किस्सा तोता-मैना के बहाने / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
किस्सा तोता-मैना के बहाने
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2013


अमित रॉय और विकास शर्मा 'ऑल इंडिया रेडियो' नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं, जिसके प्रारंभ में अलग-अलग जगहों पर पांच लोग 'ऑल इंडिया रेडियो' पर एक गाना सुन रहे हैं। फिल्म में पांच अलग-अलग कहानियां प्रस्तुत हैं, जो जन्म, बचपन, कमसिन उम्र, सेक्स और मृत्यु के रहस्य को प्रस्तुत करने का प्रयास है। फिल्म की पांच कहानियों में दो के लिए ओम पुरी और परेश रावल अनुबंधित किए जा चुके हैं, परंतु ये दोनों अनुभवी कलाकार एक साथ परदे पर प्रस्तुत नहीं होंगे।

ओम पुरी दादा के रूप में अपनी पोती को पाल रहे हैं और इसमें बचपन के रहस्य उजागर होंगे, तो परेश रावल मृत्यु वाली कहानी के केंद्रीय पात्र हैं। इस तरह के प्रयोग सिनेमा में कई बार हुए हैं कि एक ही फिल्म में अनेक कहानियां शामिल हैं और ऐसी फिल्मों की संख्या भी कम नहीं, जिनमें कहानी ही नहीं है। गोयाकि कड़ाही में मसाले ही मसाले हैं, परंतु सब्जी या गोश्त नहीं है। भुने हुए मसालों का कोरमानुमा फिल्में बनती रही हैं और इनमें से कुछ सफल भी हुई हैं। सबसे पहले ख्वाजा अहमद अब्बास ने 'चार दिल चार राहें' में चार कहानियां प्रस्तुत की थीं। शांताराम ने चौथे दशक में 'अमृत मंथन' में एक ही कथा को मध्यांतर तक सेनापति के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया और मध्यांतर के बाद वही कथा मंत्री सुना रहे हैं। पहले हिस्से में राजा और रानी धर्म के नाम पर ढकोसलों का विरोध करते हुए खलनायक हैं तथा दूसरे में अपनी सत्ता का लाभ अवाम को देने वाले नायक हैं। यह फिल्म उस समय बनी थी, जब दुनिया के किसी भी देश में सिनेमा माध्यम में प्रयोग नहीं हुए थे।

कुछ वर्ष पूर्व ही अनुराग बसु ने 'लाइफ इन ए... मेट्रो' में अनेक कथाओं को समानांतर प्रस्तुत किया था। तथ्य यह है कि सिनेमा के हर कालखंड में मसाला फिल्मों के साथ सार्थक प्रयोग भी हुए हैं। यही हिंदुस्तानी सिनेमा का मिजाज है। हिंदुस्तान का अवाम भी परिभाषाओं के परे अजब-गजब विविध रुचियों वाला देश रहा है। यहां सामूहिक अवचेतन का निर्माण विविध रेशों से हुआ है, जिनमें मलमल के साथ ही टाट भी शामिल है। कभी यह देश कबीर का बुना हुआ मोटा कपड़ा रहा है, कभी गांधीजी के चरखे पर काता सूत रहा है, परंतु वर्तमान में यह टूटता-सा लग रहा है, परंतु टूटकर जुड़ जाना भी इसका चरित्र रहा है।

हमारे यहां अनेक महाकाव्य एवं किंवदंतियां लोकप्रिय रही हैं तो 'किस्सा तोता-मैना' भी खूब पढ़ा गया है और भारत ही नहीं, अन्य देशों में एपिक्स के साथ अरेबियन नाइट्स भी रची गई हैं। 'किस्सा तोता-मैना' की कथा इस तरह है कि एक घने वृक्ष पर एक रात तोता आता है और अपना घोंसला बनाना चाहता है, परंतु वृक्ष पर एकाधिकार जमाए बैठी है मैना और वह तोते से लड़ती है। तोता कारण पूछता है तो वह बेवफा राजा, राजकुमारों की कहानियां सुनाती है। उसकी हर कथा के जवाब में तोता एक चरित्रहीन स्त्री की कथा सुनाता है। अगर हम तोता-मैना की कथाओं को सही मानें तो सारे पुरुष बेवफा हैं और सारी स्त्रियां चरित्रहीन हैं, परंतु यथार्थ जीवन में ऐसा नहीं है। इस तरह की तमाम कथाओं को लोक-कथा कहकर बर्दाश्त करने की सलाह दी जाती है, परंतु गौरतलब यह है कि इस तरह का गल्प किसने लिखा और क्यों लिखा तथा उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि ये लुगदी लोकप्रिय क्यों हुई? इस तरह की तमाम लोकप्रिय लुगदी रचनाओं में प्रच्छन्न सेक्स है और सीधे उस शास्त्र की बात नहीं करते हुए घुमा-फिराकर झूठ परोसा गया है। सदियों तक लोग इसे गटकते रहे हैं और आज भी अपने परिवर्तित रूप में इस तरह के किस्से लोकप्रिय हैं। मूल किस्से में तोता एक चरित्रहीन स्त्री की कथा सुनाता है कि राजा के दबाव में राजकुमार ने शादी की, परंतु उसका दिल तो उसने एक दासी को दे रखा था। दुखी पत्नी को एक बूढ़ी स्त्री ने वशीकरण दवा दी। ज्ञातव्य है कि वशीकरण दूसरे नंबर की फंतासी रही है। पत्नी को संदेह हुआ, कहीं यह जहर तो नहीं। उसने उसे बगीचे में फेंका, जहां एक कोबरे ने उसे चखा और वशीभूत इच्छाधारी कोबरे ने पति के वेश में उसके साथ महीनों बिताए गर्भवती होने पर राजदरबार में उसने अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए नाग परीक्षा देने की पहल की, जैसा कि प्रेमी कोबरा ने उसे समझाया था। भरे दरबार में उसने कोबरा के मुंह में हाथ दिया और पवित्रता इस तरह सिद्ध हुई कि पति को भी विश्वास हो गया कि गफलत में उसने ही उसे गर्भवती बनाया है। दरबार में पवित्रता सिद्ध करने के ऐवज में सौतन उसकी दासी बना दी गई। प्रेमी कोबरा से दूरी सहन नहीं हो रही थी और वह अपनी प्रेयसी के जीवन में कोई कष्ट नहीं देना चाहता था, अत: उसने पत्नी के केश में घुसकर प्राण दे दिए और पत्नी ने उसे जलाने का आदेश दिया। मैना भी एक बेवफा राजकुमार की कहानी कहती है कि किस तरह छोटे राजकुमार ने छोटी जादूगरनी के सच्चे प्यार का लाभ उठाकर अपने भाइयों को आजाद कराया और अपने राज्य में आने पर जादूगरनी को मरवा दिया।

इस तरह के अनेक किस्से अनेक किताबें हैं, सभी सेक्स और प्रतिहिंसा से ओतप्रोत। क्या महाकाव्यों के साथ ही ऐसी रचनाओं के धागों से हमारा अवचेतन नहीं बना है? दिल्ली में घटित बर्बरता पर भांति-भांति के बयान इसी अवचेतन की कोख से जन्मे हैं। पूरे देश में सच्चे विद्वानों द्वारा सारे किस्सों और किंवदंतियों का पुनरावलोकन और निर्ममता से फूहड़ता को खारिज करने से ही स्वस्थ तर्कपूर्ण सोच पनपेगा। जड़ पर प्रहार इसी लंबी विज्ञानसम्मत प्रक्रिया से संभव है।