करवा चौथ का चांद जादूगर है / जयप्रकाश चौकसे

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करवा चौथ का चांद जादूगर है
प्रकाशन तिथि : 27 अक्टूबर 2018


भारतीय कथा फिल्म के प्रारंभिक दशक में पौराणिक आख्यानों से प्रेरित फिल्में बनती रहीं। शेयर मार्केट के परम्परागत खिलाड़ी सरदार चंद्रलाल शाह शेयर बाजार के दफ्तर से आकर दोपहर चार बजे से अपने फिल्म निर्माता भाई के दफ्तर में बैठते थे। उन्होंने 'गुण सुंदरी' नामक पहली पारिवारिक फिल्म का निर्माण किया। पारिवारिक फिल्मों में तीज-त्योहार के दृश्य रचे गए। आज फिल्मों के पात्र आधुनिक वस्त्र धारण करते हैं। टेक्नोलॉजी के मोबाइल जैसे खिलौनों से खेलते हैं, इंटरनेट से इठलाते हैं परंतु उनकी विचार प्रक्रिया आज भी पौराणिकता में लिपटी हुई है। आधुनिकता का अर्थ कपड़ों की किसी तरह की स्टाइल से नहीं जुड़ा है वरन् उसका अर्थ है तर्क सम्मत विज्ञान केंद्रित विचार क्षमता।

बहरहाल आज करवा चौथ का पर्व मनाया जा रहा है। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास करेंगी और चांद देखने के पश्चात ही कुछ जल और भोजन ग्रहण करेंगी। क्या करवा चौथ के दिन पुरुष अपनी पत्नी की लंबी आयु के लिए उपवास रखते हैं? हमारी सोच का केंद्र यही रहा है कि कमाने वाले पुरुष की आयु बढ़े ताकि उसकी कमाई से परिवार का गुजर-बसर होता रहे। अब तो लाखों महिलाएं काम करके धन कमाती हैं और घर बैठे भी कढ़ाई-बुनाई सिखाकर धन अर्जित करती हैं। शिक्षिका घर पर बच्चों को पढ़ाकर धन कमाती हैं। अचार-पापड़ का लघु उद्योग भी संचालित करती हैं। इन तथ्यों के बावजूद वह दोयम दर्जे के नागरिक ही बनी रहती है।

सलीम-जावेद ने आक्रोश की छवि गढ़कर सफल फिल्में लिखी परंतु उनके बहुत पहले पंडित मुखराम शर्मा ने लगातार सफल सार्थक पारिवारिक फिल्में लिखी हैं। पंडित मुखराम शर्मा भी निर्माता को संवाद सहित संपूर्ण पटकथा देते थे और उन्होंने निर्माता से कभी यह नहीं कहा कि लेखन के लिए पांच सितारा होटल में उनके लिए कमरा लिया जाए। अगर पटकथा लेखन का इतिहास लिखा जाए तो पंडित मुखराम शर्मा शिखर स्थान पर होंगे। उसी परम्परा में ख्वाजा अहमद अब्बास भी संपूर्ण पटकथा लिखते थे। आजकल चार-पांच लेखक मिलकर पटकथा का चरबा बनाते हैं। पंडित मुखराम शर्मा की परिवार केंद्रित फिल्मों की धारा कुछ समय के लिए गायब हो गई थी और आक्रोश की फिल्में सिनेमा के परदे को रक्त रंजित कर रही थीं। सूरज बड़जात्या ने परिवार केंद्रित फिल्मों को पुनः अवतरित किया। भारत को अनंत देश इसलिए कहा जाता है कि यहां कभी किसी धारा का अंत नहीं होता और इसी तर्ज पर कुरीतियां और अंधविश्वास भी कभी नष्ट नहीं होते।

ज्ञातव्य है कि ताराचंद बड़जात्या ने अपना कॅरिअर दक्षिण भारत में निचले पायदान से प्रारंभ किया था और दक्षिण में बनी फिल्मों के हिंदी संस्करण का वितरण उन्होंने प्रारंभ किया। अपनी अखिल भारतीय वितरण व्यवस्था को सुगठित करने के पश्चात उन्होंने फिल्म निर्माण में अशोक कुमार, मीना कुमारी अभिनीत 'आरती' से कदम रखा। उनकी संस्था राजश्री ने पारिवारिक फिल्मों में तीज-त्योहार के दृश्य गूंथे। सूरज बड़जात्या की सफलता से प्रेरित आदित्य चोपड़ा और करण जौहर की फिल्मों में करवा चौथ के दृश्य रचे गए। मायथोलॉजी से प्रेरित फिल्म उद्योग ने कुछ मायथोलॉजी का सृजन भी किया। जैसे 'जय संतोषी मां' की सफलता के बाद सारे देश में संतोषी मां के व्रत रखे जाने लगे। इस तरह करवा चौथ की महिमा भी सर्वत्र व्याप्त हो गई। राज कपूर और कृष्णा कपूर अपने अमेरिका प्रवास में कुछ दिनों के लिए न्यूयॉर्क में ठहरे थे। राज कपूर के घनिष्ठ मित्र हॉलीवुड स्टार डैनी के ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। डैनी के का पैशन था स्वादिष्ट भोजन पकाना।

कपूर दंपती को रात 8:00 बजे डैनी के घर पहुंचना था परंतु करवा चौथ होने के कारण कृष्णाजी चांद दर्शन के बाद ही अपना उपवास पूरा कर भोजन कर सकती थीं। बहुमंजिला इमारतों के कारण चांद आधी रात को ही शहरवासियों को दिख पाता था। राज कपूर अपनी पत्नी को कार में बैठाकर शहर के बाहर ले गए ताकि वह चांद के दर्शन कर सकें। इस कारण वे अपने मेजबान के घर दो घंटे विलंब से पहुंचे। डैनी के बहुत खफा हुए परंतु राज कपूर ने उन्हें करवा चौथ की बात विस्तार से सुनाई तब डैनी के की नाराजगी दूर हो गई। डैनी के ने इस आशय की बात कही कि 'धन्य है आपकी परम्पराएं की पत्नियां पति के लंबे जीवन के लिए उपवास करती हैं। करवा चौथ केंद्रित लेख का समापन शैलेंद्र रचित गीत से करना जरूरी है- 'दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से ये बात क्या है, ये राज़ क्या है कोई हमें बता दे, धीरे से उठकर, होठों पे आया ये गीत कैसा, ये राज़ क्या है कोई हमें बता दे, हम खो चले, चांद है या कोई जादूगर है या मदभरी, ये तुम्हारी नज़र का असर है सब कुछ हमारा, अब है तुम्हारा ये बात क्या है, ये राज़ क्या है ' अत: करवा चौथ पत्नी के संपूर्ण समर्पण और आस्था का उत्सव है।