कातिल पत्नी कि पुरजोर कथा / जयप्रकाश चौकसे

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कातिल पत्नी कि पुरजोर कथा

प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2011

स्कूल पहुंचने के दो रास्ते हैं। समय और प्रयास दोनों में समान लगता है। एक मार्ग पर एक पागल कुत्ते के आतंक से बालिकाओं ने दूसरा मार्ग पकड़ा। परंतु एक बच्ची ने मार्ग नहीं बदला, वरन अपने पिता के पिस्तौल से कुत्ते को गोली मार दी। यह फिल्म 'सात खून माफ' की नायिका के बचपन का विवरण है- एक अन्य पात्र के द्वारा।

विशाल भारद्वाज की फिल्म माध्यम पर गहरी पकड़ है और वे हर फ्रेम को पच्चीकारी के साथ गढ़ते हैं, परंतु माध्यम में स्वयं को तराशने की प्रक्रिया में वे दर्शक को भूल जाते हैं। उनकी सारी फिल्में बुद्धिमान लोगों के लिए लिखे उनके शोध पत्रों की तरह हैं। इस सारी कसरत में भावना का आवेग नहीं बन पाता। दरअसल विशाल भारद्वाज विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं, परंतु उनका रवैया दर्शक को चकाचौंध करने का है और उसके मन को छूना शायद उनका अभिप्राय भी नहीं है। वे एक ऐसे छात्र की तरह नजर आते हैं, जो स्वयं की प्रतिभा से चकित है और अपने अदृश्य गुरु को अपनी प्रतिभा दिखाना चाहता है। गोयाकि वे एकलव्य हैं, जो अपने अदृश्य द्रोणाचार्य के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता है।

बहरहाल, इस बार उन्होंने शेक्सपीयर को बख्श दिया और रस्किन बांड की कथा 'सुजैनास सेवन हस्बैंड्स' पर आधारित फिल्म रची है। नायिका सच्चे प्रेम की तलाश में तलाश में सात शादियां करती है और अजब-गजब इत्तेफाक देखिए कि सातों पति विकृतियों के शिकार हैं और उन्हें कत्ल करना पड़ता है। उसको सच्चा प्यार दो जगह से मिलता है- एक उससे उम्र में बीस बीस वर्ष छोटा है और दूसरा उम्र में दो हजार दस वर्ष और लगभग पचास महीने बड़ा है। यह वाक्य विशाल की सिनेमाई शैली की तरह पाठक को चौंकाने के लिए लिखा गया है।

इस फिल्म में कातिल पत्नी कहती है कि हर पत्नी के मन में कभी न कभी अपने पति को कत्ल करने का विचार आता है। दरअसल हर व्यक्ति जीवन में प्राय: कुछ लोगों को नापसंद करता है, परंतु इस नापसंदगी की अभिव्यक्ति कत्ल द्वारा नहीं की जा सकती। हर पिस्तौल का ट्रिगर (घोड़ा) मनुष्य के दिमाग में होता है और ट्रिगर दबाने वाली अंगुली महज आज्ञा मानती है।

एक यूरोपियन कहानी में एक पत्नी अपने उम्रदराज बीमार पति की निर्ममता से पिटाई करती है क्योंकि आज उसे पति की तीस वर्ष पूर्व की गई बेवफाई का सबूत हाथ लगा है। इस फिल्म में बेवफाई केवल उसका रूसी पति करता है। पहला पति शारीरिक और मानसिक रूप से भी लंगड़ा है और इस कमतरी ने उसे हिंसक बना दिया है। दूसरा संगीत की चोरी करता है और सेक्स व्याधि का शिकार है। तीसरा रूसी पति भारत विरोधी जासूस और बेवफा है। चौथा शायर होते हुए भी मन से रोगी और आक्रामक है। पांचवां रिश्वतखोर सरकारी अधिकारी लंपट है। छठे को पैसे का लोभ है। बहरहाल, बचपन में पागल कुत्ते को गोली मारने वाली नायिका अपने सारे पतियों के साथ भी यही व्यवहार करती है। प्रियंका चोपड़ा ने इस कठिन भूमिका का निर्वाह कमाल का किया है। उनके शरीर का पोर-पोर भावाभिव्यक्ति में इस्तेमाल हुआ है। उनमें इतनी कशिश है कि कत्ल होने की संभावना के बाद भी आठवां उम्मीदवार हुआ जा सकता है।

बहरहाल, हिंदुस्तानी सिनेमा की ताकत उसकी विविधता में है और विशाल के सिनेमा का स्वागत है। अगर वे अधिकतम दर्शकों तक नहीं पहुंचना चाहते, तो उन्हें इसकी स्वतंत्रता है। अब तक उन्होंने छह फिल्में बनाई हैं- 'मकड़ी', 'मकबूल', 'द ब्ल्यू अंब्रैला', 'ओमकारा', 'कमीने' और 'सात खून माफ'। हालांकि इनमें से किसी को भी व्यापक बॉक्स ऑफिस सफलता नहीं मिली। विशाल जिस तरह का सिनेमा बना रहे हैं, उसमें आगे भी व्यापक सफलता संदिग्ध है। विशाल का सिनेमाई वेग आपकी आंखें नम नहीं करता, परंतु आप उसे अनदेखा भी नहीं कर सकते।