करनी और कथनी / गोवर्धन यादव

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सरला रंग में धुली हुई चांदनी की तरह, तो रूप में वह खिले हुए कमल के भांति थी, जितनी सुंदर वह थी, उतनी ही कुशाग्र बुध्धि की स्वामिनी भी थी, उसने बी, ए, में संपूर्ण प्रदेश में टाप पोजिशन बनायी थी, सुंदरता और बुध्दि के संजोग को लेकर वह समाज में चर्चा का विषय बन चुकी थी

उसके लिए अब रिश्ते आने लगे थे, पिता ने एक स्वस्थ सुंदर युवक जो एक अधिकारी भी था, के साथ उसका रिश्ता तय कर दिया, इस तरह वह अपने ससुराल आ पहुँची, सास-ससुर उससे अत्यधिक ही स्नेह रखते थे, अच्छा ससुराल और योग्य पति पाकर वह निहाल हो गई थी, जल्दी ही वह एक बच्चे को जन्म देने वाली थी, इस ख़बर को सुनकर उसके मायके और ससुराल वाले की खुशियाँ देखते ही बनती थी, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था, एक दिन वह अपने पति अजय के साथ अपनी गाडी में सवार होकर किसी ख़ास परिचित के पुत्र के विवाह में शरीक होने के लिए गई हुई थी, घर लौटते समय एक ट्रक की टक्कर से बचने के लिए अजय ने अपनी गाडी कॊ जैसे-तैसे बचा तो लिया, लेकिन सामने एक गहरा नाला था, जिसके बारे में वह अनभिज्ञ था, जा समाया, भीषण एक्सीडेंट के चलते उसका प्राणान्त हो गया, सरला बुरी तरह घायल हो गई थी, उसे बेहोशी के आलम में अस्पताल में भरती करवाया गया, वहाँ उसकी सर्जरी की गई, वह तो किसी तरह बच गई, लेकिन बच्चे को नहीं बचाया जा सका था, उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इस अवस्था में से होकर भी गुजरना पड सकता है, एक ओर अजय का, अचानक इस तरह चले जाना और बच्चे के विछोह ने उसे बुरी तरह झझकोर कर रख दिया था, पिता समझाते, माँ समझाती, ससुर उसे सांत्वना देते, लेकिन उसका दुख कम होने का नाम नहीं ले रहा था, एक दिन उसके पिता उसे लिवा लाने के लिए आ पहुँचे, उनकी सोच थी कि जब तक वह अपने ससुराल में रहेगी, अजय की याद वह भुला नहीं पाएगी और बच्चे के न रहने का ग़म उसे सदा सालते रहेगा, यदि वह अपने मायके आ जाएगी तो संभव है, वह सब कुछ भूलकर एक नया जीवन जी सकेगी, उनकी यह भी सोच थी कि अब वह अपने ससुराल वालों से उतना सम्मान और प्यार भी नहीं पा सकेगी, अपने मन की पीडा उजागर करते हुए जब उसके पिता ने, अपने समधी के सामने उसे लिवा ले जाने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने पलटकर कहा:-प्रभुदयालजी, माना कि सरला आपकी बेटी है, जिस दिन आपने उसका कन्यादान मेरे बेटॆ से कर दिया उस दिन से वह मेरी बेटी हो गई, अब उसके बारे में अच्छा-बुरा जो भी सोचना है, वह मैं सोचुंगा, मैंने सोच रखा है कि सरला, अब अपनी आगे की पढाई करेगी और उसी पोस्ट पर बैठेगी, जिसे अजय खाली कर गया है, अतः आपसे मेरी प्रार्थणा है कि मन से ग़लत विचार निकाल दीजिए कि हम उसे बोझ समझ रहे हैं, एक बेटी अपने पिता का बोझ कैसे हो सकती है, सुनते ही प्रभुदयालजी की आँखॊं में छाया कुहासा, अश्रु बन कर झर रहा था।