एनिमेशन फिल्म उद्योग और कृष्ण / जयप्रकाश चौकसे

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एनिमेशन फिल्म उद्योग और कृष्ण

प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2012

भारत में एनिमेशन फिल्मों को अभी तक ज्यादा सफलता नहीं मिली है। केवल हनुमानजी के जीवन से प्रेरित फिल्म सफल रही है। अनेक वर्ष पूर्व जापान में रामायण पर अद्भुत एनिमेशन फिल्म बनी थी और वहां सफल भी रही, परंतु भारत में उसे सफलता नहीं मिली।

अमेरिका में एनिमेशन के जनक वाल्ट डिज्नी ने १९२२ से ही इस विधा में काम शुरू कर दिया था और उन्हें भारी सफलता मिली। डिज्नी संस्था आज भी अत्यंत सक्रिय और सफल है। उनकी 'मिकी माउस' ने सफलता का इतिहास रचा है और शायद दुनिया में सबसे अधिक संख्या में दर्शकों ने 'मिकी माउस' को देखा है। यह संभव है कि भारतीय दर्शक, जिसके पास चौपाल पर कथा सुनने का सदियों का अनुभव है, सिनेमाघर में प्रवेश करते ही अपने अविश्वास के भाव को तज देता है और परदे पर प्रस्तुत को सच मानता है। वह शायद जीवन को गल्प समझता है और उसे एनिमेशन मात्र मखौल या शेखचिल्ली का गल्प लगता है, जबकि फिल्मों की तर्कहीनता को भी वह अपने जीवन का हिस्सा मानता है। वह अमूर्त की साधना कर सकता है, परंतु एनिमेशन उसे अविश्वसनीय ही लगता है।

उसके अवचेतन में स्थापित पौराणिकता उसे एनिमेशन का आनंद उठाने से रोकती है। यह बात अलग है कि कथा फिल्मों का प्रारंभ धार्मिक कथाओं से हुआ, इसलिए विज्ञानजनित यह विधा यहां सफल रही, परंतु धार्मिक कथाओं पर बने एनिमेशन भी असफल रहे। इन चलती-फिरती, बोलती तस्वीरों में उसे विश्वास ही नहीं होता, जबकि मनुष्य द्वारा अभिनीत मनगढ़ंत पात्रों को उनके अतिरेक और सनकीपन के साथ स्वीकार करता है। यह भी अजीब बात है कि वह कठपुतली के तमाशे सदियों से देखता रहा है, कठपुतलों की सरकारों को सहता रहा है, परंतु एनिमेशन को स्वीकार नहीं कर पाता। संभवत: एनिमेशन उसे अपने अविश्वास के भाव और तर्क को ताक पर रखने के लिए प्रेरित नहीं करता।

करोड़ों की लागत की 'शक्तिमान' को आशातीत सफलता नहीं मिली। मेजर अशोक कौल ने जीटीवी के लिए करोड़ों की लागत की 'भानुमति' बनाई, जिसे घोर असफलता मिली। आशीष कुलकर्णी ने अपने शिकागो प्रवास में एनिमेशन विधा में रुचि जगाई और गहरा अध्ययन करके 'एनिराइट इन्फो मीडिया' नामक संस्था का निर्माण किया, जो मार्च २००७ में रिलायंस एनिमेशन के साथ समाहित हो गई। आशीष कुलकर्णी ने कृष्ण के जीवन से प्रेरित एनिमेशन फिल्म 'कृष्ण और कंस' बनाई है, जो ३ अगस्त को प्रदर्शित होने जा रही है। इसके लिए उन्होंने लंबे समय तक अपनी टीम के साथ परिश्रम किया।

उन्होंने अपने शोध में 'हरे रामा हरे कृष्णा' संस्थान से भी सहायता ली। उन्होंने स्पाइडरमैन के स्टोरी बोर्ड बनाने वाले विंसेंट एडवर्ड से भी सहायता ली। दरअसल एनिमेशन फिल्म बनाने में कथा फिल्म से अधिक परिश्रम और धैर्य लगता है तथा दोनों विधाओं में भारी अंतर है। मसलन कैमरे के बिना कथा फिल्म नहीं बन सकती, परंतु एनिमेशन में कैमरे की आवश्यकता ही नहीं। निर्देशक के मस्तिष्क में कैमरा विद्यमान होना चाहिए और यही भीतरी कैमरा शॉट लेता है, संपादन करता है। उसकी परिकल्पना से स्टोरी बोर्ड बनता है। हर पात्र की भाव-भंगिमा तय होती है। सारा खेल कम्प्यूटरजनित है। इसके लिए लाखों रेखाचित्र बनाने होते हैं।

आशीष कुलकर्णी जानते हैं कि भारतीय दर्शक एनिमेशन से क्यों बिदकते हैं। उनका कहना है कि कथा फिल्मों में अभिनेता के चेहरे पर भाव आते हैं, उसकी चाल-ढाल चरित्र के अनुरूप होती है और यह भाव संसार ही है, जो दर्शक को बांधता है। उन्होंने अपनी फिल्म में एनिमेशन पात्रों के चेहरे और शरीर की मांसपेशियों के लिए परिश्रम किया है, ताकि कथा फिल्म की तरह भावाभिव्यक्ति हो सके और पात्रों तथा कथा से दर्शक का भावात्मक तादात्म्य बन सके। उन्होंने अपनी फिल्म के संगीत के लिए परिश्रम किया और सारे गीत ख्यातिनाम गायकों से गवाए हैं। उनका कहना है कि एनिमेशन फिल्म में पृष्ठभूमि बनाना महत्वपूर्ण है, जिसमें सारी बारीकियां होनी आवश्यक हैं, तभी पात्र विश्वसनीयता से स्थापित हो पाता है। आशीष कुलकर्णी को विश्वास है कि उनकी 'कृष्ण और कंस ' भारतीय एनिमेशन में इतिहास रचेगी और इसमें पेश कृष्णलीला दर्शकों को मोह लेगी।

वर्तमान में अनेक विदेशी कंपनियां अपनी एनिमेशन फिल्मों का बहुत-सा काम भारत में करती हैं, क्योंकि यहां अपेक्षाकृत कम धन लगता है, परंतु सारी परिकल्पना स्टोरीबोर्ड इत्यादि विदेश से बनकर आता है। एनिमेशन उद्योग का केंद्र मुंबई नहीं वरन पुणे है। आशीष कुलकर्णी को इसका गहरा दु:ख है कि भारतीय धार्मिक आख्यानो के पात्र लेकर उनका युद्ध अंतरिक्ष प्राणियों से कराया जा रहा है और टेलीविजन पर भारतीय बच्चों को विकृत कथाएं दिखाई जा रही हैं। उनकी 'कृष्ण और कंस' सौ प्रतिशत देशज कृति है। पुणे में ही जयंतीलाल गढ़ा की पेन कंपनी का एनिमेशन स्टूडियो है, जहां करोड़ों की लागत से 'महाभारत' बन चुकी है और सारे संवाद भारत के चोटी के सितारों ने डब किए हैं। कुलकर्णी ने भी डबिंग सितारों से कराई है।