कंगना रनोट बायोपिक : संभावना और खतरे / जयप्रकाश चौकसे

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कंगना रनोट बायोपिक : संभावना और खतरे
प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2019


कंगना रनोट स्वयं के जीवन पर फिल्म की पटकथा लिख रही हैं। आजकल बायोपिक बनाए जा रहे हैं। प्राय: व्यक्ति के शिखर पर पहुंचने के बाद बायोपिक बनाया जाता है। अभी तो कंगना रनोट अभिनय के साथ निर्देशन भी कर रही हैं। कुछ दिन पूर्व उन्होंने भोपाल में 'पंगा' फिल्म की शूटिंग की है। इसी के साथ उनकी फिल्म 'मेंटल है क्या' की शूटिंग भी अपने अंतिम चरण में है। अपना बायोपिक बनाने के लिए अभी कंगना रनोट युवा हैं। अभी उन्हें मीलों चलना है परंतु कंगना रनौट कुछ इस तरह जीती हैं मानो आने वाला दिन नहीं आएगा। वे हमेशा जल्दी में रहती हैं। एक बार खाकसार किसी आवश्यक काम से जा रहा था और वृद्ध टैक्सी ड्राइवर बुदबुदाया कि उसने सबको शीघ्रता करते देखा है परंतु कोई कभी कहीं पहुंचता नज़र नहीं आता। बड़ी गहरी दार्शनिक बात उसने कह दी। दरअसल, आम आदमी दार्शनिक होता है, भले ही वह कभी कॉलेज नहीं गया और उसने कोई डॉक्टरेट प्राप्त नहीं की। दार्शनिकता के लिए उसका रुझान ही उसे सारे कष्टों और असमानता आधारित व्यवस्था को झेलने की शक्ति देता है। वह सब कुछ जानकर भी अनजान बने रहने का अभिनय करता है। इस तरह आम आदमी नटसम्राट बन जाता है।

कंगना रनोट के बायोपिक की घोषणा से वे लोग भयाक्रांत हो गए हैं, जिन्होंने उनका शोषण किया था। जिन अलमारियों में उन्होंने अपने गुनाह के सबूत छिपा दिए थे, उन अलमारियों से अब कुछ ध्वनियां निकल रही हैं। याद आता है चेतन आनंद की फिल्म 'कुदरत' का गीत जिसे पाकिस्तान के शायर ने लिखा है- 'खुद को छुपाने वालों का /पल पल पीछा ये करे/ जहां भी हो मिटे निशां/वहीं जाके पांव ये धरे/ फिर दिल का हरेक घाव/ अश्कों से ये धोती है/ दुख-सुख की हर एक माला/ कुदरत ही पिरोती है/ हाथों की लकीरों में /ये जागती सोती है।'

सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' को सर्वश्रेष्ठ बायोपिक माना जाता है। जब फिल्मकार ने ब्रिटिश रंगमंच के अभिनेता बेन किंग्सले का चुनाव किया तब इस अभिनेता ने शूटिंग पूर्व तैयारी में न केवल चरखा चलाना सीखा वरन कई दिन तक उपवास भी किए। इसी भव्य फिल्म के दूसरे यूनिट के कैमरामैन गोविंद निहलानी ने अपनी फुर्सत के समय एक किताब पढ़ी, जिससे प्रेरित 'तमस' बनाई। नकारात्मक शक्तियों ने इसके प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए अदालत में अर्जी दी और न्यायाधीश ने इतवार के दिन चार घंटे की 'तमस' देखकर उसके दूरदर्शन पर दिखाए जाने के हक में फैसला दिया।

राकेश ओमप्रकाश मेहरा की 'भाग मिल्खा भाग' में फिल्मकार ने मिल्खा सिंह की दो ऐतिहासिक दौड़ों के क्रम में अंतर किया। यह कार्य ड्रामेटिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। सबसे अधिक संख्या में बायोपिक शहीद भगत सिंह के बने हैं और आज भी एस. राम शर्मा की लिखी और मनोज कुमार अभिनीत फिल्म सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

कंगना रनोट अपने बायोपिक का लेखन और निर्देशन करने जा रही हैं। यह एक अत्यंत कठिन काम है। क्या वे तटस्थता का निर्वाह कर पाएंगी? स्वयं से प्रेम करते हुए तो तटस्थता बनाए रखना कठिन होगा। व्यक्ति सबसे अधिक झूठ स्वयं से बोलता है। यहां तक कि अपनी यादों में भी वह हेराफेरी करता है। राजा-महाराजाओं द्वारा अपने शिकार के सारे किस्से झूठे होते हैं। हाका लगाने वालों का हुजूम शेर को शोर मचाकर मचान तक पहुंचाता है। चुनाव में भी हाका लगाने वाले वोटर को मतदान केंद्र पर लाते हैं।

मुगल बादशाह अपने दरबार में एक लेखक नियुक्त करते थे, जो उनका जीवन चरित्र लिखता था। इस तरह की किताबें पूरा सच नहीं बयां करतीं। इस मामले में औरंगजेब के साथ न्याय नहीं हुआ। अमर्त्य सेन ने बड़ी विश्वसनीय किताब लिखी है। औरंगजेब जैनाबाद की कन्या से इश्क करता था और उसके कुछ प्रेम गीत कोलकाता के वाचनालय में है। विभाजन के समय इतिहास का भी बंटवारा किया गया। हमने धर्मनिरपेक्ष अकबर को अपनाया और पाकिस्तान ने औरंगजेब को पसंद किया और इस कारण भी भारत में औरंगजेब को नापसंद किया जाता है। इसे औरंगजेब की हिमायत नहीं समझा जाए, बस अमर्त्य सेन के लेख की याद आ गई। मुगल साम्राज्य पर एमएए रिजवी की किताब 'द वंडर देट इंडिया वाज़' भाग दो अत्यंत पठनीय किताब है।