कर्मिष्ठा / अमित कुमार झा

Gadya Kosh से
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श्रुति को आज पहली बार पीरियड्स आए थे। लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि ये सब क्या हो रहा है। सुबह से ही ब्लीडिंग हो रही थी और पेट में जानलेवा दर्द हो रहा था।

तीन वर्ष पहले एक सड़क हादसे में उसके माँ की मृत्यु हो गई थी। तब से घर सँभालने का जिम्मा इस नन्हीं-सी जान पर आ पड़ी। पिता की इकलौती संतान थी।

एकनाथ जी अपनी बेटी पर जान छिड़कते थे। उसकी हर ख्वाहिश पूरी होती थी, लेकिन पढ़ाई के लिए वे कोई बहाना नहीं सुनना चाहते थे।इस मामले में वे बड़े सख्त थे।

श्रुति सोच रही थी कि बाबूजी को पेटदर्द के बारे में बता दिया जाय। ताकि वे कुछ दवाई वगैरह भी ला दें। एक और बात कि मन भी बड़ा खिन्न-सा लग रहा था। इस वजह से विद्यालय जाने की भी इच्छा नहीं थी। लेकिन पता नहीं आज सवेरे-सवेरे एकनाथ जी कहीं चले गए थे।

साढ़े दस बजे जब वह लौटे और बिटिया को घर के चौखट पर मुरझाए हुए देखा तो पूछा- "क्या हुआ बेटी आज इसकूल नहीं गयी?"

"आज सुबह से ही पेट बहुत दर्द कर रहा है।"— श्रुति ने पेट पर हाथ रखकर कहा।

एक मिनट के लिए तो एकनाथ जी को लगा कि वह मज़ाक कर रही है, मगर जब उन्होंने उसकी आँखें देखी तो लगा कि नहीं सचमुच पेट में दर्द है। उन्होंने अपने हाथ से उसे एक गिलास पानी पिलाया और और प्रेम से बोले- "बेटा! ये दर्द वगैरह तो होता रहेगा, चल तुझे स्कूल पहुँचा देता हूँ। शाम में हाट से दवा ला दूँगा।"

श्रुति बताना चाह रही थी कि उसके ज़िस्म से खून भी निकल रहा है। मगर हिम्मत न बन पड़ी। हिम्मत क्या; बाबूजी से अपने गुप्तांगों के बारे में वह कैसे बात कर सकती थी? बचपन से ही उसे बताया गया है कि ये सब गंदी बाते हैं। मलद्वार, योनि और स्तन शरीर के गंदे अंग माने गए हैं। छि: छि: वह इस बारे में बाबूजी से बात करने की सोच भी नहीं सकती।

उसने हाँ में सिर हिलाया और अपने कमरे में चली गई. वहाँ जाकर एक सूती कपड़े को लँगोट की आकृति में फाड़ा और अपनी योनि को कसकर अपने कमर में बाँध लिया, ताकि रक्त का एक भी कतरा उसके पोशाक को छूने न पाए.

श्रुति तैयार होकर बाहर आई और मुस्कुराते हुए बाबूजी से बोली— "बाबूजी! आज मुझे बहुत देर हो गई है, मैडम डाँटेगी। प्लीज, आप स्कूल तक पहुँचा दो न।"

एकनाथ जी ने उसे उसकी कक्षा तक पहुँचा दी। मैडम को कह दिया कि घर में कुछ काम था, इसीलिए देर हो गई. और वे चले गए.

इधर मैडम ने श्रुति का चेहरा देखा तो वह सब समझ गईं। उन्होंने पूछा— "घर में काम था या पेट दर्द कर रहा है?"

श्रुति मुस्कुराते हुए जाकर अपनी सीट पर बैठ गई. इसी बीच उसकी आँखों से एक बूँद आँसू उसके किताब पर पड़ी। वह चौंकी और बस इतना ही बोल सकी — "माँ"।