कवि कथा अनन्ता / कमलानाथ

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कवि एक अद्भुत प्राणी होता है जो लगभग सभी देशों में पाया जाता है। परिभाषा और गुणों के अनुसार इसे बुद्धिमान, चिन्तक, विचित्र, विवेकशील, होशियार, सनकी और न जाने किन किन विशेषणों से नवाज़ा जाता है। वैसे तो इस मामले में हर जगह सभी कवि एक जैसे ही होते हैं पर कई बार सामाजिक और भौगोलिक स्थिति के अनुसार उनके शौक़ नए आयाम अख़्तियार कर लेते हैं। ऐसे में देखा गया है कि स्थानीय सामाजिक उदारता के कारण विदेशी कवियों को कुछ ऐसी अतिरिक्त ‘सुविधाएँ’ प्राप्त होजाती हैं जो कुछ ही भाग्यशाली भारतीय कवियों को नसीब होती हैं। इन शाही ‘सुकर्मों’ के अलावा कुछ कवियों के शौक़ भी विचित्र होते हैं जिनमें से कई भारतीय कवियों के बारे में नहीं सुने गए हैं।

ऐसे ही कुछ विदेशी कवियों के कार्यकलापों की प्रशंसाऔर उनकी विशिष्ट और आदर्श अनुकरणीय आदतों पर रिसर्च का ब्यौरा नीचे दिया जारहा है।

शुरुआत हम महान ब्रिटिश कवि लॉर्ड बायरन से कर रहे हैं जो एक ‘विशेष श्रेणी’के अंतर्गत ही पैदा हुए थे। दरअसल वे पैदायशी लंगड़े थे। आगे चल कर कविताओं में स्वच्छंदतावाद की प्रमुख हस्ती होने के नाते व्यक्तिगत जीवन में भी निरंतर वे इसी वाद के अनुसरणकर्ता रहे और इसके चलते अपनी कविताओं के अलावा अपने साथ जुड़े अनेक अनेक प्रेमप्रसंगों और वैवाहिक हिंसा, व्यभिचार, समलैंगिगता, अनाचार जैसे सुन्दर और आकर्षक शब्दोंऔर विशेषणों के कारण हमेशा चर्चित रहे। चूंकि वे अल्पायु में ही लॉर्ड के सम्माननीय पद को प्राप्त होगये थे और खानदानी रईस थे, इसलिए उतने से विशेषणों से ही उन्हें संतुष्टि नहीं हुई और जल्दी ही अपरम्परागत, सनकी, तेज़ तर्रार और विवादास्पद व्यक्ति के रूप में भी उन्होंने झंडे गाड़ दिए।

दूसरे कवि बायरन पहुंचे हुए पर्यावरणविद थे। अगर वे कवि नहीं होते तो शायद किसी चिड़ियाघर के इंचार्ज होते। उन्हीं के समकालीन कवि और परम मित्र शैली के अनुसार बायरन के राक्षसी महल में नौकरों के अलावा 10 घोड़े, 8 विशालकाय कुत्ते, 3 बन्दर, 5 बिल्लियाँ, एक चील, एक कौवा, एक बाज़, 5 मोर, 2 गिनी मुर्ग़ियाँ, और 1 इजिप्शियन सारस भी रहते थे। विद्यार्थीकाल में होस्टल के अपने कमरे में उन्होंने एक पालतू भालू भी रख छोड़ा था। किंवदन्ती है कि शराब की पार्टियों में वे एक खोपड़ी को ग्लास के रूप में इस्तेमाल करते थे जिसे उन्होंने पॉलिश करके चांदी से मंढ़ लिया था। लोगों के अनुसार यह खोपड़ी किसी भिक्षु की थी। बाद में किसी तरह उनके मित्रों ने खोपड़ी को ज़मींदोज़ करके उस भिक्षु को सम्मानजनक मुक्ति दिलाई।

पर्सी शैली बचपन में अत्यंत ग़ुस्सैल थे। उनको चिढ़ाने या गाली देने वाले दोस्तों के हाथों में वे चाकू या कांटा भोंक देते थे। उनको रसायनशास्त्र का भूत भी सवार हुआ था जिसके चलते एक बार उन्होंने बारूद के साथ प्रयोग करते समय अपनी कक्षा की एक डेस्क को उड़ा दिया था और विद्युत सम्बन्धी प्रयोग के वक़्त दो पेड़ों को। यह अभी ज्ञात नहीं हो पाया है कि क्या उन्होंने बाद में अपने समकालीन कवियों के सामने अपने प्रयोगों का इस्तेमाल किया। वैसे हमारे एक कविताप्रेमी वैज्ञानिक मित्र की इच्छा है कि वे भी कुछ ख़ास ख़ास कवियों को सामने खड़ा करके बारूद के साथ प्रयोग करें।

जिस तरह कवि बायरन को जानवर रखने का शौक़ था उसी तरह कवि विलियम वर्ड्सवर्थ को पैदल चलने का बड़ा शौक़ था। एक बार सनक ही सनक में उन्होंने अपने स्कूल की छुट्टियों के दौरान एक मित्र के साथ स्विट्जरलैंड, फ़्रांस और इटली की दो हज़ार मील की यात्रा पैदल चल कर ही संपन्न कर डाली। पैदल चलते समय अपने आप में ही वे कोई कविता बुदबुदाते रहते थे, जिससे अकसर लोगबाग उनको पागल समझ लेते थे, हालाँकि आगे चल कर उनकी यह अवस्था इतनी प्रसिद्ध हो गई कि बाद में लोगों को उनको कवि मानने में कोई खास आपत्ति नहीं हुई।

कवि होने के बावजूद औरों की तुलना में जॉन कीट्स काफ़ी संयत और शरीफ़ इंसान थे। हालाँकि ख़ानदानी माली हालत कमज़ोर होने के कारण उन्होंने पन्द्रह वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन उनकी बुद्धि कविता से परे कुछ ज़्यादा ‘सर्जनात्मक’कार्य करने के लिए बेचैन रहती थी। इसीलिए अगले चार वर्ष तक वे एक सर्जन के साथ शिक्षार्थी रहे, फिर मेडिकल की पढ़ाई के लिए लन्दन चले गए, जहाँ उन्होंने दूसरा ‘ग़ैर-सर्जनात्मक’ सृजन का काम किया, यानी कविता लिखना शुरू किया। उस समय पढ़ाई छोड़ कर पूर्णकालिक कवि बनने का दुर्विचार भी उनके मन में आया, किन्तु भारतीय कवियों की चिंता के माफ़िक ही कविकर्म से संभावित अर्थोपार्जन की समस्याओं और पीढ़ीगत धनाभाव के मद्देनज़र उन्होंने यह सुन्दर विचार त्याग दिया। पर दुर्भाग्य से पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने इस पापी संसार को अलविदा कह डाला। लगता है, अच्छे कवि इस तरह ही जो कुछ कहना है जल्दी ही कह कहा डालते हैं। बाकी कवि लंबे अर्से तक लोगों को कष्ट पहुंचाते रहते हैं।

फ़्रेंच कवि पॉल वरलेन अपनी कविताओं में प्रतीकों, नफ़ासत और नाज़ुक उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं। जहाँ तक प्रेम का सम्बन्ध है, उन्होंने कभी आदमी और औरत में भेदभाव नहीं किया। शायद इसी के चलते रिमबॉड नाम के व्यक्ति के साथ उनके समलैंगिक संबंध हो गये। ये बात अलग है कि बाद में किसी झगड़े में वरलेन ने रिमबॉड को गोली मार दी और इसके लिए वे दो साल तक जेल में रहे। इसके बाद शराब और ऐय्याशी ने उनको अपनी गोद में समेट लिया और इसी सुखद गोद में उन्होंने देहत्याग किया।

ज्ञातव्य है कि कुछ भारतीय कवि भी उत्कृष्टता प्राप्त कर चुके हैं। प्रसिद्ध शायर फ़िराक़ गोरखपुरी दिन में ही शायरी लिखते थे और शाम और रात्रि का समय अन्य पाठ्येतर गतिविधियों के लिए रखते थे।

जहाँ कई लोग एक पत्नी से ही तौबा कर लेते हैं, वहाँ कवि जॉन मिल्टन ने तीन तीन शादियाँ कीं, जिनमें पहली पत्नी तो उनसे उम्र में आधी ही थी। कोई आश्चर्य नहीं कि इसके बाद उन्होंने अपना महाकाव्य ‘पैरेडाइज़ लॉस्ट’ लिखा। दुर्भाग्य से दस साल बाद इस पत्नी की मृत्यु हो गई, तब जाकर उन्होंने दूसरा महाकाव्य ‘पैरेडाइज़ रिगेन्ड’ लिखा। लेकिन फिर सौभाग्य सेकुछ समय के बाद वे अंधे हो गये। सौभाग्य से इसलिए कि इस स्थिति से वे ज़रा भी विचलित नहीं हुए और इसी अवस्था में उन्होंने दो और विवाह कर डाले। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि विवाह के लिए आँख का दुरुस्त होना उतना ज़रूरी नहीं जितना अन्य चीज़ों का। इतिहास गवाह है कि वास्तव में अपने जीवन की सबसे अच्छी और अधिकतर काव्य रचनाएँ उन्होंने अंधे होने के बाद ही कीं। वैसे, अंधे होने का एक फ़ायदा यह होता है कि रचनाएं मौलिक रहती हैं। हमारे यहाँ कुछ कवि तो ऐसे होते हैं कि वास्तव में उनको कविता करने के बाद बहरा हो जाना चाहिए ताकि उन्हें श्रोताओं या पाठकों की गालियाँ न सुननी पड़ें।

टी. एस. इलियट भी प्रतिभाशाली कवि थे जिन्होंने कई ऐसी रचनाएँ कीं जो हाथोंहाथ विवादित हो गयीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आजकल तो ख़ैर ये आज़माया हुआ नुस्ख़ा है। फिर उन्होंने विवियन हेग नामक उस यौवनांगी से विवाह भी कर लिया जिसे वे अपनी प्रकृति से सर्वथा विपरीत मानते थे। ये बात शायद तब तक उनको पता नहीं होगी कि विवाह के बाद तो वैसे भी सभी पत्नियाँ आपकी प्रकृति के विपरीत हो जाती हैं। बहरहाल जैसा अक्सर होता है, विवाह के बाद इलियट भी जल्दी ही मानसिक तनाव का शिकार बन गए और इलाज के लिए एक चिकित्सालय में भर्ती कराये गए। लेकिन इस दौरान उन्होंने ‘द वेस्टलैंड’ नामक एक लंबी कविता लिख डाली जो शीघ्र ही सबसे विवादास्पद और नई कविता के कुख्यात उदाहरण के रूप में जानी गई। अपनी मृत्यु तक उनको दुःख था कि खुद उनके अलावा कोई उनकी उस कविता को नहीं समझा, हालाँकि उनकी मृत्यु के बाद ही यह प्रसिद्धि की बुलंदियों को प्राप्त हुई। लेकिन इस सब के बावजूद उनकी जो जिजीविषानाम की चीज़ थी वो बाद तक क़ायम रही और 68 वर्ष की उम्र में उन्होंने 30 वर्ष की अपनी सचिव वेलेरिया फ्लैचर के साथ विवाह करके भरपूर आनंद प्राप्त किया।

ताज़ा फलों से शक्ति मिलती है यह तो डाक्टरों ने कहा है, पर सड़े हुए फलों से प्रेरणा मिलती है ऐसा कुछ कवियों की जीवनियों से पता चलता है। प्रसिद्ध जर्मन कवि और लेखक फ्रीडरिख़ वॉन शिलर अपनी मेज़ के नीचे एक सड़ा हुआ सेब छुपा कर रखते थे और लिखते वक़्त जब भी कोई सही शब्द नहीं उपजता था तो वे सेब निकाल कर सूंघते थे। इसकी तीखी ‘सुगंध’ जब तक उनके दिलोदिमाग़ में बनी रहती थी, उन्हें अच्छे लेखन की प्रेरणा मिलती रहती थी। शोधकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि ऐसी सुगंध से न केवल प्रेरणा, बल्कि आत्मबल भी मिलता है। शिलर के सेब के प्रति गहरे आकर्षण का कारण शरदऋतु में युवा प्रेमी के रूप में सेबों के बाग़ानों में अपनी प्रेमिका के साथ सैर करने से भी बताया जाता है, जो सूंघने पर बाद तक उन्हें उन दिनों की याद दिलाने का काम करते थे जिससे उन्हें लेखन की प्रेरणा मिलती रहती थी। जिस सेब को वे सूंघते थे क्या वो उन्हीं दिनों तोड़ा हुआ था, इसका अभी तक पता नहीं लग पाया है। बहरहाल, यह प्रसंग ही अपने आप में काफ़ी प्रेरणास्पद है। पहले तो ताज़े सेब के सेवन से तंदुरुस्ती पाइए और सड़े सेब को सूंघ सूंघ कर प्रेरणाप्राप्त वीर साहित्यकार बन जाइए। जिस तरह आम और गुठली के मुहावरे से अर्थशास्त्र को जानने में मदद मिलती है, उसी तरह सड़े हुए सेब के माध्यम से सृजनशील व्यक्तित्व बनाने का इससे सुगम और कोई तरीक़ा नहीं हो सकता। लगता है, सेब चीज़ ही कुछ ऐसी है कि उसमें डॉक्टर को दूर रखने के अलावा भी चमत्कार ही चमत्कार भरे हैं। सबसे पहले आदम और हौवा ने भी सेब ही चखा था और फिर उसके बाद जो कुछ भी सुखद चमत्कार हुआ उसी के मद्देनज़र सेब तभी से सबका पसंदीदा फल होगया।

हाँ, अपने प्रसिद्ध कवि/शायर साहिर लुधियानवी इस मायने में भाग्यशाली थे कि उनकी दो दो प्रेमिकाएं थीं, पर दुर्भाग्य कि दोनों प्रेम असफल रहे और इसीलिए बाद के दिनों में वे हमेशा दुखी रहते थे और मदिरापान में डूबे रहते थे। पर हर दुःख के पिछवाड़े से सुख और सफलता का एक रास्ता निकलता है। उनको वैसे हालात से कुछ बेहतरीन नज़्में और गाने लिखने का जज़्बा मिला। उनकी दो प्रेमिकाओं में से एक पंजाबी की बड़ी ही नामीगिरामी कवयित्री थीं, जिनके साथ उनके सम्बन्ध इतने गहरे थे कि दोनों बिना बात किये भी घंटों मौन भाषा में बातें करते रहते थे। इसके लिए उन्हें उंगलियां या हाथ भी नहीं हिलाने पड़ते थे। इस दौरान साहिर जी सिगरेट पर सिगरेट फूँका करते थे। कहते हैं, उनके इहलोक से सिधार जाने के बाद कवयित्रीजी सिगरेट के तब के बचे हुए ठूंठों को पी कर धुंआ उड़ाया करती थीं। उन्हें उम्मीद थी कि साहिरजी के पास दूसरी दुनियां में यह धुंआ ज़रूर पहुंचेगा। वे इस प्रेम के प्रति इतनी गंभीर थीं कि एक प्रैस कॉन्फ़्रैंस के दौरान भी एक काग़ज़ के पन्ने पर उन्होंने साहिर का नाम सैंकड़ों बार लिखा था।

कवि-गाथा अक्सर बड़ी लंबी हुआ करती है, लेकिन इस लेख में कवियों की कुछ श्रेणियाँ ही उनके प्रशंसनीय और अनुकरणीय कार्यकलापों के अनुसार शामिल की गयी हैं।

जय कवि।