कायर / सहदेव साहू / दिनेश कुमार माली

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सहदेव साहू (1959)

पता:- के/8,प्लॉट न॰ 543, कलिंग नगर, भुवनेश्वर

प्रकाशित गल्प-ग्रंथ:- अपरान्ह भूत, निज बाटेरे निज दृश्य अंतराले नीर जन्ह राति लब्ध प्रमोदा और अन्यमाने, मौसमीर प्रथम वर्षा, गभीर निद्रार ईश्वर।


"मेरा बेटा एक अमीर आदमी का बेटा है और मेरी बहू भी एक अमीर परिवार से है। मेरे माता -पिता गरीब थे, मेरे बारे में क्यों कोई सोचेगा? ” सनातन की माँ इन शब्दों को अपने पिता के सामने गुनगुना रही थी, उन्हें दोपहर का भोजन कराने के बाद पान देते समय।

सनातन के पिता गरीब थे जब उनकी शादी हुई थी। यह उनकी कड़ी मेहनत और लगन का परिणाम था कि उसे 40 एकड़ जमीन के मालिक होने का गौरव प्राप्त हुआ और एक साल में तीन फसल काटने का। खेती के साथ-साथ उन्होने एक छोटा-सा उत्कर्ष कारोबार लगाया था। दो सहायक उस व्यवसाय चलाने में मदद कर रहे थे और उन्होने खेती का काम करने के लिए चार मजदूर लगा दिए थे। लेकिन जब उनकी शादी हुई थी, तब वह गरीब थे और उनके पास एक गरीब आदमी की बेटी से शादी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन जब उनका बेटा विवाह-योग्य हुआ, तब उन्होंने अच्छे घर की बेटी के हाथ माँगा। सनातन का ससुर इलाके में एक समृद्ध व्यापारी था।

"किसी के लिए स्वस्थ रहते मरना बेहतर है। क्या वे कभी भी हमारा ध्यान रखेंगे, जब हम बूढ़े और बीमार हो जाएंगे? तब यह कितना दर्दनाक होगा। इसलिए हम भगवान से अच्छी तरह प्रार्थना करें कि हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते-रहते शांति से स्वर्ग सिधार जाए, "उसके पिता ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

सनातन अपना दोपहर का भोजन करने के बाद खाट पर लेटा हुआ था और इन शब्दों ने उसे गोलियों की तरह छलनी कर दिया। वह इतना दुखी हुआ कि वहाँ और एक मिनट नहीं रह सकता था। वह अपने घर से बाहर निकलकर साइकिल पर सवार होकर चावल के खेतों की ओर चल दिया। वह इन सूक्ष्म शब्दों का मतलब समझता था, लेकिन वह इस अपमान से निपटने में असमर्थ अनुभव कर रहा था। उसकी पत्नी पुष्पलता हर सुबह जल्दी उठकर सूरज क्षितिज पर दिखाई देने से पहले स्नान कर लेती थी। वह घर के काम में व्यस्त हो जाती,हर किसी के लिए नाश्ता तैयार करना - अपने माता-पिता, अपनी बहन और बाकी सभी के लिए। अंत में उसका दिन का काम रात को ग्यारह बजे जाकर खत्म होता था। कोई भी आगे आकर हाथ नहीं बँटाता था। इतना करने पर भी अगर वह किसी समय कोई काम नहीं कर पाती तो वह उसके पिता द्वारा बुरी तरह प्रताड़ित की जाती थी। यदि कभी सेकते समय चपाती थोड़ी कच्ची रह जाती थी तो वह उसे नाले में फेंक देते थे। और अगर उसके धोए हुए बर्तन साफ और समय पर नहीं मिलते थे, तो सनातन की माँ उसके पूर्वजों की सात-पीढ़ियों को निर्दयता से अभिशाप देती थी ! और फिर भी, किसी में उसके के काम में हाथ बांटकर राहत देने का हृदय नहीं था।

सनातन की शादी से पहले उसकी मां घर का सारा कामकाज करती थी। उनके एक नौकरानी थी जो सफाई करती थी और बर्तन माँजती थी। वह कुएं से पानी भरती थी और उसकी मां के साथ मिलकर घर को साफ-सुथरा रखती थी। लेकिन जबसे नई दुल्हन घर में आ गई, उसने उसे हटा दिया। सनातन की बहन, शांति, भी बहुत क्रूर व्यवहार करती थी, आजकल वह अपना खाना खाने के बाद अपनी प्लेट भी नहीं हटाती थी ! एक बार, सनातन ने उसे इस बात के लिए डांटा। लेकिन उसकी माँ ने उसका पक्ष लेते हुए कहा, "बहनें थोड़ा आराम क्यों नहीं कर कर सकती है जब उनका भाई घर में एक दुल्हन लाता हैं?"

उसकी माँ की गलतियाँ निकालने वाला वहाँ कोई नहीं था। उनके माता पिता और बहन - सब उसकी पत्नी के दोष निकालते थे, भले ही कितनी भी छोटी-सी बात क्यों न हो। जब कभी वह घर पर होता था, वे तीनों एक साथ मिलकर उसकी पत्नी और उसकी असफलताओं पर चर्चा करते थे। और, उसके बाद, वे उसकी शिकायतों के पुलिंदे खोलना शुरू कर देते थे कि वह अपने आचरण में न तो कर्तव्यपरायण है न सम्मानजनक। न तो उसे दिमाग से खाना पकाना आता है और न ही वह अपने काम को सामान्यता सावधानी से करती है !.

लेकिन इन सारे झगड़े की जड़ कोई और थी। जब वे उसकी शादी की बातचीत कर रहे थे, तब उसके होने वाले ससुर ने उसके पिता से दहेज की मांग के बारे में पूछा था। उसके पिता ने अपने बेटे सनातन के निर्णय पर छोड़ दिया था। जब सनातन को अपनी बात रखने के लिए कहा गया, उसने मध्यस्थ तथा अपनी भावी दुल्हन के परिवार को अच्छी तरह बता दिया था कि उसे दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए। मध्यस्थ ने कहा, "हमने आपको एक मोटर साइकिल दिलवाने का फैसला किया है। " सनातन ने कहा, "मैं अभी नौकरी नहीं कर रहा हूँ। अगर तुम मुझे एक मोटर बाइक दे भी दोगे, तो क्या मैं ईंधन खर्च के लिए अपने पिता से भीख माँगूगा? अच्छा होगा,अगर आप मुझे कोई वाहन नहीं दे। "

उस दिन से उसके पिता सनातन से नाखुश थे। हालांकि उन्होने यह निर्णय सनातन पर छोड़ दिया था, मगर उनके मन ही मन एक इच्छा पल रही थी कि उसका बेटा भारी दहेज की मांग अवश्य करेगा। सनातन ने उन्हें पूरी तरह से निराश कर दिया था। वह बेरोजगार बेटे के स्वयं के हित में सही निर्णय नहीं ले सकने के कारण परेशान थे ! उन्होने कठोरतापूर्वक माँ से कहा, "अपने बेटे को देखो! वह कहता है कि उसे कुछ भी नहीं चाहिए। वह अपने पिता से ईंधन के पैसे भी नहीं मांग सकता है। क्यों, वह एक अमीर पिता है, और क्या उसे वास्तव में जरूरत है? वह अपने पिता को काफी आराम से रख रहा है, कहते हुए उसे इस बारे में शर्म नहीं आती। अब जब वह केवल स्नातक है, इस तरह से बात कर रहा है! सोचो जरा, कैसा व्यवहार करेगा जब उसे नौकरी मिल जाएगी? और तुम उम्मीद कर रही हो कि उसकी पत्नी घर के काम के बोझ से तुम्हें छुटकारा दिलाएगी ! और तुम्हारी सेवा-सुश्रूषा करेगी... "

उसके पिता को बड़ी ठोकर लगी जब उसके ससुराल वालों ने मोटर बाइक की पेशकश अस्वीकार करने के बाद और किसी प्रस्ताव की पेशकश नहीं की। शादी के खत्म होने के बाद, सनातन के पिता ने उसकी पत्नी के सोने के गहने एक सोनार के पास ले जाकर उनकी शुद्धता का परीक्षण भी करवाया था। नकली निकलने पर तो घाव पर नमक छिड़कने जैसी बात थी ! सनातन अब दोषी महसूस कर रहा था कि क्यों उसने शादी के लिए सहमति व्यक्त की, जबकि उसके पास कोई नौकरी नहीं थी। शुरू- शुरू में उसने कई शादी के प्रस्तावों को ठुकराया, लेकिन अपने पाँव पर खड़े रहने की कोई व्यवस्था नहीं कर पाया। दो साल बीत चुके थे उसका एम॰ए॰ का परिणाम आए हुए। वह अभी तक बेरोजगार था।

उसके पिता यह कह कर उसे तंग कर देते थे, "मेरी माँ बहुत बुजुर्ग है और अपने मरने से पहले पोते को देखने की इच्छा रखती है। उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। कहीं ऐसा नहीं हो कि तुम्हारे बच्चों को देखने की इच्छा अधूरी रह जाए ... ... यही वजह थी कि अंत में सनातन विवाह के लिए सहमत हुआ।

उसकी माँ भी कहने लगती, "मैं बूढी हो रही हूँ, अब और खुद घर चलाने के सारे काम नहीं कर सकती हूँ। दूसरा शादी के बाद पढ़ाई क्यों जारी नहीं रखते? तुमने कॉलेज की शिक्षा पूरी कर ली है और अब नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हो। क्या तुम्हें एक नौकरी नहीं मिल सकती है आखिर में?"

सनातन ने अंत में उनकी बातों पर ध्यान देने का फैसला किया और लंबे विचार-विमर्श के बाद शादी की गाँठ में बंध गया। उसकी पत्नी अनकही कठिनाइयों में फँसती जा रही थी और उसके पति की बेरोजगारी के कलंक के लिए परिवार की नाराजगी का खामियाजा उसे सहन करना पड़ रहा था। उसके पिता उसे गाली देते हुए कहते, "इतनी पढ़ाई करने की जरूरत क्या है? तुम वास्तव में एक बेकार आदमी हो ! क्या मैं कभी स्कूल गया? मैंने तो प्राथमिक स्कूल का चेहेरा तक नहीं देखा। लेकिन मैंने क्या हासिल नहीं किया, देखो! मेरे पास आज 40 एकड़ जमीन है और मैंने घर भी बनाया है. मुझे अपने पिता से कुछ भी विरासत में नहीं मिला। यह सब मेरे खून पसीने की कमाई है। जिस दिन मैं बहुत बूढ़ा या अमान्य हो जाऊंगा, ये लोग मेरी तरफ झाँककर भी नहीं देखेंगे! क्योंकि वे खुद भूख से मर जाएंगे ... ... '

और कभी-कभी, उसके पिता खुद से बुदबुदाते, "ये लोग गर्व से फैशन में बात करते हैं और ऊंची पढ़ाई के लिए इतना खर्च ... मेरी उम्र के जमाने में कोई जरूरत नहीं थी। भगवान ने वास्तव में मुझ पर कृपा की है। कम से कम, उन्हें अपने लिए संघर्ष करने दो ! मैंने उनके लिए काफी कुछ किया है, उन्हें शिक्षा दिलवाई, आराम के सारे साधन प्रदान किए, और अब मैंने उसकी शादी भी करवा दी, और मैं क्या कर सकता हूँ? "

इतने तेज कड़वे शब्द सनातन को विषैले तीर की तरह लगे। उसे अपने पिता की लगातार गालियां और उसकी माँ के पसंदीदा खिताबों ने उसे बुरी तरह निराश कर दिया कि वह कुछ भी नहीं कर सकता है,निकम्मा है। उसके पिता हमेशा उसे इलाके में अच्छी तरह से चमकते कामयाब मात्र बुनियादी शिक्षा वाले, सफल व्यक्तियों की याद दिलाते रहने से नहीं चूकते थे।

सनातन की भूख खत्म हो गई। उसे अक्सर अपने पिता का सामना करना पड़ रहा था और प्रतिक्रिया में जवाब देता, "मैं अब इस घर को हमेशा के लिए छोडकर जा रहा हूँ और ओड़िशा से भी दूर चला जाऊंगा। " कोलकाता, मुंबई या बेंगलुरु जैसे बड़े महानगरों में, कोई भी उसे नहीं पहचानेगा। भले ही, उसे जिस काम का वह हकदार है, नहीं मिले, लेकिन वह निश्चित रूप से भूखों नहीं मरेगा जब तक उसके हाथ और पैर साथ देंगे ! मगर पुष्पा? वह जिंदा है सिर्फ इसलिए कि वह उसके लिए वहाँ है। उसका क्या होगा,अगर वह चला गया ! शायद उसके माता-पिता उसे अपने मायके वापस भेज देंगे, लेकिन वे स्थायी रूप से उसका ख्याल रख पाएंगे?

सनातन के पास अपने पिता के कठोर शब्द सुनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, सिवाए उन्हें चुपचाप पचाने के। वह जानता था कि उसकी मां उसकी निर्दोष पत्नी को प्रताड़ित कर रही है, परंतु वह कभी हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। शांति, उसकी बहन, हमेशा उसकी उत्तेजक माँ को भड़काती थी और उसे उसकी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसाती थी, फिर भी उसने कोई विरोध नहीं किया। वह इंतजार कर रहा था कि कभी न कभी वह समय आएगा जब चीजों में सुधार होगा। आने वाला समय अच्छा होगा। उनका मानना था कि समय एक महान समतलक है और एक दिन, अपमान के घूंट और अपने परिवार के लिए उसका निकम्मा होने का कलंक, हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। अगर उसके पास एक नौकरी होती तो घर के हालात पूरी तरह से अलग होते, वह जानता था, घर में कम से कम समीकरण बदल जाते। हमेशा कोसने वाले पिता उसे काफी प्यार करते और उसकी पत्नी के साथ किसी भी कीमत पर कोई दुर्व्यवहार नहीं करता!

अपने बैच के साथियों में से कई पहले से ही नौकरी में थे, कोई आई॰ए॰एस, तो कोई ओ॰ए॰एस में, कोई बैंकों और बीमा कंपनियों में लग चुके थे। वह खुद भी इन प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठा था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। उसका आत्म-विश्वास लगातार विफलताओं की वजह से खत्म हो गया था। ... मगर उसके कई दोस्त उसकी तरह बेरोजगार भी थे। वह इस पर विचार करता कि पता नहीं क्यों उन्हें नौकरियों के लिए तरसना पड़ा,जिसके लिए वे कभी आकांक्षी थे। वह अच्छी तरह जागरूक नहीं था जब वह पढ़ाई कर रहा था और एक कैरियर निर्माण के बारे में तो बिलकुल सोचता नहीं था। जब वह स्कूल में था उसके पिता ने कभी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत, वह हमेशा उसे हतोत्साहित करते थे। स्कूल की छुट्टी होने पर वह उसे अपने काम और व्यापार देखने के लिए लगा देते थे। जब उसके दोस्त खेलते थे, वह अपने पिता के दिए काम करता था। चूंकि वह पढ़ाई में अच्छा था, उसे पढ़ाई के लिए अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। पर उसके पिता अक्सर उसे चिढ़ाकर कहते, "तुम इतने साल पढ़ाई करके क्या करोगे? कितना कमा सकते हो? एक पूरे वर्ष में मेहनत करने पर भी मेरे जितना मासिक वेतन अर्जित करने में सक्षम होंगे? "

जब उसकी मैट्रिक की परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उसके पिता ने कहा, "अब तुम्हें कॉलेज में और अधिक समय बर्बाद करने के आवश्यकता नहीं है। तुम पारिवारिक व्यापार में मेरी मदद करो। " उन्होने उसे बेलेन्स-शीट पकड़ाकर कहा कि उनके कम से कम पांच सौ रुपए हर महीने खर्च होंगे अगर वह अपने बेटे को एक कॉलेज में पढ़ने भेजते है और एक वर्ष में यह राशि पार कर जाएगी छह हजार रुपए! और अगर वह उच्च अध्ययन जारी रखता है, तो खर्च पचास हज़ार रुपए या उससे अधिक हो सकता है। यह कहकर उन्होने और ज्यादा उसका अपमान किया " तुम नौकरी से क्या कमा लोगे? अगर तुम अभी से मेरे काम में हाथ बँटाना शुरू करते हो, तो तुम बहुत कुछ कर सकते हो "। उसके परिणामों की घोषणा हुई। इस बार भी सनातन ने अच्छा किया और प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास की।

पहले से ही उच्च विद्यालय का प्रधानाध्यापक सनातन के पिता के स्वभाव से परिचित था और यही वजह है कि वह उन्हें अपने बेटे को कॉलेज भेजने के लिए मनाने हेतु उसके घर गए। . उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सनातन एक होशियार छात्र है, इसलिए वह एक चिकित्सक या एक इंजीनियर बन सकता है। सनातन के पिता ने अनिच्छा जाहिर की। सनातन कॉलेज जाने लगा। पर उसके मन में न तो कोई बड़ा विद्वान आदमी बनने की कोई उच्च महत्वाकांक्षा थी और न ही कोई बड़ा काम करने की ख्वाहिश। वह अपने पिता द्वारा लगातार अनादर और घर में कलह से बचने के लिए कॉलेज की पढ़ाई करना चाहता था। वह कुछ स्वतंत्रता भी चाहता था और जो उसे कॉलेज में मिल सकती थी।

सनातन अपने सताने वाले पिता से दूर आजाद जीवन जीने लगा। मगर उसके पिता को यह उम्मीद थी कि वह निश्चित रूप से एक दिन प्रतिष्ठित डॉक्टर या इंजीनियर बनेगा और उसकी पढ़ाई पर खर्च करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन सनातन उन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं में सफल नहीं हो सका। वह अपनी इंटर्मीडियट विज्ञान कक्षा को केवल दूसरे डिवीजन से पास कर सका और उसने स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए दर्शन-शास्त्र में दाखिला लिया। उसके पिता उसके खर्च बंद नहीं कर सके। सनातन खेलकूद में भी हिस्सा लेने लगा और देखते –देखते अपने कॉलेज में आयोजित बैडमिंटन टूर्नामेंट में चैंपियन बन गया था।

उसने स्नातकोत्तर स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और दर्शन-शास्त्र में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। सुनहरी धूप सर्दियों में चावल के खेतों पर उदार होकर फैल रही थी। एक बहुत बड़े नीम के पेड़ के नीचे चिकनी मिट्टी और गोबर के पलस्तर के मिश्रण से खलिहान तैयार किया जा रहा था। मजदूर वहाँ साफ धान के डंठलों को बंडलों में तैयार कर जमा करने में व्यस्त थे। धान के टीले के पास एक चारपाई थी, जहां थकेहारे लोग आराम करते हुए भी अपनी फसल पर निगरानी रख सकते थे। रात में, उसके पिता वहाँ सोने जाते थे और उनके दो सहायक पास पलस्तर किए खलिहान पर नीचे सोते थे।

सनातन चारपाई पर लेटते अपने मन की लहरों में खो गया। अगर पुष्पा थोड़ी होशियार होती ! वह शायद अपनी कई समस्याओं से बाहर निकल सकती थी। मगर एक अमीर आदमी की बेटी होने के बावजूद, उसने कॉलेज के परिसर में प्रवेश नहीं किया.। तीन प्रयासों में उसने स्कूल पास किया और वह भी पूरक परीक्षा के साथ। अगर वह केवल स्नातक होती, उसकी माँ उसके साथ इतनी कठोरता से पेश नहीं आती। आखिरकर, स्नातक बहू के साथ इस तरह का व्यवहार आसान नहीं था ! वे लोग उससे डरते। स्वयं बेरोजगार होने के कारण सनातन के पास अपने चयन का जीवन-साथी खोजने की कोई गुंजाइश नहीं थी। उसमें इन मामलों में अपने पिता का सामना करने की न तो हिम्मत थी न ही उसके पिता द्वारा उसकी शादी के फैंसले का विरोध करने की। काश उसने अन्नपूर्णा या पूरबी से शादी कर ली होती?

अन्नपूर्णा उसके साथ कॉलेज में पढ़ती थी। उनमें नोट्स और पत्रों का आदान - प्रदान होता था। वह दिखने में अच्छी थी। वह उसके बारे में प्यार भरे सपने देखता। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, सनातन ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई जारी रखी जबकि अन्नपूर्णा ने बी.एड. पाठ्यक्रम चुना। मगर उनमें पत्रों का विनिमय बंद नहीं हुआ। वे कभी कभार एक-दूसरे से मिलते थे।

लेकिन जब से वह पूरबी से मिला, सनातन को लगा कि अन्नपूर्णा उसके लिए बहुत अपरिष्कृत थी। उसके पास कोई लालित्य, या शैली नहीं थी। उसे तो यह भी पता नहीं था कि साड़ी कैसे ठीक से पहनी जाती है। वह उसे इस तरह से बांधती थी कि उसकी गर्दन के नीचे की त्वचा का एक पैच भी दिखाई नहीं देता था। वह अपने बालों में बहुत अधिक तेल डालती थी और उन्हें कसकर बांधती थी। उसका नाक हमेशा बहता रहता था और अगर वह कॉलेज में नहीं होती तो उसे आसानी से बदसूरत नाक वाली देहाती लड़की के रूप में पहचाना जाता!

सनातन ने खुद उससे धीरे-धीरे दूरी बढ़ाना शुरू किया। वह उसके पत्रों का जवाब नहीं देता था। जब वह उसे उसके छात्रावास के कमरे में मिलने आई, तो उसने बहुत अनिच्छापूर्वक उसका स्वागत किया। और अगर उसे उसके आने का संकेत मिल जाता था, तो वह फरार हो जाता था और उससे बचने के लिए दूर कहीं और चला जाता।

जब अन्नपूर्णा को पूरबी के बारे में पता चला, तो उसने भी अपनी तरफ से संबंध विच्छेद कर दिए। . पूरबी के नाम ने कई वर्षों के बाद भी उसके दिल में सनसनी पैदा कर दी।

पूरबी और वह एक साथ कई घंटे विश्वविद्यालय की कैंटीन में बैठकर कोल्ड ड्रिंक्स पीते थे। वे एक साथ फिल्म देखने जाते थे। और वे घंटे-घंटे लेडीज छात्रावास के सामने पेड़ की छाया में एक दूसरे से मीठी-मीठी बातें करते। सनातन ने अपने जीवन में पहली बार उसे चूमा था। उसका हर दोस्त पूरबी के साथ उसके खिलते रोमांस के बारे में जानता था। हर किसी को उम्मीद थी कि एक बार सनातन को अच्छा जॉब मिल जाएगा तो वह पूरबी से शादी कर लेगा।

इस बीच एक साल बीत गया। उनके एम॰ए॰ की परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद पूरबी ने सनातन को कहलवा भेजा। वह उसे उसके घर में मिलने गया.। पूरबी ने उसे शांतिपूर्वक कहा कि उसके पिता ने उसकी शादी तयकर दी है। दूल्हा न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी में एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में काम करता है। "... तुम्हारी अभी तक जॉब नहीं लगी। आप क्या कहते हो? " पूरबी ने उससे खुलकर पूछा।

इस तबाही का उसके पास क्या जवाब हो सकता था ! “तो तुम तुम्हारे पिता ने जिसे चुना है उससे शादी कर लो ! " सनातन ने सोचा था कि पूरबी के अंतिम निर्णय पर ही वह अपना फैसला तय करेगा अगर वह अपने आप उस दूल्हे से शादी करने से इंकार कर दें. पूरबी ने कहना जारी रखा, "तुम्हें मेरी शादी में आना होगा. अगर तुम नहीं आओगे तो मुझे दुख लगेगा। "

सनातन ने उसकी शादी में भाग लिया। उस शाम, सजी-धजी पूरबी अपने दूल्हे और आसपास इक्कट्ठे दोस्तों के साथ खुशी से हँस रही थी। सनातन उन हँसी के ठहाकों को बर्दाश्त नहीं कर सका। शादी के उपहार में वह पूरबी के लिए एक किताब लाया था, उस पैकेट को सौंपकर वह दूर चला गया। पूरबी ने वहाँ ज्यादा समय तक रूकने के लिए पूछने की जहमत तक नहीं उठाई। पूरबी अब मुंबई में अपने पति के साथ रहती थी। अन्नपूर्णा एक स्कूल शिक्षक बन गई और उसने एक कॉलेज व्याख्याता से शादी कर ली।

सनातन अचानक खाट से उतर गया। किसानों का धान के डंठल काटने का काम समाप्त हो गया था और वे उन्हें भारी बंडलों में बांधकर खलिहान में टीले में रखने का काम कर रहे थे। . सूर्य घट रहा था और पश्चिमी क्षितिज पर पहाड़ियों के पीछे डूबने लगा था। सुनहरी धूप चावल के खेतों में हर जगह पसर गई थी।

उसने अपने पिता को उसकी तरफ साइकिल पर आते देखा, और वह अपनी साइकिल पर घर चला गया। वह और कहाँ जा सकता था? घर का वातावरण अच्छा नहीं था। यहाँ उसका दम घुट रहा था, अपने आंख, नाक, और यहां तक कि उसके कपडों में भी अवांछनीय वातावरण महक रहा था। पान की दुकान से दो सिगरेट खरीदकर पांच या छह माचिस की तीलियों से भरी डिबिया को लेकर वह नदी के किनारे गया नदी से कुछ ठंडा पानी निगलकर उसने सिगरेट जलाई।

घर की समस्याओं के बारे में जितना वह सोचता था, उतना ही अधिक आश्वस्त होता था कि काश पुष्पा अधिक शिक्षित और आधुनिक होती, ये समस्याएं कभी सामने नहीं आती। पुष्पा के भाई और उसके माता-पिता ने भी उसे बीमार बना दिया था। यह एक और अलग मुद्दा होता कि काश वे वास्तव में कंगाल होते ... लेकिन इतने अच्छे परिवार के होने बावजूद उन्होने दहेज के लिए उसके परिवार को धोखा दिया और उसके पिता निराशा! यह बात उसे बेहद चुभी और ज्यादा जटिल थी कि उसके परिवार के सदस्यों में से कोई भी कभी भी उनकी शादी के बाद पुष्पा के ससुराल नहीं गए। वे सब बस व्यस्त थे। लेकिन उसके पिता कभी भी इसे मुद्दा बनाने से नहीं चूकते और कहते रहते कि वे जानबूझकर उनके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे !

जब वह घर पर पहुंचा, रात के नौ बज रहे थे। उसके पिता घर पर नहीं होंगे, धान के खेत में अपनी फसल पर निगरानी रखने गए होंगे। उसकी माँ ने एक किसान के साथ टिफिन में उनका रात का खाना भेज दिया था। शांति रसोई में बर्तन साफ कर रही थी। पुष्पा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। सनातन समझ गया था कि कुछ न कुछ अवश्य हुआ है। उसकी माँ ने उसे भोजन के लिए आवाज दी। शांति ने उसे भोजन परोसा। शांति और उसकी माँ, दोनों के चेहरे निराशाजनक थे और दोनों एकदम चुप थी।

भोजन खत्म करने के बाद वह फिर से बाहर चला गया और पान की दुकान से सिगरेट खरीदकर लंबे कश लगाने लगा। फिर एक डीलक्स पान चबाकर दिमाग से सारे गंदे विचारों को भगाने लगा। जब दुकानदार अपनी दुकान बंदकर जाने लगा, सनातन बेंच से उठ खड़ा हुआ और घर चला गया। शांति और दूसरे तब तक सोने चले गए। हर जगह सन्नाटा राज करने लगा।

उसकी माँ अभी भी जाग रही थी, उसके वापस आने के इंतज़ार में। जैसे ही उसने घर में कदम रखा वह पूछने लगी, "तुम अब तक कहाँ थे? मैं तुम्हारे लिए इंतज़ार कर रही थी। हर कोई बहुत पहले सोने चला गया है! " सनातन ने अपनी रूखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, 'मैं आस-पास सैर कर रहा था'। वह चली गई।

सनातन मुख्य दरवाजा बंद कर अपने बेडरूम के लिए ऊपर चला गया। पुष्पा बाहर की रोशनी में बिस्तर पर लेटी हुई थी। वह अभी भी जाग रही थी। उज्ज्वल चांदनी जो खुली खिड़की से छनकर बिस्तर पर एक सफेद चमकीला आयताकार पैच बना रही थी। सनातन ने दरवाजा बंद कर दिया, अपनी कमीज उतारी और फिर पूछने लगा "आज क्या हुआ?"

पुष्पा ने कहा, "तुम्हारे पिता ने कहा कि मैं बदकिस्मत हूँ, और वह मेरे हाथ से यहाँ तक पानी भी नहीं स्पर्श करेंगे। "

'क्यों? "सनातन ने पूछा।

पुष्पा ने तब सिसकना शुरू कर दिया "आप अपने घरवालों से क्यों नहीं पूछते?"

"वास्तव में तुम उनके दिल जीतने की कोशिश नहीं कर रही हो। यदि तुम ऐसा कर सकती तो इस तरह की समस्याएं पैदा नहीं होती "सनातन ने पत्नी को शांत करने की कोशिश की।

"और आपके बारे में?"

सनातन परेशान होकर कहने लगा, "तुम्हें मेरी हालत पता है। मुझे अभी तक काम नहीं मिला है। उन पर निर्भर होने की वजह से मैं अपने पिता को क्या कह सकता हूँ? "

"तो फिर आपने मुझसे शादी क्यों की? "

इस बार सनातन क्रोध से फुंफकार उठा, "तुम्हारे पिता और भाइयों ने मुझसे तुम्हारी शादी क्यों करवाई? क्या वे जानते नहीं थे कि मैं बेरोजगार हूँ? वे जिम्मेदार नहीं थे? वे उसे एक बेरोजगार लड़के को सुपुर्द कर सस्ते में शादी निपटाना चाहते थे। "

पुष्पा अब ज़ोर से रोने लगी। और खुद से कहने लगी, "मैं खुश होती अगर मैंने आप जैसे कायर, अति दुर्बल पुरुष से शादी करने के बजाय एक दिहाड़ी मजदूर से शादी की होती ...”

सनातन आरोप से बौखला उठा। उसका खून उबलने लगा और सभ्यता का मुखौटा नीचे गिर गया।

वह अचानक उसके ऊपर चढ़कर उसकी गर्दन पकड़कर चिल्लाने लगा, "तुमने क्या कहा, फूहड़ कहीं की? " एक हाथ से उसकी गर्दन को कसकर और दूसरे हाथ से पास पड़ा टर्किश तौलिया उठाकर उसके चेहरे को ज़ोर से दबाने लगा। पुष्पा सनातन की मजबूत पकड़ से बाहर निकलने के लिए कड़ी मेहनत करने लगी। लेकिन सालों से क्रिकेट और बैडमिंटन खेलने के कारण उसके हाथ मजबूत और कठोर हो गए थे। पुष्पा पर उसके हाथ तब तक कसे रहे, जब तक उसके गले से एक भी शब्द बाहर निकलना बंद न हो गया हो। पुष्पा ने अपने घुटनों से उसे लात मारने की कोशिश की। मगर इससे सनातन की जंगली पकड़ मजबूत तथा अधिक क्रूरतापूर्ण बन गई। सनातन उस समय ऐसे बैठ गया जैसे गिनती भूल गया हो। थोड़ी देर बाद, पुष्पा ने घुटनों से उसकी पीठ पर लात मारना बंद कर दिया। उसके हाथ अब नहीं चल रहे थे। सनातन होश में आया। उसे छोड़कर वह उठ गया। उसने स्टूल पर रखा एक गिलास पानी पिया। यह उसकी पानी पीने की आदत थी जब भी वह रात में उठता था। उस रात भी वह पानी का गिलास रखना नहीं भूली थी।

वह दरवाजा खोलकर बालकनी में बाहर चला गया.। वहाँ एक पीपल का पेड़ था और वह श्वेत धवल चांदनी में चमक रहा था। हवा ठंडी थी और उसे लगने लगा कि उसकी नसों में वापस जान आ रही हो। और फिर उसे अपने हाथों में जलन महसूस होने लगी। उसने देखा कि उसके हाथों पर खून के निशान थे। अपनी लुंगी से उसने उन्हें साफ किया। उसके हाथ में पुष्पा के नाखूनों के चोट के निशान थे, जब वह सांस के लिए संघर्ष कर रही थी। वह चौंक गया था कि इतनी मामूली खरोंच से इतना खून? सनातन अपने कमरे में वापस चला गया।

जब वह लाइट जला रहा था, एक अज्ञात भय से वह कांपने लगा। उसने लाइट नहीं जलाई। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने जग से कुछ अधिक पानी डाला।

चांदनी कमरे की खिड़की से कम होती जा रही थी। उसने मद्धिम प्रकाश में देखा कि तौलिया अभी भी पुष्पा के चेहरे पर पड़ा हुआ था। उसके चेहरे से तौलिया हटाने के लिए उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने उसकी जांघों और पैरों से साड़ी हटाई।

वह अंधेरे में अपनी पतलून और शर्ट एकत्र करने लगा और दूसरी पतलून की जेब से अपना बटुआ लेकर अपनी जेब में डाल दिया। पुष्पा को देख बिना, वह नीचे उतर गया। बहुत छिपकर उसने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।

जब वह मुख्य दरवाजा खोलने लगा, दरवाजे पर लेटे आवारा कुत्ते एक या दो बार भौंके और फिर चुप रहे। सनातन पीछे मुड़े बिना तेजी से चला गया।