एक स्वाभाविक कलाकार का उदय / जयप्रकाश चौकसे

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एक स्वाभाविक कलाकार का उदय
प्रकाशन तिथि : 07 फरवरी 2014


परिणीति चोपड़ा और सिद्धार्थ मल्होत्रा अभिनीत 'हंसी तो फंसी' का प्रदर्शन होने जा रहा है और अभी तक केवल इतनी जानकारी प्राप्त है कि यह आदि से अंत तक परिणीति की फिल्म है। उसकी भूमिका एक सनकी वैज्ञानिक की है और पागल की भूमिका करने के तौर-तरीके निश्चित है। क्योंकि पागल को केंद्र में रखकर देश-विदेश में अनेक फिल्में बनी हैं। अर्थात मैडनेस को परदे पर प्रस्तुत करने की एक मेथड बन चुकी है। परंतु सनकीपन और उस पर वैज्ञानिक होना कुछ नया अनुभव हो सकता है। इस मनोरंजक फिल्म का टाइटल बहुत चलताऊ है। टाइटल तो डेविड धवन-गोविंदा टीम की फिल्मों की याद दिलाता है, परंतु सिनेमा में उस स्कूल का तंदूर ठंडा हो चुका है। और ऐसा भी अब पंजाब तक में माइक्रोवेव का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें इतनी गर्मी पैदा की जाती है कि घंटों में पकने वाली चीज मिनटों में पक जाती हैं। क्या इतनी हीट का विपरीत प्रभाव भी होता है? शायद इसीलिए इसे इस मजबूती से बंद किया जाता है कि भीतर की हीट बाहर न आ सके। एक सरल सा परीक्षण है कि इसकी बिजली बंद करके पूरी तरह ठंडा होने पर इसमें अपना मोबाइल रखे और दूसरे कमरे में नंबर डायल करें। माइक्रोवेव से मोबाइल निकाल कर देखें, अगर कॉल इंगित है तो समझ लीजिए कि इस माइक्रोवेव में लीक है और इसे बदलना चाहिए या दुरुस्त कराना चाहिए क्योंकि इसका इतना लीक प्रूफ होना आवश्यक है कि भीतर की हीट बाहर नहीं आए और मोबाइल पर संकेत आना ठीक नहीं है। दरअसल परिणीति से मोबाइल और माइक्रोवेव पर आने का कारण केवल इस लीक के खतरों से आगाह करना है। मोबाइल का भी ह्रदय के निकट रखना नुकसान कर सकता है।

प्रियंका की कजिन परिणीति ने लंदन में पढ़ाई की थी और यशराज स्टूडियो के एक विभाग में काम करती थी। आदित्य चोपड़ा ने उसमें स्टार संभावना देखी और हबीब फैजल की 'इशकजादे' में प्रस्तुत किया। इस सफल फिल्म में परिणीति और अर्जुन कपूर दोनों खूब सराहे गए। फिल्म मंडी में खबर है कि परिणीति भविष्य की सुपरस्टार है और प्रियंका से भी आगे जा सकती है। इसका यह अर्थ नहीं कि प्रियंका प्रतिभाशाली नहीं है परंतु तेजी से नए फिल्मकार और नई फिल्म अवधारणाएं उभर रही हैं जिनमें प्रयोग की आजादी उस समय से अधिक है जब प्रियंका ने प्रवेश किया था। मसलन हबीब फैजल ही हैदराबाद की पृष्ठभूमि पर 'दावत-ए-इश्क' बना रहे हैं जिसकी प्रेम-कथा में एक अत्यंत अनपेक्षित घुमाव है और उन दृश्यों में परिणीति को अभिनय क्षमता दिखाने के अद्भुत अवसर हैं।

हिंदुस्तानी सिनेमा में समय पर कुछ ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपनी स्वाभाविक मस्ती से सिनेमा को नई उजास दी है। आजादी की अलसभोर में केदार शर्मा ने गीताबाली को खूब उत्साह से प्रस्तुत किया और उसने अपने खिलंदड़पन से सबको आश्चर्यचकित कर दिया। 'बावरे नैन' में राजकपूर के साथ गीताबाली ने निर्मल आनंद की वर्षा की और वह इतनी सरल स्वभाव की थी उसने बिना हिचक के 'बी' श्रेणी के भगवान दादा की 'अलबेला' की जो अब कल्ट फिल्म मानी जाती है। कुछ वर्ष पश्चात तनुजा भी उसी तरह की कलाकार रही और इसी परंपरा की नई कड़ी परिणीति चोपड़ा है। वह अपनी बहन प्रियंका से अलग है। जिस तरह करीना अपनी बहन करिश्मा से अलग है।

परिणीति को सुपर सितारा बनने की जल्दी नहीं है। 'इश्कजादे' के बाद उसने एक दर्जन फिल्में अस्वीकार की जिनमें से कुछ बड़े निर्माताओं की फिल्में भी थी। इसका यह अर्थ नहीं कि उसे पटकथा पढ़कर ही उसकी असफलता का अंदेशा होता है। वह केवल अपनी पसंद की भूमिका ही करना चाहती है और उसे खूब अधिक धन का भी मोह नहीं है। उसका लालन-पालन जिस ढंग से हुआ है, उससे उसने स्वतंत्र सोच का विकास किया है।

वह अपने मनमौजी स्वभाव में परिवर्तन नहीं करना चाहती। सच्चाई यह है कि अगर आर्थिक दबाव नहीं हो तो अपने मिजाज से समझौता करने की आवश्यकता ही नहीं है। इस मायने में पैसा का अर्थ स्वतंत्रता होता है, अपनी इच्छा के अनुरूप जीने और काम करने की। पैसे से कमजोरों की स्वतंत्रता छीनी जा सकती है तो पैसे की सही परिभाषा करके अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण भी रख सकते है।

यह भी सचमुच दुखद है कि कुछ लोकप्रिय वाक्य स्त्री के अपमान के लिए रचे गए है जैसे 'हंसी तो फंसी' या 'स्त्री की हां का अर्थ नहीं है और नहीं का अर्थ है हां' इत्यादि। जुमले बाजों की कोई सीमा नहीं। उन्होंने तो यह भी गढ़ा था कि 'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी' जबकि गांधीजी ने मजबूरी में कुछ नहीं किया। दरअसल यह फिजूल जुमला उस काल खंड की उपज है जब हमने गांधी के आदर्श को भुला दिया था।