औरत / गोवर्धन यादव

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चार-छः बुद्धिजीवी दार्शनिक अंदाज़ में बहस कर रहे थे, अचानक एक मित्र ने दूसरे से पूछा-"यार, तुम तो बड़े ज्ञानी-ध्यानी बने फ़िरते हो, एक लाईन में" औरत"शब्द की परिभाषा करके बतला सको तो जानूं,"

"केवल एक लाईन में, असंभव, अरे भगवानजी ने जब एक औरत जात को बनाया तो वह ख़ुद आज दिन तक उसे समझ नहीं पाया, तो फिर हम जैसे लोग उसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं, असंभव, बिल्कुल ही असंभव" दूसरे ने अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए कहा,

वह हर किसी से यही प्रश्न दोहराता, लेकिन उसे समुचित उत्तर नहीं मिल पाया,

एक दिन उसकी मुलाकात एक ठेठ देहाती क़िस्म के आदमी से हुई, उसने सोचा, शायद यह उत्तर दे सकता है, उसने कहा-"दाऊ, क्या तुम" औरत"शब्द की परिभाषा एक शब्द में बतला सकते हो?"

"हाँ, हाँ, क्यों नहीं, इसमें कौन-सी बड़ी बात है, मैं अपने मुँह से एक शब्द भी नहीं बोलूंगा और परिभाषा हो जायेगी"

"अच्छा, बिना कुछ बोले तुम व्याख्या कर सकते हो, असंभव, नहीं, नहीं मैं नहीं मान सकता" उसने आश्चर्य में भरते हुए कहा,

उस ठेठ देहाती से दिखने वाले आदमी ने उसे घर के अन्दर बुलाया, दरवाज़ा बंद कर दिया, अब कमरे में चारों ओर अंधियारा-सा छा गया था, उसने एक मोमत्ती जलाते हुए उस तथाकथित बुद्धिजीवी से कहा, "अब आप इस जलती हुई मोमबत्ती को ध्यान से देखो, बिना कुछ बोले तुम्हें" औरत"शब्द की परिभाषा समझ में आ जाएगी" ,

"देख रहा हूँ केवल मोमत्ती जल रही है, और क्या"

"मैंने इतना ही निवेदित किया है कि आप मोमबत्ती को ध्यान से देखिए, आया कुछ समझ में"

"नही, मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूँ"

' आपने ध्यान से देखा ही नहीं श्रीमन, ध्यान से देखिए, जलती हुई मोमबत्ती ख़ुद को धीरे-धीरे मिटा रही है और मिटते हुए भी पूरा कमरा रौशन किए हुए है, यही औरत जात की परिभाषा है, " उस देहाती ने कहा।