कथाओं की विचित्र यात्रा / जयप्रकाश चौकसे

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कथाओं की विचित्र यात्रा
प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2014


निर्माता गोवर्धन थनवानी ने 'एक्शन-जैकसन' नामक फिल्म प्रारंभ ही की थी कि आमिर खान ने उन्हें बताया कि जुड़वा हमशक्ल खलनायकों की बात उनकी 'धूम-3' में भी है और उसके प्रदर्शन के बाद आपकी कहानी की नवीनता को हानि पहुंचेगी। यह आमिर खान की नेकी है। बाद में थनवानी के लेखकों ने अपनी कहानी में परिवर्तन किया परंतु अब उन्हें अमेरिकन निर्माता से नोटिस मिला है कि वे 'एक्शन जैकसन' टाइटिल का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अमेरीका में भी हमशक्ल खलनायक भाइयों की कहानी बन चुकी है। सच्चाई तो यह है कि सलीम खान व रमेश सिप्पी निदेर्शित 'अकेला' में हमशक्ल खलनायकों का पात्र कीथ स्टीवेन्शन नामक रंगमंच के कलाकार ने किया था और 'अकेला' 'धूम' तथा 'एक्शन जैकसन' के बहुत पहले की फिल्म है। इसी तरह इंदर कुमार भी एक फिल्म बनाने जा रहे थे जिसके मूल विचार पर करण जौहर की 'कल हो ना हो' बन रही थी, अत: इंदर कुमार ने अपनी फिल्म निरस्त की। कई बरस पहले एक अमेरिकन फिल्म से प्रेरित भारत में दो फिल्में साथ-साथ बन रही थी- एक थी नाना पाटेकर और मनीषा कोइराला अभिनीत 'अग्नि साक्षी', दूसरी थी अरबाज खान अभिनीत 'दरार' परंतु 'अग्नि साक्षी' पहले प्रदर्शित हुई और उस समय तक 'दरार' लगभग बन चुकी थी और कोई परिवर्तन संभव नहीं था, अत: 'दरार' बहुत बाद में प्रदर्शित की गई परंतु फिल्म नहीं चली। आश्चर्य की बात यह है कि 'अग्नि साक्षी' और 'दरार' के हादसे के बाद भी राकेशनाथ ने माधुरी दीक्षित और ऋषिकपूर को लेकर इसी कहानी पर 'याराना' नामक हादसा रचा। इसे कहते हैं 'खुली आंखों मक्खी निगलना'।

हिंदुस्तान में फिल्म उद्योग के प्रारंभिक दौर से ही हॉलीवुड से विचार चुराने का काम प्रारंभ हो चुका था। एक श्रीमान दवे को अमेरिकन फिल्मों के कथासार अनुवाद करने के लिए उन फिल्मों के वितरक भेजते। प्रचार सामग्री के लिए अनुवाद आवश्यक था। दवे साहव ने उस प्रचार सामग्री के आधार पर कई कहानियां निर्माताओं को बेच दी और उन फिल्मों के प्रदर्शन के बाद अंग्रेजी भाषा की मूल फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। दुबे महोदय का व्यवसाय लंबे समय तक नहीं चल पाया और पोल खुल गई।

जिस समय मेहबूब खान अपनी 'मदर इंडिया' निर्माण के अंतिम दौर में थे, उस समय एक फिल्म लगी जिसका क्लाइमैक्स उन्हीं की फिल्म की तरह था क्योंकि वे 1939 में ही इस कथा को 'औरत' के नाम से बना चुके थे, अत: 'माल' उठाने के लिए लोगों को बहुत समय मिला था। मेहबूब खान जरा भी विचलित नहीं हुए, उन्हें अपनी प्रतिभा और प्रस्तुतीकरण पर पूरा भरोसा था। 'मदर इंडिया' अत्यंत सफल रही। इस फिल्म में बिरजू की भूमिका दिलीप कुमार ने नहीं की क्योंकि वे नरगिस के बेटे की भूमिका कैसे कर सकते थे जबकि उसके साथ कई प्रेम कहानियां अभिनीत कर चुके थे परंतु बिरजू का पात्र उनके अंतस में जम गया था, अत: उन्होंने 'गंगा जमुना' बनाई और बिरजू नामक अन्याय से जन्मे आक्रोश का पात्र 'मदर इंडिया' से 'गंगा जमुना' होते हुए, 'दीवार' में आ गया परंतु बीहड़ से महानगर आने पर उसने कपड़े बदल लिए परंतु तेवर वही थे। यह तो कुछ नहीं है, असल अचंभा यह है कि महानगर नए किस्म के बीहड़ बन गए हैं और अपराधी पहले से ज्यादा खूंख्वार हो गए है। अब वे घोड़े पर सवार नहीं होते परंतु हाथ में अदृश्य कोड़ा तो है।

जॉन अब्राहम को नानावटी कांड पर लिखी मस्तान भाइयों की पटकथा अच्छी लगी परंतु वे जॉन को उसका बाजार भाव नहीं दे रहे थे तो जॉन अब्राहम ही उसके निर्माता हो गए हैं और मस्तान बंधु निर्देशन करेंगे। ज्ञातव्य है कि दशकों पूर्व जलसेना अफसर नानावटी ने आहूजा का कत्ल कर दिया था क्योंकि वह उनकी पत्नी सिल्विया को अपने जाल में फंसा चुका था। नानावटी ने उससे कहा था कि वे तलाक देंगे बशर्ते आहूजा सिल्विया से शादी करे तब अय्याश दंभी आहूजा ने कहा था कि हमबिस्तर होने वाली हर औरत से शादी नहीं कर सकते। ज्ञातव्य है कि आर के. नैयर सुनील दत्त के साथ 'ये रास्ते हैं प्यार के' नामक फिल्म नानावटी कांड पर बना चुके हैं।