औरत सिनेमा की 'सीक्रेट सुपरस्टार' / जयप्रकाश चौकसे

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औरत सिनेमा की 'सीक्रेट सुपरस्टार'
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2019


पितृसत्तात्मक भारतीय समाज और सिनेमा में औरत अपनी जिद और संकल्प से निर्णायक शक्ति बनी रही है। कम अवसर मिलने और पुरुष तानाशाही के बावजूद उसने अपनी गरिमा कायम रखी है। शास्त्रों से लेकर संविधान तक में पूजनीय कहते-कहते उसका दमन और शोषण होता रहा है परंतु वह अपनी ही राख से पुनः जन्म लेकर धरती से आकाश तक के फासले तय करती रही है। 1936 में शांताराम की फिल्म 'दुनिया न माने' की किशोरी का विवाह 60 वर्ष के विधुर के साथ कराया जाता है। उस अनाथ के मामा ने चंद रुपए लेकर यह बेमेल विवाह कराया है, परंतु वह अपने पति को अपने निकट नहीं आने देती। फिल्म का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र विदुर की पहली शादी से जन्मी बेटी है, जो महात्मा गांधी के आंदोलन में भाग लेती है। वह घर आकर अपने पिता से पूछती है कि अपनी बेटी से कम आयु की कन्या से विवाह करते हुए उन्हें लाज नहीं आई। कुछ समय पूर्व ही प्रदर्शित हुई 'नाम शबाना' की नायिका एक आतंकवादी को मार देती है। 'कहानी' की नायिका भी बम ब्लास्ट करने वाले की हत्या कर देती है। महेश भट्ट की 'बेगमजान' अपने कोठे के लिए संघर्ष करते हुए जल्दबाजी में विचारहीन लोगों द्वारा बनाई गई सरहद को अस्वीकार करते हुए एक अलग किस्म का जौहर करती है। इम्तियाज अली की 'हाईवे' की नायिका अपने अपहरणकर्ता से प्रेम करती है और अपने ही परिवार में लोभ लालच के वशीभूत दुष्कर्मी का मुखौटा नोच देती है। 'क्वीन' कंगना रनोट रानी लक्ष्मीबाई अभिनीत करने से पहले अपनी पसंद के युवा से विवाह करने के लिए 'मनु' को तनु बनाकर बताती है कि 'रंगरेज क्यों पूछता है कि रंग का कारोबार क्या है।' 'पिंक' की युवती भरी अदालत में स्वीकार करती है कि उसने अपनी पसंद के युवा से अंतरंगता बनाई परंतु उसकी अनिच्छा का भी सम्मान किया जाना चाहिए। 'ना' केवल एक शब्द नहीं, पूरा वाक्य है। फिल्मकार ने यह स्पष्ट किया कि स्त्री अर्धविराम नहीं है।

मधुर भंडारकर की 'पेज 3' की पत्रकार नायिका एक भद्र पुरुष की अजीबोगरीब वासना को उजागर करने का प्रयास करती है। 'डर्टी वुमन' पुरुष पाखंड से लड़ती है। अपनी सहमति के विपरीत आयोजित विवाह उत्सव से 'हैप्पी' भागकर पाकिस्तान जा पहुंचती है और वहां राजनीति करने वाले परिवार को हिला देती है। 'चेन्नई एक्सप्रेस'की नायिका संगठित अपराध के सरगना अपने पिता के खिलाफ लड़ती है। उसका बार-बार घर से भाग जाना ही उसका विरोध है। 'राजी' की नायिका दुश्मन के भेद जानने जीवन जोखिम में डालकर दुश्मन देश के युवा से विवाह करके माताहरी के अंदाज में एक हमले को विफल करती है। कुछ समय पूर्व भी श्रीदेवी अभिनीत 'मॉम' की नायिका अपनी सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले चार दोषियों को मार देती है। इसके पूर्व गौरी शिंदे द्वारा निर्देशित 'इंग्लिश विंग्लिश' में नायिका अमेरिका में अपनी बहन की बेटी के विवाह समारोह में हाथ बंटाने आती है परंतु अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी प्राप्त करके अपने दंभी पति को चौंका देती है। उसकी अपनी बेटी उसके अंग्रेजी नहीं समझ पाने पर लज्जित होती है परंतु अमेरिका में जन्मीं उसकी बहन की बेटी उसके दर्द को समझती है। इस तरह हमने कथा फिल्म के प्रारंभिक दशकों में बनने वाली फिल्मों और वर्तमान में बनी हुई हिंदी फिल्मों में औरतों के बदलते स्वरूप को देखा, लेकिन सीमा के कारण सारी फिल्मों का समावेश नहीं हो पाया। चार चावल चखकर पूरी बिरयानी का स्वाद समझ लेने वाले पाठक सब जान लेते हैं। इस विवरण में विगत सदी के पांचवें छठे दशक में बनी फिल्मों की चर्चा अब की जाएगी।

'मदर इंडिया'का स्मरण होता है, जिसमें एक मां गांव की एक कन्या का अपहरण करने वाले बेटे को गोली मार देती है। राज कपूर की 'आवारा' में नायिका की प्रेरणा से ही नायक अपराध जगत से बाहर आ पाता है। उस दशक में देव आनंद की सारी फिल्मों में बेरोजगार शहरी युवा अनचाहे ही अपराध करता है और नायिका की प्रेरणा से उस दलदल से बाहर आता है। गुरुदत्त की 'मिस्टर एंड मिसेज 55' की नायिका भी जीवन साथी के रूप में अपने गलत चयन को समझकर एक कार्टूनिस्ट से प्रेम करने लगती है, जिसे उसकी माता कम्युनिस्ट कहती है। फिल्म 'श्री 420' की नायिका का नाम 'विद्या' है और खलनायिका का नाम 'माया' है। प्रतीकों के मामले में यह फिल्म जायसी की 'पद्मावत' की तरह है। 'संगम'की नायिका कहती है कि 'एक ब्याहता का जीवन इंद्रधनुष की तरह है, जो खेले तो तूफान में और मिटे तो जैसा वह कभी अस्तित्व में था ही नहीं।'

आमिर खान की फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' में मां ही बेटी को गिटार लाकर देती है। कम्प्यूटर खरीद कर देती है ताकि वह अपनी गीत गाने की प्रतिभा को मांज सके। ज्ञातव्य है कि अंग्रेजी साहित्य की जेन ऑस्टिन घर खर्च से बचत करके चोरी छुपे कागज खरीदती है अपना उपन्यास 'प्राइड एंड प्रिज्युडिस' लिखने के लिए। महिला के कष्ट पुरुष के दंभ और पूर्वग्रह से ही जन्मे हैं। उपन्यास का टाइटल ही सब कुछ कह देता है। एमिली ब्रोंटे कहती हैं कि महिला का कभी कोई निजी कमरा नहीं होता। कुंवारी कन्या भाई बहन के साथ कमरा शेयर करती है तथा विवाह के बाद पति का कमरा ही उसका संसार बन जाता है। इतने बड़े जहां में स्त्री का अपना निजी कुछ नहीं है। कमरा महज प्रतीक है, हमने धार्मिक आख्यानों में महिला का चीरहरण पढ़ा है। माधवी गालव की कथा पढ़ी है। इस असहिष्णुता के दौर में आख्यानों का जिक्र नहीं किया जा सकता। हाल ही में पुलवामा में शहीद हुए जवानों की पत्नियां कह रही हैं कि युद्ध का उन्माद राजनीतिक लाभ के लिए नहीं जगाएं। मैक्सिम गोर्की कहते हैं.. 'बंदूक से चली हर गोली अंतोगत्वा किसी महिला की छाती में ही जा धंसती है।