कन्नी और देवा / मनोज श्रीवास्तव

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कन्नी अपना पर्स सम्हालते हुए ऐसी अफ़रातफ़री में बाहर निकली जैसेकि उसे आफ़िस में बेहद देर हो चुकी हो और अफ़सर उसे सेक्शन में घुसते ही डाँट पिलाने वाला हो। निकलते-निकलते उसने देवा को अफ़सराना तेवर में झिदायत दी, "देवा, मैंने दाल फ़्राई कर दी है और चावल कुकर में चढ़ा दिया है। एक सीटी बजते ही स्टोव आफ़ कर देना। रात की सब्जी फ़्रिज़ में पड़ी हुई है। निकालकर खा लेना। और हाँ, जब ड्युटी पर जाना तो बचा-खुचा खाना फ़्रीज़ में डाल देना। वर्ना..." "वर्ना क्या..." देवा काफ़ी देर तक सोचता रहा।

कन्नी की बात पर झुँझलाने की आदत से वह वर्षों पहले ही तौबा कर चुका है। लिहाजा, कन्नी की आवाज़ में उतनी कड़वाहट नहीं थी। बल्कि, उसमें नरमी के साथ-साथ थोड़ी-बहुत देवा के लिए चिंता जैसी बात भी ळालक रही थी। कन्नी में ऐसा बदलाव उस दिन से आया था जबकि वह उससे अचानक रीगल सिनेमा से बाहर आते हुए टकरा गया था। कन्नी तो एकदम अचकचा-सी गई थी--जैसेकि उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो। तब, उसने अपने साथ वाले आदमी से ऐसे छूटकर जैसेकि उससे उसकी दूर-दूर की कोई पहचान न हो, मुस्कराकर देवा से बोल पड़ी थी, "अरे देवा, तुम्हें तो इस वक़्त नोएडा में होना चाझिए था? तुम्हीं ने तो कहा था कि साल के इस क्लोज़िंग मन्थ में तुम्हें मुळासे टेलीफोन पर बात करने तक की फ़ुर्सत नहीं है। फिर, यहाँ कैसे..."

कन्नी आदतन अपने दोष पर परदा डालने के लिए उसके ऊपर बुरी तरह बरस पड़ती रही है ताकि देवा का दोषारोपण करने का मनोबल टूट जाए। उस वक़्त भी, देवा ने उससे कुछ पूछने का बवाल मोल नहीं लिया जबकि उसने उसे एक आदमी के साथ सिनेमा हाल से बाहर आते हुए अच्छी तरह देख लिया था और उसकी थकी-मांदी आँखों ने यह साफ़ बता दिया था कि वह तीन घंटे की फ़िल्म देखकर अभी-अभी फ़ारिग हुई है। बहरहाल, देवा, वहाँ अपनी कंपनी के काम से अचानक आने की वज़ह बताते हुए तत्काल नोएडा की ओर निकल पड़ा। उसने जाते-जाते अपनी कार में से झाँककर देखा कि उस आदमी ने फिर कन्नी के साथ कदम-दर-कदम चलते हुए उसे अपनी बाइक पर पीछे बैठाया था और गोल मार्केट की ओर रुख कर लिया था। देवा समळा गया कि अब वे दोनों किसी रेस्टोरेंट में गए होंगे और वहाँ से शाम होने तक किसी पार्क वग़ैरह में... अपने संदेह को सत्यापित करने के लिए देवा ने अपने चैम्बर में घुसते ही कन्नी के सेक्शन में टेलीफोन पर पूछकर पता कर लिया था कि उस दिन वह सी0एल0 की छुट्टी पर थी।

उस शाम, देवा कुछ पहले ही आफ़िस से वापस आकर और रसोईं में घुसकर काम में जुट गया था। उसने ड्राइंग रूम में टेबल पर रखी कन्नी की तस्वीर को इतनी घृणा से देखा कि जैसे वह उस पर थूक देगा। पर, उसने उसकी तस्वीर को पलटकर ही अपनी नफ़रत का इज़हार किया।

उसके मन में कन्नी को कल की तरह उसके आने से पहले ही कोई सरप्राइज़ देने की इच्छा नहीं थी। दरअसल, वह आफ़िस से लौटते समय आधा किलो मीट लेता आया था क्योंकि दोपहर को जो कुछ उसने देखा था, उससे होने वाले अंतर्द्वंद्व के चलते उसका मन बड़ा उचाट-सा हो रहा था। जुबान भी फीकी-फीकी सी लग रही थी जैसेकि किसी बीमारी से ठीक होने के तुरंत बाद लगता है। वह बेशक! कन्नी के आने से पहले अपना मूड बना लेना चाहता था। इसलिए, उसने पर्याप्त मात्रा में लहसुन, अदरक और प्याज पीसकर और मीट में मसाला मिलाकर, उसे पहले कुकर में पका लिया। फिर, प्याज का तड़का लगाकर मीट को अच्छी तरह भुन लिया। भुनते वक़्त, उसने उसमें काफ़ी मात्रा में बुकी हुई डेंगी मिर्च डाली। थोड़ी देर तक पकाने के बाद मीट का शोरबा एकदम सूर्ख़ लाल हो गया।

उसने एक बड़ी-सी कटोरी में मीट और शोरबा निकाला और सुबह कन्नी द्वारा छोड़ी गईं बासी रोटियाँ खूब छककर खाईं। उसके बाद जैसे ही उसने रम का एक पैग गले के नीचे उतारा, दरवाजे पर कन्नी का दस्तक हुआ। उसने फटाफट डाइनिंग टेबल साफ़ किया और टेबल पर कन्नी की उल्टी पड़ी तस्वीर को सीधा करते हुए दीवाल घड़ी की ओर देखा कि आठ बजने में कोई पाँच मिनट ही बाकी हैं। उसके बाद, उसने ऐसे अलसाते हुए और आँख मलते हुए कुछ मिनट बाद दरवाजा खोला जैसेकि वह बेड रूम में से आराम फ़रमाने के बाद अभी-अभी निकलकर आ रहा हो...

कन्नी ने घुसते ही नाक सुड़कते हुए ड्राईंग रूम से अटैच्ड रसोई में झाँककर जायजा लिया और होठ को जबरदस्ती कानों तक फैलाते हुए यह जाझिर किया कि 'मैं बेहद खुश हूँ कि तुमने पहले ही रसोई का काम निपटा दिया है।' बेशक, उसे गंध से आहट मिल गई थी कि देवा ने उसके आने से पहले ही मीट तैयार कर रखा है।

जब कन्नी अपना जीन्स पैंट उतारकर उसे हैंगर पर टांग रही थी तो देवा ने कनखियों से उसके हुलिए का जायजा किया। उसके बाद वह खिड़की से झाँकने लगा। बिजली गुल होने के कारण दूर-दूर तक कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। फिर भी, बहुत दूर पर झिलमिलाती चुनिन्दा रोशनियों पर वह अपनी नज़र गड़ाने की असफ़ल कोशिश कर रहा था।

तभी, कन्नी ने पीछे से उसे दोनों बाँहों से जकड़कर अपनी नाक उसकी पीठ में धँसा दी, "देवा, यू आर टू ग्रेट। मुझे भी आज अपना टेस्ट कुछ बिगड़ा-बिगड़ा सा लग रहा है...रीयली, आई हैव बीन अपसेट सिन्स दि आफ़्टरनून। तुमने मीट तैयारकर मेरा मिज़ाज़ ही ठीक कर दिया...थैंक्स ए लॉट..."

उसने बेड रूम में जाकर कुछ पल तक बेड पर आराम फ़रमाया। देवा को उसका अधनंगा बदन देखकर बड़ी जुगुप्सा-सी हो रही थी। वह न चाहकर भी उसके बदन पर बार-बार अपनी नज़रें पता नहीं क्यों गड़ा दे रहा था। उस पल उसका मन कर रहा था कि वह उसे जोर से झिड़क दे, 'कन्नी, तुम अपना यह जिस्म ढंक लो, मुझे तुम्हारी पूरी बॉडी से बैड स्मेल आ रही। मेरे पास दोबारा आने से पहले या तो नहा लेना, या कोई परफ़्युम स्प्रे कर लेना...' पर, वह वहीं खिड़की के सामने खड़े-खड़े शहर की चौंधियाहट में खोने की कोशिश कर रहा था क्योंकि अभी-अभी बिजली आई थी और सड़कों पर शोरगुल बढ़ने लगा था। लेकिन, अभी तक उसमें चेतना का संचार नहीं हुआ था।

तब तक कन्नी अपने अंडरगारमेंट्स बेड पर फेंककर बाथरूम में घुस चुकी थी। देवा खिड़की से हटकर बेड पर बैठ गया। वह कुछ पल तक उसके अंडरगारमेंट्स टटोलता रहा। फिर, एकबैक वहाँ से उठकर किचेन में चला गया। उसने फटाफट दस-बारह चपातियाँ सेंकीं और कन्नी के बाथरूम से वापस आने से पहले वह फिर खिड़की के सामने आकर खड़ा हो गया। उसे तब तक यह एहसास नहीं हुआ कि कन्नी उसके पीठ-पीछे डाइनिंग टेबल पर खाना लगा चुकी है जब तक कि उसने दोबारा उसे उसी तरह आलिंगनबद्ध करते हुए नहीं कहा, "शुक्रिया, चपातियाँ बनाने के लिए। बहरहाल, मैं अपनी कैंटीन से चिकेन कटलेट औ' कुछ फ्राई फ़िश भी ले आई थी...चलो, उसे फ़्रिज़ में डाल देते हैं। कल आफ़िस जाने से पहले खा लेंगे, बतौर ब्रेकफ़ास्ट..."

पहली बार देवा ने फ़ीकी मुस्कान से चेहरे की झुर्रियों को समेटा।

जब तक देवा एक नली वाली हड्डी के भीतर का माल चूसने की कोशिश करता रहा, कन्नी तेजी से कोई छः रोटियाँ चट्ट कर चुकी थी और कटोरी का सारा मीट खत्म कर चुकी थी। इस बीच, देवा उसके चेहरे से निकलने वाले पसीने को देखता जा रहा था जो उसके मोटे-मोटे नथुने और ठुड्डी से बहकर टप्प-टप्प उसकी कटोरी में भी गिरता जा रहा था। उसे देखते हुए देवा को गलियों की कुत्तियां याद आ रही थीं। यों भी, बाहर ग्राउंड फ़्लोर पर कुत्ते बेतहाशा भौंक रहे थे। शायद, उन्हें मीट की गंध मिल चुकी थी या कोई एक अदद कुतिया उनके झुंड में शामिल हो गई थी।

      • *** ***

उस दिन, कन्नी का मूड इतना खराब था कि वह आफ़िस से शार्ट लीव लेकर अपनी गाड़ी इंडिया गेट की ओर लेकर चली गई। सड़क किनारे अपनी कार पार्किंग कर घास पर बैठ गई। कुछ मिनट के बाद लेट गई। ऊपर आसमान देखते हुए उसे मालूम नहीं क्यों कुछ डर-सा लग रहा था? दिल्ली में आने के बाद उसने आसमान देखने की कभी जरूरत ही नहीं समळाी थी। शायद, उसे ऐसा कभी मौका ही नहीं मिला होगा। फ़्लैटों में रहने का यही ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है कि जब नींद न आ रही हो तो छत पर टकटकी लगाए हुए ही रातें काटनी पड़ती हैं और आँखों से फिसलती नींद को पकड़ना होता है। बेशक! आसमान में तारे गिनते हुए रातें काटना फ़्लैटवालों को कहाँ मयस्सर होता है?

जब वह अपने डैड के साथ दिल्ली आई थी तो वह सिर्फ़ ग्यारह साल की बच्ची थी। मम्मी की ब्रेस्ट कैंसर से अचानक़ मौत होने के तीन महीनों बाद ही डैड का लखनऊ से ट्रांसफ़र हो गया था। उसके बाद, उसका दाखिला एक पब्लिक स्कूल में हो गया था। उस वक़्त, दिल्ली की लाइफ़ में उतनी तेजी नहीं आई थी। मीडिया क्रांति सिर्फ़ सुगबुगा-भर रही थी।

हाँ, 'एशियाड' के आयोजन के ठीक पहले, दिल्ली को थोड़ा-बहुत सजाने-सँवारने का काम जोर पकड़ रहा था। दरअसल, एशियाड के बाद की दिल्ली में आमूलचूल बदलाव आया था। उसी बदलते परिवेश में कन्नी यानी कनुप्रिया तेजी से पल-बढ़ रही थी। जवान हो रही थी। इसी बीच एक दूसरे दुर्भाग्य के कारण उसके डैड की एक सड़क-दुर्घटना में मौत हो गई। उस वक़्त वह पत्रकारिता का डिग्री कोर्स पूरा कर रही थी। तब, उसे नौकरी की तलब लगी और उसे एक अख़बारनवीस की नौकरी कोई बड़ा जद्दोजहद किए बिना ही मिल गई। लिहाजा, ड्युटी करते समय, पहली बार और सिर्फ़ पहली बार उसका दिल देवा यानी देव कुमार को देखकर धड़का था। इश्क़ के एक छोटे से दौर के बाद ही दोनों ने कोर्ट मैरिज़ कर ली। तब, कनुप्रिया को कुछ ऐसा एहसास हुआ कि जैसे किसी डूबते को तिनके का सहारा मिला हो।

चुनांचे, अफ़रातफ़री में शुरू किए गए दांपत्य जीवन में कुछ ही महीनों के बाद तकरार-ळागड़े होने लगे। कन्नी तो सचमुच इतनी अड़ियल और वहमी थी कि वह कभी देवा के सामने झाँकने का नाम तक नहीं लेती थी। बेशक! नासमझियों के चलते दोनों के रिश्ते में शादी की पहली सालगिरह मनाने से पहले ही दरारें पड़ने लगीं और दाम्पत्य की कच्ची दीवार इतनी ज़ल्दी ढह गई कि किसी को भी उनके जीवन में आए इस नाटकीय घटनाक्रम पर आसानी से यक़ीन नहीं होता। कानूनी कार्रवाई के बाद, दोनों अलग-अलग रहने लगे। देवा तो कन्नी के प्रति इतनी घृणा से भर चुका था कि उसे भविष्य में कन्नी का थोपड़ा देखना भी गवाँरा नहीं था। इसलिए, उससे बेहद दूरी बनाए रखने के लिए उसने दूर नोएडा में नौकरी करना ही ज़्यादा उचित समझा।

      • *** ***
फिर, कोई सात साल गुज़र गए।  शायद, वे एक-दूसरे को भूल-से गए थे। नफ़रत की बाढ़ उनके बीच इस कदर उमड़ रही थी कि किसी ने भी किसी का चेहरा तक देखना मुनासिब नहीं समझा। दोस्तों के बीच बैठकर इस बाबत कोई चर्चा नहीं की। 

फिर, अचानक, एक अप्रत्याशित-सा मोड़ उनके जीवन में आया। इतने सालों बाद उनकी मुलाकात एक रेस्तरॉ में ऐसे हुई, जैसेकि वे इतने बरसों से एक-दूसरे से कतराते हुए उस दिन जानबूळाकर मिले हों। या, यूँ कझिए कि क़िस्मत में उनके लिए कुछ ऐसा ही होना बदा था। उस वक़्त, लंच-टेबुल पर दोनों एक-दूसरे को आमने-सामने पाकर अचकचाए नहीं। बातचीत ऐसे शुरू हुई जैसेकि वे प्रायश्चित कर रहे हों। बात-बात में उन्होंने अपनी-अपनी गलतियाँ महसूस कीं। बिल्कुल फ़िल्मी अंदाज़ में...। जब देवा चलने को हुआ तो कन्नी भी उठ खड़ी हुई। देवा ने उससे घर चलने का कोई आग्रह नहीं किया। पर, वह कोई ग़िला-शिकवा किए बग़ैर, उसके पीछे-पीछे बँधी-सी चली आई जैसेकि वह ऐसा कई सालों से करती आ रही हो। उसके बाद दोनों ने कोई भावी योजना नहीं बनाई और वे साथ-साथ रहने लगे। किसी ने भी कभी यह नहीं सोचा या कहा कि वे तलाक़ के बाद मियां-बीवी की तरह साथ-साथ क्यों रह रहे हैं। उन्हें कम से कम ईश्वर को तो साक्षी बना ही लेना चाझिए--बाक़ायदा एक मंदिर में जाकर। आख़िर, एक बार तलाक हो जाने के बाद क्या दोबारा दाम्पत्य जीवन इतनी सहजता से शुरू किया जा सकता है? देखने-सुनने वाले लोग क्या कहेंगे...

कन्नी ने लेटे-लेटे आँखें बंद कर ली। आसमान देखना उसे बिल्कुल नहीं भा रहा था। पर, मन इतना अशांत था कि जैसे उसके दिमाग में कोई बड़ा बाजार-हाट चल रहा हो। तभी उसका ध्यान सिरहाने दो प्रेमियों के बीच हो रही हरकतों ने भंग कर दिया। उनकी बेहद रोमांटिक बातचीत को सुनकर उसे उबकाई-सी आ रही थी। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि सालों से पुरुषों से दूरी बनाए रखने के कारण उसे मर्दानी गंध तक से मितली-सी आने लगी थी। इसके बावज़ूद वह पिछले माह के अंतिम रविवार को देवा के साथ उसके घर आकर खुद ही रहने लगी थी। तब, उसने कोई गिला-शिकवा किए बिना ही उसके साथ सभी तरह के संबंध बना लिए। सात सालों बाद उससे मिलकर ऐसे पेश आने लगी जैसेकि उनके बीच कभी कोई दूरी रही ही न हो।

सिरहाने उत्तेजित प्रेमियों ने उसके मन को और भी उद्वेलित बना दिया था। पता नहीं, उसका कौतुहल क्यों बढ़ता जा रहा था? वह हड़बड़ाकर उठ बैठी और एक ळाटके से सिर घुमाकर उनकी गतिविधियों का जायज़ा लेने लगी। लेकिन, उसके तो होश ही उड़ गए। उन प्रेमियों में पुरुष-पात्र कोई और नहीं, बल्कि खुद देवा था। उसने अपनी शुबहा को मिटाने के लिए कई बार अपनी आँखें मल-मलकर उसे देखा और अपने यकीन को पुख्ता किया। वह राग-रोमांस में इतना तल्लीन था कि उसे आसपास की कोई ख़बर ही नहीं थी। कन्नी बिल्कुल उसके पास जाकर खड़ी हो गई। पर, वह तो एक ऐसी दुनिया में मशगूल था कि जहाँ होश में रहना किसे कबूल होता है। कन्नी के जी में आया कि वह उसे उसकी लौंडिया से अलग खीचकर उसके मुँह पर कई तमाचे रसीद कर दे। वह आवेश में आगे बढ़ी भी। पर, वह कुछ सोचकर रुक गई...शायद, यह कि उसका क्या हक़ बनता है। तलाक़नामा तो उनके बीच सात सालों से लागू है। वह किंकर्त्तव्यविमूढ़-सी, कुछ देर तक उन दोनों की प्रेम-पचीसी देखती रही। फिर, उलटे पैर वापस अपनी कार में जा बैठी और कार घर्र से स्टार्ट कर, धूल उड़ाते हुए ओळाल हो गई।

      • *** ***

कन्नी कभी पहले इतने गुस्से में नहीं रही। उसने ड्राइंग रूम में घुसते ही टेबल पर सुबह के जूठे-पड़े कप-प्लेटों को जमीन पर गिरा दिया। देवा की लुंगी को खूंटी से खींचकर अंगुलियों और दाँतों से फ़ाड़-चींथ दिया। टी0वी0 के ऊपर बेतरतीब रखे उसके चश्मे, की-रिंग, कलम, डायरी, अंगूठी वग़ैरह को हाथ मारकर जमीन पर बिखेर दिया। उसके जूते पर इतनी तेज लात मारी कि वह पंखे के डैने में फंसकर लटक गया। इस तरह जब वह फ़िज़ूल का गुस्सा करते-करते थक गई तो वह औंधे मुँह बैठ गई। कोई दस मिनट बाद, उसने टी0वी0 स्टार्ट किया और आलमारी से कोई एलबम निकालकर फोटों देखने लगी। जैसेकि वह किन्हीं दस्तावेज़ों का अध्ययन कर रही हो।

कोई एक घंटे के बाद, जब देवा ने दरवाजा खटखटाया तो उसने कोई देर किए बिना सांकल नीचे गिराया। देवा अंदर सीधे बेड रूम तक चला गया--जमीन पर पड़े हुए सामानों को कुचलते हुए। हाथ में जो भारी-भरकम पालीथीन था, उसे उसने अंदर जाते समय डाइनिंग टेबल पर रख दिया। कन्नी उसके पीछे-पीछे चली आई। उसका मन कर रहा था कि वह उसकी पीठ पर एक बड़े हथौड़े से वार करके उसका काम तमाम कर दे। तभी अचानक देवा ने पीछे मुड़कर उसे अपने आग़ोश में बुरी तरह जकड़ लिया। कन्नी को उसके बदन से एक अज़ीब-सी औरताना गंध आ रही थी। उसने अपनी कुहनियाँ उसके पेट में धँसाते हुए ख़ुद को आज़ाद किया और बेड रूम की ओर भागते हुए बड़बड़ाने लगी, "आई डोन्न लाइक यू। यू आर ए ब्लडी, सेक्सी डाग--व्हिच कान्ट क्रिएट फ़ायडेल्टी..."

उस वक़्त, देवा अज़ीब-से संवेग में था। शायद, उसे कन्नी का एक भी लफ़्ज़ साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था। वह दोबारा कन्नी की ओर ऐसे ळापटा जैसेकि हफ़्तों से भूखे शेर की माद के पास कोई जानवर भटककर आ गया हो। इस बार, वह उसे जबरन बेड पर लिटाने में सफल हो गया। कन्नी ने खुद को आज़ाद करने के लिए बड़ा संघर्ष किया। चिल्लाई, चींखी, गुर्राई। यहाँ तक कि हाथ-पैर भी बेतहाशा चलाए, यह परवाह किए बिना कि इससे देवा को कोई बड़ी चोट भी आ सकती है। पर, आखिरकार वह निढाल हो गई।

बेड से उठने के बाद देवा बाथरूम में घुस गया और कन्नी फिर टी0वी0 के सामने बैठ गई। वह एक विदेशी चैनल पर चल रही ब्लू फिल्म को मुँह बिचका-बिचकाकर देखने लगी। देवा बाथरूम से निकलकर डाइनिंग चेयर पर बैठ गया। कन्नी इस बात पर बार-बार गुस्सा खा रही थी कि आखिर, देवा ने उसे पालीथीन में लाई हुई चीज अभी तक दिखाई क्यों नहीं। वह एकबैक उसके सामने आई और टेबल पर रखी हुई पालीथीन का सामान टटोलने लगी। तब तक देवा तौलिए से हाथ पोंछते हुए उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ चुका था। उसने पालीथीन से एक नया लेडीज़ सूट निकालते हुए उसकी ओर बढ़ाया--"हैप्पी बर्थडे टू यू..."

कन्नी एक बच्चे की तरह चहक उठी--"हाऊ सरप्राइज़िंग! टूडे'ज़ माई बर्थडे! आई हैड ऐक्चुअली फ़ारगाटेन। थैंक्स फ़ार रिमाइंडिंग मी ऐन्ड आलसो फ़ार दिस गिफ़्ट।"

फिर, अचानक वह सुबकने लगी--"ड्युरिंग दि लास्ट सिक्स यियर्स, देयर वाज़ नोबोडी टू विश मी आन माई बर्थडे।"

देवा उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए भावुक हो उठा और एकबैक उठ खड़ा हुआ। "कन्नी डार्लिंग, चलो किसी रेस्तरॅा में तुम्हारा बर्थडे सेलीब्रेट करते हैं।"

कन्नी ने देवा की गुजारिश पर कोई शिकवा-गिला नहीं किया। वह ळाटपट देवा द्वारा लाए गए नए सूट को पहन, उसके साथ चलती बनी।

रेस्तरॉ से लगभग बारह बजे तक लौटने के बाद, दोनों नशे में बातें करते रहे। दोनों ने गत सात सालों के दौरान अपने-अपने इतर प्रेम-संबंधों को स्वीकार किया। देवा ने फिलहाल पद्मा के साथ अपने चक्कर का ब्योरा दिल खोलकर दिया। कन्नी की समळा में आ गया कि जिस स्टूडेंट को देवा आफ़िस से लौटते हुए कहीं रुककर टयुशन पढ़ाता है, वही पद्मा है...हाँ, उस दिन, इंडिया गेट पर वह उसी पद्मा के साथ इन्वाल्व रहा होगा...

कान्फ़ेशन्स के उन लमहों में, कन्नी बेहद जज़्बाती हो चुकी थी। उसने करन के साथ अपने संबंधों की अटूटता और गूढ़ता का वर्णन इतनी मासूमियत से किया कि देवा के मन में उसके प्रति कोई रोष या विद्वेष पैदा ही नहीं हुआ। बजाय इसके, उसने उसे तसल्ली देते हुए कहा, "मैं करन को इस बात के लिए धन्यवाद दूँगा कि उसने तुम्हारे कष्ट और दुर्भाग्य के दौरान तुम्हें सम्हाले रखा। उसने तुम्हें टूटने से बचाया। वर्ना, क्या हो जाता? बड़ा गड़बड़ हो जाता..."

काफ़ी देर तक बातें करते हुए उनका नशा उतर चुका था। पर, जो कान्फेशन्स उन्होंने किए थे, वे पूरे होशो-हवास में किए थे।

उस दिन, जब वे अपने दाम्पत्य-संबंधों का आग़ाज़ दोबारा करने के लिए मंदिर में भगवान को साक्षी बना रहे थे तो वहाँ साक्ष्य के रूप में देवा की ओर से उसकी स्टूडेंट--पद्मा और कन्नी की ओर से उसका दोस्त--करन मौज़ूद थे। देवा और कन्नी ने दोनों की ढेरों बधाइयाँ कुबूल कीं। किसी में भी कोई मलाल नज़र नहीं आया। कोई शिकायत नहीं की।

उसके बाद से कन्नी और देवा साथ-साथ रह रहे हैं। लेकिन, वे एक-दूसरे की गतिविधियों पर हमेशा नज़र रखने सेे बाज भी नहीं आते। कन्नी ने कई बार देवा को पार्कों में पद्मा के साथ आलिंगनबद्ध पाया। देवा ने भी कन्नी को करन के साथ पिक्चरहालों से बाहर निकलकर कनाट प्लेस में बाँह में बाँह डाले घुमते हुए देखा। पर, न तो कन्नी ने घर लौटकर देवा की कभी लुंगी फाड़ी और उसके सामान वगैरह बिखेरे, न ही देवा ने कभी अपनी जुबान फीकी और मन उचाट पाने के बाद मूड ठीक करने के लिए मीट या चिकेन पकाया। ऐसे मूड में वे एक-दूसरे के प्रति आक्रोश प्रकट करने के बजाय, आपस में बड़े प्यार से मिलते हैं। आखिर, वे कोई एतराज क्यों नहीं करते हैं? लिहाजा, उनकी ज़िंदगी में ताक-झाँक करके और उनके संबंधों का खुलासा करके मुझे कभी-कभी बड़ा पछतावा होता है।