कर भला तो हो भला / संतोष भाऊवाला

Gadya Kosh से
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जीवन रेलगाड़ी से दस लाख रुपये का तकादा लेकर दिल्ली से कोलकात्ता जा रहा था। बहुत ही बैचनी हो रही थी। रुपये ठीक से रखे या नहीं, बार बार उन्हें संभाल रहा था जीवन भर की जमा पूंजी भी जमा कर ले, तब भी न कमा पायेगा इतना….

रात को सोने से पहले तकिये के नीचे छुपा कर सोया, लेकिन आँखों में नींद ही नहीं। चिंता सताए जा रही थी, कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाये। आस पास देखा सभी खर्राटे मार कर गहरी निद्रा में सो रहे थे, लेकिन उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी। सहसा... ट्रेन रूक रूक कर घर्र घर्र की आवाज के साथ धक्के खाने लगी, वह कुछ समझ पाता इतने में ही सर जाकर जोर से डब्बे की दीवार से जा टकराया, दिन में ही तारे नजर आने लगे, कुछ समझने की स्थिति में आया तो देखा कि उसका डब्बा लटका हुआ है कहीं, नीचे पानी दिख रहा था, दिमाग चक्कर खाने लगा, कि ये क्या हो गया। धीरे धीरे हिम्मत करके ऊपर की ओर से जो रास्ता नजर आया, उससे निकलने की कोशिश करने लगा। निकलने ही वाला था कि इतने में पैसा याद आया, बैग खोजने की सोच ही रहा था कि कई लोग उसे धक्का देने लगे, कहने लगे, “रास्ता छोडो, हमें भी बाहर निकलना है, डब्बा कभी भी पानी में गिर सकता है”। क्या करता ..बुझे मन से बाहर निकल गया। एक एक करके सभी बाहर निकल गये। उसने देखा, अब कोई भी बाहर नहीं निकल रहा तो वापस डब्बे के अंदर जाने लगा, सभी ने बहुत समझाया, लेकिन नहीं, उसने सोचा जल्दी से जाकर ले आऊंगा, नहीं तो इतना पैसा जिंदगी भर कटौती करूंगा तब भी भरपाई न हो सकेगी। हिम्मत जुटा कर नीचे उतरा धीरे से, अपना बैग खोजने लगा, जैसे ही बैग दिखा, उठाने को झुका तो देखा वहां एक बूढ़ा आदमी सीट के नीचे फंसा हुआ है, निकल नहीं पा रहा है। उसके शरीर पर कोई बड़े सी लोहे की पटरी सी गिरी पड़ी थी, जिसे वह उठा नहीं पा रहा था। पैरो से मजबूर किसी के सहारे को तलाश रहा था। एक बार मन में आया उसे बचाना चाहिए, लेकिन उसे क्या, वह तो पैसा लेने आया है, वर्ना पूरी जिंदगी भी नहीं चूका पायेगा, पत्नी बच्चों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। ये तो बूढ़ा है कुछ दिनों की जिंदगी बची है। लेकिन वो आदमी कराह रहा था, दयनीय दृष्टि से उसकी ओर ताक रहा था, जीवन सोच में पड़ गया, क्या करे, रुपयों को संभाले या उसकी जान बचाए, कभी रूपया हावी हो रहे थे, तो कभी इंसानियत। समय बहुत कम था, डब्बा पानी की गोद में उसे लेकर कभी भी समा सकता था, इसी उहापोह में मानवता जीत गई और मन कड़क करके बैग पर एक विवशता भरी निगाह डाल कर उसकी सहायता करने लगा। उसे करीब करीब गोद में उठा कर चलने लगा, फिर से बैग देखा, लेकिन हाथ में उठा नहीं सकता था। जीवन उस आदमी को लेकर जैसे ही बाहर निकला, डब्बा पानी में गिर गया, जीवन का कलेजा मुहं को आ गया। एक तरफ जहाँ उस आदमी को बचाने का आत्मसंतोष था, दूसरी ओर पूरी जिंदगी की चिंता ...लेकिन अब क्या हो सकता है यह सोच कर वह बुझे मन से घर की ओर जाने लगा, तो देखा वह आदमी उसे कुछ इशारा कर रहा है। उसने देखा, उसके हाथ में बैग है खून से लथपथ, ध्यान से देखा, अरे ये तो मेरी बैग है। तब उसने बताया, जब वो उसे गोद में उठाये निकल रहा था, तब एक बार डब्बा थोडा हिला, उस समय लडखडाने से गोद में से वह फिसल सा गया था, उसी समय वो बैग उसके हाथ से टकराई और उसने उसे कस कर पकड़ लिया था, उसकी अनुभवी आँखों ने भांप लिया था कि जरूर इसमें उसके काम की कोई चीज है, लेकिन फिर भी उसने मानव धर्म को चुना, उसकी सहायता की, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। उस समय सही निर्णय ले पाना कितना कठिन होता है, पर उसने कर दिखाया, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर।

कहते हैं ना ... कर भला तो हो भला