कब आयेंगे अच्छे दिन.. / प्रमोद यादव

Gadya Kosh से
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‘सुरेंदर भैया...एक गरमागरम अदरक वाली सुपर चाय पिलायेंगे? ‘मैंने सुर्रू चाय वाले को थोड़े अदब के साथ कहा तो वह चौंक सा गया.

‘वाह... क्या बात है गुप्ताजी......सुरेंदर भैया?......अचानक सुर्रू से सुरेंदर भैया....’ वह हंसा फिर धीरे से बोला-’ समझ गए....आज भी आप पैसे नहीं देने वाले...अरे भाई...कब तक उधारी की चाय गटकते रहेंगे?...दो महीने हो गए...’

मैंने तुरंत बात काटी- ‘अरे सुरेंदर भैया... जरा धीरे बोलो...लोग सुन लेंगे...इज्जतदार आदमी हूँ... इज्जत का भाजी-पाला तो मत करो...पैसे कहाँ जायेंगे?.जब भी आयेंगे- मिल ही जायेंगे...हम तो सोच के रखे थे कि जब तक पुराना हिसाब चुकता न कर दें...तुम्हारी दूकान में पैर भी नहीं धरेंगे....पर सुबह-सुबह ही अखबार में पढ़ा कि कल शाम नए पी.एम. साहब शपथ ले रहे तो तुमको बधाई देने आ गए...’

‘अरे गुप्ताजी...पी.एम. शपथ ले रहे तो उन्हें दो न बधाई...मुझे तो बस पैसे दे दीजिये....बधाई समझ रख लूँगा...’ सुर्रू ने रट लगा दी.

‘सुरेंदर भैया...आखिर तुम ठहरे न...बुद्धू के बुद्धू...हम सच्ची कहते हैं-तुमको ही बधाई देने आये हैं...हमने तो कसम खा रखी थी kiकि बिना बिल चुकता किये एक कप भी नहीं पियेंगे... पर बधाई के नाम से आ गए...’ मैंने उसे आने का कारण बताया.

‘अच्छा...बताओ भला...मुझे क्यों बधाई? ‘उसने अदरक छीलते पूछा.

‘अरे भैया...क्या तुम्हें मालुम नहीं कि हमारे नए पी.एम.जो बनने जा रहे, वे तुम्हारी ही बिरादरी से हैं...’ मैंने याद दिलाया.

‘हाँ...वो तो जानते हैं...पिछले महीने जब देश में मुफ्त की चाय पीने-पिलाने का दौर चला तब जाना था... कुछ बड़े नेता हमारी दुकान को एक दिन के लिए किराए पर भी उठाये थे...अच्छे पैसे देने का वादा किये पर काम निकलने के बाद छुट्टे ही थमा गए...नेताओं पर से तो मेरा विश्वास ही उठ गया है...’ बड़ी संजीदगी से उसने कहा.

‘सुरेंदर भैया...क्या छोटी-छोटी बातों से दुखी हो रहे हो...अब तो तुम भी बड़े आदमी बन गए हो...जब तुम्हारी बिरादरी का व्यक्ति देश का पी.एम. बन रहा है तो तुम्हें अब छाती छप्पन इंची कर लेनी चाहिए...वे बार-बार कह रहे हैं-” अब अच्छे दिन आने वाले हैं” किसी के आये न आये लेकिन चाय वालों के तो आ ही गए समझो...जल्द ही दिन फिरने वाले हैं...हो सकता है...कल ही फिर जाए...शपथ ग्रहण के बाद कहीं चाय को”राष्ट्रीय पेय” घोषित न कर दें...मैंने यूं ही फेंक दिया.

‘राष्ट्रीय पेय? ‘वह चौंका.

‘हाँ... राष्ट्रीय पेय...जैसे राष्ट्रीय गीत होता है-”जन-गण-मन”...राष्ट्रीय पकछी मोर...राष्ट्रीय पशु-शेर...राष्ट्रीय खेल- हाकी...आदि...आदि...’

‘तो इससे क्या होगा गुप्ताजी जी?’ उसने कौतुहल से पूछा.

‘अरे...राष्ट्रीय पेय घोषित होगा तो देश भर के लोग देश प्रेम की भावना के साथ केवल चाय ही पियेंगे...काफी,कोला,फेंटा,बीयर,व्हिस्की पीना छोड़ देंगे...तुम लोगों की आमदनी चौगुनी-छः गुनी हो जायेगी...तुम सब शून्य से शिखर तक पहुँच जाओगे...’

‘एक बात बताओ गुप्ताजी...हाकी हमारा राष्ट्रीय खेल है ना? ‘

‘हाँ...बिलकुल है...’ मैंने तुरंत जवाब दिया.

‘तो फिर पूरे देश भर के लोग क्रिकेट में क्यों झपाये रहते हैं? कहीं हमारा हाल भी हाकी जैसे तो नहीं हो जाएगा? ‘वह दुखी सा गया.

‘अरे...बिलकुल नहीं सुरेंदर भैया...ऐसा कदापि नहीं होगा...तुम लोग पी.एम. को ज्ञापन देकर बाकी के पेय को” इनज्युरिअस टू हेल्थ” की श्रेणी में डलवा देना...’

‘हाँ...ठीक कहते हैं...जरा इधर केतली का ख्याल रखना...मैं अग्रवालजी,शर्माजी और सिन्हा साहब को चाय देकर आता हूँ...बड़ी देर से खड़े हैं...फिर आपको देता हूँ...’ इतना कह वह ट्रे लिए आगे बढ़ गया.मैं केतली की ओर ताकता रहा.

वह लौटा तो मैंने अपनी चाय की फरमाइश की...उसने चाय थमाते कहा- ‘गुप्ताजी...शपथ समारोह कब है? क्या हम भी उसमें शरीक हो सकते हैं? ‘

‘हाँ...हाँ...क्यों नहीं...इस बार तो यह समारोह नए पी.एम. के आग्रह पर राष्ट्रपति भवन में न होकर रामलीला मैदान में होने जा रहा है ताकि आमजन भी इसमे हिस्सा ले सके...सब कुछ अपनी आँखों-कानों से देख-सुन सके...तुमको तो जाना ही चाहिए...’

‘पर गुप्ताजी...दूकान छोड़ कैसे जाएँ...इसके चलते तो आज तक शहर छोड़ अपने गाँव तक नहीं जा पाए...ना मामुल कैसे होंगे हमारे दद्दाजी...बूढी बिब्बो चाची...और हमरे गजाधर भैया.’

‘अरे भाई...गाँव को छोडो...अभी तो फिलहाल दिल्ली जरुर जाओ...तुम लोगों को देख पी.एम. काफी खुश होंगे...’

‘लेकिन हम तो कभी दिल्ली गए ही नहीं भैया...भटक जायेंगे वहां....कोई जानकार जाए तो सोच सकते हैं...आप कभी गए क्या? ‘उसने मुझसे मुखातिब होते पूछा.’

‘...हां...कई बार...’ मैंने यूं ही फिर फेंक दिया- ‘स्कूल के दिनों से जाता-आता रहा हूँ...’

‘तो फिर आप साथ चलें तो हम चलें...पर शपथ ग्रहण तो कल शाम ही है न...इतनी जल्दी पहुंचेंगे कैसे? ट्रेन में तो पूरे चौबीस घंटे लगते हैं...’

‘अरे...तो प्लेन से चलो न...कल दोपहर की फ्लाईट है इंडिगो की...समारोह के पहले ही आराम से पहुँच जायेंगे...’

‘पर गुप्ताजी...प्लेन का किराया तो बहुत अधिक होता है...हम चाय वालों के लिए पी.एम. ने कोई रियायत नहीं किया क्या? ‘

‘फिलहाल तो नहीं...एक बार तो जाना है सुरेंदर...क्या मंहगी और क्या सस्ती...’ मैंने समझाया.

‘तो आप साथ चलेंगे न?’ उसने मेरी ओर निहारा.

‘मेरी माली हालत तो देख ही रहे हो... तुम्हारे चाय के पैसे तक....’

उसने तुरंत बात काटते कहा- ‘मत देना भई. अब मागूंगा भी नहीं... और आपका दिल्ली का पूरा खर्च भी उठाऊंगा...कल सुबह आकर एक गरमागरम चाय पीजिये और दो टिकट बुक करा ले आइये...दोपहर की फ्लाईट से निकल जायेंगे...’ इतना कह उसने एक चाय और दी...मैं ख़ुशी के मारे एक सांस में ही गटक गया.

दूसरे दिन सुबह उसे चेताते गया कि चाय की एक केतली जरुर रख लेना...शायद वहां कुछ काम आ जाए... पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार हम समय से काफी पूर्व रामलीला मैदान पहुँच गए.अब सुरेंदर की जिद कि सबसे आगे वाली कुर्सी में (वी.वी.आई.पी.वाले में ) बैठेंगे...उसे काफी समझाया की सुरक्छा व्यवस्था बेहद तगड़ी है...वहां तक घुस पाना मुमकिन नहीं...पर वह जुगाड़ करने की जिद में अडा रहा....चाय की केतली पकडे इधर-उधर डोलता रहा.

ज्योंही पी.एम. साहब मंच पर चढ़े...जनता को”विश” कर हाथ लहराए. सुरक्छा व्यवस्था थोड़ी ढीली हो गई...मैंने आव देखा न ताव उसे सामने की पहली पंक्ति की ओर जोर से धकेल दिया...ज्योंही वह केतली के साथ आगे गिरा कि कई कमांडो ने दौड़कर उसे घेर लिया...तभी मंच से पी.एम. साहब ने इशारा किया कि छोड़ दें. बैठने दे...सारे कमांडो प्रेम के साथ उसे सामने वी.आई.पी.की”रो” में बिठा दिए...सुरेंदर खुशी से पागल हो गया...पी.एम. के दरियादिली का कायल हो गया....

ज्यों ही”जन-गन-मन” के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ पी.एम. साहब मंच से उतरे और सीधे सुरेंदर के पास पहुँच उसके कंधे में हाथ रख कुछ बतियाने लगे... फिर उसके साथ फोटो भी खिंचवाए...एक साथ ढेर सारे कैमरों के फ्लेश चमके...सुरेंदर निहाल हो गया...दुसरे दिन सुबह आठ बजे की ट्रेन से हम अपने शहर के लिए रवाना हो गए...रास्ते भर सुरेंदर पी.एम.के तारीफ के पुल ही बांधते रहा...

दुसरे दिन सुबह जब स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो” जिंदाबाद-जिंदाबाद” के नारे ने चोंका दिया...एक भारी भीड़ हमारी ओर बढती नजर आ रही थी...लोगों के हाथों में फूल-माला,गुलाल आदि थे...जैसे ही डिब्बे से उतरे-सुरेंदर को उन्होंने फूलों से लाद दिया... गलती से कुछ फूल-माला मेरे गले भी पड़े... उसे कंधे में उठा,”सुरेंदर भैया...जिंदाबाद” के नारे लगाते जुलुस की शक्ल में शहर घुमाते चाय की दुकान में लाकर उतारे.सुरेंदर हैरान था कि उसकी दूकान कौन चला रहा...उतरा तब मालुम हुआ की उसके गाँव के दद्दाजी,बिब्बो चाची और गजाधर भैया रात को टी.वी. में पी.एम. के साथ सुरेंदर को देख शहर आ गए...चाय की दूकान वे ही खोलकर बैठे थे...सुरेंदर के आग्रह पर मैंने एक कप चाय पी और विदा लिया.सुरेंदर ने तब कहा- ‘आप ठीक कहते थे गुप्ताजी...अच्छे दिन आने वाले हैं...देखो...मेरे तो आ भी गए...मेरे अपने लोग गाँव से शहर आ गए...’

घर आकर मैंने दरवाजा खोला तो देखा- ढेर सारे अखबार बिखरे पड़े थे...न जाने कौन डाल गया था .कुछ अंग्रेजी के भी थे...सबके मुखपृष्ठ पर सुरेंदर और पी.एम. की तस्वीरें छपी थी-केतली के साथ वाला....एकबारगी मुझे सुरेंदर से जलन सी होने लगी.... बीस सालों से कलम घिस रहा हूँ पर किसी अखबार ने आज तक पासपोर्ट फोटो भी नहीं छापा... सोचता हूँ- उसके तो आ गए...मेरे कब आयेंगे अच्छे दिन...