क़ितराह : दर्द के अँधेरों को भेदकर निकले प्रेम के आलोक का आख्यान / स्मृति शुक्ला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी चर्चित युवा लेखिका सुषमा गुप्ता ने अपनी सृजन यात्रा कविता से प्रारंभ की थी। वे अपनी भावपूर्ण कविताओं से हिन्दी साहित्य जगत में पहचान सुनिश्चित कर चुकी हैं। उनके प्रकाशित कविता संग्रह ‘उम्मीद का एक टुकड़ा’ की भावपूर्ण कविताएँ पाठकों के हृदय को स्पर्श करती हैं। कहानी संग्रह ‘तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नाम’ के बाद उनका उपन्यास ‘कितराह’ प्रकाशित हुआ। सुषमा गुप्ता ने कितराह लिखकर अपने लेखन की खुशबू प्रसारित की है। कितराह दरअसल सीरिया के गृह युद्ध की त्रासद यातनाओं और कश्मीर के आतंकवाद की काली छायाओं के बीच प्रेम के उज्ज्वल रंग को बिखेरने वाली कथा है। भाषा में चित्रात्मकता, भाव प्रवणता और रोचकता के साथ एक प्रेम कथा को बड़े अनूठे ढंग से निबद्ध किया है। उपन्यास के दो पात्र कितारा और त्रिजल अपने-अपने अतीत की मर्मांतक पीड़ाओं से गहरे तक घायल हैं। भारतीय मूल की कितारा जो सीरिया में रहती थी वहाँ के गृह युद्ध में अपनी डॉक्टर माँ पिता और भाई को अपनी आँखों के सामने ही मृत्यु के मुँह में जाते हुए देख चुकी है। उसने अपनी आँखों के सामने उन हजारों स्त्रियों की दुर्दशा देखी है; जिन्हें केवल देह समझकर रौंदा गया है। स्वयं कितारा भी ऐसी हिंसा का शिकार हुई है। वह किसी तरह जान बचाकर अपनी मौसी के पास भारत आ गई है; लेकिन यहाँ भी अतीत के अंधेरे उसका पीछा नहीं छोड़ते, काली छायाएँ उसके हृदय पर मँडराती रहती हैं। उसके हृदय और आत्मा पर दुख के गहरे घाव हैं जो सदा रिसते रहते हैं। उपन्यास का प्रारंभ ‘जिंदगी की कशिश थी यह जो मौत पर भारी थी’ शीर्षक से लिखी कितारा की डायरी से होता है। इस पार्टी में कितारा अपने मौसेरे भाई आदित्य के दोस्त आर्मी ऑफ़िसर त्रिजल से मिलती है। त्रिजल जो कि स्वयं कश्मीर में एक मिलिटरी ऑपरेशन में बाल-बाल बचा है, इस मिशन में उसने अपने एक दोस्त और सहकर्मी को खोया है। इस आघात की वजह से वह डिप्रेशन में है और एक महीने की छुट्टी लेकर आया है। वह अब अकेले स्पीति (हिमाचल प्रदेश) जाना चाहता है। पार्टी में उसकी मुलाकात कितारा से होती है। कित़ारा और त्रिजल एक दूसरे के प्रति आकर्षण महसूस करते हैं। उपन्यास का यह आरंभिक अंश किसी चलचित्र की तरह पाठकों के सामने आता है। पार्टी में त्रिजल किसी फिल्मी हीरों की तरह नज़्म भी गाता है जिसमें उसके हृदय के भाव प्रकट होते हैं। इसी पार्टी में आदित्य त्रिजल से कहता है कि वह कितारा को अपने साथ स्पीति ले जाये ताकि कितारा का दुख कुछ कम हो सके और सीरिया की दुखदायी यादें उसके जेहन से निकल सकें। उपन्यास का दूसरा अध्याय ‘ख्वाब आईना हैं धूप में चमकेगें चटकेंगे तो चुभ जाएँगे’ शीर्षक से है जो त्रिजल की डायरी के अंतर्गत है। इसमें त्रिजल और कितारा के सफर की शुरूआत है। कितारा को लेकर त्रिजल की भावनाओं और अनुभूति का सघन वितान इस कदर विनयस्त है कि पाठक भी इन दोनों पात्रों के साथ एक आत्मीय रिश्ता कायम कर लेता है। कथाकार सुषमा गुप्ता उपन्यास में इस यात्रा के बीच पड़ने वाले स्थानों की बड़ी प्रामाणिक जानकारी पाठकों को उपलब्ध कराती हैं। जैसे कालका के बाद पहाड़ियों पर हरियाली बढ़ना शुरू हो गई थी। सोलन आते-आते हवा में हल्की नमी और ठंडक भी उतर आई थी, या सोलन पीछे छूट गया था और शिमला में बेहिसाब भीड़ थी। इस उपन्यास की एक सबसे बड़ी विशेषता है हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों, खूबसूरत पंगडंडियाँ, सतलुज का चौड़ा पाट, ऊँची-ऊँची घाटियाँ, सर्पीली पगडंडियाँ, और हरी-भरी वादियाँ चित्रात्मक भाषा में इस कदर मूर्त हो गयी हैं कि पाठक को लगता है मानो त्रिजल और कित़ारा के साथ वह स्वयं इस स्पीति एक्सपीडिशन में भाग ले रहा हो। पुहु, रिकांग, पिओ, नाको और नाको की वह झील जो समुद्र तल से बारह हजार फीट की ऊँचाई पर है, झील के चारों ओर आसमान छूते चिनार के दरख्त, काजा, बौद्ध मठ, सुमडो, ताबे, हिक्किम, कॉमिक, लांग्जा, मनाली, हिक्किम का सबसे ऊँचा पोस्ट ऑफिस और जीवश्म, करछम, सांग्ला, छितकुल और अन्य अनेक पड़ावों से होते हुए स्पीति तक के सफर में पड़ने वाले स्थानों की इतनी प्रामाणिक जानकारी इस उपन्यास में बहुत ही सुन्दर शब्दों में पूरी दृश्यात्मकता के साथ दर्ज है। कथाकार सुषमा गुप्ता ऐसा आत्मीय और सच्चा चित्र इसलिए दर्ज कर पाई हैं; क्योंकि हिमाचल के स्पीति से उनका गहरा रिश्ता है। उनके बचपन का काफी हिस्सा इन स्थानों पर गुजरा है; इसलिए वे यहाँ के चप्पे-चप्पे से न केवल वाक़िफ हैं अपितु यहाँ के नज़ारों में उनकी रूह बसती है। इसी अध्याय में त्रिजल ने कश्मीर पोस्टिंग और बुरहान घाटी की घटना का जिक्र किया है। सुषमा गुप्ता ने कश्मीर के अनंतनाग में आतंकवादियों और भारतीय सेना द्वारा किये गये ऑपरेशन का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस तरह यह उपन्यास यथार्थ के कठोर और कल्पना के रेशमी धागों से बुना गया है। उपन्यास का तीसरा अध्याय ‘धूप को जलाया पानी में’ हर दाग़ से धुआँ उठने लगा शीर्षक से कितारा की डायरी है जिसमें कितारा की भावनाएँ संघनित हुई है। जब वह त्रिजल को अपने मॉ के आराध्य शिव के रूप में देख रही है, त्रिजल के साथ सफर में खुश है। नारकंडा बस स्टैंड से हाटू मंदिर फिर रिकांगपियों और फिर रामपुर तक का सफर कितारा की डायरी में दर्ज है। इसके बाद ‘पीड़ा के अवशेष’ शीर्षक से त्रिजल की डायरी है। इस अध्याय में कितारा की पीड़ा का सागर लहरा रहा है। यह सफर 2011 से शुरू हुआ था तब कितारा कॉलेज में थी। सीरियाई सरकार अपने ही देश के नागरिकों पद जुल्म ढा रही थी। जब कितारा कॉलेज में पढ़ रही थी ठीक उसी समय अरब के बाकी देशों में जैस्मिन क्रांति शुरू हुई। सीरिया में भी शिया और सुन्नी के बीच की खाई बढ़ती जा रही थी। हर दूसरे घर में पुरुषों कीक हत्या हो रही थी। ऐसे में स्त्रियों को मोर्चा सँभालना पड़ा था। सीरिया में असद की सरकार ने हजारों औरतों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गईं। इस समय कित़ारा मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी और छोटे बच्चों को चित्रकारी भी सिखाती थी। उसने असद के खिलाफ एक पोस्टर बनाया था और यही पोस्टर बनाकर वह सुर्खियों में आ गई थी। इसी वजह से उसे दमिश्क के कुख्यात सीरियन मिलिटरी इंटेलिजेंस ब्रांच ले जाया गया। जहाँ एक साल तक कैद में रखा गया और तरह तरह की यातनाएँ दी गई। सिगरेटों से जलाया गया। स्त्रियों को पुरुषों की हैवानियत का शिकार बनना पड़ा था। कितारा किसी तरह बचकर आ गई थी; लेकिन उसने अपने परिवार को खो दिया था। उपन्यास में कित़ारा की पीड़ा के अवशेष शिलालिपि की तरह खुदे हुए हैं। अगला अध्याय ‘दमिश्क गुलाब : वह अपनी जुबान में मेरी कहानी था’ शीर्षक से कितारा की डायरी के अंश हैं। इस अध्याय में कुदरत के बेहतरीन नजारे हैं। बर्फ से ढके हुए पहाड़, चीड़ के खूबसूरत दरख्त, चिड़ियों का मधुर संगीत प्रकृति की इस सुन्दरता को देखते हुए कित़ारा के विषय में सोच रही है कि मैंने भावनाओं में बहकर त्रिजल को अपना अतीत बता दिया है, पता नहीं त्रिजल अब मेरे बारे में क्या सोचता होगा। शायद उसका मन भी न करे मुझे छूने को। लेकिन त्रिजल कितारा के प्रति अत्यंत कोमल है। त्रिजल के लिए कित़ारा इत्र की खुशबू की तरह पाक और पवित्र है वह उसे खोना नहीं चाहता। कित़ारा के लिए उसके हृदय में बहुत प्रेम है जो किसी भी हाल में कम नहीं हो सकता। वह कल्पा जैसी सुन्दर जगह में सुंदर गुलाब का तोहफा देता है और वे दोनों निकल पड़ते हैं आगे की यात्रा के लिए। किन्नर कैलाश मंदिर और फिर मोनेस्ट्री। यात्रा में बाइक का कॅरियर भी टूटता है फिर रस्सी से कॅरियर बाँधकर आगे का इक्कीस किलोमीटर का चांगो तक का सफर तय होता है। चाँगो में जाकर कॅरियर की बैल्डिंग हो पाती है। आगे उपन्यास की कथा त्रिजल की डायरी ‘मेरी देह, मेरी आत्मा का यातना शिविर है’ से आगे बढ़ती है। सुषमा गुप्ता ने उपन्यास के कथानक को इस तरह साधा है कि उसमें कोई झोल नहीं आ पाया है। पूरी कसावट और भाषा और भावों के संतुलन के साथ कथा तीव्र गति से बढ़ती है। पूरी औपन्यासिक कथा यात्रा त्रिजल और कितारा की बाइक की स्पीड की तरह तीव्र गति से बढ़ती है। पूरे उपन्यास में त्रिजल और कितारा का स्नेह बड़ी धीमी-धीमी आँच में पकता है और पूर्णता पाता है। सुषमा गुप्ता ने कितारा और त्रिजल की डायरी के जो शीर्षक दिये हैं वे बड़े खूबसूरत और मानीखेज हैं। जैसे - उम्मीद की आँखें बड़ी अधीर होती हैं, शब्द कुछ नहीं कहते, उनकी ध्वनि कहती हैं, ब्लू मून इन द स्काई : जो अज़नबी है जेहन की दुनिया के लिये, वही आकर्षण का बिंदु है मन के लिये, भीतर की खिड़कियों से दिल का कब्रिस्तान दिखता है, जो सहज होने का स्वाँग न रचना जानते तो जीवन को कैसे चलाते हम, अतीत की काली स्मृतियों से वर्तमान के चित्र उकेरे ,तो भविष्य स्याह हो जाता है, साबुत तस्वीरों की टुकड़ा-टुकड़ा तहरीरें थीं और थीं सब मुख्तलिफ़, संवाद के कोटर में मौन ने घर बना लिया है, तुम मेरी आत्मा का सबसे सटीक अनुवाद हो और सहरा में खुलती बारिशें आदि सुन्दर पंक्तियों के आगोश में लिपटी पूरे उपन्यास की कथा सैल्यूलाइड पर्दे पर चलने वाली किसी फिल्म की तरह पाठकों की आँखों के सामने से गुजरती है। उपन्यास की भाषा दृश्यात्मक और चित्रात्मक है। सुषमा गुप्ता जितने सुन्दर व्यक्ति चित्र और प्रकृति चित्र खींचने में सिद्धहस्त हैं, उतनी ही पात्रों के हृदय और मन के कोने-कोने का संधान करने में सिद्धहस्त हैं। सुषमा गुप्ता के पास अपनी स्व अर्जित भाषा है ,जो उर्दू मिश्रित हिन्दी है या जिसे हम हिन्दोस्तानी भी कह सकते हैं। यह भाषा उनकी सबसे बड़ी ताकत है, जिसके बलबूते वे इतना सुन्दर उपन्यास लिख पाई हैं। पन्द्रह-बीस के दिन के सफर में कितारा और त्रिजल एक-दूसरे के दिल के इतने करीब हो गए थे, यह रिश्ता इतना प्रगाढ़ और गहरा हो गया था कि प्रेम की उच्च अवस्था तक जा पहुँचा था, लेकिन फिर ऐसी परिस्थितियाँ बनीं कि दोनों एक दूसरे के साथ नहीं रह पाए और दूर हो गए। पर दूर रहकर भी दोनों दूर नहीं थे दोनों का प्यार बहुत गहरा था, तभी तो उपन्यास के अंत में त्रिजल अपनी डायरी के अंतिम पृष्ठ पर दर्ज करता है - ‘‘तुम्हारे होने से सब कुछ भर गया था। सब कुछ मतलब, सब कुछ आत्मा भी, देह भी और मन भी हो गया था संपूर्ण। अब सब खाली है। मेरा होना तुम्हारा होना ढूँढ रहा है, आँखें एक चेहरा बीन रही हैं, उँगलियाँ हवा में हर पल कुछ टटोल रही हैं, मेरे पैर जैसे अधर में अधूरे हैं। मेरी पीठ साँस लेते हुए साँस लेना भूल रही है। मेरा सीना एक तपिश के लिए, जो तुम्हारी धड़कनों से आँच लेता था, इस समय बेहद सर्द है। यह कौन- सा मौसम चला आया है। यह जो भी मौसम है........ यह मौसम असहनीय है। यह मौसम ठहर तो न जाएगा। जैसे किसी कस्तूरी मृग की कस्तूरी.... उसके प्रतिबिंब की नाभि में छूट गई है। यह हिरण अकुलाहट से भरा ऊब मासूम बच्चे सा टुकुर-टुकुर इधर-उधर बस देख रहा है। समझ कुछ नहीं आ रहा उसे यह हुआ क्या है! बस यही हाल मेरा है तुम बिन मेरी जानाँ...... मेरी खुशबू..... मेरी कितराह.....’’ कितराह यानी खुशबू ,सुषमा गुप्ता ने पूरे उपन्यास में प्यार की खुशबू को बिखेरा है। यह उदात्त प्रेम की खुशबू पूरे उपन्यास में बिखरी है। कित़ारा और त्रिजल की यह प्रेमकथा इकहरी नहीं है। उपन्यास वैश्विक संदर्भों को समेटे हुए है। उपन्यास में सुषमा गुप्ता ने आतंकवाद और सीरिया के गृह युद्ध को उपन्यास की कथा-संवेदना का अंग बनाया है। वे बताना चाहते हैं कि तमाम अमानवीयताओं के बावजूद सच्चा प्रेम ज़िंदा रहेगा। इस पृथ्वी पर कोई भी ताकत ऐसी नहीं जो प्रेम को समाप्त कर दे। प्रेम के फूल खिलते रहेंगे और उनकी खुशबू बिखरती रहेगी, तमाम नफ़रतों के खिलाफ इंसानियत बची रहेगी। यथार्थ और कल्पना के तानेबाने से बुनी गई यह कथा पाठक का पीछा नहीं छोड़ती, यही बात इस उपन्यास को खास बनाती है।

कितराह(उपन्यास): सुषमा गुप्ता, पृष्ठः 256, मूल्य: 249रुपये, प्रकाशक- हिन्दी युग्म, सी-31, सेक्टर-20, नोएडा (उ प्र)-201301