

'मेरे मानने से क्या होता? लोग तो मानते हैं, बुआ कहती हैं इसी मारे पिता की नौकरी चली गई। बड़ी उमर में शादी, घर में पैसे की कमी, ऊपर से पहली के तीन-तीन बच्चे सम्हालने को, बहुत खीझती थीं हम पर। वो तो ये कहो कि श्यामा जिज्जी की शादी ठीक-ठाक हो गई। सौतेली माँ देख कर दया आ गई थी उन लोगों को, फिर जिज्जी काम करने में भी चटक थीं। और हमारे बाबू जी, जो इनने कह दिया वही ठीक।’

उतरती उमर की शादी में यही होता है -तरु सोच रही थी, पर कुछ कहा नहीं।

'आप भी क्या सोच रही होंगी अपने माँ-बाप के लिये कैसे कहे जा रहा है।’

तरु क्या कहे, पर वह सिर हिला रही है।

'मिठाई का दोना लिये बिना वे उनके कमरे में घुसते नहीं और वे हमेशा अस्वस्थ। कभी कुछ तो कभी कुछ। हम सब थे न सेवा करनेवाले।’

वह समझ नहीं पाती क्या बोले!

अच्छा है जो असित उससे कुछ सुनने की अपेक्षा नहीं करता। और असित! तरु का चेहरा देख कर ही उसका समाधान हो जाता है।

उस दिन की बात, जब बिगड़े मूड में दोनों की झड़प हो गई थी, बाद में बताई थी असित ने।

रश्मि सौतेली बहिन है, वैसे उसके व्यवहार में परायापन नहीं है। बहुत छोटी राहुल-राजुल के बीच की। असित पर अपना अधिकार अधिक समझती है।

उसे लेना था नया सलवार-सूट। माँजी से कहा। उनने साफ़ जवाब दे दिया, अभी पिछले महीने तुम्हारा कार्डिगन आ चुका है। कहती हैं -ज्यादा ऊँचे दिमाग़ मत रखो। वैसे ही खर्चे के लिए हाय-हाय मचाये रहती हैं, रश्मि की शादी की दुहाई दे-दे कर।

उनसे कहना बेकार है। असित दा से कहे रश्मि सोचती है, पर इतना पैसा फ़ालतू उनके पास होगा भी? अपने लिए तो बहुत कम ही रखते हैं। हर महीने पहले ही माँजी को पकड़ा देते हैं। असित दा तो सावन में, भैया-दूज पर और वैसे भी रश्मि के लिए काफ़ी कुछ कर देते हैं -उनसे कहने की हिम्मत नहीं पड़ रही।

'इधर दो दिन से दादा घर पर ही हैं, चलो आज कहूँगी।’

अम्माँजी कहती हैं अपना पेट जाया होता तो काहे इतनी चिन्ता होती।

ससुराल से जब कभी श्यामा आ जाती है तो उस पर होनेवाला खर्च भी उन्हें भार लगता है, पर न बुलायें तो भी मुश्किल, सब कहेंगे सौतेली माँ है, काहे को पूछेगी? सबसे अधिक भय असित से लगता है, घर में इतना रुपया देता है, श्यामा को न पूछने पर क्या सोचेगा?

कहीं सब अपने हाथ में ले लिया तो न पैसा मिलेगा न अपना नाम होगा।

पिता कंपाउंडर थे तो बँधी-बँधाई आमदनी थी पर वहाँ से सस्पेंड चल रहे हैं।

अबकी बार श्यामा के आने पर असित की शादी की चर्चा हुई तो माँजी ने उससे भी कहा-असित को समझाओ। उनका का विचार है असित की शादी में जो मिलेगा उससे रश्मि के लिए सहारा हो जाएगा। बीस-पचीस हज़ार तो आसानी से मिल जायेगा कुछ सामान भी इधर का उधर चला सकती हैं।

इनकी हो जाए तब तो कहीं रश्मि की बात चलाएँ। अच्छी-अच्छी लड़कियाँ आ रही हैं घर भी खाते-पीते, पर वह सुने तब न!

फिर श्यामा ने समझाया, ’सोचो ज़रा, हमेशा थोड़े ही न अच्छे रिश्ते आते रहेंगे। आगे का भी समझो। सत्ताईस पार कर गए और आगे कौन लड़की देगा फिर?’

पर वह तैयार नहीं होता।

श्यामा की मौसिया-सास की बेटी है -सुन्दर, इन्टर पास है। देंगे भी दिल खोल के। कई चक्कर लगा चुके हैं। वे लोग श्यामा से भी संपर्क बनाए हैं। असित के सामने बात हो जाए तो अच्छा। आज आने को कह गए हैं।

रश्मि के मन में खलबली हो रही है। उसने पूछा, 'दादा, आज तो घर पर ही रहोगे?’

'क्यों? काम है कुछ?'

'आज वो लोग आ रहे हैं, देखने और बात करने के लिए।’

उसने जानबूझ कर पूछा’तेरी शादी की बात पक्की करने?’

रश्मि ठुनकती हुई बोली, ' हमारे क्यों, तुम्हारे लिए आ रहे हैं। पहले भी चार चक्कर लगा चुके हैं, । फ़ोटो देखोगे दादा, वहीदा रहमान जैसी।’

वह फ़ोटो लेने दौड़ी, फिर तारीफ़ों के पुल बाँध दिये उसने, ’इतना सामान ले-ले कर आते हैं। मिठाई भी फल भी। दो ही लड़कियाँ हैं। लड़का एक भी नहीं।

बाबू ने कहा है लड़के के सामने आकर बात कर लो। आज पिक्चर भी ले जायंगे तुम्हें। दादा, हमें भी ले चलोगे? हाँ, अपने सवालों की लिस्ट तैयार रखना, वह पिक्चरहाल में मिलेगी।’

पिता कामता प्रसाद ने सस्पेंड हेने के बाद अपना दवाखाना खोल लिया। बड़ी लड़की के डूब कर मर जाने के बाद से घर की किसी बात में दखल नहीं देते।

पहली पत्नी मरी थी तीन बच्चे छोड़़ कर, असित बहुत छोटा था। दूसरी पत्नी राहुल की माँ बड़ी दबंग थी, सौतेली लड़की के डूब मरने के बाद से धीमी पड़ गई है।

कामता प्रसाद की प्रेक्टिस ठीक-ठाक चल जाती है। खर्च लायक कमा लेते हैं

अब नज़र कमज़ोर हो गई है, शरीर दुर्बल, पर चलाए जा रहे हैं।

राहुल इन्टर करके डिप्लोमा कर रहा है, बीच में दो बार फ़ेल भी हो चुका है। रश्मि अठारहवें में पहुँच रही है। प्राइवेट फ़ार्म भरा है इंटर का। छोटा राजुल हाई स्कूल कर रहा है।

बे-मन से फ़ोटो हाथ में पकड़ लिया असित ने, सरसरी नज़र डालता बोला पर मुझे तो तीसरे पहर की ट्रेन पकड़नी है। प्रोग्राम पहले से तय है।’

'फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई, ’रश्मि के मुँह से निकला, 'दादा, माँजी को मत बताना कि हमने तुमसे इस बारे में कुछ कहा। नहीं तो समझेंगी इसीलिये चले गए।’

'नहीं, मैं क्यों कहूँगा, मैं तो पहले ही जा रहा था।’

'और दादा।’ रश्मि की हिम्मत नहीं पड़ रही है।’

'झटपट कह डाल, वही सहेलीवाली बात होगी।’

कुछ दिन पहले रश्मि ने बताया था, हमारी सहेली साधना है न, वही जो घर पर आती रहती है, तुम्हारे बारे में खूब खोद-खोद कर पूछती रहती है। कहती है तेरे दादा कितने हैंडसम हैं और कितनी अच्छी तरह बात करते हैं।’

'फिर तूने क्या कहा?’

'हम क्यों पीछे रहते, हमने कहा हाँ, वो तो हैं ही और कितने स्मार्ट भी।’

'क्या फिर कुछ कह रही थी तेरी सहेली?’

'नहीं, उसकी बात नहीं। माँजी तो कुछ समझती ही नहीं, ’

'तुझे कुछ चाहिये?’

'दादा, हमें एक सलवार सूट चाहिये, ’वह मचलती-सी बोली, ’ माँजी तो एकदम मना कर देती हैं। हमारे पास बीस रुपये हैं पर उतने में तो कपड़ा भी नहीं आएगा।’

असित उठा, जेब में से पचास का एक नोट निकालते हुए असित ने कहा, ' अब तो ठीक। ?'

'बस इतना काफ़ी है।’रश्मि ले कर नाचती हुई चली गई।

लड़कीवालों के आने के बाद तो फँस जाऊँगा। असित ने सोचा, वे घुमा-फिरा कर यही सब पूछेंगे कैसी चाहिये, क्या चाहिये और भी जाने क्या-क्या।’

हुँहँ, कैसी-कैसी बातें पूछते हैं? असित को झल्लाहट होने लगती है। जब विवाह में रुचि नहीं तो कैसी चाहिये का क्या मतलब!

घर के लोग जो चाहते हैं असित का मन वह करने की बिलकुल गवाही नहीं देता। उस पर किये गये एहसानों का ब्योरा पहले ही वहाँ पहुँच चुका होगा, फिर सहज रूप से संबंध बनाना संभव नहीं होगा। इस लड़की के बाप तो पहले ही कह गए हैं जिनने इन बच्चों को पाला-पोसा, लड़की का ब्याह किया लड़के को लायक बनाया, वह माँ सौतेली कैसे वह तो पूजने लायक है।

विवाह से मतलब है -सब की स्वीकृति से जीवन भर साथ रहने को वचन-बद्ध स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा, जो झींकेगा, लड़ेगा, एक-दूसरे पर दोषारोपण करेगा और बच्चे पैदा करते हुये इस संबंध को ज़िन्दगी भर घसीटता जाएगा।

क्या करना है ऐसे थोपे हुए रिश्ते का, जहाँ पहले से भूमिका तैयार कर दी गई हो, जहाँ सिर्फ़ शिकायतें हों, अपनी बात मुँह पर लाने पर प्रतिबंध हो, एक बँधी-बँधाई लीक पर चलते जाने को विवश!

कितने नीचे स्तर पर उतर आते हैं लोग और सबके सामने ढ़ोंग रचते हैं। नहीं ऐसा संबंध मुझे स्वीकार नहीं है, जहाँ खुली साँस लेने का मौका भी न मिले।

और फिर असित घर पर रुका नहीं, बैग उठाया और’जाने का प्रोग्राम तो तय था' कह कर घर से निकल गया।