एक लड़ाके पत्रकार का असमय चले जाना / अशोक कुमार शुक्ला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » संकलनकर्ता » अशोक कुमार शुक्ला  » संग्रह: उत्तराखण्ड: कुछ परिचयात्मक आलेख
एक लड़ाके पत्रकार का असमय चले जाना.........
स्मरण: चन्द्रशेखर करगेती
राजेन टोडरिया का चित्र

मेरा राजेन टोडरिया जी से फेसबुक पर उनके द्वारा लिखे गए बहुत से आलेखों को लेकर जबरदस्त विरोध रहा, लेकिन जब हम विचारों के आपसी विरोधाभास को एक तरफ रख हाल ही में एक दूसरे से बात करने लगे तो उनसे नजदीकियां बढ़ने लगी, कुछ मुद्दों पर घोर मतभेद रहा लेकिन विचारों का यह मतभेद ऐसा नहीं था कि जो खत्म न हो सकता था,तय किया था कि जब भी इस बार दून जाउंगा तो पूरा दिन उनके साथ बैठुंगा और जानना चाहूँगा कि वे ऐसे लीक से हटकर चलने वाले क्यों है ? शायद नीयति को कुछ और ही मंजूर था और आज हमारे विचारों के बीच यह दूरियां ऐसी बढ़ी कि अब हम चाहकर भी एक साथ नहीं बैठ सकते l

राजेन टोडरिया उन लोगों के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं थे, जिनकी दिलचस्पी पहाड़ के सुख-दुख और पहाड़ को जानने समझने और उनके साथ एकाकार होने में हैं । मैं राजेन टोडरिया जी को उस समय से पढता आया हूँ, जब उन्होंने टिहरी बाँध से हुए विस्थापन पर सबसे तेज तर्रार रिपोर्टिंग की थी, मेरे मन में उनकी लेखनी के प्रति बहुत सम्मान है, अगर राजेन टोडरिया को जनपक्षीय पत्रकारिता का क्षेत्रीय स्कूल कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, पहाड़ के प्रति उनकी चिंता को टिहरी पर लिखी इस कविता से समझा जा सकता है......


किसी शहर को डुबोने के लिए,
काफी नहीं होती है एक नदी,
सिक्कों के संगीत पर नाचते,
समझदार लोग हों,
भीड़ हो मगर बटी हुई,
कायरों के पास हो तर्कों की तलवार,
तो यकीन मानिये,
शहर तो शहर,
यह काफी है,
देश को डुबोने के लिए ।

उत्तराखंड के जन,जंगल, जमीन के मुद्दों एवं जन सरोकारों को लेकर लेखन में कलम के इस सिपाही का कोई सानी नहीं था, उनके शब्द बाण जितनी तीखे होते थे उतने ही मारक भी l हाल ही के दिनों में मेरी उनसे कई बार संक्षिप्त बातचीत हुई, जिसमें उत्तराखंड के बहुत से मुद्दे की तह तक जाकर उनसे बहुत कुछ जानने समझने का अवसर मिला, मैं वैचारिक रूप से जैसा आज हूँ वैसा पहले नहीं था, मेरी निखालिस शहरी सोच को पहाड़ और उत्तराखण्ड की और मोड़ने में उनके लेखों का बहुत बड़ा योगदान रहा है,जिन्हें पढकर मैं आज आपसे रूबरू हो पा रहा हूँ l

आज उनकी लेखनी के अवसान पर हृदय दुखी है, लेकिन इस उम्मीद में भी हूँ कि यदि अगर पुनर्जन्म जैसा कुछ होता है तो पहाड़ में फिर एक राजेन टोडरिया पैदा होगा, क्योंकि वो अपनी लेखनी से अपने पुनर्जन्म के इतने बीज उत्तराखण्ड में बिखेर गए हैं कि जिनमें से किसी न किसी को, कभी न कभी तो अंकुरित हो सामने आना ही है l

पहाड़ के प्रति मेरी समझ और सोच को परिष्कृत और विकसीत करने वाले, कलम के इस लड़ाका सिपाही को मेरा सलाम l