एक वैरागी फिल्मकार की निजी जीवन शैली / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
एक वैरागी फिल्मकार की निजी जीवन शैली
प्रकाशन तिथि : 17 मई 2018


मंसूर खान ने आमिर खान जूही चावला अभिनीत 'कयामत से कयामत तक' से शुभारंभ किया। शाहरुख खान और एेश्वर्या राय को भाई-बहन की भूमिकाओं में लेकर 'जोश' बनाई जिसकी प्रेरणा उन्हें हॉलीवुड की 'वेस्ट साइड स्टोरी' से मिली। आमिर के साथ ही एक और फिल्म पति-पत्नी के टूटते रिश्ते पर बनाई। ज्ञातव्य है कि मंसूर खान सफल मसाला फिल्मकार नासिर हुसैन के सुपुत्र हैं और आमिर खान के चचेरे भाई हैं। एक सफल कैरियर को यात्रा के पहले पड़ाव के बाद ही मंसूर खान ने अलविदा कह दिया और सुदूर दक्षिण में कुनूर जाकर बस गए जहां उन्होंने जैविक खेती की। अपने निवास स्थान पर बिजली का कनेक्शन नहीं लिया। टेलीविजन, रेडियो और सारे संचार माध्यमों से दूरी बना ली।

केवल एक बार वे मुंबई आए जब उनकी एकलौती बहन के सुपुत्र इमरान को बतौर अभिनेता प्रस्तुत किया जा रहा था। 'जाने तू या जाने ना' नामक फिल्म के निर्माण मे मंसूर खान का बहुत योगदान था परन्तु उन्होंने अपना नाम नहीं दिया। वह केवल बहन के प्रति स्नेहवश किया गया काम था। फिल्म के पूरा होते ही वे कुनूर लौट गए। वहां वे प्रकृति की गोद में स्वाभाविक जीवन जी रहे हैं। फिल्म कैमरे से खेलने वाला व्यक्ति स्वयं हल चलाता है। पेस्टेसाइड के खतरों को जानता है। मौटे तौर पर कह सकते हैं कि वह गांधीवादी जीवन जी रहा है।

यह कितना अजीब है कि मसाला फिल्में बनाने वाले पिता का पुत्र अपने लिए अपनी पसंद के जीवन को चुनता है और मुंबई में अपने पिता के पाली हिल स्थित बंगले और सम्पदा को अपनी बहन के नाम कर देता है। अपनी पहली फिल्म बनाने के समय अपने पिता से उसकी बहस हुई और कई बार दोनों के बीच अबोला भी रहा। उपनिषद में पिता-पुत्र रिश्ते की व्याख्या इस तरह की है कि पुत्र रूपी तीर पिता रूपी कमान पर बेहद तनाव के साथ छोड़ा जाए तो जिंदगी के निशान पर लगता है।

इस्लाम अनुयायी परिवार का युवा सम्पत्ति मोह से मुक्त होकर मेहनतकश किसान की तरह जीवन जी रहा है और ये उसकी अपनी पसंद है। मनुष्य केवल जेनेटिक प्रभाव से नहीं बनता वरन् हर व्यक्ति अपने निजी सोच विचार के साथ जीवन जीता है। कुदरत कोई जेरॉक्स मशीन नहीं है कि फोटो कॉपियां बनाती जाए। आप एक ही रोपे की दो शाखाएं केवल चंद गज के फासले पर बो दें तो कालांतर में वहां पनपे दोनों वृक्षों के पत्ते और फल जुदा-जुदा होंगे।

भारत की महान सरजमीं ने बहुत से आक्रमण सहे हैं परन्तु भारत से भारतीयता छीनने का प्रयास अब छद्‌म राष्ट्रवाद के नाम पर भारत के अपने ही लोग कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम के समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उनसे कहा था कि राष्ट्रवाद कब संकीर्ण होकर कैसे भारत को गैरभारतीय कर देगा, इसका अंदेशा है।

बहरहाल मंसूर खान शांति के साथ अपने पसंद का जीवन सुदूर कुनूर में जी रहे हैं। अपना फिल्मी राजपाट और सिंहासन त्यागे हुए उन्हें अरसा हो गया। उनके परिवार के सदस्य कभी कभी उनसे सलाह मशविरा करने जाते हैं। आमिर खान तो अपनी हर फिल्म प्रारंभ करने के पूर्व ही मंसूर खान से मिलते हैं। फिल्म के व्याकरण का मंसूर खान को अच्छा खासा ज्ञान है। वे अपने पिता से कितने अलग विचार शैली के रहे हैं, इसे समझने के लिए एक घटना इस तरह हुई कि नासिर हुसैन साहब ने एक दावत दी और बिरयानी की बड़ी प्रशंसा हुई।

एक मेहमान ने उनसे कहा कि वे हमेशा फॉर्मूला फिल्में ही बनाते हैं। कुछ नया क्यों नहीं करते। नासिर साहब ने फरमाया कि आपने इसी स्वाद की बिरयानी पुन: खाने का निवेदन किया है गोयाकि नासिर साहब के लिए फिल्म बनाना और बिरयानी बनाना समान काम थे और इन्हीं का सुपुत्र मंसूर खान स्वतंत्र विचार शैली का व्यक्ति है जो छद्‌म आधुनिकता के सारे व्यसनों से दूर अपनी पसंद का जीवन जी रहा है। वह जैविक खेती से उत्पन्न अनाज और सब्जियां खाता है। आटा भी हाथ की चक्की में पीसा जाता है।