काल-मृत्यु / प्रतिभा सक्सेना

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अभी तक सुना करती था कि अमुक, उपायों से अमुक रसायनो से या अमुक (अष्टांग योग आदि की) साधना से -आयु बढ़ जाती है। मुझे आश्चर्य होता था प्रश्न उठता था- संसार में जीव अपनी निश्चित आयु लेकर आता है, गिनी हुई सांसें, निश्चित अवधि। फिर इन उपायों से क्या विधि के विधान में व्यवधान आ जायेगा!

पर अब जाना कि मृत्यु दो प्रकार की होती है। काल-मृत्यु और अकाल मृत्यु। अकाल-मृत्यु रोग, से विष से या अन्य अनगिनती प्रकार से हो सकती है। बताये गये सब उपाय शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और रखने के लिये हैं - अकाल मृत्यु से बचने का हर संभव, सावधान प्रयत्न!

और कालमृत्यु जन्म के साथ जुड़ा एक सत्य - सृष्टि का अनिवार्य नियम।

कालमृत्यु हमारे यहाँ ग्राह्य है, पूजनीय है (कालमृत्यू च सम्पूज्यो सर्वारिष्ट प्रशान्तये)। उसके प्रति भय या तुच्छ-भाव रख कर भागने और बचने का कोई लाख प्रयत्न करे, सब बेकार। यह विधान उन मनीषियों ने इसीलिये किया होगा कि ऐसी मानसिकता का निर्माण हो और जीवन का मान और गौरव इसी में कि सहज-स्वाभाविक धर्म समझ कर इसे शिरोधार्य कर सकें। इसीलिये वैभव, शक्ति या विद्या-कला की साधना में भी यह भान भूले नहीं। और सचमुच शक्ति-त्रय में से किसी की भी (शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती) साधना में कालमृत्त्यु का स्मरण विहित है (दुर्गासप्तशती में) - क्योंकि कालमृत्यु देह का धर्म है।

उद्देश्य यही होगा कि साधना के क्रम में और सफल होने पर भी व्यक्ति को अपनी असलियत का भान रहे, और व्यर्थ के अहंकारजन्य अरिष्टों का शमन होता रहे

ऊपरी उपाय ग्रहणीय हैं स्वस्थ और मुदित रहने के लिये।जीवन की क्वालिटी बढाने के लिये

यों तो सुधी-जनों के अपने -अपने मत होंगे, और अपने विश्वास भी!