कमाल चूहे का / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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एक गांव था। गांव में राधा रहती थी। राधा की एक बच्ची थी। बच्ची छोटी थी। उसका नाम नेहा था। जब नेहा को भूख लगती, तो वह रोने लगती। राधा उसे दूध दे देती। नेहा चुप हो जाती। गांव में बहुत काम होता है। महिलाएं घर के अलावा खेत में भी काम करती हैं। काम करते-करते सुबह से शाम हो जाती है। शाम के बाद रात आ जाती है, पर काम है कि कभी पूरा नहीं निपट पाता। रात कब ढल जाती है पता ही नहीं चलता।

एक दिन की बात है। राधा घर की सफाई में लग गई। उसने नेहा के लिए दूध गरम किया। दूध गिलास में भरा। तभी नेहा सो गई। राधा ने नेहा के सिरहाने पर दूध से भरा गिलास रख दिया। नेहा जब भी जागती है तो उठ कर खुद ही दूध पी लेती है। राधा अपने काम में लग गई। तभी वहां एक चूहा आ गया। उसने गिलास में रखा हुआ दूध पी लिया। नेहा जाग गई। उसने गिलास खाली देखा। नेहा रोने लगी। राधा दौड़कर आई। उसने भी गिलास देखा। खाली गिलास देखकर राधा उदास हो गई।

राधा चिल्लाई- “मेरी बच्ची के हिस्से का दूध कौन पी गया? अब और दूध कहां से लाऊँ। बड़ी मुश्किल से तो एक गिलास दूध जुटाया था।”

चूहा छिप कर सब सुन रहा था। वह भी उदास हो गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने अपने आप से कहा-”मैंने नेहा के हिस्से का दूध पीकर गलती की है। कुछ भी हो। मुझे एक गिलास दूध कहीं से लाना ही होगा।”

चूहा ग्वाले के पास गया। ग्वाले से बोला-”मुझे थोड़ा सा दूध चाहिए। एक बच्ची भूखी है।”

ग्वाले ने कहा-”मेरे पास दूध कहां? मैं तो गाय से दूध लेता हूं।”

चूहा गाय के पास गया। चूहे ने गाय से दूध मांगा।

गाय ने कहा-”कई दिनों से मैंने हरी घास नहीं खायी। दूध कहां से लाऊँ। हरी घास होती तो मैं दूध देती।”

चूहा हरी घास के पास गया। उसने हरी घास से बात की।

हरी घास ने कहा,”पहले मैं पूरे मैदान में उगती थी। पानी नहीं है। मैं खुद पीली पड़ गई हूं। नदी के पानी से मैं हरी-भरी रहती थी।’

चूहा नदी के पास गया। नदी को सारा हाल बताया।

नदी ने कहा, “मैं खुद ही सूखती जा रही हूं। हिमालय में जमी बर्फ से मैं भरी रहती थी। पता नहीं क्यों हिमालय मुझसे रूठ गया है।”

चूहा हिमालय से जाकर मिला। उसने हिमालय को सारा किस्सा सुनाया।

हिमालय बोला,-‘अब बादल ही नहीं बरसते। जब बादल नहीं तो बर्फ नहीं। पहले मैं बारह महींने बर्फ से ढका रहता था। अब तो बर्फ ही नहीं पड़ती। पता नहीं बादल क्यों नाराज है।”

चूहा बादल के पास गया। बादल ने चूहे की सारी बात सुनी। वह बोला,”मैं भी क्या कर सकता हूं। जहां जंगल ही नहीं बचा, वहां मैं कैसे बरस सकता हूं? इंसानों ने जंगल काट-काट कर इमारतंे बना दी हैं। इंसानों से कहो कि वे पेड़ लगाएं।’

बेचारा चूहा सोच में पड़ गया। उसने बादल से कहा,”इंसान तो बहुत खतरनाक होते हैं। मुझे इंसानों से डर लगता है।’

बादल बोला,”इंसान तो जल, थल और नभ को नुकसान पंहुचा रहे हैं। अब तो बच्चे ही कुछ कर सकते हैं। तुम छोटे-छोटे बच्चों से दोस्ती करो। नन्हें-मुन्ने बच्चे ही पेड़ लगायेंगे। वे पेड़ों की देखभाल भी करेंगे।”

चूहे ने बच्चों से दोस्ती कर ली। नन्हें-मुन्ने बच्चों ने खूब सारे पेड़ लगाए। पेड़ों की देखभाल की। पेड़ हरे-भरे हो गए। आसमान में बादलों का जमघट लग गया। बादलों ने हिमालय में जम कर बर्फबारी की। हिमालय बर्फ से ढक गया। नदी पानी से भर गईं। खेत-खलिहान और मैदानों को पानी मिल गया।

मैदानों में हरियाली छा गईं। गाय को हरी घास खाने को मिलने लगी। गाय दूध देने लगीं। ग्वाले दूध बेचने लगे। घर-घर में दूध पंहुचने लगा। नन्हें-मुन्नों का दूध मिलने लगा। चूहा दौड़ा और राधा के घर जा पंहुचा। नेहा ने दोनो हाथ से गिलास पकड़ा हुआ था। वह दूध पी रही थी। राधा अपने काम में लगी हुई थी। चूहा खुश हो गया। वह नाचने लगा। नेहा भी चूहे को देखकर नाचने लगी।