करवा चौथ व्रत कथा 1 / गद्य कोश

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एक साहुकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहुकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होनें अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया- “भाई! अभी चाँद नही निकला है। उसके निकलने पर अर्ध्य देकर भोजन करूँगी।“ बहन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर के बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी में से प्रकाश दिखाते हुए उन्होने बहन से कहा- “बहन! चाँद निकल आया है, अर्ध्य देकर भोजन जीम लो।“ यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा के अर्ध्य दे लो परन्तु वे इस काण्ड को जानती थी उन्होने कहा कि “बहन! अभी चाँद नही निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे है।“ भाभियो की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान नही दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख़्त बीमार हो गया और जो कुछ घर मे था उसकी बीमारी मे लग गया। जब उसे अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। उसने गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया।

श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आर्शीवाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया। इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान् गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान दिया। उसे आरोग्य करने के पश्चात् धन-सम्पति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेगे वे सब इस प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जायेगे।

गणेशजी विनायकजी की कहानी

एक अन्धी बुढिया थी जिसका एक लड़का था और लड़के की पत्नी थी। वह बहुत गरीब थी। वह अन्धी बुढिया नित्यप्रति गणेशजी की पूजा करती थी। गणेशजी साक्षात् सन्मुख आकर कहते थे कि बुढिया माई तू जो चाहे माँग ले। बुढिया कहती थी मुझे माँगना नही आता सो कैसे और क्यूं माँगू। तब गणेशजी बोले कि अपने बहू-बेटे से पूछकर माँग लो। तब बुढिया ने अपने पुत्र और पुत्रवधू से पूछा तो बेटा बोला कि धन माँग ले और बहु ने कहा पोता माँग ले। तब बुढिया ने सोचा की बेटा बहू तो अपने-अपने मतलब की बाते कह रहे है अतः उस बुढिया ने पडोसियों से पूछा तो पड़ोसियो ने कहा कि बुढिया तेरी थोडी-सी जिन्दगी है क्या माँगे धन और पोता, तू तो केवल अपने नेत्र माँग ले जिससे तेरी शेष ज़िन्दगी सुख से व्यतीत हो जाये। उस बुढिया ने बेटे और पडोसियो की बात सुनकर घर मे जाकर सोचा, जिससे बेटा बहु और सबका भला हो वह भी माँग लूँ और अपने मतलब की चीज भी माँग लूँ। जब दूसरे दिन श्री गणेशजी आये और बोले, बोल बुढिया क्या माँगती है हमारा वचन है जो तू माँगेगी सो ही पायेगी। गणेशजी के वचन सुनकर बुढिया बोली- हे गणेशराज! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे नौ करोड़ की माया दे, नाती पोता दे, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आँखों में प्रकाश दें और समस्त परिवार को सुख दें और अन्त में मोक्ष दे। बुढिया की बात सुनकर गणेशजी बोले बुढिया माँ तूने तो मुझे ठग लिया। खैर जो कुछ तूने माँग लिया वह सभी तुझे मिलेगा। यूँ कहकर गणेशजी अन्तर्ध्यान हो गए।

हे गणेशजी जैसे बुढिया माँ को माँगे अनुसार सब कुछ दिया है वैसे ही सबको देना और हमको देने की कृपा करना।

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