किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे / जयप्रकाश चौकसे

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किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे
प्रकाशन तिथि : 01 जून 2019


2 जून 1988 को राज कपूर का निधन हुआ और इन 31 वर्षों में उनके पुत्रों ने तीन फिल्में बनाईं। जबकि राज कपूर ने अपने 42 सक्रिय वर्षों में 18 फिल्में बनाई थीं। शांताराम, मेहबूब खान और गुरुदत्त के बेटों ने फिल्में नहीं बनाईं। प्रतिभा वंशानुगत नहीं होती परंतु व्याधियां वंशानुगत होती हैं। कुछ वर्ष पूर्व दबाव के कारण राज कपूर का पूना के निकट ग्राम लोनी में 100 एकड़ का फार्म हाउस बेच दिया गया और कुछ माह पूर्व आरके स्टूडियो भी बेच दिया गया है। 47 विभागों के प्रमाण पत्र लेने के बाद खरीदार को स्टूडियो सौंप दिया जाएगा। उनके विशाल बंगले में उनके ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर अकेले रहते हैं। संभवत इसे भी बेच दिया जाएगा और वे मुंबई के उपनगर बांद्रा में बस जाएंगे। जहां उनकी पुत्रियां रहती हैं। इस तरह फिल्मोद्योग का चेंबूर चैप्टर समाप्त हो जाएगा। नश्वर जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है परंतु अनेक शहरों में राज कपूर स्मृति दिवस मनाया जाता है। इंदौर में भी 2 जून को 'सुरीली बिछात' नामक संस्था ऐसा ही आयोजन माई मंगेशकर सभागार में कराने जा रही है राज कपूर और लता मंगेशकर के आत्मीय संबंध रहे हैं। उन्होंने लता को परामर्श दिया था कि वह अपने दिव्य स्वर को मौलिक शैली में अभिव्यक्त करें। सभी भूतपूर्व गायिकाओं के प्रभाव से मुक्त हो जाएं। एक खूबसूरत अभिनेता और एक सांवली सलोनी गायिका की अंतरंगता की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का विचार 1956 में जन्मा था परंतु फिल्म 1977 में बनाई गई। राज कपूर की सृजन सिगड़ी में धीमी आंच पर पटकथा पकाई जाती थी परंतु अनेक दृश्य त्वरित रचे जाते थे। जो लिखी हुई पटकथा में थे ही नहीं। 'आवारा' का स्वप्न दृश्य मूल पटकथा में नहीं था। दरअसल फिल्म बन जाने के बाद प्रदर्शन की तैयारी चल रही थी तब राज कपूर को लगा कि कहीं कुछ कमी है। फिल्म पूर्व में तय किए गए बजट में बनी थी परंतु स्वप्न दृश्य के लिए 9 मिनट का गीत रिकॉर्ड करने और शूट करने में तय बजट से आधी रकम अतिरिक्त खर्च हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि फिल्म भुलाई जा सकती है परंतु स्वप्न दृश्य और उसका संगीत कभी भुलाया नहीं जा सकता।

उनका भोजन प्रेम उनके जीवन को उत्साह से जीने का एक हिस्सा था। वह थोड़ा-थोड़ा चखते थे। खाने की मेज पर विविध पकवान रखे जाने की उनकी जिद थी। विट्ठल भाई पटेल की पुत्री के विवाह के अवसर पर भी दो रोज सागर में रहे और पटेल परिवार की परंपरा के अनुरूप उन्होंने शाकाहारी भोजन किया तथा शराब को हाथ भी नहीं लगाया। सागर से कार द्वारा भोपाल रवाना होने के पूर्व उनके कहने पर मैंने भोपाल के रशीद खान को निर्देश दिया कि वे पाये 'नॉन वेजिटेरियन पकवान' होटल रैमसन लेकर पहुंचे। कार रवाना होने के घंटे पश्चात राज कपूर ने कार रुकवाई और सड़क के किनारे दरी बिछा कर बैठे और शराब पीना प्रारंभ किया। तय किया गया कि दो पैग पीकर यात्रा जारी रखेंगे परंतु कुछ ट्रक ड्राइवर रुक गए। कोई ढोलक ले आया। गाना, बजाना और पीना चलता रहा। 'चांद तारों के तले रात गाती चली', हम सुबह 4:00 बजे भोपाल पहुंचे और राज कपूर ने पाये मांगे। ज्ञात हुआ कि रशीद खान 2:00 बजे तक इंतजार करने के बाद चला गया। उस समय तक मोबाइल का आविष्कार नहीं हुआ था। बहरहाल राज कपूर ने पाये नहीं मिलने पर कुछ भी नहीं खाया। भोपाल से मुंबई की हवाई यात्रा के बाद मैं अपने वार्डन रोड निवास पर लौटा। फोन आया कि तुरंत राज कपूर निवास पहुंचूं। सारे रास्ते परेशान रहा कि जाने क्या हो गया। कुछ अनहोनी की आशंका हुई। राज कपूर के निवास पर पहुंचा तो उन्होंने कहा कि भोपाल में पाये नहीं खाए यहां बनकर तैयार हैं। आइए पाये खाएं। उन्होंने जोरदार ठहाका लगाया। यह पाया प्रक्रम यहां समाप्त नहीं हुआ। दो वर्ष पश्चात हम हैदराबाद फिल्म समारोह में गए। मैं अपनी पत्नी के साथ सिकंदराबाद के सवेरा होटल में ठहरा था। राज कपूर साहब सपरिवार पांच सितारा होटल बंजारा में ठहरे थे। एक रात 12:00 बजे फोन आया कि नीचे राज कपूर इंतजार कर रहे हैं। बहरहाल उनके साथ कार में रवाना हुआ। एक जगह कार रोकी गई। राज कपूर हमें आंकी-बांकी गलियों में ले गए। जहां एक छोटे से रेस्त्रां में उन्होंने पाये खिलाए। इस बार उनके लगाए ठहाके से रेस्त्रां की जर्जर दीवारें हिल गईं। किस शहर में स्वादिष्ट भोजन का ठिया कहां है, इसकी जानकारी वे रखते थे।

'राम तेरी गंगा मैली' के रजत जयंती समारोह में वे सपरिवार इंदौर पधारे थे। रविंद्र जैन भी अपने वादकों के साथ आए थे। लगभग 6 घंटे चले रंगारंग कार्यक्रम के पश्चात वे भोजन के लिए बैठे तो मैंने तीन जगह पाये प्रस्तुत किए। इस बार ठहाका मैंने लगाया। 'मेरा नाम जोकर' की शूटिंग में रूस का सर्कस बुलाया गया था। उसकी नायिका रिबिनकिना बैले कलाकार थीं। राजू और रिबिनकिना एक-दूसरे को चाहते हैं। काम पूरा करके वह स्वेदश लौट रही है। रिबिनकिना ने मरीना नामक पात्र अभिनीत किया है। दृश्य इस तरह है। विदाई के दृश्य में मरीना पूछती है- 'क्या रो रहे हो राजू'। वह गर्दन हिलाकर इंकार करता है। मरीना कहती है...'अपना चश्मा उतारो' राजू चश्मा उतारता है, उसकी आंखों से दर्द छलक रहा है। मरीना आंसू के मध्य से देखी मुस्कान को समझती है। मरीना कहती है-'हम रूसी भाषा में दसविदानिया कहते हैं अर्थात फिर मिलेंगे। जुदा नहीं होंगे तो फिर कैसे मिलेंगे। राजू कहता है 'मैं फिलोसफर नहीं हूं' मरीना, 'हर जोकर फिलोसफर (दार्शनिक) होता है। मिलना, जुदा होना और फिर मिलना यही तो जिंदगी है।' राजू पूछता है 'फिर मौत क्या होती है'। मरीना कहती है- 'मैं नहीं जानती'। 2 जून 1988 को आम आदमी जान गया कि मौत क्या होती है। इसी बात को शैलेंद्र ने इस तरह प्रस्तुत किया था-'मर कर भी याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे, जीना इसी का नाम है।'