किशोर कुमार बायोपिक निरस्त / जयप्रकाश चौकसे

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किशोर कुमार बायोपिक निरस्त
प्रकाशन तिथि : 30 अप्रैल 2014


विगत कुछ वर्षों से अनुराग बसु रनबीर कपूर को लेकर किशोर कुमार के जीवन से प्रेरित फिल्म बनाने का प्रयास कर रहे थे और यू टीवी कम्पनी की पूंजी इस फिल्म में लग रही थी। अनुराग की लिखी पटकथा पर किशोर कुमार की पत्नी लीना की सहमति है परंतु उनके दोनों पुत्रों ने कुछ दृश्यों पर एतराज उठाया और उनके नहीं बदले जाने पर वे कानूनी ढंग से फिल्म को रोकेंगे। अनुराग बसु अपनी पटकथा में परिवर्तन नहीं करना चाहते क्योंकि उन्होंने किशोर कुमार के जीनियस की भावना को ही केंद्र बनाकर पटकथा लिखी थी। अब यह तय हो चुका है कि किशोर कुमार बायोपिक वे नहीं बनाएंगे, इस तरह रनबीर कपूर एक महान भूमिका से वंचित हो गए हैं।

दरअसल विदेशों में बायोपिक बनाने वाले फिल्मकार को सृजन की पूरी स्वतंत्रता होती है परंतु भारत में परिवार की रजामंदी आवश्यक है। यह तो उचित है कि बायोपिक बनाते समय कुछ धन परिवार को दिया जाये जिसके लिए अनुराग बसु तत्पर थे परंतु वे किशोर कुमार जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी के मुखौटों के परे मानवीय करुणा से ओतप्रोत स्वरूप को दिखाना चाहते थे। परिवार के सदस्य अपनी नजर और अपने अनुभवों वाले नायक को देखना चाहते हैं। उनके रिश्ते और व्यक्तिगत अनुभव पर किसी को एतराज नहीं परंतु एक फिल्मकार को अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता है। किशोर कुमार के बेटों ने स्वयं इस तरह का बायोपिक रचने का कभी विचार ही नहीं किया। अनुराग बसु किशोर कुमार के गहरे प्रशंसक हैं परंतु भक्ति भाव से धार्मिक फिल्म बनाई जा सकती है। किशोर कुमार का असल स्वरूप अनेक आवरणों से ढंका है और अनुराग आवरणों के परे मनुष्य को अपनी कमजोरियों और ताकत के साथ प्रस्तुत करना चाहते थे। किसी भी महान व्यक्ति के रिश्तेदार उसके अत्यंत करीबी होने के बावजूद उससे अपरिचित रह सकते हैं और एक अजनबी उस व्यक्ति के अवचेतन का बेहतर जानकार हो सकता है। अनुराग बसु अत्यंत संवेदनशील फिल्मकार है और उनकी निष्ठा पर सवाल नहीं उठाये जा सकते और परिवार के खून के रिश्ते का समुचित आदर करते हुए, यह तो कहा जा सकता है कि उनके पास सृजन का वह माद्दा नहीं है जो विलक्षण किशोर के अंतस को प्रस्तुत कर सके।

बायोपिक फिल्म नायक के जीवन का सिलसिलेवार इतिहास मात्र नहीं होता। 'अमेड्स' नामक नाटक और फिल्म दोनों ही मोजार्ट की विलक्षण प्रतिभा और उसके सनकीपन के पीछे छुपी करुणा को प्रस्तुत करके कालजयी कृतियां बन गई है। किशोर कुमार के सनकीपन के किस्से चुटकुलों की तरह लोकप्रिय हैं परंतु यह किशोर का सच नहीं है। निर्माता रमेश बहल राहुल देव बर्मन के गहरे मित्र होने के कारण किशोर कुमार के भी निकट थे और एक दिन उनके साथ किशोर कुमार से लंबा साक्षात्कार लेने का सौभाग्य खाकसार को मिला। उन्होंने बताया कि किसी की सिफारिश पर अमेरिका में प्रशिक्षित एक भारतीय इंटीरियर डेकोरेटर गर्मी की दोपहर तीन पीस का गरम सूट पहनकर उनसे मिलने आए। किशोर कुमार इस आदमी के ढोंगी पन को पहचान गए और कम समय में पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने उससे कहा कि घर की बैठक एक स्वीमिंग पूल हो, छोटी नाव पर अतिथि बैठें और छोटी सी नौका पर नौकर चाय लाये। यह सुनकर वह 'विशेषज्ञ' भाग गया और उसने प्रचारित किया कि किशोर पागल है। इसी तरह कुछ पत्रकारों ने मूर्खतापूर्व सवाल किए तो किशोर अपने बगीचे में वृक्षों से बात करने लगे। एक बार उन्होंने यूनिट को आउट डोर में ऐसी जगह बुलाया जहां कोई छाया नहीं थी और वह स्वयं शूटिंग पर नहीं आए। दरअसल इसी यूनिट ने कुछ दिन पूर्व मात्र पंद्रह मिनिट निश्चित समय से ऊपर शूटिंग की तो यूनिट ने अपने संघ के नियमानुसार उनसे दो शिफ्ट का मेहनताना लिया था। दरअसल किशोर के हृदय की करुणा आप उनकी 'दूर गगन की छांव' में देख सकते हैं।

वह अनन्य प्रेमी भीड़ के बीच एक तन्हा मायूस व्यक्ति था और जन्मना मायूसी से लडऩे के लिए उसने विविध मुखौटे और हंसोड़ की छवि बनाई थी। सच तो यह है कि कौन किसको जानता है। जब मनुष्य स्वयं को ही नहीं जान पाता। हर मनुष्य अनेक की कल्पना है और स्वयं उसके भीतर एक ब्रह्मांड रहता है।