कहानी के कोख / अमरेन्द्र

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स्टेशन पहुँचला पर सतेन्दर केॅ पता चललै कि विक्रमशिला आवै में अभी दू घण्टा देर छै। ओकरोॅ मोॅन एकदम सें भिन्नाय गेलै, मतरकि आबेॅ वैं करै की पारै छेलै। है संकट टालौ पारेॅ छेलै, जांे घरै सें गाड़ी आवै के बारे में जानकारी लै लेलेॅ होतियै। घर के टेलीफोन खराब छेलै तेॅ की, बूथे कत्तेॅ दूर छेलै--घरोॅ के दुआरिये पर तेॅ। मतरकि ठीक वक्ती पर ओकरोॅ बुद्धि एकदम सें सठियाय जाय छै। आबेॅ चक्कर मारोॅ हिन्नें-हुन्नें टीशन पर आरो ताकतें रहोॅ उल्लू जकाँ सवारी आरो रेल डिब्बा केॅ। कि तखनिये ओकरा क्षेम सुमन के खयाल ऐलै।

स्टेशन के ठीक हौ पार के मुहल्ला में रहै छै क्षेम सुमन। रिटायर होला के बाद तेॅ क्षेम कहूँ बाहर निकलवो नै करै छै--सतेन्दर नें मने-मन सोचलेॅ छेलै, होतै तेॅ घरे में। नै होतै तेॅ ओकरी पत्नी सपना तेॅ ज़रूरे घरोॅ में होतै। तखनिये ओकरोॅ मनोॅ में यहू विचार उठलै, जों क्षेम घरोॅ में नै होतै आरो सपना होवो करै छै, तेॅ एकरा सें होइये जाय छै की? ज्यादा-सें-ज्यादा सपना एक-दू मिनिट लेली ओकरोॅ पास बैठतै, फेनू घरोॅ के है काम, हौ काम लेली ऊ बौला-बौला। नौकर भी राखलेॅ छै क्षेम नें, लेकिन रसोय के एक काम नै करेॅ पारेॅ नौकर। सब टा काम सपनाहै केॅ करै लेॅ लागै छै, जों क्षेम केॅ केन्हौ मालूम होय जाय कि नौकर नें आलू काटलेॅ छै, आकि चॉर धोलेॅ छै, तेॅ हौ दिन क्षेम उपासे पर रहतै। खाना तेॅ खाना, घरोॅ के कपड़ो-लत्ता नै छुएॅ पारेॅ नौकरें। नौकर खाली बाज़ार सें समान लानै वास्तेॅ छै आरो बगीचा के फूल-पत्ती के गाछोॅ केॅ पटावै-देखै लेली। बाकी तेॅ सपना केॅ टुकनी रङ उड़ी-उड़ी केॅ देखै लेॅ लागै छै...हेनोॅ हालतोॅ में वहाँ बैठवो तेॅ मुश्किल। फेनू सतेन्दर के मनोॅ में यहू ऐलै कि क्षेम बाहरो जाय छै तेॅ बस चार-पाँच मिनिट लेली। जों ऊ हिन्नें-हुन्नेें गेलोॅ होतै तेॅ यै बीचोॅ में लौटियै ऐतै...आरो कोॅन फेरू हम्में वहाँ रात बिताय लेॅ जाय रहलोॅ छियैृ। घन्टा-दू-घन्टा के तेॅ बात छेकै। फेनू डेरे कोॅन दूर छै, नै होतै तेॅ घूमी ऐवोॅ। आवै-जावै में कुछ समय तेॅ हेन्हौं केॅ कटिये जैतै। स्टेशन पर बोर होला सें तेॅ यहेॅ बढ़िया।

द्वार पर आवी केॅ सतेन्दर नें जेन्हैं कुंडी खटखटैलेॅ छेलै, तेॅ द्वार क्षेम नें ही खोललेॅ छेलै। दोनों के चेहरा पर एक खिललोॅ मुस्कान उभरी ऐलोॅ छेलै।

"आव सतेन्दर आव, आबेॅ तेॅ हिन्नें आन्है-जाना छोड़ी देनें छैं। की कोय नया रोजगार फेनू धरी लेलैं की?"

"धूरो, नया रोजगार, आरो ई शहर में! हों एकटा अखबार में लिखबोॅ शुरू करी देलेॅ छियै।" कहतें-कहतें सतेन्दर जबेॅ कमरा के भीतर आवी गेलै तेॅ क्षेम नें केबड़ा ओढ़काय देलकै।

"सुनै छोॅ, सतेन्दर ऐलोॅ छौं, आबेॅ तेॅ ई सब बड़का आदमी होय गेलौं भाय। अखबार में लिखना की आसान बात छेकै।" ई कहतें-कहतें क्षेम गद्दावाला लम्बा कुर्सी पर आपनोॅ दोनों हाथ फैलाय केॅ बैठी रहलोॅ छेलै, जेना कोय बड़ोॅ पक्षी पंख खोली केॅ आकाश में उड़ै ही वाला रहेॅ। तब तांय सतेन्दरो वहीं पर पड़लोॅ एक गद्दै वाला कुर्सी पर बैठी गेलोॅ छेलै।

"की कहलैं, अखबार में लिखना शुरू करी देलेॅ छैं..." आरो ई कही केॅ ऊ हाँसेॅ लागलोॅ छेलै।

सतेन्दर केॅ ऊ हँसी में छुपलोॅ उपहास साफ-साफ पकड़ै में आवी रहलोॅ छेलै, मतरकि ऊ यहौ जानै छै--क्षेम के ई पुरानोॅ आदत छेकै। तहियो ओकरोॅ बात सुनी केॅ ऊ मनझमान होय गेलोॅ छेलै। कि तखनिये सपना ट्रे में तीन चाय लै केॅ आवी गेलोॅ छेलै आरो मुस्कैतें हुएॅ कहलेॅ छेलै, "आबेॅ ऐतै चाय के मजा। चाय-वाय वक्ती कोय लेखक-कवि सामना में रहै छै तेॅ चाय के मज्हे बढ़ी जाय छै।"

ई बात पर सतेन्दर के चेहरा हठाते खिली उठलोॅ छेलै आरो कहनें छेलै, "से बात नै छै, चाय के मजा तेॅ ई बातोॅ पर निर्भर करै छै कि साथ दै वाला के छेकै।"

सतेन्दर नें ई बात शैत क्षेम केॅ सुनाय केॅ ही कहलेॅ छेलै, से वैं ई कही केॅ ओकरोॅ दिश देखलेॅ छेलै। लेकिन क्षेम ओकरोॅ बात सुनलै नै छेलै। ऊ तेॅ हाथ में एकदम छोटोॅ रँ के नाव नुमा रिमोट सें टीॉ वीॉ के सिरियल धांय-धांय बदली रहलोॅ छेलै, जेना ओकरा कोय सिरियले पसन्द नै रहेॅ--सब फालतू।

तखनी क्षेम सचमुचे में काफी खिललोॅ दिखी रहलोॅ छेलै--शैत तुरत नहाय केॅ ऐलो छेलै। खुल्ला देह पर गमकै वाला पाउडर, जे गल्ला सें शुरू होय केॅ छाती तांय जाय केॅ हल्का होय गेलोॅ छेलै। फेनू गल्है में स्फटिक पत्थर के माला साथें छोटोॅ दाना के रूद्राक्ष माला, जे चाँदी के तार आरो दाना सें गुथैलोॅ रहै--बड़ी शोभी रहलोॅ छेलै क्षेम।

सतेन्दर के आँख हठाते घुरी केॅ सपना पर लौटी ऐलै।

भारी उमस के बावजूद, शैत सपना केॅ नहाय के मौका नै मिललोॅ छेलै। जों नहैलेॅ होतियै तेॅ ओकरो केश संवरलोॅ होतियै, साड़ी पर ढेर सिनी सिलवट नै होतियै, तबेॅ चाय लानै के क्रम में कुच्छू ज्यादाहै सावधानी होतियै कि आँचल कंधा सें ज़्यादा नै ससरै आरो तबेॅ हेना केॅ ऊ बैठवो नै करतियै, जेना पलंग में दोनों टांग मोड़ी केॅ आभी बैठी रहलोॅ छेलै।

"अजी, ई अच्छा लागै छै कि तोरोॅ दोस्त ऐलोॅ छौं आरो तोहें टीॉ वीॉ के सिरियल घुमाय में मग्न छौ।"

क्षेम नें सपना के यै बातोॅ पर कुछुवो नै प्रतिक्रिया देखैनंे छेलै, जेना ई बातोॅ के कोय मान्हे नै रहेॅ। ऊ होन्है केॅ रिमोट सें सिरियल घुमैंतें रहलै। फेनू ऊ सतेन्दर दिश घुमी केॅ कहलकै, "देखै छैं, केन्होॅ साफ-साफ तस्वीर उतरै छै। ई रंगीन टी. वी. के पुर्जा-पुर्जा विदेश के बनलोॅ छेकै। बड़ी शौक सें महीना भरी पहिलैं तेॅ खरीदलेॅ छियै।"

"आबेॅ खरीदलेॅ छोॅ, तेॅ इखनी तेॅ बंद करोॅ, दोस्त ऐलौं छौ, की सोचतौं--हम्में ऐलोॅ छी, आरो दोस्त टीॉ वीॉ देखै में मशगूल छै।"

क्षेम नें आपनोॅ बात कहै तांय ही हिन्नें मुड़ी राखलेॅ छेलै, फेनू वहेॅ सिरियल दिश। आबेॅ ऊ हेनोॅ सिरियल बार-बार उतारी रहलोॅ छेलै, जेकरा नंगा नाच नहियो कहलोॅ जाय, तेॅ ऊ नंगे नाच नाँखी छेलै।

"देखै छौ नी, यहेॅ तोरोॅ दोस्त के पसन्द छेकौं आरो मनाहौ करोॅ तेॅ कोय असर पड़ैवाला नै। संगति के हवा लागलोॅ छै।"

क्षेम केॅ जेना हठाते करेन्ट लागी गेलोॅ रहेॅ। वैंने घुमी केॅ कड़ा आँखी सें सपना केॅ देखलेॅ छेलै, मतरकि बोललोॅ कुछ नै छेलै। खाली मुड़ी टीॉ वीॉ दिश फेनू घुमाय लेनें छेलै।

एक अजीब किसिम के तनाव कोठरी में हठाते पसरी गेलोॅ छेलै, जे नै तेॅ हमरा सें छुपलोॅ छेलै, नै केकरौ सें। शैत, माहौल केॅ हल्का बनाय के कोशिश में ही हम्में सपना दिश होतें हुएॅ कहलेॅ छेलियै, "हों, तोरा एक बात तेॅ कहना भूलिये गेलियौं, हम्में तोरा पर एक ठो कहानी लिखलेॅ छियाैं...याद छौं नी, पहिलोॅ दाफी तोरा कन जबेॅ ऐलोॅ छेलियै आरो तोरोॅ हौ परेशानी..."

सतेन्दर के बातों के सचमुचे में ओकरा पर अचूक प्रभाव पड़लोॅ छेलै, जेना काँही कुछ होले नै रहेॅ।

"मतरकि कहानी में तोरोॅ जग्घा पर सब कुछ झेलै छै तोरोॅ पति--यानी हमरोॅ दोस्त।" सतेन्दर नें चाय के एक लम्बा घूँट लेतें कहलेॅ छेलै आरो सपना जे हाथोॅ में चाय के प्याली केॅ उठैलेॅ ही छेलै, नीचें राखतें हुएॅ कहलकै, "से कैहिनें?"

"हमरा लागलै कि जे हमरा कहना छै, ऊ क्षेम केॅ ही सामना राखी केॅ ठीक-ठीक सें मुक्त होय केॅ कहेॅ पारौं। तोरा कहानी में राखला सें हम्में स्वभाविक नै होवेॅ पारतियै; यै लेली।"

सतेन्दर नें देखलकै, सपना के चेहरा अनचोके मनझमान पड़ी गेलोॅ छेलै।

"कहिनें? की भेलौं? कहानी के बात अच्छा नै लागलौं की?"

"से बात नै छै। दरअसल, हम्में सोचेॅ लागलोॅ छेलियै कि ऊ कहानी में तोरोॅ दोस्त के जग्घा में हम्मी रहतियै तेॅ की होतियै! कैहिनें हर दाफी थोड़ोॅ-टा सुख के नामोॅ पर जनानी मात खाय जाय छै। जे कहानी हमरा सें जुड़लोॅ छेलैॅ, ऊ जग्घा पर हमरोॅ पति केना आवी गेलै।" कहतें-कहतें ओकरोॅ चेहरा एक मुलायम विरोध सें भरी गेलोॅ छेलै।

"तोहें समझै नै छौ, दरअसल..."

"हम्में खूब समझै छियै सतेन्दर जी...कोय स्त्राी के सुख-दुख हसौती केॅ पुरुष जत्तेॅ महान होय जाव, मतरकि है बात तहूँ जानतें होभौ--पुरुष के जीवन में कोय कहानी नै होय छै, कहानी तेॅ होय छै जनानी के जीवन में।" कहतें-कहतें सपना नें चाय के प्याली उठाय केॅ ठोरोॅ सें लगाय लेलेॅ छेलै। बस हल्का-हल्का चुस्की लेतें रहलै, ओकरोॅ बाद ऊ कुछ बोलवो नै करलै।

क्षेम होन्है केॅ हाथवाला रिमोट सें सिरियल घुमाय में मस्त छेलै आरो हम्में ई सोच सें चुप होय गेलोॅ छेलियै कि जना अनचोके हमरा सें कोय बड़ोॅ अपराध होय गेलोॅ रहेॅ। गोबध लागी गेलोॅ छेलै हमरा।