ओबामा यात्रा का सिनेमा प्रसंग / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ओबामा यात्रा का सिनेमा प्रसंग
प्रकाशन तिथि :29 जनवरी 2015


बराक हुसैन ओबामा ने अपने एक भाषण में शाहरुख खान द्वारा 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का संवाद बाेला और कुछ खिलाड़ियों के नाम भी लिए। यह सर्वविदित है कि हर देश के सत्ता शिखर नेता के भाषण विशेषज्ञों की एक टीम के द्वारा लिखे जाते हैं जिसका एकमात्र अपवाद पंडित जवाहरलाल नेहरू थे।

बहरहाल ओबामा की टीम ने भारत पर अपना होमवर्क अच्छा किया था और वे जानते हैं कि कभी कृषि प्रधान रहा भारत अब फिल्म प्रधान देश है और खेलकूद को भी प्रेम करता है। अमेरिका में क्रिकेट नहीं खेला जाता इसलिए लेखकों की टीम ने क्रिकेट का उल्लेख नहीं किया। संभवत: वे जानते हैं कि उत्सव प्रेमी भारत में सिनेमा राष्ट्रीय शगल है। इसके साथ ही हर नेता को बताया जाता है कि किस देश में कौन सी बात करने पर तालियां बरसेंगी। जैसे पटकथा लेखक जानते हैं कि तालियों के दृश्य बनाना अनिवार्य है और संवाद में पंच पंक्ति कैसी लिखी जाती है। दरअसल उन्होंने शाहरुख खान के बहाने पूरे मनोरंजन उद्योग को आदर दिया है। इस आदर से ओबामा की लोकप्रियता अमेरिका में बसे एशियावासियों के बीच भी बढ़ेगी। इन वोटों का प्रभाव अनेक सीनेटरों के चुनाव पर भी पड़ता है। हर नेता की प्राथमिकता सत्ता और चुनाव ही होता है।

शिखर नेता के लिए भाषण लिखने वालों का शोध अच्छा-खासा होता है। हमारे अनेक लोग अमेरिका का आकलन हॉलीवुड के आधार पर करते हैं, यह उतना ही गलत होता है जितने भारतीय सिनेमा से भारत को समझना परंतु लोकप्रियता का तकाजा है कि कुछ जुमलेबाजी की जाए। तमाम शिखर सितारों में भी शाहरुख खान का नाम उनकी अमेरिका में अप्रवासी दर्शकों के बीच की लोकप्रियता के आधार पर लिया गया है। 'दुल्हनिया' का ही जिक्र भी उसकी सिनेमाई गुणवता नहीं वरन शादी-ब्याह से जुड़ी फिल्म होना है क्योंकि अमेरिका में बसे भारतीय अमेरिकन गर्ल फ्रेंड और भारतीय पत्नी की इच्छा करते हैं। अमेरिका में खेले जाने वाले खेल भारत में लोकप्रिय नहीं हैं। मसलन बेस बॉल। चीन की व्यापार दृष्टि से भारत का क्रिकेट व्यवसाय छुपा नहीं है। इसलिए वहां क्रिकेट की नियमित रियाज जारी है। चीन और भारत में सट्टेबाजी के प्रति समान जुनून है।

प्राय: विदेशी दौरों का एक सामान्य रिवाज यह है कि मेजबान देश यात्रा के अपने सच्चे और काल्पनिक काम गिनाता है और मेहमान भी अपने देश जाकर यात्रा की सफलता का बखान करते है। ओबामा की इस भारत यात्रा से पाकिस्तान के नेताओं के हृदय में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ है और यह उन्हें निमंत्रित करने के पीछे छुपे उद्देश्यों में एक था। चीन और जापान के सत्ता शिखर लोगों को भारत यात्रा पर उतना छातीकूट पाकिस्तान में नहीं हुआ जितना ओबामा की यात्रा से हुआ। इस तरह की जलन में प्राय: देश गलती भी कर जाते हैं जो पाकिस्तान करने से चूकेगा नहीं क्योंकि वहां के नेताओं को भी अपने अवाम को खुश करना आवश्यक है। ये सारे खेल हमेशा खेले जोते हैं।

बहरहाल 'टाइम्स नाऊ' नामक सैटेलाइट चैलन ने आणविक संधि पर सवाल उठाया है कि अगर भारत में आणविक ऊर्जा संयत्र में भोपाल जैसा कोई हादसा हुआ तो अमेरिका मुआवजा नहीं देने पर अडिग है। जब कभी पूरा अनुबंध प्रकाशित होगा तो सत्य उजागर होगा और ऐसे अनुबंध प्राय: गोपनीय ही रखे जाते हैं।

बहरहाल ओबामा का सबसे महत्वपूर्ण कथन यह था कि धार्मिक भाइचारा बनने पर ही भारत का विकास तीव्र गति से होगा और इस्लाम तथा हिंदू सहयोग से विवेकानंद को भी बहुत आशाएं थीं जैसे कि उनके प्रकाशित पत्राचार से ज्ञात हुआ है। दरअसल ओबामा साहब को इस बात का ज्ञान नहीं है कि भारत में राजनीति कभी धर्म के प्रभाव से मुक्त नहीं होगी क्योंकि धर्म का ही एक हिस्सा राजनीति यहां सदियों से माना जाता रहा है। अमेरिका में एक अश्वेत शिखर सिंहासन तक गया है परंतु यह यात्रा भी ढाई सौ वर्ष लंबी रही है। भारत में इस तरह की बात संभव नहीं है। हमारे यहां धर्म रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा रहा है, यही कारण है कि भारत में सिनेमा की तरह ही राजनीति विशेषकर चुनावी राजनीति अत्यंत लोकप्रिय है।