एक सरकारी स्कूल का सीन / दीनदयाल शर्मा

Gadya Kosh से
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एक बार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की दसवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम बहुत ही बुरा रहा था। भगवान जानता है कि टीचर पढ़ाते नहीं थे या बच्चे पढ़ते नहीं थे। लेकिन कुल मिलाकर देखें तो सरकारी स्कूलों के हाल पढ़ाई के मामले को लेकर बहुत ही खराब हैं।

आइए...आपको एक सरकारी स्कूल ले चलता हंू। आप दरवाजे पर खड़े होकर खुद ही देख लीजिए। घड़ी में 10:40 हो चुके हैं। चपरासी बड़े प्यार से आहिस्ता-आहिस्ता घंटी बजा रहा है। लगता है चपरासी बहुत ही दयालु स्वभाव का है। घंटी पर दया आ रही है। इसीलिए वह धीरे-धीरे घंटी बजा रहा है। यह दूसरी घंटी प्रार्थना की है।

-अध्यापकों के झुण्ड में से एक अध्यापक ने कहा-घंटी लग गई। दूसरा अध्यापक हँसते हुए बोला-कौनसा इनक्रीमेण्ट लग गया। घंटी का काम बजना है। बजने दो। बात को बदल कर इसका मजा किरकिरा मत करो। अपने तो इस बात का ध्यान रखो कि चंदगीरामजी के हैडमास्टर बनते ही देशी दारू नहीं बल्कि अंग्रेजी शराब की तकड़ी सी पार्टी लेनी है। तभी एक अध्यापक बोला-मैं चलता हंू प्रार्थना करवाने।

-बच्चों में कोई खास हलचल नहीं है। कुछ बच्चे प्रार्थना स्थल की ओर जा रहे हैं। सावधान...विश्राम...शुरू कर...। प्रार्थना शुरू हो गई। कुछ बच्चे स्कूल के दरवाजे के बाहर खड़े हैं। इनमें कुछ बच्चे गुटखा खा रहे हैं...कुछ बच्चे जर्दा लगा रहे हैं...कुछ चाट-पकौड़ी खा रहे हैं...तो कुछ बच्चे यंू ही बातें करते हुए प्रार्थना खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

प्रार्थना का काम चार मिनट में सुलट गया। अब बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं की ओर जा रहे हैं। बाहर खड़े बच्चे भी अपनी-अपनी कक्षाओं में जा रहे हैं। अब हाजिरी होगी। ये तो आप जानते ही हैं कि सरकारी स्कूलों के बच्चे हों या गुरुजी... दो-चार को छोड़कर..ये केवल हाजिरी लगाने ही आते हैं। प्रार्थना करवाने वाले गुरुजी उन आठ-दस गुरुजनों की तरफ बढ़ रहे हैं।

-तभी स्कूल में एक अभिभावक प्रवेश करता है। वह भी गुरुजनों के झुण्ड की तरफ बढ़ता है। वह उनके पास जाकर बोला- मेरा बेटा कोजूराम नौवीं कक्षा में पढ़ता था। उसका गणित में जीरो नंबर कैसे आया? मैं गणित वाले गुरुजी की शक्ल देखना चाहता हंू।

-शक्ल देखकर क्या रिश्ता करवा रहे हो!

-मौका लग गया तो रिशता भी करवा देंगे। मुझे लगता है गणित के मास्टरजी आप ही हैं।

-हां, मैं ही हंू, बोलो क्या बात है?

-कोजूराम को आपने जीरो नंबर कैसे दिया गणित में ?

-जीरो मैंने नहीं दिया...जीरो नंबर उसने खुद लिया है।

-पहेलियां मत बुझाओ...और मुझे कारण बताओ कि आपने कोजूराम को जीरो नंबर क्यों दिया है?अभिभावक ने जमीन पर पैर पीटते हुए कहा।

-कॉपी में कुछ नहीं करेगा तो जीरो ही आएगा।

-ट्ïयूशन नहीं पढ़ा इसलिए क्या?

-ट्ïयूशन का क्या मतलब हुआ! कहना क्या चाहते हो तुम? अध्यापक ने गुस्से से कहा। बाकि के अध्यापक चुपचाप देख-सुन रहे हैं।

-गुरुजी, गर्म होने की जरूरत नहीं है। जोर से बोलना मुझे भी आता है। मैं तो आपसे यह कहने आया हंू कि आपने सालभर में बच्चे को कुछ भी नहीं सिखाया। कुछ सिखाया है आपने?

-सिखाया क्यों नहीं, गणित का पूरा सिलेबस करवाया है। बच्चों के मैं गणित का टीका तो लगा नहीं सकता कि इधर टीका लगाओ और इधर गणित में दस बटा दस।

-मुझे तो आप एक ही बात बता दीजिए कि उसका जीरो कैसे आया? एक-आधा नंबर तो आना ही चाहिए। जीरो तो तब ही आ जाता जब वह सालभर मेरे साथ भेड़ें चराने खेतों में जाता। जीरो लेने के लिए स्कूल में आने की क्या जरूरत है।

-तो भाई साब, सारे बच्चे डॉ.कलाम नहीं बन सकते। आपकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। आप भी अपने बच्चे का ध्यान रखें।

-ध्यान रखते हैं तभी तो यहां आया हंू आपके दर्शन करने। नहीं तो क्या जरूरत थी...मैंने इतने दिन तो बच्चे को आपके भरोसे छोड़ रखा था। आपको ध्यान रखना चाहिए..क्योंकि आपका काम पढ़ाना है।

- हम पढ़ाते नहीं हैं तो क्या यहां बकरियां चराने आते हैं।

-पढ़ाते तो बच्चे का जीरो नंबर आता क्या गणित में।

-तभी एक गुरुजी थोड़ा गुस्से से बोले-तू जा यार....कुछ तीन-पांच करे तो कर देेना...हमारा दिमाग मत खा। तुझे कोई शिकायत है तो हैड साÓब से बात कर।

-कोई बात नहीं, उनसे भी बात कर लंूगा और जरूरत पड़ी तो आगे भी जाऊंगा। मुझे तो यह समझ में नहीं आ रहा है कि बच्चे का जीरो नंबर कैसे आ गया गणित में। बड़बड़ाते हुए अभिभावक हैड साब के ऑफिस की ओर बढ़ा।

-तभी गुरुजनों के झुण्ड से एक गुरुजी बोले-यार, वह अभिभावक बात तो सही कह रहा है। सालभर बच्चा स्कूल आया है। फिर उसका जीरो नंबर तो नहीं आना चाहिए।

-हां यार,बात तो ठीक है। दूसरे गुरुजी ने सहमति जताई।

-चलो अभी कक्षाओं में चलते हैं। अगले पीरियड में करेंगे डीए वाली किश्त की बातें। अब तो छठा वेतन आयोग लागू हो गया। वैसे भी सबके वारे-न्यारे हो गए।

-कुछ गुरुजन कक्षाओं की तरफ बढ़े। कुछ बाथरूम की ओर। तो एक गुरुजी स्कूल के गेट की तरफ जाते हुए बीड़ी सुलगाने लगे।

-अभिभावक हैड साब के पास पहुंच चुका था। बोला-साÓब, मेरा बेटा कोजूराम आपके स्कूल की नौवीं कक्षा में पढ़ता था। गणित में उसका जीरो नंबर आया है।

-कोई बात नहीं, इस बार जीरो आया है तो अगले साल मेहनत करके पास हो जाएगा। हैड साÓब बोले।

-साब, मुझे तो एक बात बताओ। गणित वाले गुरुजी कहते हैं कि उन्होंने बच्चे को सालभर गणित पढ़ाया है। फिर मेरे बेटे कोजूराम के गणित में जीरो कैसे आया?

-बात तो आपकी सही है। सालभर पढ़ाया है तो जीरो नहीं आना चाहिए। फिर लंबी सांस लेते हुए हैड साब बोले- अब आप बताएं कि आप भैंस को पानी पिलाने ले जाएं। और भैंस पानी नहीं पीती है। फिर भले ही आप उसका मुंह पानी में डुबो दें ...यदि उसकी इच्छा नहीं है तो क्या वह पानी पी लेगी? आप बताओ...आप बिना इच्छा के भैंस को पानी पिला सकते हैं क्या? हैड साब ने अभिभावक से पूछा।

-मैं समझा नहीं...आप क्या कहना चाहते हैं?

-मेरे कहने का मतलब है कि मैं गुरुजनों को कक्षाओं में भेज तो सकता हंू लेकिन पढ़ाने के लिए उन्हें बाध्य कर सकता हंू क्या?

-बाध्य क्यों नहीं कर सकते। आप हैड हैं। और फिर वे भैंस थोड़े ही हैं। वे तो गुरुजी हैं। बीस-बीस, पच्चीस-पच्चीस हजार रुपये लेने वाले शिक्षक यदि नहीं पढ़ाएंगे तो आप उन्हें कुछ नहीं कहेंगे!

-क्या कहूँ। हैड साब धीरे से बोले-आपने जोंक देखी है?

-जी हां, देखी है। सींगी निकालने वाले कुल्हड़ में कई-कई जोंकें रखते हैं। वे जब किसी के शरीर पर लगाते हैं तो वह उसका खून चूसने लगती है और जब पूरी भर जाती है तो नीचे गिर पड़ती है।

-हां.....बस वही। बिल्कुल ठीक समझे आप। खुश होते हुए हैड साब बोले।

-आपको पता होना चाहिए कि जोंक को यदि किसी पशु के दूध के थनों के लगाएंगे तो भी वह दूध नहीं पीएगी, वह केवल खून ही पीएगी। क्योंकि जोंक की आदत है कि वह केवल खून ही पीती है।

-हैड साब, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। लेकिन मुझे तो केवल एक ही बात बता दीजिए कि मेरे बेटे कोजूराम के गणित में जीरो कैसे आया?

-तभी साब के टेलीफोन की घंटी बजी। साब ने रिसीवर उठाया और बोले-हैलो...। जी हां...चालीस प्रतिशत से कम वाले टीचर..जी..जी हां.. यस सर..दसवीं का.. जीरो प्रतिशत रहा है सर..नहीं-नहीं... बधाई किस बात की सर..। बधाई का तो पूरा स्टाफ ही पात्र है सर। लिस्ट... भिजवा रहा हंू सर..ठीक है...जैसा आप आदेश करें.... मैं खुद ही लेकर आ रहा हंू सर..। थैंक्यू सर..।

-और वे माथे का पसीना पौंछते हुए अभिभावक से बोले-कलैक्टर साब का फोन आया है। आप कल आना। और वे बाबूजी से सारे गुरुजनों की सूची बनवाने लगे।