कन्फेशन्स / पल्लवी त्रिवेदी

Gadya Kosh से
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“चलो... आज हम दोनों अपने अपने कन्फेशन्स करते हैं। जो भी ऐसी बात है हमारे जीवन की जो अब तक सिर्फ अपने मन के तहखाने में छुपा रखी है,उसे बोल डालते हैं बिना ये परवाह किये कि इसका अंजाम क्या होगा।”लड़की लड़के से बहुत गंभीर होकर कह रही थी। लड़के के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने का फैसला किया था उसने और उसके पहले लड़के के सामने अपने आपको पूरी तरह अनावृत्त कर देना चाहती थी। अपने आप के खूबसूरत और चमकीले हिस्से अब तक लड़के से शेयर करती आई थी, आज अपने अँधेरे कोने और बदसूरत दाग़ भी दिखा देना चाहती थी और लड़के को भी उसकी सम्पूर्णता में देख लेना चाहती थी, उसकी सारी कमजोरियों के साथ।

“हाँ... अगर तुम न चाहो कुछ बताना तो तुम पर बंधन नहीं है लेकिन आज मैं अपनी लाइफ के वो मोमेंट्स तुमसे शेयर करना चाहूंगी जो मैंने कभी किसी के साथ शेयर नहीं किये”

“नहीं... मैं भी आज खुद को पूरा खोल दूंगा तुम्हारे सामने“ लड़का भी उतना ही गम्भीर था।

चन्द मिनिटों तक दोनों के बीच एक बेचैन सी खामोशी पसरी रही। बात शुरू करना पहले कभी इतना कठिन नहीं रहा था। कितना अजीब है ना कि हम अपनी जिंदगी की अनगिनत बातें दसियों बार दोहराते रहते हैं लेकिन वो एक छोटी सी बात जो हमारे भीतर के किसी कमज़ोर हिस्से को उघाड़ देती है, उसे व्यक्त करने में इतनी कठिनाई? दोनों ही खुद को तैयार कर रहे थे अपना सबसे निजी कोना दूसरे से बांटने के लिए। आखिर लड़की पहले बोली-

“मेरे दो बॉयफ्रेंड रह चुके हैं और दोनों के साथ सो चुकी हूँ मैं।”लड़की ज़मीन की ओर देखते हुए बोल रही थी। लड़की की नज़रों से एक भय सा था कि न जाने क्या होगा लड़के की आँखों में। कहीं वह मुलायम प्रेमिल नज़र कठोर तो न हो गयी होगी?

“ओके... और कोई कन्फेशन या देट्स इट?”लड़के की आवाज़ एकदम स्थिर थी।

“तुम इनके बारे में कुछ जानना नहीं चाहोगे?”लड़की की आवाज़ में अभी भी एक कम्पन था। जैसे अभी भी लड़के की स्थिर आवाज़ के पीछे किसी अनजाने तूफ़ान को महसूस कर रही हो।

“जो कुछ मेरे जानने लायक होगा, वो तुम खुद ही बता दोगी। वैसे भी ये बात मेरे लिए नार्मल ही है। मेरे खुद दो अफेयर्स रह चुके हैं और दोनों के साथ ही सेक्स किया है मैंने भी। हम 28 की उम्र में मिले हैं तो हम दोनों के पहले प्रेम संबंध होना तो यह बताता है कि हमारे हारमोंस एकदम ठीक काम कर रहे हैं।”लड़का मुस्कुराया।

और कुछ बताना चाहोगी?”लड़के की आवाज़ की आवाज़ में अब स्थिरता के साथ एक कोमलता भी थी।

“हम्म... मैं एक बार स्कूल में अपनी बेस्ट फ्रेंड की कॉपी घर लेकर आई थी। वो क्लास की सबसे होशियार लड़की थी और मुझे उससे ईर्ष्या होने लगी थी। इसी जलन के मारे उसके पन्नों पर स्याही उड़ेल दी थी कि वो पढ़ न पाए और उसके मार्क्स कम हो जाएँ”लड़की की नजरें अभी भी फर्श पर चिपकी थीं।

“फिर क्या हुआ”

“अगले दिन मेरी बेस्ट फ्रेंड कॉपी देखकर दुखी हो गयी लेकिन मुझे एक शब्द भी नहीं कहा क्योंकि वो यह शंका भी नहीं कर सकती थी कि उसकी सबसे अच्छी दोस्त ने जानबूझकर ऐसा किया होगा।लेकिन मैं रात भर गिल्ट के मारे सो न सकी। फिर भी सच्चाई बताकर उससे माफ़ी मांगने की हिम्मत नहीं कर सकी थी। आज तक दोस्ती में वह दग़ा मेरे मन पर भारी पत्थर सा रखा हुआ है।आज तुमको अपना अपराध बताकर कुछ हल्का महसूस कर रही हूँ।”

“हम्म... और कुछ?”

“हाँ एक और बात... जो तुमसे जुड़ी हुई है। याद है जब तुमने मुझे पहली बार गले लगाया था?”

“हाँ... तुम अपनी मम्मी की तबियत को लेकर परेशान थीं और रो रही थीं तब मैंने तुमको गले लगाया था सबसे पहले”

“हाँ... लेकिन मैंने तुमसे झूठ बोला था और रोने की एक्टिंग की थी। दरअसल हमें मिलते हुए चार महीने हो गए थे और तुमने एक बार भी मुझे हग नहीं किया था। मैं भी पहल नहीं कर पा रही थी तब मैंने दुखी होने की एक्टिंग की थी और नकली आंसू भर लिए थे आँखों में ताकि तुम्हारे गले लग सकूं”लड़की ने यह कहते हुए अपनी मुस्कुराहट को होंठ दबाकर छुपाया था और नज़रें और जोर से जमीन पर गढ़ा दी थीं।

“तुम कितनी शैतान हो... . और गजब की एक्टर भी। फिल्मों में ट्राय क्यों नहीं करतीं?”लड़का ठहाके मारकर हंस पड़ा था।

लड़के की वही पहले वाली उन्मुक्त हंसी लड़की की सारी चिंताएं अपने साथ पोंछ ले गयी। लड़की ने नज़रें उठाकर लड़के की ओर देखा। लड़के के चेहरे पर मुस्कान थी और वही निर्दोष प्रेम से लबालब आँखें। लड़की एकदम से उठी और बहुत जोर से लड़के के गले लग गयी। बहुत देर तक दोनों बंधे बैठे रहे। लड़की अपनी निर्वस्त्र आत्मा लड़के को सौंपकर अब निश्चिन्त थी।

“अच्छा... एक बात बताओ। इन तीनों बातों में से तुम्हें गिल्ट किस बात के लिए फील होता है?”लड़के ने पूछा।

“सिर्फ अपनी दोस्त के प्रति ईर्ष्या रखकर उसका नुकसान करने के लिए”

“हम्म... मैं भी यही सोच रहा था”

“अब तुम्हारी बारी...”लड़की ने लड़के से कहा।

“हम्म... क्या एक सिगरेट सुलगा लूँ?”

“ज़रूर”

लड़का सिगरेट के कश ले रहा था। वह खुद के ही साथ बेतरह उलझा हुआ नज़र आ रहा था। लड़की उसे पूरा वक्त दे रही थी, वह कतई जल्दी में नहीं थी। अभी थोड़ी देर पहले ही वह इस नाज़ुक दौर से गुज़रकर आई है, इसलिए उस सत्य को उजागर कर देने से एन पहले की इस मनोदशा को समझ रही थी। क्या पता इस सत्य को कह डालने के बाद जिंदगी ही न बदल जाए। क्या जाने एक सत्य अपने साथ क्या बवंडर लिए चला आये। हांलाकि वह भीतर ही भीतर थोड़ी डरी हुई भी थी। न जाने क्या सुनने को मिलेगा?

आखिर लड़के ने खंखारकर अपना गला साफ़ किया है -

“सुनो... मेरे पास बताने को एक ही बात है बस। आज से तीन साल पहले मैं अपने ब्रेकअप के बाद गहरे अवसाद के दौर में था और उसी अवसाद के चलते ऑफिस जाना भी बंद कर दिया था। बस दिन रात अपने कमरे में अंधेरा करके पड़ा रहता था और रोता रहता था। वह मेरे जीवन का सबसे भयानक दौर था। केवल कमरे में ही नहीं बल्कि पूरे जीवन में सिर्फ अन्धकार ही अन्धकार था।रौशनी डराने लगी थी। देर रात तक कमरे की छत को ताकता जागता रहता। सुबह ठीक चार बजे घबरा कर नींद टूट जाती थी और ज़ोरों से दिल धड़कने लगता था,अपनी ही धडकनों का शोर कानों के पर्दों पर बड़ी निर्मम ठक-ठक करता था। जैसे बस अब सब खत्म, अब कभी कुछ ठीक न हो पायेगा। फिर वही अंतहीन रोने का सिलसिला... . तकिये को बाहों में भरकर घंटों-घंटों रोया हूँ। कोई भी समीप न था जिसके गले लगकर रो पाता या जो मुझे भींचकर कह सकता कि”बस अब और नहीं, सब ठीक हो जाएगा”। ट्रायका भी बेअसर हो चली थी। ऐसे ही किसी घोर अवसाद के क्षण में व्हिस्की के कई पैग पीकर जाने किस झोंक में मैं ख़ुदकुशी करने निकल पड़ा। रात के लगभग दस बजे का वक्त था। मैं कहाँ जा रहा था, मुझे कुछ पता नहीं। मेरे कदम खुद-ब-खुद किसी अनजानी राह पर बढ़े चले जा रहे थे। आँखों में बुरी तरह आंसू उमड़ते थे। मैं खुद से और इस जिंदगी से बेतरह हताश और हारा हुआ था।अब मैं इमैजिन भी नहीं कर सकता कि सर्दी की उस रात हिचकियाँ लेकर रोता हुआ जो युवक सड़कों पर भटक रहा था, वो मैं ही था। मैंने निर्णय किया कि किसी पुल से कूद पडूंगा आज। मैं बस चलता जा रहा था, जहां कदम मुड़ते, वहीँ मैं मुड़ जाता। जिस पुल पर जाना था उसका रास्ता भी पता न था। एक जूनून सा था कि जहां पुल दिख जाएगा वहीँ रुक जाउंगा। उसी बेखुदी की हालत में जाने कैसे मैं रेडलाईट एरिया में पहुँच गया था और एक घर का दरवाज़ा खटखटा दिया था। दरवाज़ा खुलते ही मैं अन्दर घुसा और फफक कर रो पड़ा था। एक मिडिल एज महिला मुझे यूं देखकर थोड़ा घबरा गयी थी। मैंने अपना बटुआ उसके सामने निकालकर फेंक दिया था”जितना चाहिए,उतना ले लेना या पूरा ही रख देना। मुझे यहाँ से जाकर वैसे भी मरना ही हैं”मुझे ठीक से याद नहीं कि उस रात मैंने उस औरत के साथ क्या किया मगर इतना याद है कि मैं उसे जानवर की तरह मसल रहा था, नोंच,खसोट रहा था मानो वह पंचिंग बैग हो और मैं अपना सारा गुस्सा,सारी भड़ास उस पर निकाल रहा था। मैं वक्त से, अपनी प्रेमिका से, अपनी किस्मत से, सबसे बदला ले रहा था उस अनजान औरत को प्रताड़ित करके। अगली सुबह जब उठा तो वह औरत मुझे अपनी गोद में लिए बैठी थी एक बच्चे की तरह। उसकी गोद में जाने कब से मेरा सर था और वह बहुत स्नेह से मेरे बालों को सहला रही थी।शायद वह सोयी भी नहीं थी सारी रात।मेरे कपड़े मेरे बदन पर थे। मेरे जागते ही उसने मुझे चाय बनाकर दी। मैं उससे पिछली रात के व्यवहार के लिए माफ़ी माँगना चाहता था मगर उसने मुझे यह कहकर रोक दिया”माफ़ी मांगने के बजाय एक वादा करो कि अब तुम आत्महत्या के बारे में कभी भी नहीं सोचोगे, तुमने मुझसे ज्यादा मुसीबतें नहीं देखी हैं।”

उस स्त्री के व्यक्तित्व में एक अद्भुत तेज़ था। जाने किन हालातों में वह इस धंधे में आई होगी मगर यह तय था कि वह एक असाधारण स्त्री थी। उसके शरीर पर मेरी दी हुई तमाम खरोंचों और नीले पीले निशानों के बावजूद उसने मेरा सर अपनी गोद में रखा था,उसने सुबह मुझे निर्वस्त्र जागने की शर्मिंदगी से बचाया था, उसने मुझे एक नया जीवन दिया था, वह साधारण स्त्री हो ही नहीं सकती थी। वो मेरे पिछले साढ़े चार महीनों की पहली सुबह थी जब मैं उठकर रोया नहीं था।इसके पहले किसी सुबह में मेरा सर किसी की गोद में भी तो न था, किसी ने मेरे बालों में करुणा से उंगलियाँ भी तो नहीं फेरी थीं। मैंने उसे वादा किया और कहा कि मैं उसे इस रात के पैसे नहीं देना चाहता क्योंकि पैसे देते ही मैं एक ग्राहक बन जाऊँगा और मैंने जो पाया उसे अपना अधिकार समझने लगूंगा लेकिन दरअसल यह मेरा अधिकार नहीं था बल्कि मेरे ऊपर उस महिला का एहसान था जिसके लिए मैं जिंदगी भर कृतज्ञ रहना चाहता था। अगर वह मुझसे इस रात के पैसे न लेगी तो मेरे ऊपर एक और उपकार होगा।

उसने 'हाँ' में सर हिलाया और मेरा बटुआ मुझे वापस किया। मैंने उसे पैसे नहीं दिए और वहाँ से चला आया। उसके बाद मैं कभी वहाँ नहीं गया। उस रात मरते मरते मैं जीने की डगर मुड़ गया था। किसी पुल का रास्ता फिर मैंने कभी नहीं खोजा।”

बस यही एक बात है जो आज तक मैंने किसी को भी नहीं बताई है”लड़का बात पूरी करते करते बेहद भावुक हो गया था। आँख की कोर गीली हो चली थी। इस वाकये से स्तब्ध बैठी लड़की की आँखे भी भर आई थीं।

लड़की उठी और बहुत लाड़ से लड़के को अपनी बाहों में भर लिया। बड़ी देर तक लड़के का माथा चूमती रही, उसके बाल सहलाती रही जैसे लड़के के उस खराब वक्त में उस वक्त उसके साथ न हो सकने की भरपाई कर रही हो। जैसे उस वक्त जिस प्यार की कमी रह गयी थी अब उससे अतीत के उन लम्हों को भर देना चाहती हो।लड़का भी एक निरीह छोटे बालक की तरह उससे चिपटा हुआ था।

ये कैसे क्षण आते हैं प्रेमी प्रेमिका के जीवन में जब वे एक दूसरे को अपने निजी स्पेस में आमंत्रित कर अपने सबसे सीले, कमज़ोर और टूटन भरे हिस्से दिखाते हैं। उन पलों में यकायक सारे फासले ख़त्म हो जाते हैं, सारी दीवारें ढह जाती हैं। अगर ये क्षण न आयें तो सारी उम्र साथ गुज़ारने पर भी दो प्रेमी अजनबी ही बने रहते हैं। इन क्षणों से गुजरने के लिए थोड़ा सा साहस चाहिए होता है और बहुत बहुत सारा विश्वास। इन क्षणों से गुज़रना आग से गुज़रना है जिसके बाद या तो सब जलकर नष्ट हो जाता है या तपकर रिश्ता फौलाद सा मजबूत हो जाता है। 

दस मिनिट बाद भय और आशंकाओं की सारी धुंध छंट चुकी थी।दुःख बांटते-बांटते घट भी गया था। लड़का और लड़की अपना सारा बोझ उतारकर एक नए सफ़र पर चलने को तैयार थे।

“अच्छा बताओ तो... तुम्हें इस वाकये में गिल्ट किस बात का है। नशे में प्रोस्तित्युत के पास जाकर रात गुज़ारने का? लड़की ने सवाल किया।

“नहीं... न नशे में होने का और न उसके घर जाकर रात गुज़ारने का। मुझे गिल्ट और शर्मिंदगी उस महिला से जानवराना व्यवहार करने की है। लेकिन सोचता हूँ कि अगर वह वक्त लौट भी आये तब भी मैं शायद फिर वैसा ही व्यवहार कर बैठूँगा। शराब का नशा जब अवसाद में मिल जाता है ना तब ज़हर बन जाता है। इस ज़हर से किसी को तो नुकसान होना ही है। उस पर उतार बैठा तो खुद बच गया। मैं जस्टिफाई नहीं कर रहा खुद के व्यवहार को। बस अपनी कमज़ोरी बता रहा हूँ जो आज भी मेरे भीतर है। मैं उतना मजबूत ही नहीं दरअसल। अब मेरी सारी कमजोरियां तुम्हारे हवाले।”लड़के की पिघलती सी आवाज़ में एक कातरता थी, एक मजबूरी अपने दोषों से न उबर पाने की। साथ ही था समर्पण... खुद को सारे अच्छे बुरे के साथ प्रेमिका को सौंप देने का।

लड़की ने आश्वस्ति भरा हाथ उसकी पसीने भरी हथेली पर रख दिया। कई बार शब्द नाकाफी होते हैं और सिर्फ एक कोमल स्पर्श पर्याप्त।

थोड़ी देर बाद लड़की ने अपना मोबाइल उठाया और कहा कि आज अपने गिल्ट का बोझ भी मैं उतारना चाहती हूँ। मैं आज अपनी दोस्त को सबकुछ बताकर उससे माफ़ी मांगूंगी। इतना कहकर लड़की अपनी दोस्त को फोन लगाने लगी।

“आज मैं भी उस औरत के पास दुबारा जाऊँगा और उसे शुक्रिया कहूँगा। क्या उसके लिए साड़ी पसंद करवाने में तुम मदद करोगी?

“बिलकुल करुँगी और तुम्हारे साथ मैं भी उनका शुक्रिया अदा करने उनके घर चलूंगी।”

लड़का और लड़की हाथों में हाथ लिए चले जा रहे थे। वक्त उन दोनों को जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि अगले मोड़ पर दोनों अपने अपने घर के लिए मुड़ जायेंगे, सिर्फ ये बंधे हुए हाथ चलते रहेंगे साथ बहुत दूर तक, एक जीवन भर दूर तक।