एक भोजपुरी फ़िल्म की हिट स्टोरी / अभिज्ञात

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पार्ट 1

बलिया की एक नौटंकी मंडली है। जिसके मालिक हैं राधेश्याम। राधेश्याम की यह पुश्तैनी मंडली है जो अब संकट से गुजर रही है। यह मंडली लोक-उत्सवों, मेलों, शादी-बारात आदि में अपनी कला का प्रदर्शन करती है। इसमें कई कलाकार भी ऐसे हैं जो इसमें पुश्तों से अभिनय, गायन, वादन अथवा सेट बनाने या झाडू मारने आदि का काम करते आये हैं। कुल 15 लोगों की इस मंडली का अपना एक खटारा वाहन भी है और पुश्तैनी ड्राइवर भी। मंडली के लोगों का कहना है कि एक बार अभिनय का जो चस्का लग जाता है तो फिर उसके आगे कोई और चीज नहीं रुचती। इसके कलाकार अपनी जिन्दगी में जो कुछ बनाना चाहते हैं वह नौटंकी में ही बन कर खुश हो लेते हैं। कुछ का तो यहां तक कहना है कि असली जिन्दगी तो जो एक बार बन गये सो बन गये लेकिन नौटंकी में इसकी पूरी छूट है कि राजा चाहे तो रंग बन ले और चोर चाहे तो कोतवाल। यहां ज्यादातर लोग जो सपने देखते हैं वह कुछ देर के लिए हकीकत में भी बदलते हैं भले ही वह नकली क्यों न हो इसलिए नौटंकी को बचाये रखना सबको जरूरी लगता है। कई लोगों को मुनाफे वाले काम मिले भी तो उन्हें वह नहीं जंचे। नौटंकी में राजा बना रहने वाला व्यक्ति वास्तविक जिन्दगी में नौकर नहीं बनना चाहता। और फिर उन्हें जो लोकप्रियता मिली है वह उन्हें सामान्य जिन्दगी नहीं जीने देती। कुछ लोगों ने पेशा बदलना भी चाहा तो नहीं बदल सके। लौट आये फिर नौटंकी में। ( गीत नम्बर 1-राधेश्याम गाता है जिसमें दुनिया को नाटक कहा गया है ) राधेश्याम इस बात को लेकर चिन्तित है कि लोग नौटंकी देखने के बदले अब फिल्में देखने पर जोर दे रहे हैं और उनकी मुख्य प्रतियोगिता फिल्मों से ही है। वे खुलेआम नौटंकी दल के कलाकारों से कहते हैं कि यदि उन्हें लाटरी लग गयी तो वे फिल्म बनायेंगे और उसमें टीम के पूरे कलाकारों को काम देंगे और उनके कलाकारों को मुफलिसी का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि फिल्मों में बहुत पैसा और शोहरत है। उनके पिता ने मरते समय भी उनसे वचन लिया था कि चाहे जो हो जाये तमाशा जारी रहना चाहिए और मंडली के लोगों को अपने घर का सदस्य उन्हें समझना है, उनकी जिम्मेदारियां भी निभानी हैं। उनका दुःख सुख का साथी बनना है।

राधेश्याम की उम्र लगभग पचास साल की है। पत्नी गुजर गयी है इकलौता बेटा भी नौटंकी में ही काम करता है। अक्सर वही नायक बनता है जबकि नौटंकी में नायिका का काम करने वाली लड़की के प्रति वह आकर्षित है लेकिन अभी इजहार दोनों ही ओर से नहीं हुआ है। (गीत नम्बर-2-नाटक के एक रिहर्सल के दौरान गीत में उनके मन में फूटते प्रेम के अंकुल का खुलासा होगा )।

पूरा नाटय दल एक ही बड़े मकान के विभिन्न कमरों में रहता है। यह मकान राधेश्याम का है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था में है जो मंडली की खस्ताहाली की कहानी कहता है। राधेश्याम के दादाजी को राष्ट्रीय सम्मान मिल चुका है जो स्वयं नौटंकी के लिए मशहूर थे।

राधेश्याम को सुन्दरता से बहुत लगाव है। वह हमेशा सब से कहता है कि वे सुन्दरता पर ध्यान दें। सुन्दर लगें सुन्दर सोचें और चीजों में सुन्दरता की तलाश करें। क्योंकि तभी दुनिया सुन्दर हो सकेगी। दुनिया को सुन्दर बनाने की जरूरत है और वे चाहते हैं कि उनके इर्द गिर्द एक सुन्दर दुनिया हो। वे सभी के चेहरे पर हर वक्त मुस्कान देखना चाहते हैं। रोनी सूरत से उन्हें सख्त नफरत है। हर हाल में खुश रहने का मंत्र भी उन्हें विरासत में मिला है।

राधेश्याम अपने दिन फिरने का इन्तजार कर रहा है और वह रोज सुबह लाटरी का नम्बर मिलाता है क्योंकि वह लग गयी तो उसका फिल्म बनाने का सपना साकार हो सकता है। वरना अब दिन तो ऐसे देखने पड़ रहे थे कि नौटंकी कराने वालों से यह तक नहीं पूछते थे कि क्या लेंगे देंगे। जो मिलेगा उसी में संतोष करने के अलावा कोई उपाय न था। एक ऐसा भी अवसर भी आये जब सबको खाने के लाले पड़ गये और भोजन नहीं पका तो अपनी दिवंगत पत्नी के जेवर बंधक रखने को दे दिये जो अपनी बहू को देने के लिए उन्होंने रख छोड़ा था और पत्नी की अन्तिम निशानी थी। सभी लोग भावुक हो उठते हैं लेकिन दूसरे दिन ही तब खुशी की लहर दौड़ उठती है जब उनकी दो करोड़ की लाटरी लग जाती है।


पार्ट 2

लाटरी का समाचार सुनकर मोहल्ले में सबको मिठाइयां बांटी जाती हैं और राधेश्याम घोषणा करता है कि इस पैसे से फिल्म बनेगी। और सभी के दिन अब फिर जायेंगे। वह शहर के सिनेमाहाल में जाता है जहां एक भोजपुरी फिल्म चल रही है। वह सिनेमाहाल के मैनेजर से गुजारिश करता है कि उसे डायरेक्टर का फोन नम्बर और पते का इन्तजाम कर दे। वह फिल्म बनाना चाहता है। दूसरे दिन उसे बुलाया जाता है और फोन नम्बर पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। वह पब्लिक टेलीफोन बूथ से डायरेक्टर को फोन करता है कि वह भोजपुरी फिल्म बनाना चाहता है कितने रुपये में बन जायेगी। जब उधर से कहा जाता है कि एक करोड़ लगेगा तो वह कहता है कि वह इतने पैसे का इन्तजाम हो गया है। डायरेक्टर उससे कहता है कि वह अगले हफ्ते ही मुंबई में उससे आकर मिले। वह फोन के पास खड़े मंडली के लोगों को बताता है कि हम सब मुंबई जा रहे हैं फिल्म बनाने तो सभी बाजार में नाचते और गाते हैं। (गीत नम्बर-3-इस गीत में लोगों की आशाओं के पूरा होने, मंगल कामनाओं की बातें और मंदिर में सबके पूजा करने का दृश्य होगा)।


पार्ट 3

ट्रेन से पूरी मंडली मुंबई पहुंचती है। वहां डायरेक्टर यह देखकर भौंचक्का रह जाता है कि राधेश्याम अकेले नहीं बल्कि पूरी मंडली के साथ आया है। वह डायरेक्टर से कहता है कि वह अपने साथ अपने पूरे कलाकार लेकर आया है और ये सभी लोग उसमें अभिनय करेंगे। गाना गायेंगे, गीत लिखेंगे और बजायेंगे, नाचेंगे। हर आदमी कई कई कलाओं में माहिर है। उसे दूसरे कमरे में बैठाकर डायरेक्टर अपने लोगों के साथ बातचीत में कहता है कि यह बड़ी गड़बड़ी हो गयी। यह तो पूरी मंडली के साथ आया है। सभी लोगों को चलता करना होगा। यदि सब कुछ यही लोग करेंगे तो फिर हमारी टीम के लोग क्या करेंगे। कई कलाकार ऐसे हैं जिनका उनके साथ लेन देन है। कुछ ऐसे भी हैं जो उनकी फिल्मों में पैसा लगते हैं उनके लोगों को दूसरी फिल्मों में भी काम देकर ओब्लाइज करना है। कुछ ऐसी लड़कियां भी हैं जिन्हें उन्होंने फिल्मों में काम देने का वादा किया है। कई दूसरे डायरेक्टरों से भी सम्बंध बनाये रखना होता है। अपने प्रिय हीरो हिरोइनों गायकों और संगीतकारों को वे क्या कहेंगे। किसी तरह मंडली के लोगों को टरकाना होगा। यह तो पूरा पैसा ही बचा लेगा। वे योजना बनाते हैं कि राधेश्याम को दुनिया की रंगीनी दिखाकर उसे शीशे में उतारना होगा। शराब और शबाब से दुनिया में बड़े-बड़े साधु संत नहीं बचे यह किस खेत की मूली है। इधर राधेश्याम एक सस्ते से होटल में पूरी टीम के साथ रहता है और फिल्म की तैयारियों में जुट जाता है। उससे डायरेक्टर कहता है कि वह उससे मिलता मिलाता रहे। फिल्म इंडस्ट्री को पहले समझे फिर तो फिल्म बनती ही रहेगी।

अब डायरेक्टर अपनी योजना के अनुसार उसे बहकाने में लग जाता है। वह उसे जहां मिलने के लिए बुलाता है वहां लड़कियां न सिर्फ डायरेक्टर से बल्कि उससे भी चिपकती हैं। और मना करने के बावजूद उसे शराब भी बार बार आग्रहपूर्वक पिलायी जाती है। उसे समझाया जाता है कि जिन्दगी रंगीन होनी जरूरी है। यह ख्वाबों की दुनिया है यहां लोग अपने ख्वाब पूरे करने आते है इसलिए जिन्दगी भी कभी कभार ख्वाब सी हसीन होनी चाहिए। एक हिट फिल्म लोगों की पूरी जिन्दगी की दिशा बदल देती है। राधेश्याम को बताया जाता है कि यदि उसे फिल्म इंडस्ट्री में रहना है तो यहां तो तौरतरीकों से परहेज नहीं करना चाहिए। शराब और शबाब के बिना यहां किसी का काम नहीं चलता। वह सबसे कटछंट जायेगा। वह जितना जल्दी यहां का रंगढंग अपना लेगा उसे सुविधा होगी। फिर उसे नशे की हालत में समझाया जाता है कि यहां लोगों को आसमान से जमीन पर गिरने में भी देर नहीं लगती। वह जो एक करोड़ रुपये लगा रहा है यदि वह सभी महत्वपूर्ण रोल और काम काज अपने ही लोगों को देगा तो पता नहीं फिल्म का क्या होगा। बिना नाम किये लोगों की फिल्म देखने दर्शक नहीं आयेंगे तो फिल्म बुरी तरह पिट जायेगी। फिर वितरक भी नहीं मिलेंगे। उसका पैसा पानी में जायेगा। और फिर अपने घर लौट कर उसे नौटंकी करनी पड़ेगी। उसे नौटंकी और फिल्म का फर्क समझना होगा। जो लोग फिल्म इंडस्ट्री में आज हैं वे काबिल लोग हैं। उन्हें न चाहते हुए भी फिल्म में लेना पड़ता है उनके नखरे सहने पड़ते हैं उनकी बत्तमीजियां झेलनी पड़ती हैं क्योंकि वे जनता की नजर में कामयाब लोग हैं फिल्में उन्हीं के बल पर चलती हैं। (गीत नम्बर 4-किसी होटल में कैबरे नृत्य के साथ) और धीरे-धीरे राधेश्याम पर उसकी बातों का प्रभाव पड़ता है। एक दिन अचानक उसका बदला हुआ व्यवहार होटल में उसकी टीम के लोगों को साफ दिखायी पड़ने लगता है। उनकी जिन खूबियों के लिए वह उन्हें पसंद करता है उसे खामी कहने लगता है। बात-बात पर तुनक उठता है। हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट रखने वाला राधेश्याम अब गंभीर रहने लगता है। डायरेक्टर उसे ले जाकर फिल्म इंडस्ट्री में जमे जमाये हीरो, हिरोइन और गायक कलाकारों को साइन कराकर एडवांस दिला देता है। हालांकि उसकी यह बात मान ली जाती है कि राधेश्याम के साथ आये कलाकारों को भी कम महत्व के रोल दिये जायेंगे।


पार्ट 4

फिल्म की शूटिंग शुरू हो गयी। अब राधेश्याम को काटो तो खून नहीं। वह मुंबई के कलाकारों का अभिनय देखकर कूढ़ता रहता है। उसे अपने अन्दर का डायरेक्टर लानते भेजता है। उसने अपनी मंडली के कलाकारों के साथ जो दूरी बना रखी थी उसे दूर करता है और अपना दुख बांटने लगता है। उसे अफसोस होता है कि कलाकार हिन्दी डायलाग बोल रहे हैं उन्हें भोजपुरी बोलनी नहीं आ रही है। भोजपुरी जीवन के तौर तरीकों से भी फिल्म का कोई वास्ता नहीं दिखायी पड़ता न ही पहनने और व्यवहार का तौरतरीका ही भोजपुरिया है। अभिनय का कच्चापन साफ दिखता है। सही अभिनय कैसा होना चाहिए उसके कलाकार फिल्म की शूटिंग से थोड़ी दूर पर करकर के दिखाते हैं और मन मसोस कर रह जाते हैं। सभी कलाकार बार बार तैयार होते हैं कि शायद उन्हें अब भूमिका करना पड़ेगी मगर बहुत मुश्किल से कोई काम मिलता है और तनिक भी गलती होने पर उन्हें डायरेक्टर की जोरदार फटकार मिलती है और वह उन्हें अपमानित भी करता है कि काम तो आता नहीं चल दिये रोल करने। नौटंकी और फिल्म बड़ा फर्क होता है। फिल्म में जिसे नायिका रखा जाना चाहिए था नौटंकी की उस नायिका को झाड़ू मारने की एक छोटी सी भूमिका दी जाती है और उसे ऐसा मेकअप किया जाता है कि वह कम सुन्दर लगे क्योंकि तमाम मेकअप के बावजूद असली नायिका उसके आगे एकदम फीकी पड़ रही थी। नायक गंजा और 50 साल का था जिसे 22 साल के युवक की भूमिका दी गयी थी। मेकअप के बावजूद उसका बुढ़ापा झांक रहा था जबकि राधेश्याम के बेटे को चपरासी की छोटी भूमिका मिली थी जिस पर नायक नायिका दोनों लिपट कर रो पड़ते हैं और एक दूसरे के और करीब आते हैं। नायिका को झाड़ू मारने के दृश्य की शूटिंग में तो वह राधेश्याम खुद भी रो पड़ता है। वह अपने आप से कहता है कि यह जघन्य पाप उससे हो रहा है जिसे नौकरानी बनना चाहिए था वह रानी बनी है और दोनों की भूमिका उल्टी है। इधर गांव से फोन आता है कि कौन कौन कौन सा रोल कर रहा है। जरूर नायक नायिका ही नायक नायिका फिल्मों में होंगे। वे लोग फोन राधेश्याम को पकड़ा देते हैं। राधेश्याम को लोगों को जवाब देते नहीं बनता वह कहता है कि गांव के लोगों की आवाज साफ सुनायी नहीं दे रही है। और वह फूट-फूट कर रोता है। (गीत नम्बर-5 होटल में एक दर्द भरा गीत नौटंकी का एक कलाकार गाता है पूरबी)


पार्ट 5

इस बीच नौटंकी वाले जिस होटल में ठहरे रहते हैं वहां फिल्म का असिस्टेंट डायरेक्टर भी आता है। वह बताता है कि उसने एक जमाने में कई हिट फिल्में दी थीं फिर उसने अपने पैसे से फिल्म बनायी जो पिट गयी और उसका सब कुछ बिक गया। वह असिस्टेंट बनने को मजबूर हो गया है। किन्तु वह उन लोगों की बातें सुनता रहता है वह उनसे हमदर्दी रखता है। वह उनकी मदद कर सकता है। वह कम से कम पैसे में उनकी फिल्म बना देगा क्योंकि जिस तरह से काम चल रहा है डायरेक्टर उससे एक करोड़ के बदले डेढ़ करोड़ वसूलने की फिराक में है। बजट बढ़ने जा रहा है। वह कहता है कि वह राधेश्याम की मंडली के लोगों को लेकर ही हिट फिल्म बनायेगा उसे बस वे एक मौका दे दें इससे वह खुद भी अपनी विफलताओं से बाहर आ जायेगा। दोनों का फायदा होगा। आखिरकार राधेश्याम अपने डायेरक्टर से कह देता है वह फिल्म से डायरेक्टर को निकाल रहा है और असिस्टेंट डायरेक्टर ही फिल्म पूरी करेगा। इसके बाद तो पुराने सारे कलाकार हटाये जाते हैं नौटंकी वाले नायक नायिका फिल्म में नायक नायिका बन जाते हैं। (गीत नम्बर- 6-दोनों पर एक गाना फिल्माया जाता है)गीत के दौरान ही दृश्य दिखाये जाते हैं जिसमें फिल्म का विभिन्न सिनेमाघरों में प्रदर्शन हो रहा है। आटोग्राफ लेने वालों की भीड़ है। राधेश्याम और उनकी नौटंकी टीम बलिया आती है जहां सिनेमाघर में उनकी फिल्म लगी है। लोगों की अपार भीड़ लगी है और फूल मालाओं से उनका स्वागत लोग करते हैं।

अन्त में बताया जाता है कि राधेश्याम की फिल्म को एवार्ड मिल गया। नायक नायिका की शादी हो जाती है और शादी के बाद नायिका फिल्म छोड़कर बच्चे सम्भाल रही है। जबकि नायक की कई फिल्में हिट हो गयी हैं। असिस्टेंट डायरेक्टर फिर फिट डायरेक्टरों में गिने जाने लगे हैं। मंडली के बाकी सदस्य भी मुंबई में काम में व्यस्त हैं। फिल्म इंडस्ट्री उन्हें रास आ गयी है।

समाप्त।