एक पडाव / अशोक कुमार शुक्ला

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एक पडाव
...कमरे में कोई नहीं मिला.

जिन मित्रों ने सफ़र-ऐ-जिन्दगी की पिछली कड़िया पढ़ी है वो सोच रहे होंगे कि इस सफ़र में चेता को भुलाकर पिछली कड़ी में सीधे पी0 जी0 कालेज कैसे आ गया। क्या बीच में जो भी घटा वो सब कुछ भुला दिया? नहीं मित्रों! भुला नहीं हूँ....एक पड़ाव के लिये अचानक वहाँ पहुँच गया था। सोचता हूँ क्या मैं कभी चेता को भूल सकता हूँ? शायद कभी नहीं..! ...उस दिन जब बाहर आँगन में कुछ हंगामा सा सुनकर नींद खुली थी... तो कौतुहल वश उनींदी आँखों से उठकर मैं भी कमरे के बहार आया तो पाया कि बाहर कई लोग भैजी के कमरे के बाहर इकट्ठा थे.... शायद कोई चोर उनके कमरे में घुस गया था इसीलिये उनके कमरे को मोहल्ले वालों ने बाहर से कुण्डी लगाकर बंद कर दिया था....सब लोग मिलकर सत्तू के बाबा (पिता) का इन्तजार कर रहे थे.... वो जब आयेगे तभी चोर को निकाला जाएगा.. आखिर सत्तू के बाबा आये और दरवाजा खोला गया ...भैजी को कमरे से बाहर निकाल कर कमरे का कोना कोना तलाशा गया लेकिन कमरे में कोई दुसरा नहीं मिला...अब उन लोगो से सवाल दगा जाने लगा जिन्होंने भैजी के कमरे के बाहर कुण्डी लगा दी थी । उनका दावा था की उसने भैजी के कमरे में किसी को जाते देखा था..यह झूठ नहीं है.. पुनः सावधानी पूर्वक तलाश करने पर भी जब कोई नहीं मिला तो यह कयास लगाया गया कि शायद चोर कमरे की पिछली दीवार पर बने रोशनदान से निकल भागा है...जिस ओर रोशनदान खुलता था उसी और जानवरों को बाँधने वाला ओबरा (गढ़वाली वास्तु शैली में बने मकान का भूतल जो सामान्यतः पालतू जानवरों को बाँधने के लिए उपयोग में आता है) स्थित था।