कागज के हवाई जहाज उड़ाने की प्रतियोगिता / जयप्रकाश चौकसे

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कागज के हवाई जहाज उड़ाने की प्रतियोगिता
प्रकाशन तिथि : 21 मई 2019


यूरोप के देश ऑस्ट्रिया के शहर साल्जबर्ग में कागज के हवाई जहाज उड़ाने की प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें 61 देशों के 380 छात्रों ने भाग लिया। अमेरिका के छात्र जैक हार्डी ने 56 मीटर तक जहाज उड़ाकर विजय प्राप्त की। भारत के छात्रों ने भी प्रतियोगिता में भाग लिया था। बच्चे कागज के जहाज और कागज की नाव भी चलाते हैं। इन्हीं के साथ कंचे और गिल्ली डंडा खेलते हुए वे जवां होते हैं। एक दौर में अखबारी कागज की लुगदी से खिलौने बनाए जाते थे और आज किताब प्रकाशन के व्यवसाय में लुगदी कथाएं रचने वालों को साहित्यकार माना जाता है।

विजय आनंद अभिनीत एक फिल्म का नाम 'कोरा कागज' था और गुरुदत्त की 'कागज के फूल' को भी फिल्म संस्थान में पाठ्यक्रम की पुस्तक की तरह पढ़ाया जाता है। राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और फरीदा जलाल अभिनीत शक्ति सामंत की फिल्म 'आराधना' की सफलता का सबसे अधिक श्रेय सचिन देव बर्मन रचित संगीत के माधुर्य को जाता है। इस फिल्म के गीत, 'कोरा कागज था मन मेरा, लिख लिया नाम तेरा' गाते हुए राजेश खन्ना ने सितारा हैसियत प्राप्त की। अखबार भी कागज पर ही प्रिंट होते हैं और ई-अखबार के इस दौर में भी पाठक अखबार पढ़ना पसंद करते हैं। शायद हाथ से अखबार के पृष्ठ पलटने का अपना आनंद है। कागज पर लिखी कथाएं सेल्युलाइड पर फिल्में बनाकर देखी जाती हैं। आजकल सेल्युलाइड की जगह डिजिटल पर फिल्में बनाई जा रही हैं परंतु क्रिस्टोफर नोलन जैसे फिल्मकार आज भी सेल्युलाइड का ही प्रयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें यकीन है कि डिजिटल अदृश्य हो सकता है।

वाचनालय में किताबों की कतारों के बीच से गुजरना भी आनंद प्रदान करता है। राजकुमार हीरानी ने अपनी फिल्म शृंखला 'मुन्नाभाई' में एक विलक्षण दृश्य रचा था, जब मुन्नाभाई और 'महात्मा गांधी' की मुलाकात वाचनालय में होती है। टेक्नोलॉजी ने ज्ञान प्राप्त करने के कई माध्यम रच दिए हैं, फिर भी कागज का अपना रोमांच है। बचपन में कागज के हवाई जहाज उड़ाने वाले बच्चों में कल्पनाशक्ति का विकास होता है। वे कागज की नाव पर बैठकर भी सात समुद्र पार कर जाते हैं। कल्पनाशक्ति के उदर से ही कई वैज्ञानिक खोजों का प्रारंभ हुआ है। आजकल कम्प्यूटर खेल खेलते हुए बच्चे आभासी संसार के नागरिक बन जाते हैं, जहां किसी आधार कार्ड की जरूरत नहीं होती।

सरकारों के सारे घपले भी कागज के द्वारा ही किए जाते हैं। जिन नेताओं ने बचपन में कागज के हवाई जहाज नहीं उड़ाए, वे सत्तासीन होकर फाइलों से छेड़छाड़ करते हैं। आम आदमी तमाशबीन बना रहता है, क्योंकि वह अपनी शक्ति से अपरिचित है। वह कस्तूरी की गंध के पीछे भागता है, जो उसकी नाभि में ही होती है। संभवत: इसलिए कई आख्यानों का सारा घटनाक्रम हिरण के कारण ही आगे बढ़ता है। चाहे वह सोने का हिरण हो या दुष्यंत शकुंतला प्रेम कथा में वर्णित हिरण हो। मनुष्य की हवा में उड़ने की इच्छा आदिकाल से ही रही है। उसे पंछियों से ईर्ष्या होती थी और मछली ने ही उसे तैरने की प्रेरणा दी। अपनी सरहदों को तोड़ने की महत्वाकांक्षाओं के लिए धरती छोटी पड़ती थी। वह तो 'ढाई कदम' में ही इसे पार कर चुका है। कबीर याद आते हैं, 'मैं कहता हौं आंखन देखी, तू कहता कागद की लेखी' कबीर के विचार को शैलेंद्र नया विस्तार देते हैं उनका 'जागते रहो' के लिए लिखा गीत है 'किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के सहारे..... जागो मोहन प्यारे' कबीर ने यह भी लिखा है कि 'पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।' आज प्रेम ही तो धराशायी है।