किराए की कोख और उसके समान अर्थव्यवस्था / जयप्रकाश चौकसे

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किराए की कोख और उसके समान अर्थव्यवस्था
प्रकाशन तिथि : 21 दिसम्बर 2018


किराए की कोख लेकर शिशु को जन्म देने पर कानूनी बंदिश लगा दी गई है। अभी यह सहूलियत प्राप्त करने के लिए सरकारी आज्ञा लेनी होगी और परिस्थितियों को स्पष्ट करना होगा। इस विषय पर कुछ फिल्में बनी हैं। सबसे पहले जापान में 'सरोगेट मदर' नामक फिल्म बनी थी। भारत में विक्टर बनर्जी व शबाना आज़मी अभिनीत फिल्म बनी थी। सलमान खान, रानी मुखर्जी और प्रीति जिंटा अभिनीत फिल्म में किराए पर कोख देने वाली महिला को शिशु से इतना अधिक स्नेह हो जाता है कि वह पहले किए गए करारनामे को रद्द करके शिशु को अपने पास रखना चाहती है। इस फिल्म में भ्रूणरोपण नहीं है वरन शारीरिक अंतरंगता के माध्यम से शिशु प्राप्त किया जाता है। नए कानून के तहत किराए की कोख परिवार के सदस्य द्वारा ही ली जा सकती है। यह कानून किराए की कोख को अपना व्यवसाय बनाने के खिलाफ उठाया गया कदम है। संसद में सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी एतराज दर्ज किया है कि इस कानून में कई बातें स्पष्ट नहीं की गई है और धुंध पैदा की गई है।

पति और पत्नी का बीज ही अन्य महिला के गर्भ में रोपित किया जाता है और शिशु माता-पिता के जींस लेकर ही पैदा होता है। एक व्यक्ति अपने रहने के लिए किराए पर कमरा लेता है और वहां अपना सामान रखता है। दीवार पर अपनी पसंद के फोटो व कैलेंडर लगाता है। अपनी देवी-देवता की प्रतिमा भी रखता है परंतु किराए का कमरा खाली करते समय उसे अपनी सब व्यक्तिगत चीजें हटानी होती है। इनमेें वहां की यादें भी वह साथ ले जाता है और इस 'असबाब' का किराया नहीं देना पड़ता। इष्ट देवता की प्रतिमा भी साथ ले जाता है और अब उसी स्थान पर नया किराएदार अपने इष्ट देवता या देवी की प्रतिमा रखता है। दीवार वही रहती है परंतु देवी-देवता बदले जाते हैं। इसी तरह किराए की कोख ली जाती है। इसके साथ ही किराए की कोख देने वाली स्त्री के कुछ जींस भी शिशु को मिल सकते हैं। जैसे किराए पर लिए गए कमरे की दीवार पर आपके हटाए गए कैलेंडर का किला दीवार पर ही जड़ा रह जाता है। उसके लगाए जाने वाले हिस्से की दीवार का रंग भी शेष दीवार पर पुते हुए रंग से थोड़ा भिन्न हो जाता है।

याद आता है कि ऋषिकेश मुखर्जी की 'मुसाफिर' नामक फिल्म में एक ही मकान में बारी-बारी से तीन किराएदार आकर रहते हैं और वह तीन परिवारों की कथा व्यक्त करती है। सितारों के होने के बावजूद यह फिल्म असफल रही। बाबू मोशाय मुखर्जी ने राज कपूर, नूतन और ललिता पवार अभिनीत 'अनाड़ी' बनाकर सफलता प्राप्त की और 'आधी हकीकत आधा अफसाना' की सिनेमाई शैली के महत्व को समझ लिया। इसके बाद उनका फिल्मी सफर आसान हो गया। किराए की कोख नि:संतान दंपति के जीवन में सहारा होती है, जिस पर अब कानूनी व्यवधान पैदा किया गया है। इसे परिवार की सीमा में बांध दिया गया है, परंतु परिवार में कोई भी सदस्य डॉक्टर के मतानुसार इस उत्तरदायित्व को वहन करने में सक्षम नहीं है तो वह दंपति कभी माता-पिता नहीं बन पाएंगे। इसी कारण सत्ता पक्ष ने भी इस कानून का विरोध किया है। यह सरकार की शैली है कि एक कदम आगे ले जाकर दो कदम पीछे हटते हैं। ढोल नगाड़ोंं के साथ जीएसटी लगाया परंतु उससे छूट के दायरे फैलते ही जा रहे हैं। गोयाकि वह लगा परंतु नहीं लगे के समान हो गया है। इस तरह सरकार कदम-ताल करती हंै और इसी कवायद के ही लिए तो सारा तामझाम रचा गया था। तर्कसम्मत वैज्ञानिक सोच को ध्वस्त करने की साजिश रची थी कि हुड़दंग खूब पनपे और समानांतर सरकार बन जाए। नारी की कोख एक ऐसा रहस्य है, जिसे विज्ञान लाख प्रयत्न के बाद भी पूरी तरह समझ नहीं पाया। इस गुफा का द्वार खुल जाए ऐसा कोई 'खुल जा सिम सिम' अभी तक मानव के बस में नहीं आया है। मानो अवचेतन भी ऐसा ही रहस्य है। जीवन की रोचकता कुछ रहस्य के अनसुलझाए बनी रहती है। जीवन के प्रश्न-पत्र में यह सवाल आवश्यक नहीं माना जा सकता। प्राय: अनसुलझे बंद ताले प्रेम नामक चाबी से खुल जाते थे परंतु अब संवेदना शून्य मनुष्य प्रेम का अभिनय मात्र ही कर पा रहे हैं। क्षणिक सुविधा का दलदल सब कुछ लील रहा है। महानगरों में 'डिन्क्स' जीवन शैली जोर पकड़ रही है। इसका अर्थ है 'डबल इनकम नो किड्स' गोयाकि पति पत्नी दोनों दफ्तर से लौटते हैं और दावतों में शरीक होते हैं। उनके बीच शिशु को जन्म नहीं देने का अलिखित करारनामा है, क्योंकि वे उत्तरदायित्व से बचना चाहते हैं। इस तरह के जोड़े एक दिन दावतों और रेस्तरां में रात के भोजन लेने से भी ऊब जाते हैं। गुजश्ता सभ्यताएं ज्ञान की कमी या उसे खोजने का प्रयास बंद करने के कारण ध्वस्त हो गईं परंतु वर्तमान सभ्यता जानकारियों की अधिकता एवं अकारण घिर आई उदासी और ऊब के कारण ध्वस्त हो सकती हैं।

वर्तमान में व्यवस्था ने नियमों का जंगल रच दिया है। टेलीविजन पर 'पटियाला बेब्स' और 'लेडीज स्पेशल' ये दो सीरियल जारी हैं। 'लेडीज स्पेशल' में कारखाने के कुशल कारीगर का अपमान किया जाता है और अहंकारी मालिक क्षमा याचना भी नहीं करता। कारीगर पत्नी की प्रेरणा से त्यागपत्र दे देता है। यह दंपती पास-पड़ोस के लोगों से धन लेकर सिलाई का सहकारी व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं परंतु व्यवसाय के लिए आवश्यक लाइसेंस और जीएसटी नंबर नहीं होने के कारण पूरा पैसा जमा कर देने के बाद भी उन्हें सिलाई मशीनें नहीं दी जाती। उन्हें एक बड़ा ऑर्डर मिल सकता है परंतु घर की मशीन भी जब्त कर ली जाती है और रिहायशी क्षेत्र में व्यवसाय करने के लिए दंडित भी किया जाता है। घर में कोई पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाला व्यवसाय नहीं खोला जा सकता परंतु सिलाई मशीन तो कोई धुआं नहीं देती। 'सुई धागा' की कहानी भी कुछ इसी प्रकार है। सिलाई मशीन किराए की कोख नहीं होती। दहेज में सिलाई मशीन दी जाती रही है क्योंकि वह बहुत उपयोगी है और महिला की मददगार है। यह एकमात्र मशीन है जिसके खराब होने की न्यूनतम संभावना रहती है। पैरों से चलाने के साथ ही हाथ से चलाई जाने वाली मशीन भी उपलब्ध है। कुछ दशक पूर्व आमिर खान अभिनीत एक फिल्म में आपसी सहयोग आधारित सिलाई मशीन व्यवसाय का विषय लिया गया था।

फिल्म में पार्श्व गायन भी किराए पर ली गई आवाज का काम है। लता मंगेशकर, आशा भोसले हमारी राष्ट्रीय संपदा हैं, जिनके होते भारत को गरीब देश नहीं कहा जा सकता। दरअसल मौजूदा अर्थव्यवस्था भी किराए की कोख के समान ही है। कानून के जानकार को अर्थव्यवस्था दे दी तो उसने रुकावट पैदा करने वाले कानून बना डाले। यह व्यवस्था उस सड़क की तरह है जिस पर अनगिनत स्पीड ब्रेकर बना दिए गए हैं।