और, कहानी पूरी हो गयी / विजयानंद सिंह

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विजयानंद विजय »

रविवार का दिन.....वीकेंड की छुट्टियाँ थीं। इसलिए वह घर पर थी। उसने ड्राइंग रूम में खेल रही छ: वर्षीय बेटी से पूछा - " गुड्डा-गुड़िया के साथ खेल रही हो, बेटा ? " " हाँ मम्मी। गुड्डे-गुड़िया की शादी करा रही हूँ। " - बेटी ने गुड़िया को तैयार करते हुए कहा। " अच्छा...! लाओ, मैं गुड़िया को साड़ी पहना देती हूँ। " कहते हुए वह भी बेटी के पास बैठ गयी और गुड़िया को तैयार करने लगी। बेटी ने गुड्डे को तैयार किया, उसे खिलौना-कार में बिठाया, और फिर मंडप में ले आई, फेरे लगवाए, और एक-दूसरे को माला पहनाकर गुड्डे-गुड़िया की शादी कराई।

तब, मम्मी ने पूछा - " हो गया न, बेटा ? " " नहीं मम्मी, अभी नहीं। अभी रुको। अभी शादी पूरी नहीं हुई है। " बेटी ने कहा और दौड़ पड़ी... कुछ लाने के लिए। थोड़ी देर में वह वापस आई, तो मम्मी ने पूछा - " अब क्या करोगी....? " उसने कोई जवाब नहीं दिया। हाथ में लिए बोतल का ढक्कन खोल, पूरा किरासन तेल गुड़िया के ऊपर उलट दिया, और माचिस जला दी। गुड़िया धू-धूकर जलने लगी, तो उसने मम्मी से कहा - " अब शादी पूरी हो गयी, मम्मी......! " वह स्तब्ध...अवाक्...कभी बेटी के चेहरे को, कभी जलती हुई गुड़िया को, और कभी आग में धू-धूकर जलते वर्त्तमान को देखती रही......!!