कांग्रेस की गलाघोंटू नीति / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

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इधर कांग्रेस कमिटियों का वायुमंडल ऐसा विषाक्त हो गया है कि जैसे गला घुट जाए! कम-से-कम मुझे तो ऐसा ही लगता है। एक नमूना पेश करता हूँ। कांग्रेसी वजारतें 1937 में भी बनी थीं और , 1939 तक हमने रेवड़ा जैसे सैकड़ों बकाश्त-संघर्ष चलाए। लेकिन कांग्रेस के निकालने या अनुशासन की धमकी कभी न दी गई। यहाँ तक कि हमारे आदमियों ने असेंबली में भी कांग्रेस पार्टी की बात किसानों के मामले में न मानी। फिर भी उन पर अनुशासन की तलवार न गिरी। मगर आज बड़ी मुस्तैदी से बकाश्त-संघर्ष रोका जाता है और ऐलान होता है कि कांग्रेसजन उसमें हर्गिज-हर्गिज न पड़ें। यह संघर्ष ही किसानों एवं किसान सभा की जान ठहरी और कांग्रेस में रहकर हम वही न करें , जान गँवा दें , यह कैसे होगा ? यदि हमारी जमीन-जायदाद पर कोई लुटेरा धावा करे , तो भारतीय दंड-विधान की आत्म-रक्षावाली धाराओं के अनुसार हम मारपीट एवं खूनखराबी भी कर सकते हैं और कांग्रेस में भी रह सकते हैं। मगर कांग्रेस के ही सिध्दांतनुसार शांतिपूर्ण लड़ाई , सत्याग्रह या संघर्ष करें , तो हमपर अनुशासन की तलवार पड़ेगी। यह अजीब बात है! यदि यह विषाक्त एवं गलाघोंटू वायुमंडल नहीं , तो आखिर है क्या ? तब जानबूझकर हम गला घुटने दें क्यों ? आत्महत्या करें कैसे ?

कहा जाता है , कांग्रेस की ही सरकार है। मगर है दरअसल सरकार की ही कांग्रेस , या यों कहिए कि सरकारी कांग्रेस। ठोस सत्य यही है। एक ताजा दृष्टि काफी है। हाल में प्रांतीय कांग्रेस के अध्यक्ष ने बयान दिया कि ऊख की कीमत फी मन दो रुपए से कम हर्गिज न हो। प्रांतीय कार्यकारिणी ने और खुद प्रांतीय कांग्रेस कमिटी ने भी सर्वसम्मति से तय कर दिया कि दो रुपए से कम कीमत न सिर्फ किसानों के लिए बल्कि चीनी के कारोबार के लिए भी घातक है। मगर सरकार ने क्या किया ? युक्तप्रांत में एक रुपए दस आने और बिहार में एक रुपए तेरह आने तय कर दिया और दिल्ली की सरकार ने इसी पर मुहर लगा दी! नहीं-नहीं , दिल्ली और यू.पी. की सरकारें तो सवा रुपए ही चाहती थीं। अब बोलिए कि कांग्रेस की सरकार है या सरकार की ही कांग्रेस ? ऐसी दशा में कांग्रेस में रहना स्पष्ट ही सरकारपरस्त बनना है। और , मेरे जैसा आदमी यह कैसे करेगा ? क्या किसान-मजदूर राज्य हो गया कि ऐसा करूँ ? जब कांग्रेस परस्ती के मानी सीधेसरकार परस्ती होगई , तब मेरे लिए वहाँ स्थान कहाँ ? पटना के प्रधान न्यायाधीश के शब्दों में अधिकार ने शासकों को नीचे गिरा दिया , दूषित बना दिया। फिर पतित परस्ती कैसी ?

यह सभी बातें मन में महाभारत मचा ही रही थीं। इतने में ऊँट की पीठ पर अंतिम तृण आ गया। दानापुर सब-डिवीजन में जो असेंबली का उप-चुनाव जनवरी के मध्य में हुआ , उसके लिए उम्मीदवार चुनने में कांग्रेसी कर्णधारों ने देश-सेवा की गर्दनिया दे , त्याग-बलिदान को ताक पर रख , खूनी जातीयता को ही तराजू बनाया और उसी पर तौलकर अपना उम्मीदवार घोषित किया। सभी जातियों के त्यागी , योगी धुनी लोग दानापुर इलाके में भरे पड़े हैं। मगर किसी की पूछ न हुई , हालाँकि लाख अनुनय-विनय की गई। हंसों का निपट निरादर कर के कौवे की पुकार हुई और कम-से-कम मेरे लिए यह असह्य था─ ऊँट की कमर पर अंतिम तृण था।