किशोर कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी / जयप्रकाश चौकसे

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किशोर कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2021


किशोर कुमार ‘खंडवा वाले’ का जन्म 4 अगस्त 1929 को हुआ था और उन्होंने 13 अक्टूबर 1987 को इस दुनिया को अलविदा कहा। उनके बड़े भाई अशोक कुमार बाम्बे टॉकीज फिल्म निर्माण संस्था से बहुत पहले ही जुड़ चुके थे। किशोर ने 1946 में ‘शिकारी’ और 1948 में ‘जिद्दी’ नामक फिल्म में भी अभिनय किया था। किशोर अभिनीत फिल्म ‘शरारत’ और ‘रागिनी’ में उनके लिए मोहम्मद रफी ने पार्श्व गायन किया और मेहनताने के रूप में मात्र 1 रुपया ही लिया। क्या रफी ने किशोर कुमार की गायन क्षमता को उसके उदित होने के पहले ही जान लिया था। यह संभव है कि प्रतिभाशाली लोग किसी अदृश्य डोर से बंधे होते हैं।

बिमल रॉय की फिल्म ‘नौकरी’ में किशोर के अभिनय को पसंद किया गया। किशोर सुपर सितारा पार्श्व गायक बने शक्ति सामंत की राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर, फरीदा जलाल अभिनीत फिल्म ‘आराधना’ से। ‘आराधना’ के पहले वे दो असफल फिल्मों में काम कर चुके थे। ज्ञातव्य है कि ‘आराधना’ में एक गीत मोहम्मद रफी ने भी गाया था, ‘गुनगुना रहे हैं भंवरे खिल रही है कली-कली।’

1975 में आपातकाल के समय सूचना मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने किशोर कुमार को संदेश भेजा कि वे आपातकाल के प्रचार के लिए एक गीत गाएं। किशोर ने इन्कार कर दिया तो उनके घर आयकर विभाग ने छापा मारा। काला धन तो नहीं मिला परंतु विभाग ने किशोर की कुछ फिल्में जब्त कर लीं। ये फिल्में किसी सरकारी गोदाम में सड़ गई होंगी।

ज्ञातव्य है कि निर्माता रमेश बहल की सभी फिल्मों में किशोर कुमार ने पार्श्व गायन किया। एक बार रमेश बहल खाकसार को किशोर कुमार से मुलाकात कराने ले गए थे। किशोर कुमार ने बताया कि उनके सनकीपन के किस्से सुनाए जाते हैं। एक बार किसी मित्र की सिफारिश पर अमेरिका से प्रशिक्षित भारतीय गृह सज्जा विशेषज्ञ उनसे मिलने आया। मुंबई में गर्मी के मौसम में विशेषज्ञ गर्म सूट और टाई पहनकर आए थे। उनकी यह पोषाक किशोर को बहुत बुरी लगी। उन्होंने विशेषज्ञ महोदय से कहा कि वे अपने बंगले का बैठक कक्ष एक तरण ताल के स्वरूप में बनवाना चाहते हैं। मेहमान छोटी नाव पर आए और मेजबान भी नाव पर सवार हो। चाय तीसरी नौका पर आए। मुंबई में कश्मीर की डल झील का छोटा स्वरूप गढ़ दीजिए। वह विशेषज्ञ भाग गया और उसने लोगों से कहा कि किशोर सनकी है। इसी तरह अमेरिका से लौटा एक भारतीय व्यक्ति उनसे मिलने आया। उसने एक शब्द भी अपनी मातृभाषा बांग्ला में नहीं बोला। धाराप्रवाह अंग्रेजी झाड़ रहा था। किशोर अपने बगीचे में जाकर वृक्षों से बांग्ला भाषा में बात करते रहे। इस व्यक्ति ने भी उन्हें सनकी कहकर प्रचारित किया। एक बार निर्माता उनसे अपनी अधूरी फिल्म पूरी करवाना चाहता था। उसने कई लोगों से सिफारिश कराकर दबाव बनवाया।

किशोर ने उससे अगले दिन स्टूडियो पहुंचने का वादा किया। वे अपना सिर मुंडवाकर स्टूडियो पहुंचे। दरअसल किशोर की इच्छा के विपरीत उनसे कुछ भी कराया नहीं जा सकता था।

एक बार किशोर अभिनीत एक फिल्म की शूटिंग में तकनीशियनों ने उनसे कुछ मिनटों के ओवर टाइम का भी ज्यादा पैसा मांगा। फिर क्या था किशोर ने उन्हें सबक सिखाने के लिए एक आउटडोर शूटिंग तय की। तकनीशियनों को अग्रिम राशि दी। यूनिट की गाड़ी उन्हें सुबह दूर एक स्थान पर छोड़कर चली गई। किशोर वहां पहुंचे ही नहीं। कर्मचारी धूप में दिन भर भूखे-प्यासे रहे। शाम छह बजे यूनिट की गाड़ी उन्हें वापस लेने आई। कभी-कभी निर्माता रिकॉर्डिंग के बाद पूरा पैसा नहीं देते थे। किशोर का सचिव भुगतान मिलने का संकेत देता था। एक दिन संकेत नहीं मिलने पर किशोर कुमार चले गए। फिर सचिव ने उन्हें बताया कि वे स्वयं ही इस फिल्म के निर्माता हैं, तो संकेत की जरूरत ही नहीं थी। बहरहाल, किशोर की फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ श्रेष्ठ हास्य फिल्म मानी जाती है। इसे देखने से सेहत चंगी हो जाती है।