एक लोकप्रिय गीत और लोक-संसद / जयप्रकाश चौकसे

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एक लोकप्रिय गीत और लोक-संसद
प्रकाशन तिथि : 06 नवम्बर 2012


कोरिया के गायक पार्क जैइसेंग ने अपने म्यूजिक एलबम के प्रचार के लिए उसका एक वीडियो बनाया और उनकी नृत्य शैली 'गैंगनम स्टाइल' के नाम से पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गई। इस नृत्य शैली में घुड़सवार की अदा उसका आधार है। दरअसल कोरिया का श्रेष्ठि वर्ग गैंगनम नामक क्षेत्र में रहता है और उनका मखौल बनाने वाले इस कोरियाई गीत की एक पंक्ति का अर्थ है कि मात्र धन कमाने से व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं होता। फैशनेबल कपड़े पहनने मात्र से अभिजात्य नहीं प्राप्त होता और सेक्सी वेशभूषा या उसके नाममात्र उपयोग से आप अच्छा नृत्य नहीं कर सकते। अर्थात नृत्य के लिए आवश्यक लय शरीर में स्वाभाविक ढंग से होती है और उसका धन, वैभव से कोई संबंध नहीं है।

हमारे क्रिकेटप्रेमियों ने क्रिस गेल को मैदान पर फुदकते हुए देखा है, यही गैंगनम नृत्य शैली है। बिना घोड़े पर बैठे आप घुड़सवार की मुद्राओं का प्रदर्शन करें। इस शैली का कोई नियम नहीं है और नियम में नहीं बंधे होने के कारण हर कोई इसे कर सकता है। दशकों से बाराती सड़क पर इस तरह का शैलीविहीन नृत्य करते हैं और वे नशे की लहर पर सवार होते हैं। हर बराती तो शराब नहीं पीता, परंतु बराती मात्र होना भारतीय नशा है। बराती आक्रामक होता है और घराती सहमा हुआ रक्षात्मक होता है। दशकों से कस्बाई बारात में ओपी नैयर और साहिर के गीत 'ये देश है वीर जवानों का' पर लोग धड़ल्ले से नाचते रहे हैं। सच तो यह है कि उपरोक्त गीत देशभक्ति का गीत है, सेना के धावा बोलने का गीत है, परंतु बारात में जरूर इसका प्रयोग आज भी होता है, क्योंकि भारतीय शादी में घोड़े पर सवार दूल्हे को शस्त्रों से सजे हुए योद्धा की तरह ही ले जाने और वधू को पराजित पक्ष से पाई हुई ट्रॉफी ही समझा जाता है और प्राय: शादी युद्ध क्षेत्र की तरह मानी जाती है। पुरुष केंद्रित समाज की बारात में इस तरह का गीत बजना कोई आश्चर्य नहीं है।

बहरहाल, गैंगनम स्टाइल को सर्वहारा शैली भी कह सकते हैं। कला के सभी क्षेत्रों में धनवान का मखौल उड़ाया जाता है। फिल्म जैसे लोकप्रिय माध्यम में, जिसका आर्थिक आधार अधिकतम की भागीदारी है, प्राय: अमीर को खलनायक की तरह प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक कि पूंजीवादी अमेरिका में भी धनवान नायक को लेकर कम ही फिल्में बनी हैं और इस मायने में सिनेमा एक तरह से ऐसा लाल सलाम है, जिसमें लाल सलाम प्रेरित 'चक्रव्यूह' असफल हो जाती है। सिनेमा गांधीवादी भी रहा है, जबकि महात्मा गांधी और माक्र्स में कोई समानता नहीं है, परंतु कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक के सुखी होने का असंभव स्वप्न निहित है। दरअसल हर वह व्यक्ति जिसकी आंखें अवाम के दर्द से नम होती हैं, माक्र्सवादी कहा जा सकता है। दरअसल अवाम का दर्द राजनीतिक गुटबाजी से परे है।

कोरिया में श्रेष्ठि वर्ग के रहने के क्षेत्र के नाम का अर्थ उनकी भाषा में कुछ भी हो सकता है, परंतु अंग्रेजी में गैंग(नम) अपराध संगठन को कहते हैं और संगठित अपराध के महाकाव्यनुमा 'गॉडफादर' के प्रारंभ में ही कहा गया है कि सारे औद्योगिक घरानों के गठन के पीछे अपराध छुपा होता है। दुनिया के सारे देशों में विराट औद्योगिक घरानों के बारे में इसी लोकप्रिय बात को तथ्य माना जाता है। इन घरानों की कार्यशैली और संगठित अपराध की कार्यशैली में समानता मानी जाती है।

अरविंद केजरीवाल महीनों तक नितिन गडकरी से संबंधित कागजात को दबाए रखते हैं और अंबानी घराने पर आक्रमण उन्हें लोकप्रियता दिलाता है, जबकि तथ्य यह है कि कम्युनिस्ट दल ने संसद में ये सारे मुद्दे अनेक बार उठाए हैं और दक्षिण भारत के अखबार ने एक शृंखला प्रकाशित की है। अरविंद के पास अपना कोई खोजी दस्ता नहीं है। यहां यह गौरतलब है कि संसद में उठाए मुद्दों को लोकप्रियता नहीं मिली, परंतु सड़क पर उन्हें दोहराना लोकप्रिय हो गया। आज भारत के भाग्य का निर्णय संसद में नहीं होकर सड़क पर होते हुए दिखाई देना भी चिंता की बात है। यह अंबानी घराने का बचाव या केजरीवाल का विरोध नहीं समझा जाए। यह तो लोकप्रियता के कारणों की खोज का प्रयास है।