एक भूली-बिसरी 'हकीकत' / जयप्रकाश चौकसे

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एक भूली-बिसरी 'हकीकत'
प्रकाशन तिथि :15 जून 2017


हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे लगाते हुए चीनी सेना ने आक्रमण किया था। चेतन आनंद ने इस घटना पर फिल्म बनाने का विचार किया और पंजाब के मुख्यमंत्री कैरों से सहायता मांगी जो उन्हंे सहर्ष आनन-फानन में उपलब्ध करा दी गई। प्रांतीय सरकारें सार्थक फिल्मों के निर्माण में सहायता कर सकती हैं। इस समय तक चेतन के पास लिखित पटकथा नहीं थी परंतु उनके मन में फिल्म का आकल्पन स्पष्ट था। सर्वप्रथम उन्होंने अपने पुराने मित्र बलराज साहनी से संपर्क किया। कुछ वर्ष पूर्व उनका मतभेद हो चुका था परंतु मित्रता इतनी गहरी थी कि वे पुन: जुड़ गए। चेतन आनंद ने अपने छोटे भाई विजय आनंद और बलराज साहनी के साथ बातचीत की और पटकथा बनती गई परंतु यह इतना लचीला कार्य था कि नित नए विचार जुड़ते गए और चेतन आनंद के पुराने मित्र कैफी आज़मी और मदनमोहन भी जुड़ गए। 'हकीकत' का चिरस्मरणीय गीत-संगीत रचा गया। परंतु पटकथा धीरे-धीरे विकसित होती रही। संवाद भी शूटिंग के समय लिखे गए। इस अर्थ में इसे आशु कविता कह सकते हैं, जो दरअसल एक 'रीट्रीट' फिल्म है। वापसी की व्यथा-कथा है। इस युद्ध के बीज तो बहुत पहले बो दिए गए थे, जब हम ब्रिटेन के अधीन थे और हुकूमते बरतानिया के आदेश पर यह जमीन जीत कर भारत में शामिल कर दी गई थी। इस भूखंड को लेकर चीन को तो पहले से ही आपत्ति थी। इस युद्ध के समय वीके कृष्ण मेनन रक्षा मंत्री थे और उन्होंने त्यागपत्र दिया। नेहरू को गहरा आघात लगा। उनकी मृत्यु बाद में हुई परंतु उनके पंचशील का आदर्श उसी समय समाप्त हो गया था। इस तरह के अंत को सिमान द ब्वॉ ने 'काउंटर क्लोज़र' कहा है। अपने शिखर के समय ही मनुष्य जान ले कि उसका अंत निकट है। वह जान ले कि उसका आदर्श मिट गया है। भारत और चीन के इतिहास में कई साम्य हैं कि दोनों ही खंडों में बंटे हुए थे। अंग्रेजों से मुक्त होते ही हमने गणतंत्रीय शैली को अपनाया परंतु चीन तानाशाही मार्ग पर गया। दरअसल, चीन ने पूंजीवादी ध्येय कम्युनिज्म के तरीकों से साधना शुरू किए। उन्होंने एक सिरे से अपने देश का आधुनिकीकरण प्रारंभ किया और अपनी योजना के अनुसार ही वे विकास कर रहे हैं। चीन का एक हिस्सा अमेरिका की तरह विकसित हो चुका है। चीन और अमेरिका परमशत्रु हैं परंतु वे अपनी जमीन पर युद्ध नहीं चाहते। वे अपने कुरुक्षेत्र की तलाश में हैं। भारत उन दोनों को कुरुक्षेत्र लगता है। आजकल शत्रुता और युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। अब जमीन से अधिक बाजार हथियाने पर ध्यान दिया जा रहा है। चीन में निर्मित चीजें सभी देशों में बिक रही हैं। गौरतलब यह है कि चीनी व्यंजन पूरे विश्व में मजे लेकर खाए जा रहे हैं। भारत में अपने ही निराले ढंग का चीनी भोजन मिलता है, जो चीन से बेहद अलग है। भारतीय तड़के ने चीनी भोजन का स्वरूप बदल दिया है। छोटे शहरों और कस्बों में भी चीनी भोजन के नाम पर अजीबोगरीब पदार्थ पकाए और बेचे जाते हैं। अमेरिका में चीनी भोजन लोकप्रिय है परंतु अमेरिकी स्टेक चीन में नहीं खाया जाता। एक अदद 'चाइना टाउन' रेस्तरां सभी जगह दिखाई देता है। इस नाम की अशोक कुमार अभिनीत फिल्म भी बन चुकी है। इसी फिल्म के कारण चीनी भोजन करते समय मधुबाला की याद ताजा हो जाती है। यह मजेदार तथ्य है कि जिस कालखंड में भारत में 'कामसूत्र' लिखी गई, उसी कालखंड में उससे मिलती-जुलती रचना, 'ताओ टेकनीक ऑफ सेक्चुअल एनर्जी' चीन में रची गई। ताओ चीन के बड़े दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने अनेक विषयों पर किताबें लिखी हैं। 'कामसूत्र' के लेखक वात्स्यायन और चीन के ताओ के जीवन में भी कुछ समान घटनाएं रही हैं। वात्स्यायन एक दौर में उज्जैन में बस गए थे,जहां उनकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी। सारे विश्व को प्रेम की कला सिखाने वाले की अपनी पत्नी उसे छोड़कर चली गई। अनेक क्षेत्रों के विजेता अपने घर में पराजित हुए हैं। कोई भी 'नायक' अपनी पत्नी के लिए 'नायक' नहीं होता। वह उसकी कमजोरी जानती है।

बहरहाल, हमने अपने घरेलू वोट बैंक की खातिर पाकिस्तान का हव्वा खड़ा किया है, जबकि खतरा चीन से है। विशेषज्ञों ने राय जाहिर की है कि हमारी रक्षा शक्ति घट रही है, क्योंकि यथार्थवादी दृष्टिकोण का अभाव है। आधुनिकतम शस्त्र नहीं खरीदे जा सके हैं। इस क्षेत्र में 'कमीशन' का तथ्य और उसके हव्वे ने हमें शिथिल कर दिय है। प्रचार-तंत्र खुशहाली का भ्रम रच सकता है परंतु रणक्षेत्र की हकीकत को बदल नहीं सकता। चेतन आनंद की फिल्म 'हकीकत' हमें बार-बार देखते रहनी चाहिए। वह फिर घट सकती है।