एक दुखियारे की पीड़ा-पाती / संजय पुरोहित

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रात्रि का तृतीय प्रहर / अमावस्या

आदरणीय मठाध्यक्ष जी,

प्रणाम।

प्रथम बार बिना किसी औपचारिकता, सीधे-सीधे मुद्दे पर आने की धृष्टता कर रहा हूँ। आपकी संस्था ने पुरस्कारों के विजेताओं के नामों की घोषणा कर दी है, किंतु मेरा नाम इस सूची में नहीं है। मैं घोर आहत अनुभव कर रहा हूँ। मेरा मन मस्तिष्क सूनामी पीड़ित सा तड़फ रहा है। हे मठाध्यक्ष जी, अपनी अन्तर आत्मा से मैं बार-बार यह प्रश्न पूछ रहा हूँ कि क्या आपके प्रति मेरी भक्ति में कोई खोट रही? जब मैं प्रथम बार देसी घी की मिठाईयाँ (मय छः पृष्ठीय बायोडाटा) लेकर आपके द्वार आया था, तो आपने मिठाई की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए एवं उन्हे जिह्वा की भेंट करते हुए मुझे पुरस्कार दिलवाने के आग्रह को स्वीकार किया था, किंतु हाय री किस्मत, मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

आपके संकेतानुसार मैं निर्णायक मण्डल के सदस्यों के निवासों पर घूम-घूमकर अपने गांव का सेर-सेर देसी घी, मिठाई, नमकीन, बायोडाटादि दे आया था। बायोडाटा के साथ अपना पासपोर्ट आकार का चित्र (जिसमें मैंने स्वंय को कुछ गोरा बनवा लिया था) भी संलग्न करने में त्रूटि नही की थी। कुछ माननीय सदस्यों ने अगली ट्रिप में घृतादि और लाने का आदेश भी दिया था। हे श्रीमन् मैं लाया, सब के लिए लाया, हर बार लाया, बार-बार लाया, किंतु बुरा हो मेरी किस्मत के लेखों का, कि मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

आपकी बिटिया को अपनी बिटिया समझ कर प्रतिमाह नमकीन-मिठाई लेकर मिलने जाता रहा हूँ। आपके नाती मुझे घोड़ा बना कर मेरी पीठ की सवारी करते रहे हैं। उनकी फरमाईश पर मैं उन्हे वो टॉफी-चॉकलेट लाकर देता रहा हूँ जो मैने तो क्या मेरी सात पुश्तों ने नहीं खाई होगी। आपके नाती ने क्रिकेट खेलते हुए जो शॉट मेरे कुल्हे पर जमाया, वो अभी तक पुख्ता है (और दुखता भी है) आपके दामाद मुझे ‘बेगारिया‘ समझते रहे हैं, आपकी बिटिया के सास-ससुर मुझे ‘आप‘ समझ कर घुड़काते रहे हैं। आपकी बिटिया ने ये समस्त बातें आपको मेरे द्वारा रिचार्ज करवाये गये मोबाईल फोन से बताई थी और मुझे पुरस्कार दिलवाने का ह्द्यस्पर्शी अनुरोध किया था, आपने स्वीकारोक्ति भी दी थी, किंतु हाय, भारी प्रस्तर के नीचे दबा मेरा भाग्य, मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

आपको स्मरण होगा कि आपकी छोटी बिटिया जो कि पीएच डी कर रही है, उसके लिए स्टेट लाईब्रेरियों की खाक छानते हुए शताधिक संदर्भ पुस्तकें ऐसे ला चुका हूँ जैसे हनुमानजी श्रीराम के लिए सीतामाता का चूड़ामणि ले आए थे। आपकी इस मेधावी बिटिया के शोध निर्देशक महोदय को बनारसी पान तथा शोध संग्रह के कम्प्यूटरीकरण करने वाले बंधु को पान मसाला (मय जर्दा) समय-समय पर प्रसन्न करता रहा हूँ। मैं समझता रहा कि आपकी द्वितीय सन्तान के प्रति की गई मेरी सेवा से आप विदित रहे हैं, किंतु फिर भी, घास में गुम सुई की तरह खोई मेरी किस्मत, कि मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

आपको यह तो स्मरण होगा ही कि आपकी अर्द्धांगिनी के घुटनो में दर्द होने पर ऐलोपैथिक, आयुर्वेदिक, एक्युप्रेशर, एक्युपंचर, सुजोक आदि आदि पद्धतियों से उपचार के दौरान भांति-भांति औषधियां और विशेषज्ञों ऐसे लेकर आता रहा, जैसे विपक्ष हवा में से मुद्दे ले आता है। उपचारावधि के दौरान सेवक निरन्तर सेवा के लिए तत्पर रहा। इतनी तपस्या से तो पत्थर की अहिल्या को श्रीराम मिल गए, किंतु हाय, मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

हे श्रीमन् आप यह कैसे भूल सकते हैं कि आपकी लिखी पुस्तकों को पुस्तकालयों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, कार्यालयों आदि में बलात् बेचता रहा। साम-दाम-दण्ड-भेद का प्रयोग कर बिना किसी कमीशन के मैं भारतीय मुद्रा, चैक-ड्राफ्टादि आपकी हथेली पर रखता रहा। मेरे अथक परिश्रम से आपके खाते में राशि बढ़ती रही, किंतु हाय री किस्मत, मुझ अभागे को पुरस्कार फिर भी न मिला।

यह तो आपको याद होगा ही कि जब आपके होनहार पुत्र को मदिरापान उपरान्त कन्या महाविद्यालय के बाहर कमसिन बालाओं को छेड़ने पर पुलिस पकड़ कर ले गई थी, तो आपके इसी सेवक ने वकील का प्रबंध किया था और स्वंय अपनी जमानत देकर रिहा करवाया था। साथ ही थानेदारजी को अखबार में समाचार नहीं देने हेतु ‘राजी‘ किया था। इस प्रकार आपके मान-सम्मान पर आँच नहीं आने दी। आपके सम्मान के लिए मेरे इस साहसी कृत्य पर भी, हाय, मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

मेरे साहित्यकार मित्रगण मुझे आपका ‘चमचा‘, ‘पिछलग्गू‘, ‘पूंछ‘ और न जाने क्या-क्या कहते हैं। मैंने कभी उनका बुरा नहीं माना क्योंकि मेरी दृष्टि में आप ‘पुरस्कारदाता‘ की अनुपम छवि वाले विराट व्यक्तित्व हैं किंतु इसका मुझे क्या लाभ, जबकि मुझ अभागे को पुरस्कार न मिला।

भारी एवं दुःखी मन से मैं अपना पत्र समाप्त कर रहा हूँ। आप इस पत्र को मेरी पीड़ा-पाती समझे। यदि आपको मुझे पुरस्कार घोषित नहीं करने की ग्लानि हो, तो किसी एक-आध को हटा कर अथवा कोई नया पुरस्कार घोषित कर मुझे ‘फिट‘ कर सकते हैं। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि पुरस्कार प्राप्ति के उपरान्त मैं पूर्ववत् हो जाऊँगा। स्मरण रहे, आपके नाती अभी छोटे हैं, आपकी बिटिया की पीएच.डी. अभी पूरी नहीं हुई है, आपकी धर्मपत्नी अभी भी उपचाराधीन है, आपका पुत्र अभी भी मदिरापान की लत से घिरा है और महामना, आपकी अनेक पुस्तकें अभी भी बिकने से शेष है।

आपका रूष्ट किंतु शुभसूचनाभिलाषी

सेवक एवं लेखक