किसी भी नाम से मुझे पुकार लो / जयप्रकाश चौकसे

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किसी भी नाम से मुझे पुकार लो
प्रकाशन तिथि : 18 मई 2019


लंबे समय तक पात्रों के सरनेम नहीं दिए जाते थे, क्योंकि फिल्मकार सेंसर से अधिक हुड़दंग से भयभीत रहते थे। सेंसर बोर्ड में सभी धर्मों की नुमाइंदगी करने वाले सदस्य लिए जाते थे परंतु सिनेमा की समझ होना कभी मानदंड नहीं रहा। कुछ वर्ष पूर्व कुछ फिल्मकारों ने पात्रों को सरनेम देना प्रांरभ किया। गोविंद निहलानी और प्रकाश झा ने पात्रों को सरनेम दिए। पंजाब के स्कूल शिक्षक सीताराम ने भगतसिंह पर शोध करके एक पटकथा लिखी और मनोज कुमार ने फिल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने अपने द्वारा अभिनीत हर पात्र का नाम 'भारत' रखना शुरू किया। वे छद्‌म देशप्रेम की फिल्में बनाने में माहिर माने जाने लगे। यहां तक कि मीडिया में भी उन्हें 'भारत कुमार' कहा जाने लगा।

सलमान खान ने सूरज बड़जात्या की फिल्म 'मैंने प्यार किया' से सितारा हैसियत अर्जित की और बाद में बनी फिल्मों में उनका नाम प्रेम ही रखा गया। इसके बहुत पूर्व राज कपूर की फिल्मों में उनका नाम राज रखा जाने लगा था। सोवियत रूस में 'आवारा' की सफलता के बाद वहां जन्मे शिशुओं के नाम राज और रीता रखे जाने लगे, क्योंकि फिल्म में उनके अभिनीत पात्रों के यही नाम थे। रूस के अवाम को दशकों बाद मालूम पड़ा कि राज कपूर और नरगिस विवाहित नहीं थे।

पारसी समुदाय में व्यक्ति के पेशे से उसका सरनेम बना जैसे दारूवाला, बारूदवाला, बाटलीबॉय इत्यादि। विजय तेंडुलकर के नाटकों में पात्रों के नाम भी इस तरह रखे गए जैसे सखाराम बाइंडर। कुछ व्यवसाय बंद हो गए। एकल सिनेमाघरों की संख्या 11 हजार से घटकर 8 हजार रह गई। दक्षिण भारत में अपने नाम के साथ अपने जन्मस्थान का नाम जोड़ने की परम्परा रही है, परंतु यह अन्य जगह भी हुआ है। मेरे एक प्रोफेसर का नाम बोरगांवकर था। ज्ञातव्य है कि खंडवा और बुरहानपुर के बीच एक छोटा-सा गांव है बोरगांव। वहां जन्मा व्यक्ति विख्यात प्रोफेसर हुआ। शेक्सपियर के एक संवाद का आशय है कि नाम में क्या रखा है, मनुष्य का काम बोलता है। आजमगढ़ में जन्मे महान शायर ने अपना नाम कैफी आज़मी रखा। इसी तरफ कासिफ इंदौरी नामक शायर भी हुए हैं और राहत इंदौरी आज भी मुशायरों में गरजते हैं।

जब हम अंग्रेजों के अधीन थे तब कुछ सृजनधर्मी लोगों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने लिए उपनाम की ईजाद की। हरिकृष्ण विजयवर्गीय को उनके पाठक 'प्रेम' के नाम से जानते रहे हैं। उर्दू अदब में भी तखल्लुस रखे गए। मुअज्जम शाह आलम ने सिंहासन पर बैठते ही अपना नाम बहादुर शाह जफर रखा। महान फिल्म गीतकार शंकर सिंह भी शैलेन्द्र के नाम से विख्यात हुए। कुछ समुदायों में विवाह के पश्चात वधु को ससुराल पक्ष नया नाम देता है। सुशीला को सलमा के नाम से पुकारा जाने लगा। कुछ परिवारों में बच्चों को प्यार से किसी नाम से पुकारते हैं, जो उसका सरनेम नहीं है। इसी तरह रणधीर कपूर 'डब्बू' और ऋषि कपूर 'चिंटू' के नाम से आज भी संबोधित किए जाते हैं, जबकि अब वे नाना और दादा हो चुके हैं। इसी बात से खफा ऋषि कपूर ने अपने पुत्र रणवीर को कभी किसी अन्य नाम से नहीं पुकारा।

प्राय: पुत्र अपने पिता का नाम साथ में जोड़ते हैं। फिल्मकार भंसाली ने अपनी माता 'लीला' का नाम अपने नाम से जोड़ा। उनके पिता की मृत्यु के बाद मां ने ही उन्हें पाला-पोसा था। श्रीलंका में अनेक लोग अपने नाम के साथ अपनी मां का नाम जोड़ते हैं। कुछ लोग किसी कविता को इतना अधिक पसंद करते हैं कि प्रोमीथियस से प्रभावित होकर पुत्र का नाम प्रमुथ्यु रखते हैं। धर्मवीर भारती की एक कविता 'प्रमुथ्यु गाथा' है। सक्सेना स्वयं को कुमार अंबुज लिखते हैं। संपूरन सिंह कालरा स्वयं को गुलज़ार कहते हैं। बौद्ध दर्शन में विश्वास रखने वाली एक महिला ने अपना नाम सुजाता संघमित्रा रखा है। कभी शिशु के जन्म का समय ही उसका नाम तय कर देता है जैसे प्रात: जन्मी ऊषा और शाम को जन्मी कन्या संध्या के नाम से पुकारी जाती हैं। यमुना के किनारे की उपजाऊ मिट्‌टी को रेणु कहते हैं। संभवत: इसलिए फणीश्वरनाथ 'रेणु' कहे जाते हैं परंतु ग्वालियर में जन्मी कन्या का नाम भी रेणु रखा गया है।

एक क्रिकेट टीम वेस्टइंडीज के नाम से खेलती रही है परंतु इस नाम का कोई देश नहीं है। बहुत से छोटे-छोटे द्वीप हैं, जहां के खिलाड़ी वेस्टइंडीज के नाम से खेलते रहे हैं। उन द्वीपों के अलग-अलग संविधान हैं परंतु क्रिकेट टीम इसी नाम से पुकारी जाती थी। अब इसका आिधकारिक नाम इंडीज हो गया है। एक घटना इस तरह है कि बैंक का एक क्लर्क पैसे की हेराफेरी करने के आरोप में पकड़ा गया और उसे सजा हुई। उसके सहृदय जेलर का नाम ओ' हेनरी था। सजा काटने के बाद विलियम सिडनी पोर्टर नामक इस व्यक्ति ने ओ' हेनरी के नाम से कथाएं लिखीं। उनकी कथाएं अपने घुमावदार क्लाइमैक्स के कारण रोचक मानी गईं। उनकी 'गिफ्ट ऑफ मैगी' क्लासिक का दर्जा रखती है।