कनकठिया / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Gadya Kosh से
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5 फीट 3 ईंच लम्बा, चौड़ा छाती, करसारौॅ रंग के परमेसर बहुत कम दिनोॅ मेंॅ सोंसे टोला के मामू बनी गेलै। असल में हुनको एकलौती बहिन के दुल्हा पर जब खेत में ठनका गिरी गेलै तॅ वहॉ दिन से एक नया बखेड़ा खड़ा होय गेलै। परमेसर एक जिम्मेदार मरद के नमूना बनी गेलै। एकदम जुकती जोगाड़ मेॅ माहिर, कमियां आरोॅ लूरगर भी ओतने। चुकी परमेसर मसोमात बहिन के यहँा रही कैॅ ओकर देख-रेख करै रहै, यहा लेली जों कुच्छू सोर समान के ज़रूरत पड़ै तैॅ टोला-समाज सैॅ पैचोॅ-उधार लेॅ के काम चलाय लै। टोला के लोग परमेसर के "परमेसर मामू" केॅ नाम से जानेॅ पहचाने लागलै। सब के मुहबोलिया, गप्पी, हँसोड़ हिम्मतबाज अरोॅ जिद्दी भी ओतने।

परमेसर पढ़लोॅ तेॅ कम्में रहै, मतर पुरनकट्टी सब बात एकदम मुजबानी। अलबत्ता तेॅ ई कि जहिया सेॅ अैलै अबताँय दू दर्जन लहास ेॅ खोरी-खोरी गंगालाभ करी देलकै। ओकरा सैॅ बढ़ी केॅ अलबत्ता ई कि सब के मरनी के किस्सा कन्ठस्त। के कहिया, कौन दिना मरलै, केतना कनकठिया, केतना लकड़ी, केतना खर्चा, के केना जरलै। के कहिनेॅ अधजरूओॅ रहलै, केकरा में आगिन दै घरिया मारा-मारी होलै। केकरोॅ सबासीन जरला के बाद जुटलै। के कनकठिया नै नहैलकै। चुल्हा तापै में केकरोॅ लूंगी-गमछा जरलै। केकरा मरला में बढ़िया पूड़ी-जलेबी बनलै। केकरा में तरकारी नोनगर-तित्तो होलै।

मनें हरेक बात एकदम याद, आरो हरेक बात हनुमान चलीसा नाकती दोहराय के इलम।

लाल बाबू के मरला पर ते मत पूछोॅ कत्तेॅ इश्लोक उचारे लागलै। 'जैसा करम करेगा, वैसा फल देगा भगवान'-एतना कही केॅ कचका बांस सैरा पर बजाड़ी दै। कनकठया ते हाँसबै करै, निमझान आगिन देबैया भी दाँत निकालने विना नय रहे पारै। एकदम अक्खर कनकठिया रहै परमेशर। खोरी-खेरी आरो बामर मारी केॅ अढ़ाय-तीन घंटा मेॅ क्वीटल भर के लहास केॅ पावभर बनाय केॅ गंगालाभ करबाय दै। पंचकाठ घरिया एकदम चुप। गंगा मेॅ सीधे धोंस दे दै रहै। खाय घरी बस पाँच पूड़ी, पाँच जिलेबी. बस! एकरा से कहियोॅ जादे नय। पता नय की राज रहै, आय तांय कोय नय जाने पारलै। मुरदघट्टी के सब दुकानदार परमेशर मामू केॅ 'परमेशर कनकठिया' के नाम से जानै रहै। हुनके इशारा पर खरीद-बिक्री होय रहै।

आय बड़के भोरहरिया करका कौवा के आवाज सुनी के जीया बाबू के नीन टूटी गेलै। आपन्है मेॅ जोतिसी उचारे लागलै। लागै छै आय गामोॅ मेॅ कोय बज्जर गिरतै। इ भोरे-भोर कार कौवा अलापी रहलोॅ छै। तक ताय हेमन पहलवान फदरलोॅ जाय रहै कि भगवान के एत्ते अजलत नय करै के चाही। बेचारी कत्ते भला आदमी रहै। मतर है जुवानी में... ओह। जीया बाबू के कान खड़ो होय गेलै। हेमन पहलवान के आवाज सबादी के पूछलकै-की हेालै हो हेमन भाय।

-अहो भैया! परमेसर मामू साफ होय गेल्हौंन, हेमन बतैलकै। गजबे होय गेलै! कि होलोॅ रहै। अहो सुनै छीयै कि राती परमेसर के हौला-फुला बौखार अैलै, आरोॅ तीन बजे भोर ताय दम तोड़ी देलकै।

-ले! केकरोॅ कुच्छू नै विगाड़ने रहै बेचारा, भगवान चलतेॅ-फिरतेॅ उठाय लेलकै जीया बाबू बोललै। टुकरा-टुकरा मेॅ बसलोॅ लम्बा चौड़ा गॉव, परमेसर मामू के मरै के खबर काने-कान सौसें गाँमों मेॅ फैली गेलै। सूरज निकलतेॅ-निकलतेॅ देहरी सेॅ रस्ता तांय एकदम ठेलमा-ठेल भीड़। अेहिनौॅ भीड़ तेॅ कोय संत या बड़का नेता राजा-महराजा मेॅ भी नै होय छै। लहास अैसनोॅ लागै कि कोय आराम से ऑंख खोली कैॅ सुतलोॅ रहे।

सिरहौना के नीचे दबाय के फाटलोॅ पुडिया, कोय भला आदमी दू ठो अगरबत्ती बारी कैॅ पौवा मेॅ खोसी देनें रहै। तरह-तरह के बात, कोय भला मानुस कहै, कोय सबके हितैसी, कोय एकनम्मर कनकठिया। बहुत दिन के बाद लोगोॅ के अखरलै कि केना के बांस अैतै, केना रंथी बनतै। जबतक परमेसर रहै सबसे पहिनें वहँा इ सब के जुकती-जोगाड़ मेॅ पीली जाय रहै। खैर 'केकरहौ विना कोय काम नै रूकै छै'। जेना-तेना बांस अैलै, रंथी बनलै। परमेसर के नहबाय-सोन्हाय केॅ देहोॅ मेॅ घी लपेसी केॅ रंथी पर चढाय देलकै। लहास पर एतना लोग पितमरी चढ़ैलकै कि लाल-पीरोॅ पितमरी से भरी गेलै। कान्हों लगाबै मेॅ भी मारा-मारी, पहिने हम्में तैॅ-पहिने हम्में। "आय केकरहौ कोय घाट चलबैया नै रहै, सब के घाट चलबैया तेॅ मस्ती सेॅ रंथी पर पटेलोॅ रहै"। सब आपन्है फटाफट कान्हों पर गमछा लूंगी-तोलिया लेने निकली गेलै। "राम नाम सत है, सब का यही गत है" सरंग छुयै बाला आवाज के साथ नारा लागैॅ लागलै। रस्ता के दोनो तरफ जनानी-मरदाना, बच्चा के भीड़ अलगे। कोय गोदी मेॅ चिलका कोय कान्होॅ पर। कोय छौड़ा गोसाय के बोललै-राम नाम सत नै 'परमेसर मामू अमर रहे' बोलोॅ। फेरू की रहै 'परमेसर मामू अमर रह' े के नारा लागैॅ लगलै।

रंथी बढलोॅ गेलै, घटाहा घटलोॅ गेलै। कोय गाँव से निकाली केॅ घुरलै, कोय आगू ताँय बढ़ाय कैॅ। कोय आधोॅ दूर जाय कैॅ ससरी गेलै, ते कोय बजार तक जाय केॅ। आखिर मेॅ बची गेलै चार गो रंथी ढोबैया, तीन गो गोतिया के कनकठिया, एक लक्ष्मण ओस्ता, पाँच गो लौॅरजौॅर आरोॅ छंगूरी पाटी के सात गो मस्सक बाजा बाला, बस सब मिलाय के बीस कनकठिया। जिन्दावाद, अमर रहे सब रस्ते मेॅ भुतलाय गेलै। जखनी तखनी 'राम-नाम-सत-है' भिनभिनैलोॅ जाय, पीछू से मस्सक बाला ढब-ढिब करनें जाय, "बड़ी रे जतन सेॅ हम सिया जी हो पोसेलौं" बजैनै जाय। रंथी पर जेकरे नजर पड़ै, गौर से हियाबैॅ लागै। दूर तक कनकठिया के भीड़ नै देखी के बोलै-एत्ते बढियां रंथी आरोॅ कनकटिया यहा एक, दू, तीन, चार, पाँच....। हलुवाय उचकी-उचकी कखनू रंथी देखै, कखनू गहकी। नै रहलोॅ गेलै तैॅ पूछलकै कहाँ केरोॅ लहास छीकै होॅ कनकठिया भाय। जेना कि देवघर केेॅ पंडा देखथै-नाम, गाम, जिला, गो़त्र पूछे लागै छै। रामधनी बतैलकै-अहो परमेसर कनकठिया के जानथै छहो, ओकरे लहास छीकै। परमेसर कनकठिया! अरे परसू-तरसू तेॅ अैलै रहैै, की भेलो रहै हो।

मनें तरह-तरह के जिरह। तरह-तरह के चर्चा। जराबै ले जेतना लकडी़ के ज़रूरत होय छै लेलौॅ गेलै, उप्पर से लकड़ी बाला परमेसर कनकठिया के नाम पर मन भर लकड़ी आपनोॅ तरफ सेॅ दैॅ देलकै।

सैरा बोझैलै। डोम-राज सैॅ सस्ते मेॅ निपटी के आगिन पड़ी गेलै, मस्सक बाला पैसा गिनाय के ससरी गेलै। थोडे देर मेॅ सैरा मेॅ आगिन धधाय गेलै। यहा बीच जुगल पंडिजी हपसलोॅ-ढपसलोॅ चिकरलों अैलै, अहो लहास जराय देल्हों की। ठहरोॅ-ठहरॉ, हला-हला गोड़ मेॅ कांटी ठोकोॅ कांटी. पंचक के प्रकोप चली रहलोॅ छै। -एह आबे की, पहिनें कहाँ गेलोॅ रहो पंडिजी. कोय टपकलै। -हम्हूँ धियान नै देलियै हो। इ ते जब रामसहाय बाबू लरखराबे लागलै ते पतरा उलटैलियै। देखै छीयै काल चार बजे बिहांन तांय पंचक छै। -आबे की! छोडोॅ पंडिजी, चलतै लगातार धमगज्जर। कनकठिया बोललै।

एक डेढ घंटा मेॅ लकड़ी जरी के भसम, मतर लहास अधजरूये, आय नै कोय बढ़ियाँ से खोरै वाला, नै खिस्सा सुनाबै बाला नै बामर मारै बाला। आय कनकठिया के सेनापति चित रहै। गंगा में बुडै़ला के बाद भी उपलाय गेलै, शायद दोसरो सेनापति कैॅ खोज में सरंग के रसता दूर तक बढ़ी गेलै। कनकठिया, कनकठिया केॅ पंचकाठ दैॅकेॅ जंग जीती लेलकै।