कसप / मनोहर श्याम जोशी / सामान्य परिचय

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'गुनाहों का देवता' और 'कसप'

मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास का ‘कसप’ और धर्मवीर भारती की ‘गुनाहों का देवता’ में अद्भुत साम्य है। कहा जाता है कि जोशी जी को कसप लिखने की प्रेरणा उनकी धर्मपत्नी ने थी और वो भी गुनाहों का देवता पढकर।

किस्सा कुछ यूं है कि उन दिनों जोशीजी तब एक साइंस फिक्शन लिख रहे थे। पत्नी ने एक दिन उनसे उकताकर कहा था-

”….यह सब भारी, बोझिल, उबाऊ और बौद्धिक क्या लिखते रहते हो, कुछ ऐसा लिखो जिसमें सबका मन रमे, जिसे हमारे जैसे साधारण लोग भी दिल से पढ़ सकें. गुनाहों के देवता जैसी कोई कहानी लिख सको तो लिखो…’”

… तब पत्नी भी शायद नहीं जानती थी कि उनकी यह इच्छा इतनी जल्दी पूरी हो जायेगी। उन्होंने लिखा है-

”…..और मैं चाहता था कि पत्नी के संतोष के लिए झटपट कोई प्रेमकहानी लिखकर फिर से विज्ञान-कथा को पूरा करने में जुट जाऊं. तब मुझे याद आया कि वर्षों पहले अपनी एक चचाजाद बहन की शादी में शामिल होने के लिए नैनीताल गया था और वहां मेरा उसकी सुन्दर-सी मौसेरी बहन से प्रथम साक्षात् तब हुआ जब खुले में बनाई गई अस्थायी टट्टी में फारिग होता हुआ मैं नाडा बांधते हुए अपने चचाजाद भाई और मित्र द्वारा पुकारे जाने पर खड़ा हो गया था. सामने चाय के गिलासों की थाली लिए वह खड़ी थी और घबराहट में मुझसे मारगाँठ लग गई थी. यह कहानी वस्तुतः चार दिन चली और सो भी सबसे छोटी चचाजाद बहन के सहयोग से. धर्मसंकट के एक क्षण से शुरु हुई वह प्रेमकहानी उससे भी बड़े धर्मसंकट पर तब समाप्त हो गई जब यह बात नायिका के पिताजी तक पहुँच गई और उन्होंने मेरे घर में प्रस्ताव भिजवाया कि मैं नायिका की बड़ी बहन से शादी कर लूं”

……अगले 40 दिन में ‘कसप’ का पहला ड्राफ्ट पूरा था। कहानी में बहाव इतना जबरदस्त कि लोग एक सांस में इसे पढ़कर ख़त्म कर लें। इस बहाव का श्रेय जोशीजी ने इसे 40 दिन में धाराप्रवाह लिखे जाने को ही दिया। उपन्यास पूर्ण करने के उपरान्त जोशी जी ने इसका समर्पण भी इन शब्दों में किया-

”…..प्रेम कहानियों की घनघोर पाठिका अपनी पत्नी भगवती के लिये जिसकी इच्छा पर मैं एक अन्य उपन्यास अधूरा छोडकर यह प्रेम कहानी लिखने बैठ गया...”


यह भी जिक्र करना जरूरी है कि इसकी तुलना हमेशा गुनाहों के देवता से ही की गई और ऐसा करने वाले ज्यादातर लोगों ने इसे धर्मवीर भारती के इस उपन्यास से बहुत श्रेष्ठ बताते है इस उपन्यास के नामकरण की कहानी भी खास है। कहते हैं पहले वे इस उपन्यास का नाम कुछ और रखना चाहते थे जिससे वे खुद संतुष्ट नहीं थे। उसी वक्त उन्हें एक अपने छात्र जीवन की एक घटना याद आई। वे अपने छात्र जीवन में एक दिन अल्मोड़ा से अपने पुरखों का का गांव ‘तल्ली’ को देखने पैदल निकल गए थे।

उन्हें रास्ता पता नहीं था और वे रास्ता पूछते हुए जा रहे थे। इसी बीच वे एक पहाड़ की एक ऐसी चोटी पर पहुंच गए जहां उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि किधर जाएं। तभी उन्हें वहां एक युवती दिखी जिससे उन्होंने पूछा कि यह रास्ता किधर जाता है..? उस युवती ने हंसकर उनसे कुमायूंनी में कहा- ”…...‘कसप’ अर्थात राम जाने...!” चूंकि यह उपन्यास कुमायूंनी संस्कृति पर आधारित था। इस वजह से यह नाम इस उपन्यास के लिए सटीक भी था।