कहानी फ़ाइल की / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
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इस अबला के बारे में क्या कहा जाए? भगवान ने इसको पैर दिए होते, तो यह कहीं घूम आती। पड़े रहना इसकी अपनी मजबूरी है। बहुत से नेता अपनी बात मनवाने के लिए भूख हड़ताल करने पर उतारू हो जाते हैं और बैक डोर से सेब-सन्तरों का सेवन करके वज़न तक बढ़ा लेते हैं। इन्हें दो दिन भी बिना खाए-पिए रहना पड़े, तो नानी याद आ जाए। एक ही स्थान पर निराहार रहने वाली फ़ाइल का जीवन किसी समाधिलीन योगी से कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं यह फ़ाइल अपने दुर्भाग्य पर आठ-आठ आँसू बहाती हुई किसी दराज़ या अलमारी के कोने में भोगवादी फ़ाइलों के नीचे दबकर कराहती है। ये भोगवादी फ़ाइलें रोज़ कुछ-न-कुछ हज़म करके अपना स्वास्थ्य बनाती रहती हैं। भोग लगाने के कारण इन्हें भोगवादी कहा जाता है।

लाल रिबन सिर पर बाँधने वाली फ़ाइलें अपने क्रूर प्रेमियों का इन्तज़ार करते-करते कभी दीमकों का आहार बनने लगती हैं। ये जिस स्थान पर रखी रहती हैं, उसके बाबू और दफ़्तरी के हाथ को ये भली प्रकार पहचानती हैं। इनका स्पर्श पाते ही ये ख़ुशी से खिल उठती हैं कि कुछ खाने-पीने को मिलेगा। फ़ाइल ढूँढने के फैसे, फ़ाइल ग़ायब करने के पैसे, फ़ाइल में कुछ खपाने के पैसे, फ़ाइल से कुछ दिखाने के पैसे। लेकिन यह सब फ़ाइल की क़िस्मत पर निर्भर है। गोपनीय फ़ाइल का अपना रुतबा है, रौब है। यह, वह विश्व सुन्दरी है, जिसकी एक झलक पाने के लिए दीवाने कर्मचारी व्याकुल रहते हैं और असफल होने से छाती पर पत्थर रखकर कह उठते हैं-ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले फ़ाइल होता। इस प्रकार बेचारों की ज़िन्दगी का अमूल्य समय इन्तज़ार में ही बीत जाता है।

गोपनीय फ़ाइलों को पार करने का काम विश्वस्त व्यक्ति ही कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों की अपने देश में कमी नहीं। हर वर्ष एक धमाके के साथ कुछ और विश्वस्त व्यक्तियों का नाम सामने आता रहता है। फ़ाइल क्योंकि स्त्रीलिंग है; अतः इसे गोपनीयता कि घुटन से निकालने के लिए इसकी सहेलियाँ शराब और काल-गर्ल्स भी सहायक रही हैं। जिसको जैसा शौक होता है, यह उसको वैसे ही खुश करके दफ़्तरों से पलायन कर जाती है। गोदरेज़ की अल्मारियाँ, मेन गेट पर लगे अलीगढ़ी ताले, बंदूकधारी मुस्टंडे गार्ड शर्म से मुँह छुपाए, डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी के लिए व्यग्र हो उठते हैं।

एक बार एक साहब ने एक कुमारी फ़ाइल लाने के लिए कहा। इस पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी थी। बड़े बाबू भी इस दफ़्तर में तबादला कराकर नए ही आए थे, सभी फ़ाइलों का पूरा परिचय भी नहीं पा सके थे। वह फ़ाइल को जितना बाहर खींचते, वह उतनी ही भीतर चलनी जाती। साहब भी उठकर आए और ज़ोर आजमाइश करने लगे। साँस धौंकनी की तरह चलने लगी। बूढ़ा दफ्तरी यह सब देख रहा था। उसने फ़ाइल की सूरत देखी, फिर प्रश्नाकुल दृष्टि बड़े बाबू और साहब की तरफ़ उठाई। दफ़्तरी रहस्य समझ चुका था। वह बोला-"दस का नोट निकालिए।"

"दस का नोट? क्या मतलब?" बड़े बाबू चकराए।

"बाबू जी, नई दुल्हन को भी मुँह दिखाई देनी पड़ती है। यह फ़ाइल दस बरस से यहाँ दबी पड़ी है, ऐसे नहीं निकलेगी। दस का नोट निकालिए।"

बड़े बाबू ने नोट फ़ाइल से छुआ दिया। फ़ाइल ख़ुशी के मारे अल्मारी से नीचे कूट पड़ी और दफ़्तरी के चरणों में लोट गई। बड़े बाबू और साहब, दफ़्तरी की कार्य-कुशलता पर मुग्ध हो उठे। तभी अचानक फ़ाइल से आवाज़ आई-"आपके स्पर्श से मेरा उद्धार हुआ। मैं आपका ऋण कैसे चुका सकती हूँ? मैं अब तक शिला अहल्या थी। मेरे लिए आप राम से कम नहीं।"

दफ़्तरी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा-"तुमने अब तक बहुत कष्ट भोगा है। आज तुम्हारी मुक्ति हुई। अब तुम साहब के दराज में रहा करोगी।"-फ़ाइल सुनकर फूली नहीं समाई। वह अकेली फ़ाइल एक वर्ष में दफ़्तरी को एक हजार, बड़े बाबू को पाँच हज़ार और साहब को बीस हज़ार दिलवा चुकी है। बड़े बाबू प्यार से उसे 'कामधेनु फ़ाइल' कहने लगे हैं।

पर्सनल फ़ाइल का अपना अलग महत्त्व होता है। जिसकी फ़ाइल मोटी होती है, उसकी लाइन क्लीयर समझिए। मार-पीट, दंगे-फसाद गबन शिकायत आदि के प्रेम-पत्र उसकी फ़ाइल की गरिमा बढ़ाते हैं और उसके यश का प्रसार करते हैं। फ़ाइल का यह कसरती शरीर साहब के सामने व्यक्ति की 'सम्पूर्ण रामायण' प्रस्तुत कर देता है। ऐसे लोगों से साहब भी दस क़दम दूर रहते हैं। मजमून भाँप लेते हैं फ़ाइल को देखकर। कुछ फ़ाइलें मरियल होती हैं। इनमें नियुक्ति-पत्र के अलावा फण्ड से रुपया उधार लेने के दो चार आवेदन पत्र होते हैं। ऐसी निरामिष प्रवृत्ति के लोगों का या इनकी फ़ाइल का कुछ भी असर नहीं होता। इनकी स्थिति छोटे-छोटे क्रासिंग जैसी होती है जहाँ यात्री गाड़ी भी कभी नहीं रुकती, अर्थात् लल्लू क़िस्म के अधिकारी भी इनको घास नहीं डालते।

फ़ाइल एक ऐसा व़फ़ब्रिस्तान है जहाँ तरह-तरह की जाँच रिपोर्ट, सदाचारियों के कच्चे चिट्ठे, भण्डाफोड़ करने वाले निष्कलंक कारनामें अन्तिम साँस लेते हैं। फ़ाइल की वक्र दृष्टि रातों की नींद हराम कर सकती है। दिन में सुला सकती है, हँसा सकती है, रुला सकती है। मेनका कि तरह बड़े-बड़े विश्वामित्रों का तप भंग कर सकती है। ऐसे योगी-यति विरले ही हैं, जो इससे आँख बचाकर निकल पाते हैं। ग़ालिब को माफ़ कर दें, तो कहना पड़ेगा-

फ़ाइल को देख अपना-सा मुँह लेके रह गए,

साहब को दिल न देने पर कितना गुरूर था।