कही ईसुरी फाग / मैत्रेयी पुष्पा / पृष्ठ 2

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अगला भाग >> मैं माधव की बात सुनकर झुँझला गई, क्योंकि पहले से खीझी हुई थी।

‘‘तुम्हें तो खाने की पड़ी है बस। यह क्या खाने ही आए थे ? और अब इतनी देर में आए हो, क्या नदी नहाने गए थे ?’’ कहना चाहती थी कि देखो हमारी तुम्हारी उम्र के लड़के क्या तूफान उठाने वाले हैं !

मगर तब तक क्रूकट मंडली के बीच लाठी की तरह खड़ा हो गया था। कहने के लिए मैंने उधर से मुँह फेर लिया, क्योंकि माइकेल जैक्सन ने खिड़की खोल दी थी और वह..पंडा से कह रहा था- ‘‘यार सरसुती बाई की चेली से इंटोडैक्सन तो करा दो । इनें तौ एक दिन रजऊ को पाट खेलनें ही हैं और हमारे संगै जानें ही है। सरसुती खों इन मेनका जू के दम पर अनुदान नहीं खाने देंगे हम। जो कि वे खाएँगी कि इस्तरी ससक्तीकरन कर रही हैं। और ससुर जू तुम्हें लोहे के लंगोटों में कस देगी कि बधिया हो जाओ।’’

माइकेल जैक्सन हँस पड़ा- ‘‘तब भागोगे मंडली छोड़कर। मौकापरस्त औरत के दाँव अभी से समझ लो ससुरी खों उल्टी मात दै दो।’’

धीरे पंडा बनने वाला अभिनेता मंडली का मुख्य आदमी है। वह कभी इन लड़कों को ललचाई निगाह से देखता तो कभी आँखें अजिज-सी हो जातीं।

‘‘अच्छा ठीक है। जो जब होगा सो तब देखा जाएगा। तुम तो अपनी सुनाओ।’’

माइकेल जैक्सन के चेहरे पर आत्मविश्वास बोल रहा था- ‘‘क्या बता दें, बैंचो देख नहीं रहे कि ‘आइकोन’ झुपड़िया के आगे काए ठाड़ी ? हम भइया जौहरी हैं, हीरा तलासते फिर रहे हैं। तुम्हें चमकनें है तो चलो संगै, नातर ससुर जू इतै परे-परे घूरा चाटो।’’ धीरे पंडा ने हाथ जोड़ कर उन लड़कों की औकात बढ़ा दी। वह गर्व से बोला-‘‘ तुम कह रहे थे यह वारी-फुलवारी सरसुती देवी के कारण फूली-फली है तो हम कह रहे हैं नाम भी उन्हीं के कारन होगी नास-विनास में तुम न घिरो। फिरांस की पार्टी आई है, राग रंग की सौखीन है। ओरक्षा में रजऊ और ईसुरी की प्रेम कहानी सुनी होगी। सालिगराम कराटे गुनी गाइड है, सो समझा दई कि बुन्देलखण्ड में पग-पग पर मनमोहिनी लुगाई हैं।’’

मानकेल जैक्सन ने जेब में से छोटा सा पर्स निकाला। धीरे पंडा बनने वाले कलाकार के आगे हजार-हजार के दो नोट लहरा दिए।

‘‘देख रहे हो ऐसे तो कितने ही पैदा हो जाएँगे। फ्रेंक पोंड और डॉलर की माया देखोगे तो गस आ जाएगा। इतै तुम ससुर जू पूरी पपरिया खाकर समझ रहे हो, राजा हो गए। चना-चबैना रोज की खुराक मान रहे हो। क्या कहते हैं कि लाई के लडुआ सुईट डिस। अब तक गाँवों के कलाकार ऐसे लुटते रहे हैं। ईसुरी की लीला कर रहे हो ईसुरी की असलियत जानते हो ? कैसी दिसा भई। तुम्हारे लानें तो कोई आवादी बेगम भी पैदा नहीं होने वाली। आज की औरतें सरसुती बनकर तुम्हें तबाह कर देंगी।’’

मैं बुरा मानू मुझे होश नहीं था। मेरी वह दुनिया उजड़ी जा रही थी, जिसे बसाने की शुरूआत मैंने कर दी थी। और बड़ी कोशिशों, बड़ी ठोकरों के बाद पाया था, यह ठिया।

मन में आया क्रूकट के हाथ जोड़कर प्रार्थना करूँ। अपने काम की दुहाई दूँ। सारा का सारा ब्योरा बताऊँ यहाँ फागों का होना हमारी पहुँच के भीतर है। पाँच सितारा होटल में इस फाग-लोक को कैद मत करो। बसंतोत्सव में मेरा साहित्य-शोध छिपा है, इस पर पहरे मत लगाओ। लोक संस्कृति पर हमारा भी हक है, हिस्सा हमसे मत छीनो। मगर क्रूकट अपनी रौ में था।

‘‘विदेशी लोग मौंमागा पइसा देते हैं। समझे धीरे पंडा रूपी रतीराम जी ? देर करोगे तो गढ़ी म्हलैरावाली मंडली मोर्चा मार लेगी। तुम पछताते रह जाओगे। हम तो महुसानिया के मंडली डीलर खों भी अडवांस दे आए हैं। सीजन की बात है। फिर तो हम भी वैष्णों देवी के जागरन की डीलिंग में लग जाएँगे, ससुर बखत ही कहाँ है ?’’

लगातार क्रूकट का मोबाइल फोन भी चल रहा था- हल्लो, बातचीत चल रही थी। सौदा पट रहा है। कम-बढ़ की गुंजाइस राखियो ।

माइकेल जैक्सन ने यह कहकर धीरे पंडा को पटा लिया कि वह फगवारों का शीश मुकुट है। रघु नगड़िया वाला माना हुआ उस्ताद है और सोनुआ झींका बजाने में प्रदेश प्रसिद्ध वादक। तीनों राई नाच में घूँघट ओढ़कर नर्तकियों के ‘अपरूप मौडिल’ बन जाते हैं। किरनबाई बेड़िनी से भी सौदा चल रहा है।

चटपटे प्रोग्राम के लिए गर्मागर्म नोट थमाए माइकेल जैक्सन ने और मंडली को खरीद लिया। लाभ-लोभ की बातें-वीडियो फिल्म बनेगी, सी डी बिकेंगी, हिस्सा बराबर रहेगा। आमदनी लगातार होगी। जी टी. वी सोनी टी. वी पर देख लेना अपनी फोटू। हल्के होकर चलो। झींका-मींका, नगड़िया-फगड़िया मत लादो, गिटार बजेगी जमकर। क्या कहते हैं कि सिंथैसाइसर तैयार रखा है। अँग्ररेजी धुन में सजकें फागें अँगरेजिन हो जाएँगी। एक दिना तीजनबाई की तरह तुम विदेस के लानें उड़ जाओगे। हित की बातें सुन लो, नातर इन गाँवन में पड़े-पड़े सड़ जाओ। सरसुती देवी भी तुम्हें सड़े अचार की तरह नुकसानदायक मानकें फेंक देंगी।

सौदा होते ही क्रूकट कार में से यूनीफार्म निकाल लाया।

‘‘बसंती कमीज !’’ धीरे पंडा ने कहा तो माइकेल बोला- ‘‘कमीज नहीं यल्लो टी साट। बिलेक पेंट। टीसाट पर क्या लिखा है ? पढ़े हो तो पढ़ो-

‘मेरा भारत महान !’

पेंच के घुटनों पर जय हिन्द की चिप्ची ! देखते ही देखते फगवारों की टोली ‘आइकोन फोर्ड’ कार में भर गई। जो बाकी बचे थे, उनके लिए डिक्की खोल दी गई। वे सामान की तरह ठँस गए।

कच्ची गली थी। कार चली गई, पीछे धूल का गुबार था बड़ा-सा।

मैं और माधव खड़े थे, लुटी-लुटी गली में, उजड़े से गाँव में खून-खच्चर सपनों की छाँव में... स्तब्ध और हतप्रभ !

हताशा ने चेतना सोख ली।

माधव ने मेरी ओर देखा, जैसे पूछ रहा हो-अब ? अब अगला पड़ाव कहाँ होगा ? हम दोनों ऐसे ही चुपचाप कितनी देर तक खड़े रहे ? मैं पीछे कब लौटी ? सत्रह गाँव की खाक छानकर आई मैं, ऋतु, जहाँ रजऊ की खोज में जाती, वहाँ ईसुरी के निशान तो मिलते, प्रेमिका का पता कोई नहीं देता था, जैसे उसके बारे में बताना किसी वेश्या का पता देना हो। ईसुरी के साथ जोड़कर लोग उसके नाम पर मजा लेते, मगर उसको अपने आसपास की स्त्री मानने से मुकर जाते। बुरा मानते की एक लड़की उस बदचलन औरत के बारे में बात कर रही है और गाँव की लड़कियों को उस बदनाम स्त्री से परिचित कराने की कोशिश में है।

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